फुलैरा दौज: Difference between revisions

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#प्रसाद में सफ़ेद मिठाई, पंचामृत और मिश्री अर्पित करें।
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#तत्पश्चात 'मधुराष्टक' या 'राधा कृपा कटाक्ष' का पाठ करना चाहिए।
#तत्पश्चात् 'मधुराष्टक' या 'राधा कृपा कटाक्ष' का पाठ करना चाहिए।
#यदि पाठ करना कठिन हो तो केवल 'राधे-कृष्ण' का जाप कर सकते हैं।
#यदि पाठ करना कठिन हो तो केवल 'राधे-कृष्ण' का जाप कर सकते हैं।
#श्रृंगार की वस्तुओं का दान अवश्य करना चाहिए तथा प्रसाद ग्रहण करें।
#श्रृंगार की वस्तुओं का दान अवश्य करना चाहिए तथा प्रसाद ग्रहण करें।

Revision as of 07:42, 23 June 2017

फुलैरा दौज
विवरण 'फुलैरा दौज' फाल्गुन माह में मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का प्रमुख त्योहार है। इस दिन श्रीराधा-कृष्ण की पूजा की जाती है।
माह फाल्गुन
तिथि शुक्ल पक्ष, द्वितीया
विशेष महत्त्व ज्योतिष के अनुसार यदि कोई नया काम शुरू करना चाहता है तो फुलैरा दूज का दिन इसके लिए सबसे उत्तम रहता है।
अन्य जानकारी कृष्ण भक्त इस दिन को बड़े उत्साह से मनाते हैं। राधे-कृष्ण को गुलाल लगाते हैं। भोग, भजन-कीर्तन करते हैं, क्योंकि फुलैरा दूज का दिन कृष्ण से प्रेम को जताने का दिन है।

फुलैरा दौज अथवा 'फुलैरा दूज' (अंग्रेज़ी: Phulera Dooj) हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध त्योहारों में से है। बसंत पंचमी और होली के बीच फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलैरा दूज मनाया जाता है। ज्योतिष जानकारों की मानें तो फुलैरा दूज पूरी तरह दोषमुक्त दिन है। इस दिन का हर क्षण शुभ होता है। इसलिए कोई भी शुभ काम करने से पहले मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती।

महत्त्व

  1. फुलैरा दूज मुख्य रूप से बसंत ऋतु से जुड़ा त्योहार है। वैवाहिक जीवन और प्रेम संबंधों को अच्छा बनाने के लिए इसे मनाया जाता है।
  2. फुलैरा दूज वर्ष का 'अबूझ मुहूर्त' भी माना जाता है, इस दिन कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं।
  3. फुलैरा दूज में मुख्य रूप से श्रीराधा-कृष्ण की पूजा की जाती है। जिनकी कुंडली में प्रेम का अभाव हो, उन्हें इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।
  4. वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर करने के लिए भी इस दिन पूजा की जाती है।

ज्योतिष के अनुसार यदि कोई नया काम शुरू करना चाहता है तो फुलैरा दूज का दिन इसके लिए सबसे उत्तम रहता है। माना जाता है कि इस दिन में साक्षात श्रीकृष्ण का अंश होता है तो जो भक्त प्रेम और श्रद्धा से राधा-कृष्ण की उपासना करते हैं, श्रीकृष्ण उनके जीवन में प्रेम और खुशियां बरसाते हैं।[1]

पर्व मनाने की विधि

  1. शाम को स्नान करके पूरा श्रृंगार करना चाहिए।
  2. राधा-कृष्ण को सुगन्धित फूलों से सजाएं।
  3. राधा-कृष्ण को सुगंध और अबीर-गुलाल भी अर्पित कर सकते हैं।
  4. प्रसाद में सफ़ेद मिठाई, पंचामृत और मिश्री अर्पित करें।
  5. तत्पश्चात् 'मधुराष्टक' या 'राधा कृपा कटाक्ष' का पाठ करना चाहिए।
  6. यदि पाठ करना कठिन हो तो केवल 'राधे-कृष्ण' का जाप कर सकते हैं।
  7. श्रृंगार की वस्तुओं का दान अवश्य करना चाहिए तथा प्रसाद ग्रहण करें।


कृष्ण भक्त इस दिन को बड़े उत्साह से मनाते हैं। राधे-कृष्ण को गुलाल लगाते हैं। भोग, भजन-कीर्तन करते हैं, क्योंकि फुलैरा दूज का दिन कृष्ण से प्रेम को जताने का दिन है। इस दिन भक्त कान्हा पर जितना प्रेम बरसाते हैं, उतना ही प्रेम कान्हा भी अपने भक्तों पर लुटाते हैं।

खुशियाँ बिखेरने का दिन

फुलैरा दौज को फूलों का त्योहार भी कहते हैं, क्योंकि फाल्गुन महीने में कई तरह के सुंदर और रंग-बिरंगे फूलों का आगमन होता है और इन्हीं फूलों से राधे-कृष्ण का श्रृंगार किया जाता है। फुलैरा दौज के दिन से ही लोग होली के रंगों की शुरुआत कर देते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन से ही भगवान कृष्ण होली की तैयारी करने लगते थे और होली आने पर पूरे गोकुल को गुलाल से रंग देते थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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