बारीन्द्र कुमार घोष: Difference between revisions
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बारीन्द्र कुमार घोष
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पूरा नाम | बारीन्द्र कुमार घोष |
अन्य नाम | बारिन घोष |
जन्म | 5 जनवरी, 1880 |
मृत्यु | 18 अप्रैल, 1959 |
अभिभावक | कृष्णनाधन घोष |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वंतत्रता सेनानी |
संबंधित लेख | अरविंद घोष, एम. एन. राय, चितरंजन दास, जतिन्द्रनाथ दास। |
पार्टी | 1907 में क्रांतिकारी आतंकवाद की गतिविधियों का संयोजन करने के लिए 'मणिकतल्ला पार्टी' का गठन किया। |
रचनाएँ | 'द्वीपांतर बंशी', 'पाथेर इंगित', 'अमर आत्मकथा', 'अग्नियुग', 'ऋषि राजनारायण', 'श्री अरविन्द'। |
अन्य जानकारी | बारीन्द्र कुमार घोष अध्यात्मवादी अरविंद घोष के छोटे भाई थे। इन्होंने भूपेन्द्रनाथ दत्त के सहयोग से 1907 में कलकत्ता में 'अनुशीलन समिति' का गठन किया गया, जिसका प्रमुख उद्देश्य था- "खून के बदले खून।" |
बारीन्द्र कुमार घोष (अंग्रेज़ी: Barindra Kumar Ghosh जन्म: 5 जनवरी, 1880; मृत्यु: 18 अप्रैल, 1959) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तथा पत्रकार थे। इनको बारिन घोष के नाम से भी जाना जाता है। वे अध्यात्मवादी अरविंद घोष के छोटे भाई थे। बंगाल में क्रांतिकारी विचारधारा को फैलाने का श्रेय बारीन्द्र कुमार और भूपेन्द्र नाथ दत्त, जो कि स्वामी विवेकानंद के छोटे भाई थे, को ही जाता है। 'स्वदेशी आंदोलन' के परिणामस्वरूप बारीन्द्र कुमार घोष ने क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करने के लिए 1906 में बंगाली साप्ताहिक 'युगान्तर' का प्रकाशन प्रारम्भ किया। उन्होंने 1907 में क्रांतिकारी आतंकवाद की गतिविधियों का संयोजन करने के लिए 'मणिकतल्ला पार्टी' का गठन भी किया था। 1908 में इन्हें गिरफ़्तार कर मृत्यु दण्ड की सजा सुनाई गई, किन्तु बाद में इसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया। अण्डमान जेल में दस वर्ष व्यतीत करने के बाद इन्होंने अपना शेष समय पत्रकारिता में लगाया। बारीन्द्र कुमार घोष बंगाली दैनिक 'द स्टेट्समैन' और 'वसुमित्र' से भी जुड़े थे।
परिचय
बारीन्द्र कुमार घोष का जन्म 5 जनवरी, 1880 को लन्दन के पास 'क्रोयदन'[1] नामक कसबे में हुआ था। उनके पिता कृष्णनाधन घोष एक नामी चिकित्सक व प्रतिष्ठित ज़िला सर्जन थे जबकि उनकी माता देवी स्वर्णलता प्रसिद्ध समाज सुधारक व विद्वान् राजनारायण बासु की पुत्री थीं। अरविन्द, जो की पहले क्रन्तिकारी और फिर अध्यात्मवादी हो गए थे, उनके तीसरे बड़े भाई थे जबकि उनके दूसरे बड़े भाई मनमोहन घोष अंग्रेज़ी साहित्य के विद्वान, कवि और कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के प्रेसिडेंसी कॉलेज व ढाका यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर थे। बारीन्द्र कुमार घोष की स्कूली शिक्षा देवगढ़ में हुई व 1901 में प्रवेश परीक्षा पास करके उन्होंने पटना कॉलेज में दाखिला लिया। बरोड़ा में उन्होंने मिलिट्री ट्रेनिंग ली। इसी समय अरविन्द घोष से प्रभावित होकर उनका झुकाव क्रांतिकारी आन्दोलन की तरफ़ हुआ।[2]
