अकबर की राजस्थान विजय: Difference between revisions
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'''जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर''' [[भारत]] का महानतम मुग़ल शंहशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। [[अकबर]] को अकबर- | '''जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर''' [[भारत]] का महानतम मुग़ल शंहशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। [[अकबर]] को '''अकबर-ए-आज़म''', '''शहंशाह अकबर''' तथा '''महाबली शहंशाह''' के नाम से भी जाना जाता है। | ||
[[राजस्थान]] के [[राजपूत]] शासक अपने पराक्रम, | [[राजस्थान]] के [[राजपूत]] शासक अपने पराक्रम, आत्मसम्मान एवं स्वतन्त्रता के लिए प्रसिद्ध थे। अकबर ने राजपूतों के प्रति विशेष नीति अपनाते हुए उन राजपूत शासकों से मित्रता एवं वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये, जिन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। किन्तु जिन्होंने अधीनता स्वीकार नहीं की, उनसे युद्ध के द्वारा अधीनता स्वीकार करवाने का प्रयत्न किया।<br /> | ||
*'''आमेर (जयपुर)''' - 1562 ई. में अकबर द्वारा [[अजमेर]] की | *'''आमेर (जयपुर)''' - 1562 ई. में अकबर द्वारा [[अजमेर]] की [[मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह|शेख मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह]] की यात्रा के समय उसकी मुलाकात [[आमेर]] के शासक [[भारमल|राजा भारमल]] से हुई। भारमल प्रथम राजपूत शासक था, जिसने स्वेच्छा से अकबर की अधीनता स्वीकार की। कालान्तर में भारमल या बिहारीमल की [[पुत्री]] से अकबर ने [[विवाह]] कर लिया, जिससे [[जहाँगीर]] पैदा हुआ। अकबर ने भारमल के पुत्र ([[दत्तक पुत्र|दत्तक]]) भगवानदास एवं पौत्र [[मानसिंह]] को उच्च मनसब प्रदान किया। | ||
*'''मेड़ता''' - यहाँ का शासक जयमल [[मेवाड़]] के राजा उदयसिंह का सामन्त था। मेड़ता पर आक्रमण के समय [[मुग़ल]] सेना का नेतृत्व सरफ़ुद्दीन कर रहा था। उसने जयमल एवं देवदास से मेड़ता को छीनकर 1562 ई. में मुग़लों के अधीन कर दिया। | *'''मेड़ता''' - यहाँ का शासक जयमल [[मेवाड़]] के राजा उदयसिंह का सामन्त था। मेड़ता पर आक्रमण के समय [[मुग़ल]] सेना का नेतृत्व सरफ़ुद्दीन कर रहा था। उसने जयमल एवं देवदास से मेड़ता को छीनकर 1562 ई. में मुग़लों के अधीन कर दिया। | ||
*'''मेवाड़''' - ‘[[मेवाड़]]’ राजस्थान का एक मात्र ऐसा राज्य था, जहाँ के राजपूत शासकों ने मुग़ल शासन का सदैव विरोध किया। अकबर का समकालीन मेवाड़ शासक सिसोदिया वंश का राणा उदयसिंह था, जिसने मुग़ल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। अकबर ने मेवाड़ को अपने अधीन करने के लिए 1567 ई. में [[चित्तौड़]] के क़िले पर आक्रमण कर दिया। उदयसिंह क़िले की सुरक्षा का भार जयमल एवं फत्ता ([[फ़तेह सिंह]]) को सौंप कर समीप की पहाड़ियों में खो गया। इन दो वीरों ने बड़ी बहादुरी से मुग़ल सेना का मुकाबला किया अन्त में दोनों युद्ध क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हुए। अकबर ने क़िले पर अधिकार के बाद लगभग 30,000 [[राजपूत|राजपूतों]] का कत्ल करवा दिया। यह नरसंहार अकबर के नाम पर एक बड़े धब्बे के रूप में माना गया, जिसे मिटाने के लिए अकबर ने [[आगरा]] क़िले के दरवाज़े पर जयमल एवं फत्ता की वीरता की स्मृति में उनकी प्रस्तर मूर्तियाँ स्थापित करवायीं। 