राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस: Difference between revisions
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राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस (अंग्रेज़ी: National Pollution Control Day) प्रत्येक वर्ष भारत में '2 दिसम्बर' को मनाया जाता है। यह दिवस उन लोगों की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने 'भोपाल गैस त्रासदी' में अपनी जान गँवा दी थी। उन मृतकों को सम्मान देने और याद करने के लिये भारत में हर वर्ष इस दिवस को मनाया जाता है। भोपाल गैस त्रासदी वर्ष 1984 में 2 और 3 दिसंबर की रात में शहर में स्थित यूनियन कार्बाइड के रासायनिक संयंत्र से जहरीला रसायन, जिसे मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) के रूप में जाना जाता है, के साथ-साथ अन्य रसायनों के रिसाव के कारण हुई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, 5,00,000 से अधिक लोगों की[1] एमआईसी की जहरीली गैस के रिसाव के कारण मृत्यु हो गयी। बाद में, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा ये घोषित किया गया कि गैस त्रासदी से संबंधित लगभग 3,787 लोगों की मृत्यु हुई थी। अगले 72 घंटों में लगभग 8,000-10,000 के आसपास लोगों की मौत हुई, वहीं बाद में गैस त्रासदी से संबंधित बीमारियों के कारण लगभग 25000 लोगों की मौत हो गयी। ये पूरे विश्व में इतिहास की सबसे बड़ी औद्योगिक प्रदूषण आपदा के रूप में जाना गया।
गैस त्रासदी के कारक
- कई छोटे ड्रमों में भंडारण के स्थान पर बड़े टैंक में मिथाइल आइसोसाइनेट का भंडारण।
- कम लोगों की जगह में अधिक खतरनाक रसायनों का प्रयोग।
- संयंत्र द्वारा 1980 के दशक में उत्पादन के रोके जाने के बाद गैस का खराब संरक्षण।
- पाइपलाइनों में खराब सामग्री की उपस्थिति।
- विभिन्न सुरक्षा प्रणालियों के द्वारा सही से काम न करना।
- ऑपरेशन के लिए संयंत्रों के स्थान पर हाथ से काम करने पर निर्भरता, विशेषज्ञ ऑपरेटरों की कमी के साथ ही आपदा प्रबंधन की योजना की कमी।[2]
मनाने का कारण
हर साल राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाने के प्रमुख कारकों में से एक औद्योगिक आपदा के प्रबंधन और नियंत्रण के साथ ही पानी, हवा और मिट्टी के प्रदूषण[3] की रोकथाम है। सरकार द्वारा पूरी दुनिया में प्रदूषण को गंभीरता से नियंत्रित करने और रोकने के लिए बहुत से क़ानूनों की घोषणा की गयी। राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस हर साल 2 दिसंबर को प्रदूषण नियंत्रण अधिनियमों की आवश्यकता की ओर बहुत अधिक ध्यान देने के लिये लोगों को और सबसे अधिक उद्योगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है।
नियम और क़ानून
भारतीय क़ानून द्वारा लिया गया निवारण तरीका क्या है? भारत सरकार ने पूरे भारत में प्रदूषण के नियंत्रण और रोकथाम के लिये विभिन्न संजीदा नियम और क़ानून बनाये हैं, जिनमें से कुछ निम्न है[2]-
- 1974 का जल (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम,
- 1977 का जल उपकर (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम,
- 1981 का वायु (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम,
- 1986 का पर्यावरण (संरक्षण) नियम,
- 1986 का पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम,
- 1989 का खतरनाक रासायनिक निर्माण, भंडारण और आयात का नियम
- 1989 का खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम,
- 1989 का खतरनाक माइक्रो जीव अनुवांशिक इंजीनियर जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, भंडारण, आयात, निर्यात और भंडारण का नियम,
- 1996 का रासायनिक दुर्घटनाओं (इमरजेंसी, योजना, तैयारी और प्रतिक्रिया) नियम,
- 1998 का जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और संचालन) नियम,
- 1999 का पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक निर्माण और उपयोग नियम
- 2000 का ओजोन क्षयकारी पदार्थ (विनियमन) नियम
- 2000 का ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) का नियम
- 2000 का नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और संचालन) नियम
- 2001 का बैटरियों (मैनेजमेंट और संचालन) नियम।
- 2006 का महाराष्ट्र जैव कचरा (नियंत्रण) अध्यादेश।
- 2006 का पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना नियम।
राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
सभी अच्छे और खराब कार्यों के नियमों और कानूनों की राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जाँच की जाती है जो भारत में प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकारी निकाय है। ये हमेशा जाँच करता है कि सभी उद्योगों द्वारा पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियों का सही तरीके से उपयोग किया जा रहा है या नहीं। महाराष्ट्र में अपना स्वंय का नियंत्रण बोर्ड है, जिसे 'महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड' (एमपीसीबी) कहा जाता है, ये प्रदूषण नियंत्रण की तत्काल आवश्यकता के रूप में है, क्योंकि ये उन बड़े राज्यों में से एक है, जहाँ औद्योगीकरण की दर बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है। प्राकृतिक संसाधन जैसे जल, वायु, भूमि या वन विभिन्न प्रकार के प्रदूषण द्वारा तेजी से प्रभावित हो रहे हैं, जिन्हें सही तरीके से नियमों और विनियमों को लागू करके तुरंत सुरक्षित करना बहुत जरुरी है।
नियंत्रण के क्या उपाय हैं?
- शहरी अपशिष्ट जल उपचार और पुन: उपयोग परियोजना।
- ठोस अपशिष्ट और उसके प्रबंधन का वैज्ञानिक उपचार।
- अपशिष्ट के उत्पादन को कम करना।
- सीवेज उपचार सुविधा।
- कचरे का पुन: उपयोग और अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन।।
- जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा।
- इलेक्ट्रॉनिक कचरे की उपचार सुविधा।
- जल आपूर्ति परियोजना।
- संसाधन रिकवरी परियोजना।
- ऊर्जा की बचत परियोजना।
- शहरी क्षेत्रों में खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन।
- स्वच्छ विकास तंत्र पर परियोजनाएं।[2]
प्रदूषण रोकने के लिये नीति, नियमों के उचित कार्यान्वयन और प्रदूषण के सभी निवारक उपायों के साथ ही राज्य सरकार द्वारा कई अन्य प्रयास किये गए हैं। उद्योगों को सबसे पहले प्रदूषण को कम करने के लिए प्राधिकरण द्वारा लागू किये गये सभी नियमों और विनियमों का पालन करना होगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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