सफला एकादशी: Difference between revisions

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==व्रत और विधि==
==व्रत और विधि==
इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि प्रातः स्नान करके भगवान की आरती कर भोग लगाए। इस दिन अगरबत्ती, [[नारियल]], सुपारी, [[आंवला]], [[अनार]] तथा [[लौंग]] आदि से श्री [[नारायण]] जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इस दिन दीपदान व रात्रि जागरण का बड़ा महत्त्व है। इस व्रत को करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। इसीलिए इसका नाम सफला एकादशी है।
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Latest revision as of 05:44, 13 December 2017

सफला एकादशी
अनुयायी हिंदू
उद्देश्य इस व्रत को करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। इसीलिए इसका नाम सफला एकादशी है।
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि पौष कृष्ण पक्ष एकादशी
उत्सव इस दिन भगवान अच्युत (विष्णु) की पूजा की जाती है।
अनुष्ठान इस दिन अगरबत्ती, नारियल, सुपारी, आंवला, अनार तथा लौंग आदि से श्री नारायण जी का विधिवत पूजन करना चाहिए।
धार्मिक मान्यता इस दिन दीपदान व रात्रि जागरण का बड़ा महत्त्व है।

सफला एकादशी (अंग्रेज़ी: Saphala Ekadashi, पौष मास में कृष्ण पक्ष एकादशी को कहा जाता है। इस दिन भगवान अच्युत (विष्णु) की पूजा की जाती है।

व्रत और विधि

इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि प्रातः स्नान करके भगवान की आरती कर भोग लगाए। इस दिन अगरबत्ती, नारियल, सुपारी, आंवला, अनार तथा लौंग आदि से श्री नारायण जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इस दिन दीपदान व रात्रि जागरण का बड़ा महत्त्व है। इस व्रत को करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। इसीलिए इसका नाम सफला एकादशी है।

कथा

प्राचीन काल में चम्पावती नगर में राजा महिष्मत राज्य करता था। उसके चार पुत्र थे। सबसे छोटा पुत्र लुम्पक बहुत दुष्ट और पापी था। वह पिता के धन को कुकर्मों में नष्ट करता था और अनाप-शनाप खर्च करता था। राजा ने उसे कई बार समझाया, किंतु वह नहीं माना। दु:खी होकर राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया। जंगलों में भटकते हुए भी उसने अपनी आदतें नहीं छोड़ीं और जंगल में जानवरों को मारकर उनका माँस भक्षण करने लगा। एक बार लूटमार के दौरान उसे तीन दिन तक भूखा रहना पड़ा। भूख से दु:खी होकर उसने एक साधु की कुटिया में डाका डाला। उस दिन 'सफला एकादशी' होने के कारण उसे कुटिया में कुछ भी खाने को नहीं मिला और वह महात्मा की नज़रों से भी न बच सका। महात्मा ने अपने तप से सब कुछ जान लिया। इसके बावजूद महात्मा ने उसे वस्त्रादि दिए तथा सद्-भावना से सत्कार किया। महात्मा के इस व्यवहार से लुम्पक की बुद्धि में परिवर्तन आ गया। वह सोचने लगा- 'यह कितना अच्छा मनुष्य है। मैं तो इसके यहाँ चोरी करने आया था, पर इसने मेरा सत्कार किया। मैं भी तो मनुष्य हूँ।' यह सोच उसे अपनी भूल का अहसास हो गया। वह क्षमा याचना करता हुआ उस साधु के चरणों में गिर पड़ा तथा स्वयं ही उन्हें सब कुछ सच-सच बता दिया। साधु के आदेश से लुम्पक वहीं रहने लगा। अब वह साधु द्वारा लाई भिक्षा से जीवन यापन करता। धीरे-धीरे उसके चरित्र के सारे दोष दूर हो गए। वह महात्मा की आज्ञा से 'एकादशी' का व्रत करने लगा। जब वह बिल्कुल बदल गया तो महात्मा ने उसके सामने अपना असली रूप प्रकट किया। महात्मा के वेश में स्वयं महाराज महिष्मत थे। पुत्र को सद्-गुणों से युक्त देखकर वह उसे राजमहल ले आए और सारा राजकाज उसे सौंप दिया। प्रजा उसके चरित्र में परिवर्तन देखकर चकित रह गई। लुम्पक आजीवन 'सफला एकादशी' का व्रत तथा प्रचार करता रहा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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