1568 ई. में मुग़ल सेना ने मेवाड़ की राजधानी एवं चित्तौड़ के क़िले पर अधिकार कर लिया। अकबर ने चित्तौड़ की विजय के स्मृतिस्वरूप वहाँ की महामाता मंदिर से विशाल झाड़फानूस [[अवशेष]] आगरा ले आया। | *'''मेवाड़''' - ‘[[मेवाड़]]’ [[राजस्थान]] का एक मात्र ऐसा राज्य था, जहाँ के राजपूत शासकों ने मुग़ल शासन का सदैव विरोध किया। अकबर का समकालीन मेवाड़ शासक सिसोदिया वंश का राणा उदयसिंह था, जिसने मुग़ल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। अकबर ने मेवाड़ को अपने अधीन करने के लिए 1567 ई. में [[चित्तौड़]] के क़िले पर आक्रमण कर दिया। उदयसिंह क़िले की सुरक्षा का भार जयमल एवं फत्ता ([[फ़तेह सिंह]]) को सौंप कर समीप की पहाड़ियों में खो गया। इन दो वीरों ने बड़ी बहादुरी से मुग़ल सेना का मुकाबला किया अन्त में दोनों युद्ध क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हुए। अकबर ने क़िले पर अधिकार के बाद लगभग 30,000 [[राजपूत|राजपूतों]] का कत्ल करवा दिया। यह नरसंहार अकबर के नाम पर एक बड़े धब्बे के रूप में माना गया, जिसे मिटाने के लिए अकबर ने [[आगरा]] क़िले के दरवाज़े पर जयमल एवं फत्ता की वीरता की स्मृति में उनकी प्रस्तर मूर्तियाँ स्थापित करवायीं। 1568 ई. में मुग़ल सेना ने मेवाड़ की राजधानी एवं चित्तौड़ के क़िले पर अधिकार कर लिया। अकबर ने चित्तौड़ की विजय के स्मृतिस्वरूप वहाँ की महामाता मंदिर से विशाल झाड़फानूस [[अवशेष]] आगरा ले आया। | ||
*'''रणथंभौर विजय''' - [[रणथंभौर]] के शासक [[बूँदी]] के हाड़ा राजपूत सुरजन राय से अकबर ने 18 मार्च, 1569 ई. में दुर्ग को अपने क़ब्ज़े में ले लिया। | *'''रणथंभौर विजय''' - [[रणथंभौर]] के शासक [[बूँदी]] के हाड़ा राजपूत सुरजन राय से अकबर ने 18 मार्च, 1569 ई. में दुर्ग को अपने क़ब्ज़े में ले लिया। | ||
*'''कालिंजर विजय''' - [[उत्तर प्रदेश]] के [[बांदा]] ज़िले में स्थित यह क़िला अभेद्य माना जाता था। इस पर [[रीवा]] के राजा रामचन्द्र का अधिकार था। मुग़ल सेना ने मजनू ख़ाँ के नेतृत्व में आक्रमण कर [[कालिंजर]] पर अधिकार कर लिया। राजा रामचन्द्र को [[इलाहाबाद]] के समीप एक जागीर दे दी गयी। | *'''कालिंजर विजय''' - [[उत्तर प्रदेश]] के [[बांदा]] ज़िले में स्थित यह क़िला अभेद्य माना जाता था। इस पर [[रीवा]] के राजा रामचन्द्र का अधिकार था। मुग़ल सेना ने मजनू ख़ाँ के नेतृत्व में आक्रमण कर [[कालिंजर]] पर अधिकार कर लिया। राजा रामचन्द्र को [[इलाहाबाद]] के समीप एक जागीर दे दी गयी। | ||
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जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर भारत का महानतम मुग़ल शंहशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अकबर को अकबर-ए-आज़म, शहंशाह अकबर तथा महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है।
