सर्वफलत्याग: Difference between revisions
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Revision as of 10:54, 21 March 2011
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की तृतीया, अष्टमी, द्वादशी या चतुर्दशी पर या अन्य मासों की इन्हीं तिथियों पर सर्वफलत्याग व्रत किया जाता है।
- ब्राह्मणों को पायस भोज कराना चाहिए।
- एक वर्ष तक 18 धान्यों में कोई एक धान्य, सभी फलों एवं कन्दों का त्याग, किन्तु ओषधि के रूप में इनका ग्रहण हो सकता है।
- रुद्र, उनके बैल एवं धर्मराज (यम) की स्वर्ण प्रतिमाओं का निर्माण करना चाहिए।
- स्वर्ण, रजत एवं ताम्र के 16 चित्र, प्रत्येक दल में बड़े-बड़े फल (यथा-बेल आदि), छोटे-छोटे फल (उदुम्बर, नारियल), कन्द (सुवर्णकन्द आदि) दान देना चाहिए।
- अन्नराशि पर दो जलपूर्ण कलश; एक पलंग; ये सभी पदार्थ एक गाय के साथ किसी गृहस्थ ब्राह्मण को दे दिये जाते हैं।
- 'मुझे अक्षय फल प्राप्त हों' का कथन करना चाहिए।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मत्स्य पुराण (96|1-25)
संबंधित लिंक
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