अनंता सिंह: Difference between revisions

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==जन्म==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[https://redantliberationarmy.wordpress.com/2010/08/13/the-biography-of-a-indian-revolutionary-ananta-singh/ The biography of a Indian revolutionary – Ananta Singh]
*[https://redantliberationarmy.wordpress.com/2010/08/13/the-biography-of-a-indian-revolutionary-ananta-singh/ The biography of a Indian revolutionary – Ananta Singh]
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Latest revision as of 05:28, 25 January 2018

अनंता सिंह
पूरा नाम अनंता लाल सिंह
जन्म 1 दिसम्बर, 1903[1]
जन्म भूमि चटगांव, बंगाल
मृत्यु 25 जनवरी, 1969[1]
नागरिकता भारतीय
धर्म हिंदू
विशेष योगदान प्रसिद्ध कांरिताकारी सूर्य सेन के नेतृत्व में 'चटगाँव आर्मरी रेड' में भाग लिया।
अन्य जानकारी अनंता सिंह को आजीवन कारावास के तहत 1932 में अंडमान की जेल भेज दिया गया, जहाँ से वे 1946 में रिहा हुए।

अनंता सिंह (पूरा नाम: अनंता लाल सिंह, अंग्रेज़ी: Ananta Singh, जन्म- 1 दिसम्बर, 1903; मृत्यु: 25 जनवरी, 1969[1]) भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। वे अपने साथी क्रांतिकारियों में बम तथा बन्दूक की गोलियाँ आदि बनाने में कुशल थे। 'चटगाँव कांड' के फलस्वरूप अनंता सिंह के कई साथियों को पुलिस द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया था। जब उन्हें इस घटना का पता चला तो वे स्वयं पुलिस के समक्ष उपस्थित हो गये। आजीवन कारावास के तहत उन्हें 1932 में अंडमान की जेल भेज दिया गया, जहाँ से वे 1946 में रिहा हुए।

जन्म

अनंता सिंह का जन्म 1 दिसम्बर, 1903 को चटगांव, बंगाल में हुआ था। उनका परिवार मूलतः आगरा, उत्तर प्रदेश का निवासी था। बाद के समय परिवार बगांल में जाकर बस गया।

क्रांतिकारियों से संपर्क

प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) के अंतिम वर्षों में अनंता सिंह क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और अपने साहस और योग्यता से संगठन के प्रमुख सदस्य बन गए। बम और बंदूकों की गोलियाँ आदि बनाने में वे विशेष रूप से प्रवीण थे। वर्ष 1921 के 'असहयोग आंदोलन' में वे स्कूल से बाहर आ गए और देश की प्रमुख पार्टी 'कांग्रेस' के लिए काम करने लगे। लेकिन जब 1922 में आंदोलन वापस ले लिया गया तो वे फिर से क्रांतिकारी गतिविधियों मे संलग्न हो गए।

गिरफ़्तारी

वर्ष 1923 में जब क्रांतिकारियों ने विदेशियों की कम्पनी का असम, बंगाल रेलवे का ख़ज़ाना लूट लिया तो पुलिस को अनंता सिंह पर संदेह हुआ। अब वे अन्य साथियों को लेकर गुप्त स्थान पर रहने लगे। एक दिन जब उस स्थान को पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया, तब अनंता सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारी बलपूर्वक पुलिस का घेरा तोड़कर एक पहाड़ी पर चढ़ गए। वहाँ से बच निकलने के बाद अनंता सिंह कोलकाता (भूतपूर्व 'कलकत्ता') आ गए। लेकिन शीघ्र ही गिरफ़्तार करके उन्हें 4 वर्ष के लिए नज़रबंद कर दिया गया।

सज़ा

अनंता सिंह 1928 में जेल से छुटकर फिर चटगांव पहुंचे और लोगों को संगठित किया। इसके बाद ही क्रांतिकारियों ने चटगांव के शस्त्रागार पर आक्रमण किया। अनंता सिंह फिर बचकर फ़्रैंच बस्ती चंद्रनगर चले आए, किन्तु ज्यों ही उन्हें पता चला कि 'चटगांव कांड' के लिए उनके युवा साथियों पर मुकदमा चलाया जा रहा है, तब वे अपने साथियों के साथ खड़ा होने के लिए स्वंय पुलिस के सामने उपस्थित हो गए। उन सभी पर मुकदमा चलाया गया और कुछ अन्य साथियों के साथ उन्हें भी आजीवन कारावास की सज़ा देकर 1932 में अंडमान की जेल भेज दिया गया।

रिहाई एवं निधन

अपनी गिरफ़्तारी के चौदह वर्ष बाद सन 1946 के अंत में ही अनंता जेल से बाहर आ सके। महान् क्रांतिकारी अनंता सिंह 1970 के दशक में नक्सलवादी विद्रोह के समय तक क्रांति की मशाल थामे रहे। 25 जनवरी, 1969 को अनंता सिंह का निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 Ananta Singh, Indian Revolutionary (अंग्रेज़ी) indianetzone। अभिगमन तिथि: 25 नवम्बर, 2014।
  • पुस्तक- भारतीय चरित कोश | लेखक- लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' | प्रकाशक- शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली | पृष्ठ संख्या-23

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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