मोहम्मद बरकतउल्ला: Difference between revisions
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Latest revision as of 08:54, 12 September 2020
मोहम्मद बरकतउल्ला
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पूरा नाम | अब्दुल हाफ़िज़ मोहम्मद बरकतउल्ला |
अन्य नाम | मौलाना बरकतुल्ला |
जन्म | 7 जुलाई,1854 |
जन्म भूमि | भोपाल |
मृत्यु | 20 सितंबर; 1927 |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
विद्यालय | सुलेमानिया स्कूल, भोपाल |
अन्य जानकारी | मौलाना बरकतुल्ला सर्व-इस्लाम आंदोलन से हम दर्दी रखने वाले ब्रितानी साम्राज्य-विरोधी क्रांतिकारी थे। |
मोहम्मद बरकतउल्ला (अंग्रेज़ी: Mohamed Barakatullah; जन्म- 7 जुलाई,1854, भोपाल, मध्य प्रदेश; मृत्यु- 20 सितंबर; 1927) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। मौलाना बरकतुल्ला सर्व-इस्लाम आंदोलन से हम दर्दी रखने वाले ब्रितानी साम्राज्य-विरोधी क्रांतिकारी थे। जिन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय विदेश में बिताया तथा भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनों में सहयोग दिया।
परिचय
मोहम्मद बरकतउल्ला का जन्म 7 जुलाई,1854 को भोपाल में हुआ था। इनको अब्दुल हाफ़िज़ मोहम्मद बरकतउल्ला तथा मौलाना बरकतुल्ला के नाम से भी जाना जाता है। मौलाना ने भोपाल के सुलेमानिया स्कूल से अरबी, फ़ारसी की माध्यमिक और उच्च शिक्षा प्राप्त की थी तथा भोपाल से हाई स्कूल तक की अंग्रेज़ी शिक्षा भी हासिल की। शिक्षा के दौरान ही उसे उच्च शिक्षित अनुभवी मौलवियों, विद्वानों को मिलने और उनके विचारों को जानने का मौका मिला।
शेख़ जमालुद्दीन अफ़्ग़ानी से प्रभावित
शिक्षा ख़त्म करने के बाद वह उसी स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गया। यही काम करते हुए वह शेख़ जमालुद्दीन अफ़्ग़ानी से सबसे काफ़ी प्रभावित हुआ। शेख़ साहब सारी दुनिया के मुसलमानों में एकता और भाईचारों के लिए दुनिया का दौरा कर रहे थे। मौलवी बरकतुल्ला के माता-पिता की इस दौरान मौत हो गई। इनकी एक बहन भी थी जिसका विवाह हो चुका था। अब मौलाना ख़ानदान में एकदम अकेले रह गए। बरकतउल्ला ने भोपाल छोड़ दिया और मुम्बई चले गये। वह पहले खंडाला और फिर मुम्बई में ट्यूशन पढ़ाने से अपनी अंग्रेज़ी की पढ़ाई भी जारी रखी। 4 साल में इन्होंने अंग्रेज़ी की उच्च शिक्षा हासिल कर ली थी और 1887 में वह आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। वहाँ पर बैरकतुल्लाह भारतीय क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आये।।[1]
महेन्द्र प्रताप सिंह से सम्पर्क
1915 में तुर्की और जर्मन की सहायता से अफ़ग़ानिस्तान में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ चल रही ग़दर लहर में भाग लेने के वास्ते मौलाना बरकतउल्ला अमेरिका से काबुल, अफ़ग़ानिस्तान में पहुँचे। 1915 में उन्होंने मौलाना उबैदुल्ला सिंधी और राजा महेन्द्र प्रताप सिंह से मिल कर प्रवास में भारत की पहली अर्ज़ी सरकार का एलान कर दिया। राजा महेन्द्र प्रताप सिंह इस के पहले राष्ट्रपति थे और मौलाना बरकतुल्ला इस के पहले प्रधानमंत्री।
बैरकतुल्लाह उन स्वाधीनता सेनानियों में से एकमात्र ऐसे स्वाधीनता सेनानी थे जिन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय विदेश में बिताया तथा भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनों में सहयोग दिया।
निधन
मोहम्मद बरकतउल्ला का निधन 20 सितंबर 1927 को हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मध्यप्रदेश के क्रांतिकारी (हिंदी) क्रांति 1857। अभिगमन तिथि: 1 मार्च, 2017।
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