षष्ठी व्रत: Difference between revisions
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Revision as of 09:13, 10 September 2010
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- पंचमी को षष्ठीव्रत किया जाता है।
- षष्ठीव्रत में षष्ठी या सप्तमी को सूर्य पूजा की जाती है।
- षष्ठीव्रत से अश्वमेध यज्ञ का लाभ प्राप्त होता है।[1]
- षष्ठीव्रत शुक्ल पक्ष की षष्ठी पर जब मंगल होता है किया जाता है।
- विभिन्न मासों में षष्ठीव्रत करना चाहिए।
- ऐसी मान्यता है कि षष्ठीव्रत से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।[2]
- भविष्यपुराण[3], भविष्योत्तरपुराण[4], कृत्यकल्पतरु[5] में केवल 3 व्रत हैं।
- हेमाद्रि[6] में केवल 21 व्रतों का उल्लेख है।[7]
- जब षष्ठी पंचमी या सप्तमी से युक्त हो तो सामान्य नियम यह है कि सप्तमी से युक्त षष्ठी पर व्रत एवं उपवास करना चाहिए, केवल स्कन्द षष्ठी में पंचमी से युक्त षष्ठी को वरीयता मिलती है।[8]
- षष्ठी कार्तिकेय (या स्कन्द) को प्रिय है, क्योंकि उस तिथि पर उनका जन्म हुआ था और उसी तिथि पर वे देवों के सेनापति बनाये गये थे।[9]
- स्कन्द षष्ठी के स्वामी हैं और प्रति षष्ठी पर सुगन्धित पुष्पों, दीपों, वस्त्रों, काक के खिलौनों, घंटी, दर्पण एवं चामर से उनकी पूजा होनी चाहिए।
- कार्तिकेय की पूजा विशेष रूप से राजाओं के द्वारा चम्पा के फूलों से होनी चाहिए।[10]
- मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी को महाषष्ठी कहा जाता है।[11]
- नारद पुराण[12]में जहाँ वर्ष भर के बारह मासों में किये जाने वाले षष्ठीव्रतों का उल्लेख है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 627, ब्रह्म पुराण से उद्धरण)
- ↑ हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 627-628, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)
- ↑ (भविष्यपुराण 1|39-46)
- ↑ (भविष्योत्तरपुराण अध्याय 38-42)
- ↑ (कृत्यकल्पतरु व्रत खण्ड 98-103)
- ↑ (हेमाद्रि व्रत खण्ड 1, 577-629)
- ↑ हेमाद्रि (काल, 622-624); कालनिर्णय (189-192); तिथितत्व(34-35); समयमयूख (42-43); पुरुषार्थचिन्तामणि (100-103); व्रतरत्नाकर (220-236)
- ↑ कालनिर्णय (190); निर्णयामृत (48); समयमयूख (42); पुरुषार्थचिन्तामणि (100-101)
- ↑ भविष्य पुराण (1|39|1-13); हेमाद्रि (काल0 622, ब्रह्म पुराण से उद्धरण); कृत्यकल्पतरु (नैयतकालिक, 382-383)
- ↑ कृत्यरत्नाकर (273)
- ↑ हेमाद्रि (काल, 623-624)
- ↑ (नारद पुराण 1|45|1-41)
संबंधित लिंक
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