क्रांतिकारी गतिविधियाँ
सन 1902 में बारीन्द्र कुमार घोष कलकत्ता वापस आ गये थे और जतिन्द्रनाथ दास के साथ मिलकर बंगाल में अनेक क्रांतिकारी समूहों को संगठित करना शुरू कर दिया।
अनुशीलन समिति
बारीन्द्र कुमार घोष और भूपेन्द्रनाथ दत्त के सहयोग से 1907 में कलकत्ता में 'अनुशीलन समिति' का गठन किया गया, जिसका प्रमुख उद्देश्य था- "खून के बदले खून।" 1905 के बंगाल विभाजन ने युवाओं को आंदोलित कर दिया था, जो की अनुशीलन समिति की स्थापना के पीछे एक प्रमुख वजह थी। इस समिति का जन्म 1903 में ही एक व्यायामशाला के रूप में हो गया था और इसकी स्थापना में प्रमथनाथ मित्र और सतीश चन्द्र बोस का प्रमुख योगदान था। एम. एन. राय के सुझाव पर इसका नाम अनुशीलन समिति रखा गया। प्रमथनाथ मित्र इसके अध्यक्ष, चितरंजन दास व अरविन्द घोष इसके उपाध्यक्ष और सुरेन्द्रनाथ ठाकुर इसके कोषाध्यक्ष थे। इसकी कार्यकारिणी की एकमात्र शिष्य सिस्टर निवेदिता थीं। 1906 में इसका पहला सम्मलेन कलकत्ता में सुबोध मालिक के घर पर हुआ। बारीन्द्र कुमार घोष जैसे लोगों का मानना था की सिर्फ राजनीतिक प्रचार ही काफ़ी नहीं है, नोजवानों को आध्यात्मिक शिक्षा भी दी जानी चाहिए। उन्होंने अनेक जोशीले नोजवानों को तैयार किया जो लोगों को बताते थे कि स्वतंत्रता के लिए लड़ना पावन कर्तव्य है।[2]
ढाका अनुशीलन समिति
कार्य की सहूलियत के लिए अनुशीलन समिति का दूसरा कार्यालय 1904 में ढाका में खोला गया, जिसका नेतृत्व पुल्लिन बिहारी दास और पी. मित्रा ने किया। ढाका में इसकी लगभग 500 शाखाएं थीं। इसके अधिकांश सदस्य स्कूल और कॉलेज के छात्र थे। सदस्यों को लाठी, तलवार और बन्दूक चलने का प्रशिक्षण दिया जाता था, हालाँकि बंदूकें आसानी से उपलब्ध नहीं होती थीं। बारीन्द्र कुमार घोष ने 1905 में क्रांति से सम्बंधित 'भवानी मंदिर' नामक पहली किताब लिखी। इसमें 'आनंद मठ' का भाव था और क्रांतिकारियों को सन्देश दिया गया था कि वह स्वाधीनता पाने तक संन्न्यासी का जीवन बिताएं।
'युगांतर' का प्रकाशन
अपने उद्देश्यों की पूर्ती हेतु 1906 में बारीन्द्र कुमार घोष ने भूपेन्द्र नाथ दत्त के साथ मिलकर 'युगांतर' नामक साप्ताहिक पत्र बांगला भाषा में प्रकाशित करना शुरू किया और क्रांति के प्रचार में इस पत्र का सर्वाधिक योगदान रहा। इस पत्र ने लोगों में राजनीतिक व धार्मिक शिक्षा का प्रसार किया। जल्द ही इस नाम से एक क्रांतिकारी संगठन भी बन गया। 'युगांतर' का जन्म अनुशीलन समिति से ही हुआ था और जल्दी ही इसने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू कर दीं। बंगाल के विभिन्न भागों में इसकी शाखाएं थीं। बारीन्द्र कुमार घोष के नेतृत्व में युगांतर समूह ने सर्वत्र क्रांति का बिगुल बजाया। इसने बम बनाये और दुष्ट अंग्रेज़ अधिकारीयों की हत्या का प्रयास भी किया।
