मोहिनी एकादशी: Difference between revisions
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'''मोहिनी एकादशी''' का व्रत [[वैशाख माह]] में [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] को किया जाता है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष]] की एकादशी मोहिनी है। इस व्रत को करने से निंदित कर्मों के पाप से छुटकारा मिल जाता है तथा मोह बंधन एवं पाप समूह नष्ट होते हैं। [[सीता]] की खोज करते समय भगवान [[श्रीराम]] ने भी इस व्रत को किया था। उनके बाद मुनि कौण्डिन्य के कहने पर धृष्टबुद्धि ने और [[श्रीकृष्ण]] के कहने पर [[युधिष्ठिर]] ने इस व्रत को किया था। | |||
==विधि== | ==विधि== | ||
इस दिन भगवान के पुरुषोत्तम रूप ([[राम]]) की पूजा का विधान है। | इस दिन भगवान के पुरुषोत्तम रूप ([[राम]]) की [[पूजा]] का विधान है। मोहिनी एकादशी के दिन भगवान की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कर उत्तम वस्त्र पहनाना चाहिए, फिर उच्चासन पर बैठाकर [[धूप]], [[दीपक]] से आरती उतारनी चाहिए और मीठे फलों का भोग लगाना चाहिए। तत्पश्चात प्रसाद वितरित कर [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को भोजन तथा दान दक्षिणा देनी चाहिए। रात्रि में भगवान का कीर्तन करते हुए मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए। | ||
==कथा== | ==कथा== | ||
एक राजा का | एक समय भगवान [[श्रीकृष्ण]] ये [[युधिष्ठिर]] से कहा- "हे धर्मराज! मैं आपसे एक कथा कहता हूँ, जिसे [[वशिष्ठ|महर्षि वशिष्ठ]] ने [[श्रीराम|श्रीरामचंद्रजी]] से कही थी। एक समय श्रीराम बोले कि- "हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दु:ख भोगे हैं।" महर्षि वशिष्ठ बोले- "हे राम! आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र है। यद्यपि आपका नाम स्मरण करने से मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो जाता है तो भी लोकहित में यह प्रश्न अच्छा है। वैशाख मास में जो [[एकादशी]] आती है, उसका नाम 'मोहिनी एकादशी' है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब पापों तथा दु:खों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो। | ||
[[सरस्वती नदी]] के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहाँ धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक [[वैश्य]] भी रहता था। वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। उसके 5 पुत्र थे- सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि। इनमें से पाँचवाँ पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पितर आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था। | |||
श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! मैं आपसे एक कथा कहता हूँ, जिसे महर्षि वशिष्ठ ने श्री रामचंद्रजी से कही थी। एक समय श्रीराम बोले कि हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दु:ख भोगे हैं। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था। इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सबकुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया। | |||
एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा। वह नगरी से निकल वन में चला गया। वहाँ वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा। कुछ समय पश्चात वह बहेलिया बन गया और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा। | |||
एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई। वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए। उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो। इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया। हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता है। | |||
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Revision as of 05:52, 9 May 2014
मोहिनी एकादशी
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अनुयायी | हिंदू धर्म |
उद्देश्य | इस दिन व्रत किया जाता है और भगवान के पुरुषोत्तम रूप (राम) की पूजा की जाती है। |
तिथि | वैशाख, शुक्ल पक्ष, एकादशी |
अन्य जानकारी | सीता जी की खोज करते समय भगवान श्री रामचन्द्र जी ने भी इस व्रत को किया था। उनके बाद मुनि कौण्डिन्य के कहने पर धृष्टबुद्धि ने और श्रीकृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने इस व्रत को किया था। |
मोहिनी एकादशी का व्रत वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। पुराणों के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी मोहिनी है। इस व्रत को करने से निंदित कर्मों के पाप से छुटकारा मिल जाता है तथा मोह बंधन एवं पाप समूह नष्ट होते हैं। सीता की खोज करते समय भगवान श्रीराम ने भी इस व्रत को किया था। उनके बाद मुनि कौण्डिन्य के कहने पर धृष्टबुद्धि ने और श्रीकृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने इस व्रत को किया था।
विधि
इस दिन भगवान के पुरुषोत्तम रूप (राम) की पूजा का विधान है। मोहिनी एकादशी के दिन भगवान की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कर उत्तम वस्त्र पहनाना चाहिए, फिर उच्चासन पर बैठाकर धूप, दीपक से आरती उतारनी चाहिए और मीठे फलों का भोग लगाना चाहिए। तत्पश्चात प्रसाद वितरित कर ब्राह्मणों को भोजन तथा दान दक्षिणा देनी चाहिए। रात्रि में भगवान का कीर्तन करते हुए मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।
कथा
एक समय भगवान श्रीकृष्ण ये युधिष्ठिर से कहा- "हे धर्मराज! मैं आपसे एक कथा कहता हूँ, जिसे महर्षि वशिष्ठ ने श्रीरामचंद्रजी से कही थी। एक समय श्रीराम बोले कि- "हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दु:ख भोगे हैं।" महर्षि वशिष्ठ बोले- "हे राम! आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र है। यद्यपि आपका नाम स्मरण करने से मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो जाता है तो भी लोकहित में यह प्रश्न अच्छा है। वैशाख मास में जो एकादशी आती है, उसका नाम 'मोहिनी एकादशी' है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब पापों तथा दु:खों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।
सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहाँ धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता था। वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। उसके 5 पुत्र थे- सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि। इनमें से पाँचवाँ पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पितर आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था।
श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! मैं आपसे एक कथा कहता हूँ, जिसे महर्षि वशिष्ठ ने श्री रामचंद्रजी से कही थी। एक समय श्रीराम बोले कि हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दु:ख भोगे हैं। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था। इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सबकुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया।
एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा। वह नगरी से निकल वन में चला गया। वहाँ वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा। कुछ समय पश्चात वह बहेलिया बन गया और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा।
एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई। वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए। उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो। इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया। हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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