नरक चतुर्दशी: Difference between revisions

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'''नरक चतुर्दशी''' [[कार्तिक माह]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] को कहा जाता है। इस चतुर्दशी को 'नरक चौदस', 'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' के नाम से भी जाना जाता है। [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन मृत्यु के [[देवता]] यमराज की [[पूजा]] का विधान है। नरक चतुर्दशी को '[[दीपावली|छोटी दीपावली]]' भी कहते हैं। दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात [[दीपक]] प्रज्जवलित किए जाते हैं। इस चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा व उपासना की जाती है।
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'''नरक चतुर्दशी''' [[कार्तिक माह]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] को कहा जाता है। नरक चतुर्दशी को 'छोटी दीपावली' भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को 'नरक चौदस', 'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' के नाम से भी जाना जाता है। [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन मृत्यु के [[देवता]] [[यमराज]] की [[पूजा]] का विधान है। [[दीपावली]] से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात् [[दीपक]] प्रज्जवलित किए जाते हैं। इस चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा व उपासना की जाती है।
==पौराणिक कथाएँ==
इस चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथाएँ इस प्रकार हैं-
इस चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथाएँ इस प्रकार हैं-
;प्रथम कथानुसार-
;प्रथम कथा-
एक कथा के अनुसार रन्तिदेव नामक एक राजा हुए थे। वह बहुत ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा पुरूष थे। सदैव [[धर्म]], कर्म के कार्यों में लगे रहते थे। जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उन्हें लेने के लिए आये। वे दूत राजा को नरक में ले जाने के लिए आगे बढ़े। यमदूतों को देख कर राजा आश्चर्य चकित हो गये और उन्होंने पूछा- "मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं। कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताइये, कि किस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा ह।". राजा की करूणा भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा- "हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से एक [[ब्राह्मण]] भूखा ही लौट गया था, जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है।
एक [[कथा]] के अनुसार रन्तिदेव नामक एक राजा हुए थे। वह बहुत ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा पुरुष थे। सदैव [[धर्म]], कर्म के कार्यों में लगे रहते थे। जब उनका अंतिम समय आया तो [[यमराज]] के दूत उन्हें लेने के लिए आये। वे दूत राजा को [[नरक]] में ले जाने के लिए आगे बढ़े। यमदूतों को देख कर राजा आश्चर्य चकित हो गये और उन्होंने पूछा- "मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझेनरकमें क्यों भेज रहे हैं। कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताइये, कि किस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा ह।". राजा की करुणा भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा- "हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से एक [[ब्राह्मण]] भूखा ही लौट गया था, जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है।


राजा ने यमदूतों से विनती करते हुए कहा कि वह उसे एक वर्ष का और समय देने की कृपा करें। राजा का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगे और राजा को एक वर्ष की आयु प्रदान कर वे चले गये। यमदूतों के जाने के बाद राजा इस समस्या के निदान के लिए ऋषियों के पास गया और उन्हें समस्त वृत्तांत बताया। ऋषि राजा से कहते हैं कि यदि राजन [[कार्तिक माह]] की [[कृष्ण पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] का व्रत करे, ब्रह्मणों को भोजन कराये और उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करे तो वह पाप से मुक्त हो सकता है। ऋषियों के कथन के अनुसार राजा कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करता है। इस प्रकार वह पाप से मुक्त होकर भगवान [[विष्णु]] के वैकुण्ठ धाम को पाता है।
राजा ने यमदूतों से विनती करते हुए कहा कि वह उसे एक वर्ष का और समय देने की कृपा करें। राजा का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगे और राजा को एक वर्ष की आयु प्रदान कर वे चले गये। यमदूतों के जाने के बाद राजा इस समस्या के निदान के लिए ऋषियों के पास गया और उन्हें समस्त वृत्तांत बताया। ऋषि राजा से कहते हैं कि यदि राजन [[कार्तिक माह]] की [[कृष्ण पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] का व्रत करे और ब्राह्मणों को भोजन कराये और उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करे तो वह पाप से मुक्त हो सकता है। ऋषियों के कथन के अनुसार राजा कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करता है। इस प्रकार वह पाप से मुक्त होकर भगवान [[विष्णु]] के वैकुण्ठ धाम को पाता है।
;द्वितीय कथानुसार-
;द्वितीय कथा-
एक अन्य प्रसंगानुसार भगवान [[श्रीकृष्ण]] ने कार्तिक माह में कृष्ण चतुर्दशी के दिन [[नरकासुर]] का वध करके [[देवता|देवताओं]] व [[ऋषि|ऋषियों]] को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी। इसके साथ ही कृष्ण भगवान ने सोलह हज़ार कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त करवाया। इसी उपलक्ष्य में नगरवासियों ने नगर को [[दीपक|दीपों]] से प्रकाशित किया और उत्सव मनाया। तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा।
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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
दैत्यराज बलि बोले- "प्रभु ! आपने [[कार्तिक]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] त्रयोदशी से लेकर [[अमावस्या]] की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली। इन तीन दिनों में प्रतिवर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए और इन तीन दिन की अवधि में जो व्यक्ति मेरे राज्य में [[दीपावली]] मनाये उसके घर में [[लक्ष्मी]] का स्थायी निवास हो तथा जो व्यक्ति [[चतुर्दशी]] के दिन नरक के लिए दीपों का दान करेंगे, उनके सभी पितर कभी नरक में ना रहें, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए।” राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- "राजन ! मेरा वरदान है की जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी [[यमराज]] को दीपदान करेंगे, उनके सभी पितर लोग कभी भी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी कहीं भी नहीं जायेंगी। जो इन तीन दिनों में बलि के राज में दीपावली नहीं करेंगे, उनके घर में [[दीपक]] कैसे जलेंगे? तीन दिन [[बलि]] के राज में जो मनुष्य उत्साह नहीं करते, उनके घर में सदा शोक रहे।” भगवान वामन द्वारा बलि को दिये इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरम्भ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।<ref>{{cite web |url=http://www.amitbehorey.com/astroprayag/narak-chaturdashi/|title=नरक चतुर्दशी |accessmonthday= 29 अक्टूबर|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=amitbehorey.com |language= हिंदी}}</ref>
==रूप चतुर्दशी==
नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। आज के दिन सूर्योदय से पूर्व [[स्नान]] अवश्य करना चाहिए। सूर्योदय से पूर्व तिल्ली के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए, उसके बाद अपामार्ग का प्रोक्षण करना चाहिए तथा लौकी के टुकडे और अपामार्ग दोनों को अपने सिर के चारों ओर सात बार घुमाएं। ऐसा करने से नरक का भय दूर होता है। साथ ही [[पद्मपुराण]] के मंत्र का पाठ करें।
 
