महाअष्टमी

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महाअष्टमी नवरात्र की अष्टमी तिथि को कहा जाता है। सम्पूर्ण भारत में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना नवरात्र के नौ दिनों में की जाती है। ये नौ दिन हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र और विशेष फल प्रदान करने वाले माने जाते हैं। 'महाअष्टमी' के दिन माँ दुर्गा के आठवें रूप 'महागौरी' की पूजा होती है। इनकी उपमा शंख, चन्द्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफ़ेद रंग के हैं, इसीलिए उन्हें 'श्वेताम्बरधरा' भी कहा गया है।

पूजा की विधि

महागौरी की पूजा अत्यंत ही कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियाँ भी प्राप्त होती हैं। घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है और शत्रुओं का नाश होता है। माँ महागौरी की पूजा की विधि तथा शुभ मुहूर्त इस प्रकार है-

अष्टमी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद माँ अष्टभुजी दुर्गा की पूजा करने के लिए आसन पर बैठें और हाथ में चावल लेकर भगवती दुर्गा का ध्यान करें। ध्यान करके माँ दुर्गा के चरणों में चावल समर्पित करें। आसन के लिए फूल चढ़ाएँ। यदि मिट्टी से निर्मित दुर्गा प्रतिमा का पूजन करना हो तो पूजन पात्र का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद माँ दुर्गा की मूर्ति को दूध से स्नान कराएँ और पुन: शुद्ध जल से स्नान कराएँ। इसके बाद क्रमश: दही, शुद्ध घी, शहद व शक्कर से दुर्गा प्रतिमा को स्नान करवाएँ और हर बार शुद्ध जल से भी स्नान करवाएँ। तत्पश्चात निम्न मंत्र का उच्चारण शुद्धतापूर्वक करना चाहिए-

पंचामृतस्नानं समर्पयामि, पंचामृतस्नान्ते शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि, शुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंजलं समर्पयामि।

पंचामृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएँ। इसके बाद दुर्गा प्रतिमा पर क्रमश: गंध, वस्त्र, यज्ञोपवीत समर्पित करें। इसके बाद चंदन व अन्य सुगंधित द्रव्य समर्पित करें। तत्पश्चात पुष्पमाला, बिल्व पत्रधूप अर्पित करना चाहिए। दीप दिखलाएँ और हाथ धो लें। माँ को नैवेद्य (भोग) लगाएँ और निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें-

नैवेद्यं निवेदायामि। नैवेद्यान्तेध्यानम् ध्यानान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि।

इसके बाद फल, पान और सुपारी चढ़ाएँ। दक्षिणा के रूप में कुछ धन अर्पित करें। कपूर से माँ भगवती की आरती करें व पुष्पांजलि अर्पित कर क्षमा प्रार्थना करें।

संक्षिप्त कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार माँ ने पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की थी। इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से मलकर धोया, तब उनका शरीर विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम 'महागौरी' पड़ा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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