दुर्गा भाभी का परिचय: Difference between revisions
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[[भारत]] की प्रसिद्ध महिला क्रांतिकारियों में [[दुर्गा भाभी]] का नाम लिया जाता है। उनका वास्तविक नाम दुर्गावती देवी था, किंतु क्रांतिकारियों के बीच वह दुर्गा भाभी के नाम से अधिक जानी जाती थीं। [[भगतसिंह]], [[सुखदेव]], [[राजगुरु]] तथा [[चंद्रशेखर आज़ाद]] आदि उन्हें इसी नाम से पुकारते थे। अपने क्रांतिकारी जीवन में दुर्गा भाभी ने कई साहसिक गतिविधियों को अंजाम दिया। | |||
==परिचय== | |||
दुर्गावती देवी (दुर्गा भाभी) का जन्म 7 अक्टूबर सन 1907 को [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] के शहजादपुर नामक [[गाँव]] में पंडित बांके बिहारी के यहाँ हुआ था। उनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे और उनके बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन ज़िले में थानेदार के पद पर तैनात थे। उनके दादा पंडित शिवशंकर शहजादपुर में जमींदार थे, जो बचपन से ही दुर्गा भाभी की सभी बातों को पूर्ण करते थे। दस वर्ष की अल्प आयु में ही दुर्गा भाभी का [[विवाह]] लाहौर के [[भगवतीचरण बोहरा]] के साथ हो गया। दुर्गा भाभी के श्वसुर शिवचरण जी रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे। [[अंग्रेज़]] सरकार ने उन्हें 'राय साहब' का खिताब दिया था। | दुर्गावती देवी (दुर्गा भाभी) का जन्म 7 अक्टूबर सन 1907 को [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] के शहजादपुर नामक [[गाँव]] में पंडित बांके बिहारी के यहाँ हुआ था। उनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे और उनके बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन ज़िले में थानेदार के पद पर तैनात थे। उनके दादा पंडित शिवशंकर शहजादपुर में जमींदार थे, जो बचपन से ही दुर्गा भाभी की सभी बातों को पूर्ण करते थे। दस वर्ष की अल्प आयु में ही दुर्गा भाभी का [[विवाह]] लाहौर के [[भगवतीचरण बोहरा]] के साथ हो गया। दुर्गा भाभी के श्वसुर शिवचरण जी रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे। [[अंग्रेज़]] सरकार ने उन्हें 'राय साहब' का खिताब दिया था। | ||
भगवतीचरण बोहरा राय साहब का पुत्र होने के बावजूद अंग्रेज़ों की दासता से देश को मुक्त कराना चाहते थे। वे क्रांतिकारी संगठन के प्रचार सचिव थे। वर्ष [[1920]] में पिता की मृत्यु के | भगवतीचरण बोहरा राय साहब का पुत्र होने के बावजूद अंग्रेज़ों की दासता से देश को मुक्त कराना चाहते थे। वे क्रांतिकारी संगठन के प्रचार सचिव थे। वर्ष [[1920]] में पिता की मृत्यु के पश्चात् भगवतीचरण वोहरा खुलकर क्रांति में आ गए और उनकी पत्नी दुर्गा भाभी ने भी पूर्ण रूप से सहयोग किया। सन [[1923]] में भगवतीचरण वोहरा ने नेशनल कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और दुर्गा भाभी ने प्रभाकर की डिग्री हासिल की। दुर्गा भाभी का मायका व ससुराल दोनों पक्ष संपन्न थे। [[चित्र:Durga-Bhabhi-with-Family.jpg|thumb|250px|left|दुर्गा भाभी अपने पति तथा पुत्र के साथ]] श्वसुर शिवचरण जी ने दुर्गा भाभी को 40 हज़ार व पिता बांके बिहारी ने 5 हज़ार रुपये संकट के दिनों में काम आने के लिए दिए थे, लेकिन इस दंपती ने इन पैसों का उपयोग क्रांतिकारियों के साथ मिलकर देश को आज़ाद कराने में किया। | ||