::"सितालोष्ठसमायुक्तं संकटकदलान्वितम। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:॥"
 
अर्थात् "हे तुम्बी (लौकी) हे अपामार्ग तुम बार बार फिराए जाते हुए मेरे पापों को दूर करो और मेरी कुबुद्धि का नाश  कर दो।”
 
फिर [[स्नान]] करें और स्नान के उपरांत लौकी और अपामार्ग को घर के दक्षिण दिशा में विसर्जित कर देना चाहिए। इससे रूप बढ़ता है और शरीर स्वस्थ्य रहता है। आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से मनुष्य नरक के भय से मुक्त हो जाता है।
 
[[पद्मपुराण]] में लिखा है कि- "जो मनुष्य सूर्योदय से पूर्व स्नान करता है, वह [[यमलोक]] नहीं जाता है अर्थात् नरक का भागी नहीं होता है।"
 
[[भविष्यपुराण]] के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके पिछले एक वर्ष के समस्त पुण्य कार्य समाप्त हो जाते हैं। इस दिन स्नान से पूर्व तिल्ली के तेल की मालिश करनी चाहिए, यद्यपि कार्तिक मास में तेल की मालिश वर्जित होती है, किन्तु नरक चतुर्दशी के दिन इसका विधान है। नरक चतुर्दशी को तिल्ली के तेल में लक्ष्मी जी तथा जल में गंगाजी का निवास होता है।
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
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{{व्रत और उत्सव}}{{पर्व और त्योहार}}
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Latest revision as of 06:04, 21 October 2022

नरक चतुर्दशी
अन्य नाम 'छोटी दीपावली', 'नरक चौदस', 'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी', 'नरका पूजा'
अनुयायी हिंदू
उद्देश्य इस चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा व उपासना की जाती है।
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी
धार्मिक मान्यता भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह में कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके देवताओंऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी।
अन्य जानकारी दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात् दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं।
अद्यतन‎

नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को कहा जाता है। नरक चतुर्दशी को 'छोटी दीपावली' भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को 'नरक चौदस', 'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात् दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं। इस चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा व उपासना की जाती है।

पौराणिक कथाएँ

इस चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथाएँ इस प्रकार हैं-

प्रथम कथा-

एक कथा के अनुसार रन्तिदेव नामक एक राजा हुए थे। वह बहुत ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा पुरुष थे। सदैव धर्म, कर्म के कार्यों में लगे रहते थे। जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उन्हें लेने के लिए आये। वे दूत राजा को नरक में ले जाने के लिए आगे बढ़े। यमदूतों को देख कर राजा आश्चर्य चकित हो गये और उन्होंने पूछा- "मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझेनरकमें क्यों भेज रहे हैं। कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताइये, कि किस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा ह।". राजा की करुणा भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा- "हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा ही लौट गया था, जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है।

