अनाम

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चंपा के व्यापारियों ने 'हिन्द-चीन' पहुँचकर 'वर्तमान अनाम' के प्रदेश में 'चंपा' नामक 'भारतीय उपनिवेश' स्थापित किया था।

चीन का आक्रमण

यहाँ के आदिवासी अनामी टांगाकिंग तथा दक्षिणी चीन की गायोची जाति को अपना पूर्वपुरुष मानते हैं। कुछ औरों के विचार से ये अनामी आदिवासी चीन राजवंश के उत्तराधिकारी हैं। इनके राज्य के बाद एक दूसरा वंश यहाँ आकर जमा जिसके समय में चीन राज्य ने अनाम पर आक्रमण किया। बाद में डिन-बो-लान्ह के वंशधरों ने यहाँ राज्य किया। उनके समय में चाम नामक एक जाति बहुत बड़ी संख्या में यहाँ आ पहुँची। ये लोग हिंदू थे और इनके द्वारा बनी कई अट्टालिकाएँ आज भी इसका प्रमाण हैं। सन्‌ 1407 ई. में अनाम पर चीनी लोगों का पुन: आक्रमण हुआ, परन्तु 1428 में लीलोयी नामक एक अनामी सेनाध्यक्ष ने इसे चीनियों के हाथ से मुक्त किया। लीलोयी के बाद गुयेन नामक एक परिवार ने इसपर १८वीं शताब्दी तक राज्य किया। इसके पश्चात्‌ अनाम फ्रांसीसियों के अधिकार में चला गया। वे पिनो द बहें नामक एक पादरी (बिशप) की सहायता से इस देश में आए थे। गुयेन परिवार के गियालंग नामक एक विद्रोही ने इस पादरी के साथ मिलकर फ्रांसीसी सेना को अनाम में बुलाया था। सन्‌ 1778 ई. में गियालंग ने फ्रांस के राजा 16वें लुई के साथ संधि कर ली और उसके वंशज कुछ समय तक राज्य करते रहे। टु डचू अनाम का अंतिम स्वाधीन राजा था। 1859 में फ्रांस तथा स्पेन ने अनाम पर आक्रमण किए। अनाम के राजा ने चीन सम्राट् के पास सहायता के लिए प्रार्थना की परंतु चीन के साथ फ्रांसीसियों ने समझौता कर लिया। सन्‌ 1884 में अनाम फ्रेंच प्रोटेक्टरेट हो गया और एक रेज़िडेंट सुपीरियर अनाम के राजकार्य परिदर्शन के लिए रखे गए। इस संबंध में बाओं दाई यहाँ के अंतिम राजा रहे।

द्वितीय विश्वयुद्ध

द्वितीय महायुद्ध के समय 1941 में विची सरकार पर जापानी सेना ने आक्रमण किया और 1945 में फ्रांसीसी अफसरों को पदच्युत करके बाओ दाई को वियतनाम (अर्थात्‌ टॉनकिन, अनाम, कोचीन चीन) का शासनकर्ता बनाया। इसके बाद से वियतनाम की राजनीतिक परिस्थिति बहुत दिनों तक ढीली ढाली रही। 1951 के आसपास साम्यवादी प्रभाव प्रबल हो उठा और झगड़ा उत्तरोत्तर बढ़ता गया। अंत में यह देश 17° अक्षांश रेखा के द्वारा दो भागों में विभाजित किया गया-उत्तरी भाग 'उत्तरी वियतनाम' तथा दक्षिणी भाग 'दक्षिणी वियतनाम' प्रसिद्ध हुआ। प्रधान मंत्री गो डिन डियेम ने बाओ दाई को पदच्युत करके दक्षिणी वियतनाम जनतंत्र स्थापित किया तथा इसका पहला राष्ट्रपति बना।

चम्पा

वर्तमान ‘अनाम’ का अधिकांश भाग इस क्षेत्र में समाहित था। इसका विस्तार 140 से 100 उत्तरी देशान्तर के बीच में था। 'हिन्दचीन' में भारतीयों का सर्वाधिक प्राचीन उपनिवेश 'चम्पा' था। ईसवी सन् से पूर्व ही भारतवासी इस देश में प्रविष्ट हो चुके थे। उस काल मे चम्पा राज्य सुख, वैभव और समृद्धि से भरपूर अनेक नगरों तथा अति सुन्दर हिन्दू व बौद्ध मन्दिरों से सुशोभित था। वहाँ के ‘मिसांग’ और ‘डांग डुआंग’ नाग के दो नगर आज भी दर्शनीय मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ के हिन्दू निवासी हिन्दू देवी-देवताओं की उपासना करते थे। चम्पा की वास्तुकला और तक्षण-कला सर्वश्रेष्ठ थी। इस राज्य में संस्कृत भाषा और हिन्दू धर्म तथा संस्कृति का व्यापक प्रसार था। मंगोलों और अनामियों के भीषण आक्रमणों ने सोलहवीं सदी में भारत के इस औपनिवेशिक राज्य का अन्त कर दिया। चम्पापुरी के वर्तमान अवशेषों में यहाँ के प्राचीन भारतीय धर्मसंस्कृति की सुन्दर झलक मिलती है।

