जयरामदास दौलतराम: Difference between revisions
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जयरामदास मेधावी छात्र थे। हाईस्कूल की परीक्षा में वे पूरे सिंध प्रांत में प्रथम आए थे। बी.ए. की परीक्षा में पूरी प्रेसिडेंसी में (जिसमें सिंध भी सम्मिलित था) उन्होंने दूसरा स्थान प्राप्त | जयरामदास मेधावी छात्र थे। हाईस्कूल की परीक्षा में वे पूरे सिंध प्रांत में प्रथम आए थे। बी.ए. की परीक्षा में पूरी प्रेसिडेंसी में (जिसमें सिंध भी सम्मिलित था) उन्होंने दूसरा स्थान प्राप्त किया था। [[मुंबई]] से ही जयरामदास ने क़ानून की डिग्री ली और कराची में वकालत करने लगे। | ||
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विद्यार्थी जीवन में ही उनका संपर्क प्रसिद्ध नेताओं [[गोपालकृष्ण गोखले]], [[लोकमान्य तिलक]], [[ | विद्यार्थी जीवन में ही उनका संपर्क प्रसिद्ध नेताओं [[गोपालकृष्ण गोखले]], [[लोकमान्य तिलक]], [[फ़िरोजशाह मेहता]] और [[गांधी जी]] आदि से हो चुका था। [[लाला लाजपतराय]] से भी वे मिले। इन संपर्कों ने उन्हें राजनीतिक गतिविधियों की ओर आकृष्ट किया। [[1916]] में [[एनी बेसेंट]] की '[[होमरूल लीग आन्दोलन|होमरूल लीग]]' के प्रादेशिक सचिव बनकर वे सार्वजनिक क्षेत्र में आए और वकालत पीछे छूट गई। | ||
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[[1919]] की अमृतसर कांग्रेस में उन्होंने भाग लिया और उसके बाद ही 'हिन्दुस्तान' नामक राष्ट्रीय पत्र का संपादन करने लगे। इस पत्र में देशभक्तिपूर्ण लेख प्रकाशित करने के कारण उन्हें गिरफ्तार करके दो वर्ष की सज़ा भोगनी पड़ी थी। | [[1919]] ई. की 'अमृतसर कांग्रेस' में उन्होंने भाग लिया और उसके बाद ही 'हिन्दुस्तान' नामक राष्ट्रीय पत्र का संपादन करने लगे। इस पत्र में देशभक्तिपूर्ण लेख प्रकाशित करने के कारण उन्हें गिरफ्तार करके दो वर्ष की सज़ा भोगनी पड़ी थी। | ||
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लाला लाजपतराय और [[मदन मोहन मालवीय|मालवीय जी]] के आग्रह पर वे [[1925]] में [[दिल्ली]] के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी दैनिक 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के संपादक बने। दो वर्ष बाद सिंध लौटने पर मुंबई | लाला लाजपतराय और [[मदन मोहन मालवीय|मालवीय जी]] के आग्रह पर वे [[1925]] में [[दिल्ली]] के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी दैनिक 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के संपादक बने। दो वर्ष बाद सिंध से लौटने पर मुंबई में [[नमक सत्याग्रह]] में वे मुख्य संगठनकर्ता थे और भीड़ पर पुलिस की गोलीबारी में उनके पेट में भी एक गोली लग गई थी। गांधी जी की गिरफ्तारी के बाद जयरामदास दौलतराम ने उनके पत्र 'यंग इंडिया' का संपादन किया। लेकिन शीघ्र ही फिर गिरफ्तार कर लिए गए और [[गाँधी-इरविन समझौता|गाँधी-इरविन समझौते]] के बाद [[1931]] ई. में ही जेल से बाहर आ सके। | ||
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जयरामदास को कांग्रेस का महामंत्री बनाया गया था कि [[1932]] में उन्हें फिर गिरफ्तार करके दो वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया। | जयरामदास को कांग्रेस का महामंत्री बनाया गया था कि [[1932]] में उन्हें फिर गिरफ्तार करके दो वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया। [1942]] ई. में वे फिर गिरफ्तार हुए और 3 वर्ष तक नज़रबंद रहे। | ||
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लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए। पर गांधी जी के कहने पर इसे भी छोड़ा और [[1928]] में 'विदेशी वस्त्र बहिष्कार समिति' के सचिव बने। उसी समय उन्हें कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया और [[1940]] तक वे इस पद पर रहे। | लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए। पर गांधी जी के कहने पर इसे भी छोड़ा और [[1928]] ई. में 'विदेशी वस्त्र बहिष्कार समिति' के सचिव बने। उसी समय उन्हें [[कांग्रेस]] कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया और [[1940]] ई. तक वे इस पद पर रहे। | ||