[[16 नवंबर]], [[1926]] का वह दिन था जब लाहौर में भगतसिंह, भगवतीचरण बोहरा समेत कई क्रांतिकारी इकट्ठे थे। बीच में एक तस्वीर पर माला पड़ी हुई थी। वह तस्वीर थी [[भारत]] की आज़ादी के लिए शहीद हो जाने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारी [[करतार सिंह सराभा]] की। 19 साल की उम्र में [[अमेरिका]] से अपने साथियों सहित भारत आकर सभी सैनिक छावनियों में सैनिक विद्रोह करने की योजना के साथ आए करतार सिंह सराभा को [[1915]] में | |||
[[मार्च]], [[1926]] में भगवतीचरण वोहरा व [[भगतसिंह]] ने संयुक्त रूप से 'नौजवान भारत सभा' का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की। सैकड़ों नौजवानों ने देश को आज़ाद कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान वेदी पर चढ़ाने की शपथ ली। भगतसिंह व भगवतीचरण वोहरा सहित सदस्यों ने अपने [[रक्त]] से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए। | |||
[[16 नवंबर]], [[1926]] का वह दिन था जब [[लाहौर]] में [[भगतसिंह]], [[भगवतीचरण बोहरा]] समेत कई क्रांतिकारी इकट्ठे थे। बीच में एक तस्वीर पर माला पड़ी हुई थी। वह तस्वीर थी [[भारत]] की आज़ादी के लिए शहीद हो जाने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारी [[करतार सिंह सराभा]] की। 19 साल की उम्र में [[अमेरिका]] से अपने साथियों सहित भारत आकर सभी सैनिक छावनियों में सैनिक विद्रोह करने की योजना के साथ आए करतार सिंह सराभा को [[1915]] में फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। उनकी ग्यारहवीं बरसी पर गुरु मानकर करतार की तस्वीर हमेशा अपने साथ रखने वाले भगतसिंह ने एक दमदार भाषण दिया। उसमें भगतसिंह ने चंडी मां की बात करते हुए फिरंगियों को बाहर निकालने का आह्वान किया था। उनके भाषण से एक महिला इतने जोश में आई कि आगे बढ़कर भगतसिंह के माथे पर तिलक लगा दिया। ये थीं दुर्गा भाभी। | |||
[[28 मई]], [[1930]] को जब [[रावी नदी]] के तट पर साथियों के साथ बम बनाने के बाद परीक्षण करते समय भगवतीचरण बोहरा शहीद हो गए, तब उनके बाद दुर्गा भाभी साथी क्रांतिकारियों के साथ सक्रिय रहीं। | |||
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दुर्गा भाभी का परिचय
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पूरा नाम | दुर्गावती देवी |
जन्म | 7 अक्टूबर, 1907 |
जन्म भूमि | शहजादपुर, इलाहाबाद, 1999 |
मृत्यु | 15 अक्टूबर, 1999 |
मृत्यु स्थान | गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश |
अभिभावक | पिता- पंडित बांके बिहारी |
पति/पत्नी | भगवतीचरण बोहरा |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | भारतीय क्रांतिकारी |
धर्म | हिन्दू |
संबंधित लेख | भगवतीचरण बोहरा, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद |
अन्य जानकारी | 'असेम्बली बम कांड' के बाद भगतसिंह आदि क्रांतिकारी गिरफ्तार हो गए थे। दुर्गा भाभी ने उन्हें छुड़ाने के लिए वकील को पैसे देने की खातिर अपने सारे गहने बेच दिए। तीन हज़ार रुपए वकील को दिए। फिर महात्मा गाँधी से भी अपील की कि भगतसिंह और बाकी क्रांतिकारियों के लिए कुछ करें। |
भारत की प्रसिद्ध महिला क्रांतिकारियों में दुर्गा भाभी का नाम लिया जाता है। उनका वास्तविक नाम दुर्गावती देवी था, किंतु क्रांतिकारियों के बीच वह दुर्गा भाभी के नाम से अधिक जानी जाती थीं। भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु तथा चंद्रशेखर आज़ाद आदि उन्हें इसी नाम से पुकारते थे। अपने क्रांतिकारी जीवन में दुर्गा भाभी ने कई साहसिक गतिविधियों को अंजाम दिया।
