रुद्र व्रत: Difference between revisions
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(2) इस व्रत को एक वर्ष तक एकभक्त होकर करना चहिए, अन्त में एक स्वर्ण बैल एवं तिलधेनु का दान करना चाहिए। | (2) इस व्रत को एक वर्ष तक एकभक्त होकर करना चहिए, अन्त में एक स्वर्ण बैल एवं तिलधेनु का दान करना चाहिए। | ||
*यह सश्वत्सर व्रत है, [[शंकर]] की पूजा करनी चाहिए। | *यह सश्वत्सर व्रत है, [[शंकर]] की पूजा करनी चाहिए। |
Latest revision as of 06:49, 7 July 2011
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
(1) यह व्रत ज्येष्ठ के दोनों पक्षों की अष्टमी एवं चतुर्दशी पर करना चाहिए।
- पाँच अग्नियों से तपों का सम्पादन तथा चौथे दिन सायंकाल स्वर्ण गाय का दान करना चाहिए।
- रुद्र देवता की पूजा करनी चाहिए।[1]
(2) इस व्रत को एक वर्ष तक एकभक्त होकर करना चहिए, अन्त में एक स्वर्ण बैल एवं तिलधेनु का दान करना चाहिए।
- यह सश्वत्सर व्रत है, शंकर की पूजा करनी चाहिए।
- इससे पापमोचन, चिन्ता मुक्ति एवं शिवलोक की प्राप्ति होती है।[2]
(3) कार्तिक शुक्ल पक्ष की तृतीया से प्रारम्भ करना चाहिए।
- एक वर्ष तक गौमूत्र एवं नक्त विधि से यावक का सेवन करना चाहिए।
- यह सश्वत्सर व्रत है। गौरी एवं रुद्र की पूजा करनी चाहिए।
- वर्ष के अन्त में गौ दान करना चाहिए।
- इससे एक कल्प तक गौरी लोक में वास मिलता है।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 394, पद्म पुराण से उद्धरण), कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 450, यहाँ षष्ठी एवं त्रयोदशी तिथि दी गयी है); मत्स्य पुराण (101|76)।
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 866, पद्म पुराण से उद्धरण), कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 439); मत्स्य पुराण (101|4);
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 445); मत्स्य पुराण (101|42-53)।
संबंधित लेख
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