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स्वतंत्रता के बाद जयरामदास दौलतराम संविधान | स्वतंत्रता के बाद जयरामदास दौलतराम संविधान परिषद के सदस्य, कुछ समय तक [[बिहार]] के [[राज्यपाल]], केन्द्र सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री रहे। बाद में उन्होंने 6 वर्षों तक [[असम]] के राज्यपाल के रूप में काम किया। कुछ समय तक 'संपूर्ण गांधी वाङ्मय' के संपादन के संबद्ध रहने के अतिरिक्त [[1959]] से [[1970]] ई. तक वे [[राज्यसभा]] के सदस्य रहे। धार्मिक विचारों के जयरामदास कुटीर उद्योगों के समर्थक और शिक्षानीति को भारतीय रूप देने के पक्षपाती थे। | ||
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Revision as of 11:44, 25 April 2012
जयरामदास दौलतराम प्रसिद्ध काँग्रेसी नेता थे, जो देश में विभिन्न महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। जयरामदास दौलतराम का जन्म जुलाई, 1890 ई. में कराची (अब पाकिस्तान में) के एक सम्पन्न क्षत्रिय परिवार में हुआ था। सिंध पर अंग्रेज़ों के अधिकार के पहले से ही उनके पूर्वज उच्च पदों पर रहते आए थे।
शिक्षा
जयरामदास मेधावी छात्र थे। हाईस्कूल की परीक्षा में वे पूरे सिंध प्रांत में प्रथम आए थे। बी.ए. की परीक्षा में पूरी प्रेसिडेंसी में (जिसमें सिंध भी सम्मिलित था) उन्होंने दूसरा स्थान प्राप्त किया था। मुंबई से ही जयरामदास ने क़ानून की डिग्री ली और कराची में वकालत करने लगे।
राजनीति में प्रवेश
विद्यार्थी जीवन में ही उनका संपर्क प्रसिद्ध नेताओं गोपालकृष्ण गोखले, लोकमान्य तिलक, फ़िरोजशाह मेहता और गांधी जी आदि से हो चुका था। लाला लाजपतराय से भी वे मिले। इन संपर्कों ने उन्हें राजनीतिक गतिविधियों की ओर आकृष्ट किया। 1916 में एनी बेसेंट की 'होमरूल लीग' के प्रादेशिक सचिव बनकर वे सार्वजनिक क्षेत्र में आए और वकालत पीछे छूट गई।
- जेल यात्रा
1919 ई. की 'अमृतसर कांग्रेस' में उन्होंने भाग लिया और उसके बाद ही 'हिन्दुस्तान' नामक राष्ट्रीय पत्र का संपादन करने लगे। इस पत्र में देशभक्तिपूर्ण लेख प्रकाशित करने के कारण उन्हें गिरफ्तार करके दो वर्ष की सज़ा भोगनी पड़ी थी।
- संपादक
लाला लाजपतराय और मालवीय जी के आग्रह पर वे 1925 में दिल्ली के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी दैनिक 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के संपादक बने। दो वर्ष बाद सिंध से लौटने पर मुंबई में नमक सत्याग्रह में वे मुख्य संगठनकर्ता थे और भीड़ पर पुलिस की गोलीबारी में उनके पेट में भी एक गोली लग गई थी। गांधी जी की गिरफ्तारी के बाद जयरामदास दौलतराम ने उनके पत्र 'यंग इंडिया' का संपादन किया। लेकिन शीघ्र ही फिर गिरफ्तार कर लिए गए और गाँधी-इरविन समझौते के बाद 1931 ई. में ही जेल से बाहर आ सके।
- महामंत्री
जयरामदास को कांग्रेस का महामंत्री बनाया गया था कि 1932 में उन्हें फिर गिरफ्तार करके दो वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया। [1942]] ई. में वे फिर गिरफ्तार हुए और 3 वर्ष तक नज़रबंद रहे।
- सचिव
लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए। पर गांधी जी के कहने पर इसे भी छोड़ा और 1928 ई. में 'विदेशी वस्त्र बहिष्कार समिति' के सचिव बने। उसी समय उन्हें कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया और 1940 ई. तक वे इस पद पर रहे।
- सदस्य के रूप में
स्वतंत्रता के बाद जयरामदास दौलतराम संविधान परिषद के सदस्य, कुछ समय तक बिहार के राज्यपाल, केन्द्र सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री रहे। बाद में उन्होंने 6 वर्षों तक असम के राज्यपाल के रूप में काम किया। कुछ समय तक 'संपूर्ण गांधी वाङ्मय' के संपादन के संबद्ध रहने के अतिरिक्त 1959 से 1970 ई. तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे। धार्मिक विचारों के जयरामदास कुटीर उद्योगों के समर्थक और शिक्षानीति को भारतीय रूप देने के पक्षपाती थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 311-312।
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