के. एम. चांडी: Difference between revisions

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==कृषक समस्याओं के लिए संघर्ष==
==कृषक समस्याओं के लिए संघर्ष==
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प्रोफ़ेसर के. एम. चांडी का निधन [[7 सितम्बर]], [[1998]] को हुआ।<ref name="aa"/>
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Revision as of 07:50, 3 January 2016

के. एम. चांडी
जन्म 6 अगस्त, 1921
जन्म भूमि कोट्टायम ज़िला, केरल
मृत्यु 7 सितम्बर, 1998
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी तथा राज्यपाल
पार्टी कांग्रेस
कार्य काल उप-राज्यपाल पांडिचेरी- 15 मई, 1982 से 5 अगस्त, 1983 तक।

राज्यपाल गुजरात- 6 अगस्त, 1983 से 25 अप्रैल, 1984 तक। राज्यपाल मध्य प्रदेश- 15 मई, 1984 से 30 नवम्बर, 1987 तक।

विद्यालय 'गवर्नमेंट आर्ट कॉलेज', त्रिवेन्द्रम
जेल यात्रा 1946 में इन्हें गिरफ़्तार किया गया था और इन्होंने जेल की सज़ा काटी।
विशेष योगदान के. एम. चांडी ने पलई में 'सेंट थामस कॉलेज' की स्थापना में योगदान दिया। 1966 में उन्होंने 'भारतीय रबर उत्पादक संघ' की स्थापना की। वे इसके अध्यक्ष भी रहे।
अन्य जानकारी कृषक परिवार के होने के कारण के. एम. चांडी कृषकों की समस्याओं में गहरी रुचि लेते रहे और उनके निदान के लिये संघर्ष करते रहे। शासन ने 1962 में उन्हें सरकारी जंगल भूमि में बसने वालों की समस्याओं का परीक्षण करने वाली समिति का सदस्य नियुक्त किया था।

के. एम. चांडी (अंग्रेज़ी: K. M. Chandy ; जन्म- 6 अगस्त, 1921, कोट्टायम ज़िला, केरल; मृत्यु- 7 सितम्बर, 1998) स्वतंत्रता सेनानी तथा गुजरात और मध्य प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल थे। उन्होंने राजनीति में 17 वर्ष की उम्र से ही हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। उस समय वे 12वीं कक्षा के छात्र थे। सन 1946 में जब के. एम. चांडी मीनाचिल तालुक कांग्रेस कमेटी के सचिव थे, तब उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया, पर वे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते ही रहे। के. एम. चांडी ने पलई में 'सेंट थामस कॉलेज' की स्थापना में योगदान दिया था। इस कॉलेज में उन्होंने 1950 में अध्यापन कार्य भी किया। 15 मई, 1982 को के. एम. चांडी पांडिचेरी के उप-राज्यपाल बने। वे 6 अगस्त, 1983 को गुजरात के राज्यपाल बनाये गए। बाद में मध्य प्रदेश के राज्यपाल का पदभार उन्होंने 19 मई, 1984 को ग्रहण किया।

जन्म तथा शिक्षा

के. एम. चांडी का जन्म 6 अगस्त, 1921 को केरल के कोट्टायम ज़िले के पलई नामक नगर में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गृह नगर में और महाविद्यालय की उच्च शिक्षा चंगनाचेरी और 'गवर्नमेंट आर्ट कॉलेज', त्रिवेन्द्रम में प्राप्त की थी।[1]

राजनीतिक शुरुआत

के. एम. चांडी ने राजनीति में 17 वर्ष की उम्र से ही हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। उस समय वे चंगनाचेरी के 'सेंट वर्च मेन कॉलेज' में इन्टमीडिएट के विद्यार्थी थे। उन्होंने त्रिवेन्द्रम में राज्य कांग्रेस के नेताओं का अभिनन्दन करने वाले विद्यार्थियों पर हुए लाठीचार्ज के विरोध में हड़ताल का नेतृत्व किया था। हड़ताल के कारण कुछ और विद्यार्थियों के साथ उन्हें महाविद्यालय से निकाल दिया गया, किन्तु महाविद्यालय के समक्ष जन-सत्याग्रह होने पर उन्हें तथा अन्य विद्यार्थियों को कॉलेज में वापिस लिया गया।

