कालाष्टमी: Difference between revisions
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भगवान शिव के भैरव रूप की उपासना करने वाले [[भक्त|भक्तों]] को भैरवनाथ की षोड्षोपचार सहित पूजा करनी चाहिए और उन्हें अर्ध्य देना चाहिए। रात्रि के समय जागरण करके [[शिवशंकर]] एवं [[पार्वती]] की कथा एवं भजन कीर्तन करना चाहिए। भैरव कथा का श्रवण और मनन करना चाहिए। मध्य रात्रि होने पर [[शंख]], [[नगाड़ा]], [[घंटा]] आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। भगवान भैरवनाथ का वाहन 'श्वान' (कुत्ता) है। अत: इस दिन प्रभु की प्रसन्नता हेतु कुत्ते को भोजन कराना चाहिए। [[हिन्दू]] मान्यता के अनुसार इस दिन प्रात:काल पवित्र नदी या सरोवर में [[स्नान]] करके [[पितर|पितरों]] का [[श्राद्ध]] व [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] करके भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं तथा दीर्घायु प्राप्त होती है। भैरव जी की पूजा व [[भक्ति]] करने से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहते हैं। व्यक्ति को कोई रोग आदि स्पर्श नहीं कर पाते। शुद्ध मन एवं आचरण से ये जो भी कार्य करते हैं, उनमें इन्हें सफलता मिलती है। | भगवान शिव के भैरव रूप की उपासना करने वाले [[भक्त|भक्तों]] को भैरवनाथ की षोड्षोपचार सहित पूजा करनी चाहिए और उन्हें अर्ध्य देना चाहिए। रात्रि के समय जागरण करके [[शिवशंकर]] एवं [[पार्वती]] की कथा एवं भजन कीर्तन करना चाहिए। भैरव कथा का श्रवण और मनन करना चाहिए। मध्य रात्रि होने पर [[शंख]], [[नगाड़ा]], [[घंटा]] आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। भगवान भैरवनाथ का वाहन 'श्वान' (कुत्ता) है। अत: इस दिन प्रभु की प्रसन्नता हेतु कुत्ते को भोजन कराना चाहिए। [[हिन्दू]] मान्यता के अनुसार इस दिन प्रात:काल पवित्र नदी या सरोवर में [[स्नान]] करके [[पितर|पितरों]] का [[श्राद्ध]] व [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] करके भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं तथा दीर्घायु प्राप्त होती है। भैरव जी की पूजा व [[भक्ति]] करने से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहते हैं। व्यक्ति को कोई रोग आदि स्पर्श नहीं कर पाते। शुद्ध मन एवं आचरण से ये जो भी कार्य करते हैं, उनमें इन्हें सफलता मिलती है।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://www.astrobix.com/hindudharm/post/bhairava-ashtami-kala-bhairav-ashtami-2011.aspx|title=कालाष्टमी|accessmonthday=28 अक्टूबर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
====माहात्म्य==== | ====माहात्म्य==== | ||
कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ-साथ इस दिन देवी कालिका की पुजा-अर्चना एवं व्रत का भी विधान है। [[काली देवी]] की उपासना करने वालों को अर्धरात्रि के बाद माँ की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए, जिस प्रकार दुर्गापूजा में [[सप्तमी]] तिथि को देवी कालरात्रि की [[पूजा]] का विधान है। भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अनेक समस्याओं का निदान होता है। कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल जाती है। भैरव उपासना के द्वारा क्रूर [[ग्रह|ग्रहों]] के प्रभाव से छुटकारा मिलता है। | कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ-साथ इस दिन देवी कालिका की पुजा-अर्चना एवं व्रत का भी विधान है। [[काली देवी]] की उपासना करने वालों को अर्धरात्रि के बाद माँ की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए, जिस प्रकार दुर्गापूजा में [[सप्तमी]] तिथि को देवी कालरात्रि की [[पूजा]] का विधान है। भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अनेक समस्याओं का निदान होता है। कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल जाती है। भैरव उपासना के द्वारा क्रूर [[ग्रह|ग्रहों]] के प्रभाव से छुटकारा मिलता है। | ||
==कथा== | ==कथा== | ||
भैरवाष्टमी या कालाष्टमी की कथा के अनुसार एक समय [[विष्णु|श्रीहरि विष्णु]] और [[ब्रह्मा]] के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। यह विवाद इस हद तक बढ़ गया कि समाधान के लिए भगवान [[शिव]] एक सभा का आयोजन करते हैं। इस सभा में महत्वपूर्ण ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि उपस्थित थे। सभा में लिए गये एक निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, किंतु ब्रह्मा जी इस निर्णय से संतुष्ट नहीं होते। वे महादेव का अपमान करने लगते हैं। शांतचित शिव यह अपमान सहन न कर सके और ब्रह्मा द्वारा अपमानित किये जाने पर उन्होंने रौद्र रुप धारण कर लिया। भगवान शंकर प्रलय के रूप में नज़र आने लगे और उनका रौद्र रुप देखकर तीनों लोक भयभीत हो गए। भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। | भैरवाष्टमी या कालाष्टमी की कथा के अनुसार एक समय [[विष्णु|श्रीहरि विष्णु]] और [[ब्रह्मा]] के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। यह विवाद इस हद तक बढ़ गया कि समाधान के लिए भगवान [[शिव]] एक सभा का आयोजन करते हैं। इस सभा में महत्वपूर्ण ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि उपस्थित थे। सभा में लिए गये एक निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, किंतु ब्रह्मा जी इस निर्णय से संतुष्ट नहीं होते। वे महादेव का अपमान करने लगते हैं। शांतचित शिव यह अपमान सहन न कर सके और ब्रह्मा द्वारा अपमानित किये जाने पर उन्होंने रौद्र रुप धारण कर लिया। भगवान शंकर प्रलय के रूप में नज़र आने लगे और उनका रौद्र रुप देखकर तीनों लोक भयभीत हो गए। भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए।<ref name="mcc"/> | ||