राजस्थान के राजपूत शासक अपने पराक्रम, आत्मसम्मान एवं स्वतन्त्रता के लिए प्रसिद्ध थे। अकबर ने राजपूतों के प्रति विशेष नीति अपनाते हुए उन राजपूत शासकों से मित्रता एवं वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये, जिन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। किन्तु जिन्होंने अधीनता स्वीकार नहीं की, उनसे युद्ध के द्वारा अधीनता स्वीकार करवाने का प्रयत्न किया।
- आमेर (जयपुर) - 1562 ई. में अकबर द्वारा अजमेर की शेख मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की यात्रा के समय उसकी मुलाकात आमेर के शासक राजा भारमल से हुई। भारमल प्रथम राजपूत शासक था, जिसने स्वेच्छा से अकबर की अधीनता स्वीकार की। कालान्तर में भारमल या बिहारीमल की पुत्री से अकबर ने विवाह कर लिया, जिससे जहाँगीर पैदा हुआ। अकबर ने भारमल के पुत्र (दत्तक) भगवानदास एवं पौत्र मानसिंह को उच्च मनसब प्रदान किया।
- मेड़ता - यहाँ का शासक जयमल मेवाड़ के राजा उदयसिंह का सामन्त था। मेड़ता पर आक्रमण के समय मुग़ल सेना का नेतृत्व सरफ़ुद्दीन कर रहा था। उसने जयमल एवं देवदास से मेड़ता को छीनकर 1562 ई. में मुग़लों के अधीन कर दिया।
- मेवाड़ - ‘मेवाड़’ राजस्थान का एक मात्र ऐसा राज्य था, जहाँ के राजपूत शासकों ने मुग़ल शासन का सदैव विरोध किया। अकबर का समकालीन मेवाड़ शासक सिसोदिया वंश का राणा उदयसिंह था, जिसने मुग़ल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। अकबर ने मेवाड़ को अपने अधीन करने के लिए 1567 ई. में चित्तौड़ के क़िले पर आक्रमण कर दिया। उदयसिंह क़िले की सुरक्षा का भार जयमल एवं फत्ता (फ़तेह सिंह) को सौंप कर समीप की पहाड़ियों में खो गया। इन दो वीरों ने बड़ी बहादुरी से मुग़ल सेना का मुकाबला किया अन्त में दोनों युद्ध क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हुए। अकबर ने क़िले पर अधिकार के बाद लगभग 30,000 राजपूतों का कत्ल करवा दिया। यह नरसंहार अकबर के नाम पर एक बड़े धब्बे के रूप में माना गया, जिसे मिटाने के लिए अकबर ने आगरा क़िले के दरवाज़े पर जयमल एवं फत्ता की वीरता की स्मृति में उनकी प्रस्तर मूर्तियाँ स्थापित करवायीं। 1568 ई. में मुग़ल सेना ने मेवाड़ की राजधानी एवं चित्तौड़ के क़िले पर अधिकार कर लिया। अकबर ने चित्तौड़ की विजय के स्मृतिस्वरूप वहाँ की महामाता मंदिर से विशाल झाड़फानूस अवशेष आगरा ले आया।
- रणथंभौर विजय - रणथंभौर के शासक बूँदी के हाड़ा राजपूत सुरजन राय से अकबर ने 18 मार्च, 1569 ई. में दुर्ग को अपने क़ब्ज़े में ले लिया।
- कालिंजर विजय - उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले में स्थित यह क़िला अभेद्य माना जाता था। इस पर रीवा के राजा रामचन्द्र का अधिकार था। मुग़ल सेना ने मजनू ख़ाँ के नेतृत्व में आक्रमण कर कालिंजर पर अधिकार कर लिया। राजा रामचन्द्र को इलाहाबाद के समीप एक जागीर दे दी गयी।
1570 ई. में मारवाड़ के शासक रामचन्द्र सेन, बीकानेर के शासक कल्याणमल एवं जैसलमेर के शासक रावल हरराय ने अकबर की अधीनता स्वीकार की। इस प्रकार 1570 ई. तक मेवाड़ के कुछ भागों को छोड़कर शेष राजस्थान के शासकों ने मुग़ल अधीनता स्वीकार कर ली। अधीनता स्वीकार करने वाले राज्यों में कुछ अन्य थे- डूंगरपुर, बांसवाड़ा एवं प्रतापगढ़।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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