बारीन्द्र कुमार घोष ने दूसरी पुस्तक 'वर्तमान रणनीति' जिसे अक्टूबर 1907 में अविनाश चन्द्र भट्टाचार्य ने प्रकाशित किया था, यह किताब बंगाल के क्रांतिकारियों की पाठ्य पुस्तक बन गयी, इसमें कहा गया था कि भारत की आजादी के लिए फ़ोजी शिक्षा और युद्ध जरूरी है।[2]
सज़ा
बारीन्द्र कुमार घोष और बाघ जतिन ने पूरे बंगाल से अनेक युवा क्रांतिकारियों को खड़ा करने में निर्णायक भूमिका अदा की। क्रांतिकारियों ने कलकत्ता के मनिक्तुल्ला में 'मनिक्तुल्ला समूह' बनाया। यह उनका एक गुप्त स्थान था, जहाँ वे बम बनाते और हथियार इकठ्ठा करते थे। 30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्लचंद चाकी ने किंग्स्फोर्ड की हत्या का प्रयास किया, जिसके फलस्वरूप पुलिस ने बहुत तेजी से क्रांतिकारियों की धर-पकड़ शुरू कर दी और दुर्भाग्य से 2 मई 1908 को बारीन्द्र कुमार घोष को भी उनके कई साथियों सहित गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर 'अलीपुर बम केस' चलाया गया और प्रारंभ में ही उन्हें मृत्युदंड की सजा दे दी गयी, परन्तु बाद में उसे आजीवन कारावास कर दिया गया। उन्हें अंडमान की भयावह सेल्युलर जेल में भेज दिया गया, जहाँ वह 1920 तक क़ैद रहे।
रिहाई तथा पत्रकारिता
बारीन्द्र कुमार घोष को 1920 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद दी गयी 'आम क्षमा'[3] में रिहा कर दिया गया, जिसके बाद वह कलकत्ता आ गए और पत्रकारिता प्रारंभ कर दी। किन्तु जल्द ही उन्होंने पत्रकारिता भी छोड़ दी और कलकत्ता में आश्रम बना लिया। 1923 में वह पॉडिचेरी चले गए, जहाँ उनके बड़े भाई अरविन्द घोष ने प्रसिद्ध 'श्री औरोविंद आश्रम' बनाया था। अरविन्द ने उन्हें आध्यात्म और साधना के प्रति प्रेरित किया, जबकि ठाकुर अनुकुलचंद उनके गुरु थे। इन्होंने ही अपने अनुयायियों द्वारा बरीं की सकुशल रिहाई में मदद की थी। 1929 में बारीन्द्र कुमार घोष दोबारा कलकत्ता आये और पत्रकारिता शुरू कर दी। 1933 में उन्होंने "The Dawn of India" नामक अंग्रेज़ी साप्ताहिक पत्र शुरू किया। वह 'the statesman' से जुड़े रहे और 1950 में बांगला दैनिक 'दैनिक बसुमती' के संपादक हो गए।[2]
रचनाएँ
बारीन्द्र कुमार घोष ने अनेक पुस्तकों की भी रचना की, जैसे-
- द्वीपांतर बंशी (Dvipantarer Banshi)
- पाथेर इंगित (Pather Ingit)
- अमर आत्मकथा (Amar aatmkatha)
- अग्नियुग (Agnijug)
- ऋषि राजनारायण (Rishi rajnarayan)
- द टेल ऑफ़ माई एक्साइल (The Tale of My Exile)
- श्री अरविन्द (Sri Aurobindo )
मृत्यु
18 अप्रैल, 1959 को महान् सेनानी बारीन्द्र कुमार घोष का देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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