वर्तमान स्थिति

अनाम के उत्तर से दक्षिण तक अनामीज़ कारडिलेरा पर्वतश्रेणी फैली हुई है। यह श्रेणी लाओस के पार्वत्य भाग से दक्षिण की ओर आकर पूर्वी ओर ठीक वैसे ही मुड़ जाती है जैसे बर्मा का पहाड़ पश्चिम की ओर मुड़ता है। इन दोनों पहाड़ों ने अपने बीच में कंबोडिया के पठार को घेर रखा है। इस पार्वत्य प्रदेश की रीढ़ प्रधानत: ग्रैनाइट शिला से बनी हुइ है जिसके आसपास अपक्षरण से पुरानी शिलाएँ निकल पड़ी हैं। कहीं-कहीं पर अपेक्षाकृत बाद में बनी हुई शिलाएँ जैसे कार्बोनिफेरस युग के चूने के पत्थर भी दिखाई पड़ते हैं। ये शिलाएँ विशेषकर पूर्वी किनारों पर ही मिलती हैं। यह रीढ़ नदियों द्वारा कटी फटी है; इसलिए किनारे के पास पहाड़ तथा घाटी एक के बाद एक पड़ते है। इस क्षेत्र का उत्तरी भाग पहाड़ी तथा दक्षिणी भाग पठारी है और पहाड़ों में पूहक (6,560 फुट), पूअटवट (18,200 फुट) मदर ऐंड चाइल्ड (6,888 फुट) आदि पर्वतशिखर हैं। पश्चिम की अपेक्षा पूर्व की ओर की ढाल अधिक खड़ी है। कई दर्रो द्वारा उपकूल भाग देश के भीतरी भाग में मिला हुआ है, जिनमें से उत्तर का आसाम गेट (390 फुट) विशेष महत्व के हैं। इस उपकूल भाग में टूरेन की खाड़ी सबसे अच्छा और एकमात्र पोताश्रय (बंदरगाह) है।

जलवायु

यहाँ की जलवायु मानसूनी है। दक्षिण पश्चिम मानसून मध्य अप्रैल से अगस्त के अंत तक चला करता है, परंतु यह स्थल के ऊपर से होकर चलने के कारण शुष्क रहता है। इस समय का ताप 82°-86° फा. रहता है। यहाँ की वर्षा सितंबर से अप्रैल तक चलनेवाली उत्तर पूर्वी मानसूनी वायु द्वारा होती है, जो चीन सागर के ऊपर से बहती है। इस समय का ताप लगभग 73° फा. रहता है। समुद्री तूफान यहाँ प्राय: आते रहते हैं।

मुख्य फसल

चावल यहाँ की मुख्य उपज है जो उपकूल प्रदेश में तथा छोटी छोटी नदियों के मुहानों पर पर्याप्त परिमाण में पैदा होता है। चावल के अतिरिक्त मक्का, चाय, तंबाकू, रुई, मसाले, गन्ना आदि यहाँ उपजाए जाते हैं। दक्षिण की ओर कुछ भूभाग में रबड़ की खेती होती है और पहाड़ी क्षेत्रों में शहतूत के पेड़ों पर रेशम के कीड़े पाले जाते हैं। रेशम तैयार करना यहाँ का पुराना कारोबार है और पुराने ढंग से ही चलता है। अनाम पर्याप्त परिमाण में रेशम बाहर भेजता है। अन्य पुराने व्यवसायों में नमक बनाना तथा मछली पकड़ना यहाँ बहुत प्रचलित हैं। बंगालियों की भाँति मछली और चावल इनके मुख्य खाद्य हैं। परिवहन (यातायात) की असुविधा के कारण इस देश का आभ्यंतरीय व्यवसाय नहीं के बराबर है। उपकूल भाग का 1,200 किलोमीटर लंबा रास्ता यहाँ के यातायात का मुख्य साधन है जो बड़े बड़े शहरों को मिलाता है। रेल की लाइन इसी सड़क के समांतर है और अनाम की सारी लंबाई पार करती है। यह पहाड़ों को छोड़ती हुई बहुधा समुद्रतट के पास से जाती है। टूरेन यहाँ का सबसे बड़ा शहर तथा सबसे बड़ा बंदरगाह है। यह बंदरगाह सूत, चाय, खनिज तेल तथा तंबाकू आयात करता है। इसका निर्यात चीनी, चावल, रुई, रेशम तथा दालचीनी है। टूरेन के पास नंगसन नामक स्थान पर कोयले की खान है। पहाड़ी इलाके में सोना, चाँदी, ताँबा, जस्ता, सीसा, लोहा तथा दूसरे खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 114 |

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