प्रतिबंध तथा गिरफ़्तारी

त्रिवेन्द्रम में अध्ययन के दौरान उन्होंने प्रख्यात गांधीवादी जी. रामचन्द्रन के नेतृत्व में 'टेगौर अकादमी' के गठन में प्रमुख भूमिका निभाई। विद्यार्थियों तथा युवकों के मध्य राष्ट्रवादी आन्दोलन को सक्रिय करने के कारण इस अकादमी को 1941 में प्रतिबंधित कर दिया। सन 1946 में जब के. एम. चांडी मीनाचिल तालुक कांग्रेस कमेटी के सचिव थे, तब उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया, लेकिन वे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते ही रहे। उन्हें जुलाई, 1946 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। जब उच्च न्यायालय ने उनकी जमानत मंजूर कर दी तो उन्हें 'भारत रक्षा क़ानून' के अन्तर्गत बन्दी बना लिया गया और आज़ादी मिलने के एक माह बाद सितम्बर, 1947 के अन्त में रिहा कर दिया गया।

विधायक

के. एम. चांडी 26 साल की उम्र में 'युवा तुर्क' होने के नाते राज्य विधान सभा के लिये निर्विरोध निर्वाचित हुए। सन 1952 और 1954 में वे पुन: विधायक निर्वाचित हुए। वे विधान सभा में कांग्रेस पार्टी के मुख्य सचेतक थे। वे राज्य के प्रथम योजना मंडल और प्रथम राज्य न्यूनतम वेतन सलाहकार मंडल के भी सदस्य थे।[1]

अध्यापन कार्य

के. एम. चांडी ने पलई में 'सेंट थामस कॉलेज' की स्थापना में योगदान दिया। इस कॉलेज में उन्होंने 1950 में अध्यापन कराना शुरू किया और 1968 तक अंग्रेज़ी के स्नातकोत्तर प्राध्यापक नियुक्त रहे। 1972 में रबर बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त होने पर उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया।

योगदान

केरल तथा कोचीन विश्वविद्यालयों की अनेक अकादमिक समितियों, सीनेट और महासभा के के. एम. चांडी सदस्य रहे। प्रोफेसर के. एम. चांडी ने 'अखिल केरल निजी महाविद्यालय शिक्षक संघ' के गठन में प्रमुख भूमिका निभाई। उनकी अध्यक्षता के दौरान (1969-1972) निजी महाविद्यालयों के शिक्षकों के हित में दो समझौते हुए-

  1. अशासकीय महाविद्यालय शिक्षकों को शासकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों के बराबर वेतन मिलने लगा।
  2. वेतन का भुगतान शासन द्वारा सीधे किया जाने लगा।

श्रमिक संगठनों का गठन

'इन्टक' के गठन के पूर्व उन्होंने अनेक श्रमिक संगठनों का गठन तथा नेतृत्व किया। श्रमिक संघों की गतिविधियों के समर्थन में उन्होंने 'तोझिलालली' नामक साप्ताहिक का भी थोड़े समय के लिये सम्पादन तथा प्रकाशन किया था। के. एम. चांडी 1974-1976 तक इलायची मंडल के भी अध्यक्ष रहे। उनके कार्यकाल में 'इलायची प्लान्टेशन अनुसंधान' प्रारम्भ हुआ था।[1]

राज्यपाल

के. एम. चांडी 15 मई, 1982 से 5 अगस्त, 1983 तक पांडिचेरी के उप-राज्यपाल रहे। इसके बाद वे 6 अगस्त, 1983 से 25 अप्रैल, 1984 तक गुजरात के राज्यपाल रहे। मध्य प्रदेश के राज्यपाल का पदभार उन्होंने 15 मई, 1984 से 30 नवम्बर, 1987 तक सम्भाला था।[2]

