शमी पूजन: Difference between revisions
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*[[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[प्रतिपदा]] पर [[नीम]] की, [[ज्येष्ठ]] की [[पूर्णिमा]] पर मानाये जाने वाले सावित्री व्रत पर [[बरगद |वट वृक्ष]], [[सोमवती अमावस्या]] पर [[तुलसी]], [[पीपल]] की, [[भाद्रपद|भाद्रमास]] की [[अमावस्या|कुशग्रहिणी अमावस्या]] पर कुशा की और [[कार्तिक]] की [[नवमी|आँवला नवमी]] पर आँवले के वृक्ष की पूजा का महत्व है, उसी प्रकार [[आश्विन]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[दशमी]] अर्थात [[विजया दशमी|विजयदशमी]] पर शमी वृक्ष के पूजन का महत्व है। | *[[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[प्रतिपदा]] पर [[नीम]] की, [[ज्येष्ठ]] की [[पूर्णिमा]] पर मानाये जाने वाले सावित्री व्रत पर [[बरगद |वट वृक्ष]], [[सोमवती अमावस्या]] पर [[तुलसी]], [[पीपल]] की, [[भाद्रपद|भाद्रमास]] की [[अमावस्या|कुशग्रहिणी अमावस्या]] पर कुशा की और [[कार्तिक]] की [[नवमी|आँवला नवमी]] पर आँवले के वृक्ष की पूजा का महत्व है, उसी प्रकार [[आश्विन]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[दशमी]] अर्थात [[विजया दशमी|विजयदशमी]] पर [[शमी वृक्ष]] के पूजन का महत्व है। | ||
*शमी वृक्ष का पूजन [[रावण|रावण दहन]] के बाद करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान किया जाता है। इस परंपरा में विजय की कामना के साथ समृद्धि की कामना की इच्छा रहती है।<ref> विजयादशमी, अध्याय 10; स्मृतिकौस्तुभ (355)।</ref> | *[[शमी वृक्ष]] का पूजन [[रावण|रावण दहन]] के बाद करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान किया जाता है। इस परंपरा में विजय की कामना के साथ समृद्धि की कामना की इच्छा रहती है।<ref> विजयादशमी, अध्याय 10; स्मृतिकौस्तुभ (355)।</ref> | ||
Revision as of 12:11, 3 November 2011
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है। भारत में वृक्ष-वनस्पतियाँ भी पूज्यनीय मानी जाती हैं।
- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर नीम की, ज्येष्ठ की पूर्णिमा पर मानाये जाने वाले सावित्री व्रत पर वट वृक्ष, सोमवती अमावस्या पर तुलसी, पीपल की, भाद्रमास की कुशग्रहिणी अमावस्या पर कुशा की और कार्तिक की आँवला नवमी पर आँवले के वृक्ष की पूजा का महत्व है, उसी प्रकार आश्विन शुक्ल दशमी अर्थात विजयदशमी पर शमी वृक्ष के पूजन का महत्व है।
- शमी वृक्ष का पूजन रावण दहन के बाद करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान किया जाता है। इस परंपरा में विजय की कामना के साथ समृद्धि की कामना की इच्छा रहती है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विजयादशमी, अध्याय 10; स्मृतिकौस्तुभ (355)।
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