चन्द्रभानु गुप्त: Difference between revisions

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Revision as of 14:27, 10 September 2012

प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्त का जन्म 14 जुलाई, 1902 ई. को अलीगढ़ ज़िले के 'बिजौली' नामक स्थान में हुआ था। उनके पिता 'हीरालाल' को अपने समाज में बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त थी। चन्द्रभानु गुप्त के चरित्र निर्माण में आर्य समाज का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और भावी जीवन में आर्य समाज के सिद्धान्त उनके मार्ग दर्शक रहे। उनकी शिक्षा 'लखीमपुर खीरी' में हुई और उच्च शिक्षा के लिए वे लखनऊ चले आए। यहाँ के विश्वविद्यालय से एम. ए., एल. एल. बी. की परीक्षा पास की और फिर लखनऊ ही उनका कार्यक्षेत्र बन गया।

राजनीति में प्रवेश

गुप्त जी ने लखनऊ में वकालत आरम्भ की। 'काकोरी काण्ड' के क्रान्तिकारियों के बचाव पक्ष के प्रमुख वकीलों में वे भी थे। शीघ्र ही कांग्रेस संगठन में भी उनका महत्त्वपूर्ण स्थान बन गया। 1926 से ही वे 'उत्तर प्रदेश कांग्रेस' और 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के सदस्य बन गए। उत्तर प्रदेश में वे कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष और संगठन के अध्यक्ष भी रहे। स्वतंत्रता के प्रत्येक आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय भाग लिया और जेल की सज़ाएँ भोगीं। 1937 के निर्वाचन में वे उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए और बीच के कुछ समय को छोड़कर बराबर निर्वाचन में सफल हुए।

मुख्यमंत्री का पद

स्वतंत्रता के बाद 1948 में बनी पहली प्रदेश सरकार में वे गोविन्द वल्लभ पन्त जी के मंत्रीमण्डल में सचिव के रूप में सम्मिलित हुए। फिर 1948 से 1957 ई. तक उन्होंने अनेक प्रमुख विभागों के मंत्री के रूप में काम किया। 1960 से 1963 ई. तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के बाद ‘कामराज योजना’ में उन्होंने यह पद त्याग दिया। किन्तु उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनका प्रभाव बना रहा। 1967 के आम चुनाव में विजयी होने के बाद वे पुन: मुख्यमंत्री बने। लेकिन शीघ्र ही उनके कुछ कांग्रेसी सदस्यों ने चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में दल बदलकर प्रदेश में पहली ग़ैर-कांग्रेसी सरकार बनाने में मदद की। बदली परिस्थितियों में चन्द्रभानु गुप्त विरोधी (कांग्रेस) दल के नेता बने।

कठिन निर्णय

1969 ई. में सम्पूर्ण देश के स्तर पर कांग्रेस विभाजित हो गई। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इंदिरा गांधी के सक्रिय सहयोग और कांग्रेस के एक वर्ग के समर्थन से वी. वी. गिरि देश के राष्ट्रपति चुने गए। यह गुप्त जी के लिए बड़े कठिन निर्णय की घड़ी थी। वे सदा से कांग्रेस के संगठन से जुड़े रहे थे। जब उन्होंने देखा कि उनके अनेक साथी विभाजन के बाद भी पुरानी संस्था में ही अडिग हैं, तो उन्होंने भी इंदिरा गांधी की नई कांग्रेस में न जाकर अपने पुराने समर्थकों के साथ रहना ही उचित समझा।

समाज सेवा

गुप्त जी ने समाज सेवा के क्षेत्र में भी अनेक काम किए। उनके द्वारा स्थापित लखनऊ की मुख्य संस्थाएँ हैं-‘मोतीलाल मेमोरियल सोसाइटी’, ‘आचार्य नरेन्द्र देव स्मृति भवन’, ‘बाल विद्या मन्दिर’, ‘बाल संग्रहालय’, ‘रवीन्द्रालय’ आदि। पुराने साथियों के प्रति, भले ही वे उनके राजनीतिज्ञ विचारों से सहमत न हों, गुप्त जी ने सदा मित्रों का भाव रखा और आवश्यकतानुसार उनकी सहायता करते रहे।

निधन

11 मार्च, 1980 ई. में चन्द्रभानु गुप्त जी का देहान्त हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 266।

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