भैरव जी श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था। हाथ में दण्ड होने के कारण वे 'दण्डाधिपति' कहे गये। भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। उनके रूप को देखकर ब्रह्मा जी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। वह भगवान भोलेनाथ एवं भैरव की वंदना करने लगे। भैरव जी ब्रह्मा एवं अन्य देवताओं और साधुओं द्वारा वंदना करने पर शांत हो जाते हैं। | भैरव जी श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था। हाथ में दण्ड होने के कारण वे 'दण्डाधिपति' कहे गये। भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। उनके रूप को देखकर ब्रह्मा जी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। वह भगवान भोलेनाथ एवं भैरव की वंदना करने लगे। भैरव जी ब्रह्मा एवं अन्य देवताओं और साधुओं द्वारा वंदना करने पर शांत हो जाते हैं। |
Revision as of 08:07, 28 October 2012
thumb|300|काल भैरव कालाष्टमी का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान शिव, भैरव रूप में प्रकट हुए थे। कालाष्टमी का व्रत इसी उपलक्ष्य में इस तिथि को किया जाता है। कालाष्टमी को 'भैरवाष्टमी' के नाम से भी जाना जाता है। भगवान भोलेनाथ के भैरव रूप के स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। भैरव की पूजा व उपासना से मनोवांछित फल मिलता है। अत: भैरव जी की पूजा-अर्चना करने तथा कालाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन कालभैरव का दर्शन एवं पूजन मनवांछित फल प्रदान करता है।
व्रत विधि
भगवान शिव के भैरव रूप की उपासना करने वाले भक्तों को भैरवनाथ की षोड्षोपचार सहित पूजा करनी चाहिए और उन्हें अर्ध्य देना चाहिए। रात्रि के समय जागरण करके शिवशंकर एवं पार्वती की कथा एवं भजन कीर्तन करना चाहिए। भैरव कथा का श्रवण और मनन करना चाहिए। मध्य रात्रि होने पर शंख, नगाड़ा, घंटा आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। भगवान भैरवनाथ का वाहन 'श्वान' (कुत्ता) है। अत: इस दिन प्रभु की प्रसन्नता हेतु कुत्ते को भोजन कराना चाहिए। हिन्दू मान्यता के अनुसार इस दिन प्रात:काल पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करके पितरों का श्राद्ध व तर्पण करके भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं तथा दीर्घायु प्राप्त होती है। भैरव जी की पूजा व भक्ति करने से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहते हैं। व्यक्ति को कोई रोग आदि स्पर्श नहीं कर पाते। शुद्ध मन एवं आचरण से ये जो भी कार्य करते हैं, उनमें इन्हें सफलता मिलती है।[1]
माहात्म्य
कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ-साथ इस दिन देवी कालिका की पुजा-अर्चना एवं व्रत का भी विधान है। काली देवी की उपासना करने वालों को अर्धरात्रि के बाद माँ की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए, जिस प्रकार दुर्गापूजा में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है। भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अनेक समस्याओं का निदान होता है। कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल जाती है। भैरव उपासना के द्वारा क्रूर ग्रहों के प्रभाव से छुटकारा मिलता है।
कथा
भैरवाष्टमी या कालाष्टमी की कथा के अनुसार एक समय श्रीहरि विष्णु और ब्रह्मा के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। यह विवाद इस हद तक बढ़ गया कि समाधान के लिए भगवान शिव एक सभा का आयोजन करते हैं। इस सभा में महत्वपूर्ण ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि उपस्थित थे। सभा में लिए गये एक निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, किंतु ब्रह्मा जी इस निर्णय से संतुष्ट नहीं होते। वे महादेव का अपमान करने लगते हैं। शांतचित शिव यह अपमान सहन न कर सके और ब्रह्मा द्वारा अपमानित किये जाने पर उन्होंने रौद्र रुप धारण कर लिया। भगवान शंकर प्रलय के रूप में नज़र आने लगे और उनका रौद्र रुप देखकर तीनों लोक भयभीत हो गए। भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए।[1]
भैरव जी श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था। हाथ में दण्ड होने के कारण वे 'दण्डाधिपति' कहे गये। भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। उनके रूप को देखकर ब्रह्मा जी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। वह भगवान भोलेनाथ एवं भैरव की वंदना करने लगे। भैरव जी ब्रह्मा एवं अन्य देवताओं और साधुओं द्वारा वंदना करने पर शांत हो जाते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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