राजा ने यमदूतों से विनती करते हुए कहा कि वह उसे एक वर्ष का और समय देने की कृपा करें। राजा का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगे और राजा को एक वर्ष की आयु प्रदान कर वे चले गये। यमदूतों के जाने के बाद राजा इस समस्या के निदान के लिए ऋषियों के पास गया और उन्हें समस्त वृत्तांत बताया। ऋषि राजा से कहते हैं कि यदि राजन कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करे और ब्राह्मणों को भोजन कराये और उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करे तो वह पाप से मुक्त हो सकता है। ऋषियों के कथन के अनुसार राजा कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करता है। इस प्रकार वह पाप से मुक्त होकर भगवान विष्णु के वैकुण्ठ धाम को पाता है।

द्वितीय कथा-

एक अन्य प्रसंगानुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह में कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके देवताओंऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी। इसके साथ ही कृष्ण भगवान ने सोलह हज़ार कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त करवाया। इसी उपलक्ष्य में नगरवासियों ने नगर को दीपों से प्रकाशित किया और उत्सव मनाया। तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा।

तृतीय कथा-

जब भगवान वामन ने त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को तीन कदम में नाप दिया तो राजा बलि जो की परम दानी थे, उन्होंने अपना पूरा राज्य भगवान विष्णु के अवतार भगवान वामन को दान कर दिया। इस पर भगवान वामन ने प्रसन्न होकर बलि से वर मांगने को कहा। बलि ने भगवान से कहा कि, "हे प्रभु ! मैंने जो कुछ आपको दिया है, उसे तो मैं मांगूंगा नहीं और न ही अपने लिए कुछ और मांगूंगा, लेकिन संसार के लोगों के कल्याण के लिए मैं एक वर मांगता हूँ। आपकी शक्ति है, तो दे दीजिये।" *भगवान वामन ने कहा, "क्या वर मांगन चाहते हो राजन?”

दैत्यराज बलि बोले- "प्रभु ! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली। इन तीन दिनों में प्रतिवर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए और इन तीन दिन की अवधि में जो व्यक्ति मेरे राज्य में दीपावली मनाये उसके घर में लक्ष्मी का स्थायी निवास हो तथा जो व्यक्ति चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करेंगे, उनके सभी पितर कभी नरक में ना रहें, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए।” राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- "राजन ! मेरा वरदान है की जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके सभी पितर लोग कभी भी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी कहीं भी नहीं जायेंगी। जो इन तीन दिनों में बलि के राज में दीपावली नहीं करेंगे, उनके घर में दीपक कैसे जलेंगे? तीन दिन बलि के राज में जो मनुष्य उत्साह नहीं करते, उनके घर में सदा शोक रहे।” भगवान वामन द्वारा बलि को दिये इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरम्भ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।[1]

रूप चतुर्दशी

नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान अवश्य करना चाहिए। सूर्योदय से पूर्व तिल्ली के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए, उसके बाद अपामार्ग का प्रोक्षण करना चाहिए तथा लौकी के टुकडे और अपामार्ग दोनों को अपने सिर के चारों ओर सात बार घुमाएं। ऐसा करने से नरक का भय दूर होता है। साथ ही पद्मपुराण के मंत्र का पाठ करें।

"सितालोष्ठसमायुक्तं संकटकदलान्वितम। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:॥"

अर्थात् "हे तुम्बी (लौकी) हे अपामार्ग तुम बार बार फिराए जाते हुए मेरे पापों को दूर करो और मेरी कुबुद्धि का नाश कर दो।”

फिर स्नान करें और स्नान के उपरांत लौकी और अपामार्ग को घर के दक्षिण दिशा में विसर्जित कर देना चाहिए। इससे रूप बढ़ता है और शरीर स्वस्थ्य रहता है। आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से मनुष्य नरक के भय से मुक्त हो जाता है।

पद्मपुराण में लिखा है कि- "जो मनुष्य सूर्योदय से पूर्व स्नान करता है, वह यमलोक नहीं जाता है अर्थात् नरक का भागी नहीं होता है।"

भविष्यपुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके पिछले एक वर्ष के समस्त पुण्य कार्य समाप्त हो जाते हैं। इस दिन स्नान से पूर्व तिल्ली के तेल की मालिश करनी चाहिए, यद्यपि कार्तिक मास में तेल की मालिश वर्जित होती है, किन्तु नरक चतुर्दशी के दिन इसका विधान है। नरक चतुर्दशी को तिल्ली के तेल में लक्ष्मी जी तथा जल में गंगाजी का निवास होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नरक चतुर्दशी (हिंदी) amitbehorey.com। अभिगमन तिथि: 29 अक्टूबर, 2016।

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