रुक्मिण्य अष्टमी: Difference between revisions

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*ब्राह्मण पत्नि को भी दान देना चाहिए।
*ब्राह्मण पत्नि को भी दान देना चाहिए।
*इस व्रत के उपरान्त पुरुष कर्ता चिन्तामुक्त हो जाता है और स्त्री को कोई पुत्र दुख नहीं होता।<ref>हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 853-855, [[स्कन्द पुराण]] से उद्धरण)</ref>
*इस व्रत के उपरान्त पुरुष कर्ता चिन्तामुक्त हो जाता है और स्त्री को कोई पुत्र दुख नहीं होता।<ref>हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 853-855, [[स्कन्द पुराण]] से उद्धरण)</ref>
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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Revision as of 10:34, 21 March 2011

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर रुक्मिण्यष्टमी किया जाता है।
  • प्रथम वर्ष में कर्ता (स्त्री) को मिट्टी का एक द्वार वाला घर बनाकर उसमें घर के सभी उपकरण, धान, घी आदि रख देना चाहिए और कृष्ण, रुक्मिणी, बलराम एवं उनकी पत्नी, प्रद्युम्न एवं उनकी पत्नी, अनिरुद्ध एवं उषा, देवकी एवं वसुदेव की प्रतिमाएँ बनानी चाहिए।
  • इन प्रतिमाओं की पूजा करनी चाहिए।
  • प्रात:काल चन्द्र को अर्ध्य देनी चाहिए।
  • दूसरे दिन प्रात:काल वह घर किसी कुमारी को दे देना चाहिए।
  • दूसरे, तीसरे एवं चौथे वर्ष उस घर में अन्य अंश जोड़ने चाहिए और उन्हें कुमारियों को दान करना चाहिए।
  • पाँचवें वर्ष में पाँच द्वारों वाला घर, छठे वर्ष में 6 द्वार वाला घर किसी कुमारी को देना चाहिए।
  • सातवें वर्ष में सात द्वारों वाला घर बनाकर, उसे श्वेत रंग से रंगकर उसमें पलंग, खड़ाऊँ (पाद-त्राण), दर्पण, ओखली एवं मूसल, पात्र आदि रखना चाहिए तथा कृष्ण, रुक्मिणी एवं प्रद्युम्न की स्वर्ण प्रतिमाओं की पूजा करनी चाहिए।
  • उपवास एवं जागर करके दूसरे प्रात:काल उस घर एवं एक गाय को ब्राह्मण को दान के रूप में दे देना चाहिए।
  • ब्राह्मण पत्नि को भी दान देना चाहिए।
  • इस व्रत के उपरान्त पुरुष कर्ता चिन्तामुक्त हो जाता है और स्त्री को कोई पुत्र दुख नहीं होता।[1]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 853-855, स्कन्द पुराण से उद्धरण)

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