दादा भाई नौरोजी: Difference between revisions

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*[[बंबई]] में एक पहचान कायम करने के बाद वे [[इंग्लैण्ड]] गए और वहॉ भारतीय अर्थशास्त्र और राजनीतिक पुनरुद्धार के लिए आवाज़ बुलंद की और हाउस ऑफ कॉमंस के लिए चुने गए।  
*[[बंबई]] में एक पहचान कायम करने के बाद वे [[इंग्लैण्ड]] गए और वहॉ भारतीय अर्थशास्त्र और राजनीतिक पुनरुद्धार के लिए आवाज़ बुलंद की और हाउस ऑफ कॉमंस के लिए चुने गए।  
*दादा भाई नौरोजी ने [[1906]] में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की। उनकी महान कृति “पॉवर्टी ऐंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया” राष्ट्रीय आंदोलन की बाइबल कही जाती है।  
*दादा भाई नौरोजी ने [[1906]] में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की। उनकी महान कृति “पॉवर्टी ऐंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया” राष्ट्रीय आंदोलन की बाइबल कही जाती है।  
*दादा भाई नौरोजी [[महात्मा गांधी]] के प्रेरणा स्त्रोत थे।
*दादा भाई नौरोजी [[महात्मा गांधी]] के प्रेरणा स्रोत थे।
*[[30 जून]], [[1917]] को उनका निधन हुआ।
*[[30 जून]], [[1917]] को उनका निधन हुआ।



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दादा भाई नौरोजी|thumb

  • दादा भाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर, 1825 को गुजरात में एक गरीब परिवार में हुआ था।
  • दादाभाई नौरोजी को भारतीय राजनीति का पितामह कहा जाता है। वह दिग्गज राजनेता, उद्योगपति, शिक्षाविद और विचारक भी थे। उन्होंने ब्रिटिश उपनिवेश के प्रति बुद्धिजीवी वर्ग के सम्मोहन को खत्म करने का प्रयास किया।
  • वे पहले भारतीय थे जिन्हें एलफिंस्टन कॉलेज में बतौर प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति मिली। बाद में यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में उन्होंने प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाए दीं। उन्होंने शिक्षा के विकास, सामाजिक उत्थान और परोपकार के लिए बहुत-सी संस्थाओं को प्रोत्साहित करने में योगदान दिया, और वे प्रसिद्ध साप्ताहिक रास्ट गोफ्तर के संपादक भी रहे। वे अन्य कई जर्नल से भी जुडे़ रहे।
  • बंबई में एक पहचान कायम करने के बाद वे इंग्लैण्ड गए और वहॉ भारतीय अर्थशास्त्र और राजनीतिक पुनरुद्धार के लिए आवाज़ बुलंद की और हाउस ऑफ कॉमंस के लिए चुने गए।
  • दादा भाई नौरोजी ने 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की। उनकी महान कृति “पॉवर्टी ऐंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया” राष्ट्रीय आंदोलन की बाइबल कही जाती है।
  • दादा भाई नौरोजी महात्मा गांधी के प्रेरणा स्रोत थे।
  • 30 जून, 1917 को उनका निधन हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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