अन्य पदों पर कार्य

1953 से 1957 तक के. एम. चांडी ज़िला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, 1963 से 1967 तक केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव और 1967 से 1972 तक उसके कोषाध्यक्ष रहे। वे 1948 से लागातार राज्य कांग्रेस कमेटी के सदस्य और 1963 से लगातार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। 1978 में राज्य कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का पद ग्रहण के लिये उन्होंने रबर बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और केरल में कांग्रेस संगठन को सुदृढ़ बनाने का चुनौतीपूर्ण कार्य स्वीकार किया, जबकि अनेक लोगों ने श्रीमती इंदिरा गाँधी का साथ छोड़ दिया था।

युवक कांग्रेस इकाई की स्थापना

के. एम. चांडी ने 1953 में प्रथम युवक कांग्रेस इकाई की स्थापना की और 1957 में युवक कांग्रेस के प्रथम अखिल भारतीय सम्मेलन में हिस्सा लिया। केरल में बृहत सहकारी संस्थाओं की स्थापना और विकास का श्रेय मुख्य रूप से श्री चांडी को है। वे 1949 से बीस वर्ष तक मीनाचिल तालुका सहकारी संघ के अध्यक्ष रहे। उन्होंने मीनाचिल सहकारी लैंड मार्टगेज बैंक की स्थापना की।

रबर उद्योग के लिए योजनाएँ

1966 में के. एम. चांडी ने 'भारतीय रबर उत्पादक संघ' की स्थापना की। वे इसके अध्यक्ष भी रहे। 1958 में वे रबर बोर्ड के सदस्य बने। 1972 में भारत सरकार ने उन्हें रबर बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया। उनके कार्यकाल में रबर प्लान्टेशन और रबर उद्योग के विकास को गति मिली। भारत में रबर के अनुसंधान के क्षेत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरूआत की थी। रबर के लिये विश्व बैंक योजना तैयार करने तथा उसे लागू करवाने का श्रेय भी उन्हें प्राप्त है। 'कोचीन विश्वविद्यालय' में रबर टेक्नोलॉजी में बी.टेक. पाठयक्रम उनकी योजना के अनुसार प्रारम्भ किया गया था। के. एम. चांडी की पहल पर ही भारत ने प्राकृतिक रबर उत्पादक देशों के संघ की सदस्यता ग्रहण की और अंतर्राष्ट्रीय रबर समुदाय में उल्लेखनीय भूमिका निभानी शुरू की।[1]

विदेश यात्रा

रबर अध्ययन, रबर उत्पादन, रबर अनुसंधान आदि के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में हिस्सा लेने के लिये उन्होंने लन्दन, कुआलालमपुर, बैंकांक, सिंगापुर आदि की यात्रा की। रबर के सम्बन्ध में विश्व बैंक परियोजना पर चर्चा करने के लिये के. एम. चांडी वाशिंगटन भी गये।

कृषक समस्याओं के लिए संघर्ष

एक कृषक परिवार के होने के कारण के. एम. चांडी कृषकों की समस्याओं में गहरी रुचि लेते रहे और उनके निदान के लिये संघर्ष करते रहे। शासन ने 1962 में उन्हें सरकारी जंगल भूमि में बसने वालों की समस्याओं का परीक्षण करने वाली समिति का सदस्य नियुक्त किया था। उनके प्रतिवेदन की सभी वर्गों ने सराहना की थी।

निधन

प्रोफ़ेसर के. एम. चांडी का निधन 7 सितम्बर, 1998 को हुआ।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 मध्य प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल (हिन्दी) एमपी पोस्ट। अभिगमन तिथि: 18 सितम्बर, 2014।
  2. गुजरात के राज्यपाल (हिन्दी) राजभवन गुजरात। अभिगमन तिथि: 18 सितम्बर, 2014।

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