परिचय
दुर्गावती देवी (दुर्गा भाभी) का जन्म 7 अक्टूबर सन 1907 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश के शहजादपुर नामक गाँव में पंडित बांके बिहारी के यहाँ हुआ था। उनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे और उनके बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन ज़िले में थानेदार के पद पर तैनात थे। उनके दादा पंडित शिवशंकर शहजादपुर में जमींदार थे, जो बचपन से ही दुर्गा भाभी की सभी बातों को पूर्ण करते थे। दस वर्ष की अल्प आयु में ही दुर्गा भाभी का विवाह लाहौर के भगवतीचरण बोहरा के साथ हो गया। दुर्गा भाभी के श्वसुर शिवचरण जी रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें 'राय साहब' का खिताब दिया था।
भगवतीचरण बोहरा राय साहब का पुत्र होने के बावजूद अंग्रेज़ों की दासता से देश को मुक्त कराना चाहते थे। वे क्रांतिकारी संगठन के प्रचार सचिव थे। वर्ष 1920 में पिता की मृत्यु के पश्चात् भगवतीचरण वोहरा खुलकर क्रांति में आ गए और उनकी पत्नी दुर्गा भाभी ने भी पूर्ण रूप से सहयोग किया। सन 1923 में भगवतीचरण वोहरा ने नेशनल कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और दुर्गा भाभी ने प्रभाकर की डिग्री हासिल की। दुर्गा भाभी का मायका व ससुराल दोनों पक्ष संपन्न थे। thumb|250px|left|दुर्गा भाभी अपने पति तथा पुत्र के साथ श्वसुर शिवचरण जी ने दुर्गा भाभी को 40 हज़ार व पिता बांके बिहारी ने 5 हज़ार रुपये संकट के दिनों में काम आने के लिए दिए थे, लेकिन इस दंपती ने इन पैसों का उपयोग क्रांतिकारियों के साथ मिलकर देश को आज़ाद कराने में किया।
मार्च, 1926 में भगवतीचरण वोहरा व भगतसिंह ने संयुक्त रूप से 'नौजवान भारत सभा' का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की। सैकड़ों नौजवानों ने देश को आज़ाद कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान वेदी पर चढ़ाने की शपथ ली। भगतसिंह व भगवतीचरण वोहरा सहित सदस्यों ने अपने रक्त से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए।
16 नवंबर, 1926 का वह दिन था जब लाहौर में भगतसिंह, भगवतीचरण बोहरा समेत कई क्रांतिकारी इकट्ठे थे। बीच में एक तस्वीर पर माला पड़ी हुई थी। वह तस्वीर थी भारत की आज़ादी के लिए शहीद हो जाने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा की। 19 साल की उम्र में अमेरिका से अपने साथियों सहित भारत आकर सभी सैनिक छावनियों में सैनिक विद्रोह करने की योजना के साथ आए करतार सिंह सराभा को 1915 में फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। उनकी ग्यारहवीं बरसी पर गुरु मानकर करतार की तस्वीर हमेशा अपने साथ रखने वाले भगतसिंह ने एक दमदार भाषण दिया। उसमें भगतसिंह ने चंडी मां की बात करते हुए फिरंगियों को बाहर निकालने का आह्वान किया था। उनके भाषण से एक महिला इतने जोश में आई कि आगे बढ़कर भगतसिंह के माथे पर तिलक लगा दिया। ये थीं दुर्गा भाभी।
28 मई, 1930 को जब रावी नदी के तट पर साथियों के साथ बम बनाने के बाद परीक्षण करते समय भगवतीचरण बोहरा शहीद हो गए, तब उनके बाद दुर्गा भाभी साथी क्रांतिकारियों के साथ सक्रिय रहीं।
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बाहरी कड़ियाँ
- एक सक्रिय क्रांतिकारी दुर्गा भाभी
- बम-पिस्तौल से खेलने वाली दुर्गा भाभी ने बचाई थी भगत सिंह की जान
- दुर्गा भाभी ने देश के लिए दे दी जान
संबंधित लेख
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