Difference between revisions of "अकबर का साहसी व्यक्तित्त्व"
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|पूरा नाम=जलालउद्दीन मुहम्मद अकबर | |पूरा नाम=जलालउद्दीन मुहम्मद अकबर | ||
|अन्य नाम= | |अन्य नाम= | ||
− | |जन्म=15 अक्टूबर | + | |जन्म=[[15 अक्टूबर]] सन 1542 (लगभग) |
|जन्म भूमि=[[अमरकोट]], [[सिंध प्रांत|सिन्ध]] ([[पाकिस्तान]]) | |जन्म भूमि=[[अमरकोट]], [[सिंध प्रांत|सिन्ध]] ([[पाकिस्तान]]) | ||
− | |पिता/माता=[[हुमायूँ]], मरियम मक़ानी | + | |पिता/माता=[[हुमायूँ]], [[हमीदा बानो बेगम|मरियम मक़ानी]] |
|पति/पत्नी=मरीयम-उज़्-ज़मानी (हरका बाई) | |पति/पत्नी=मरीयम-उज़्-ज़मानी (हरका बाई) | ||
|संतान=[[जहाँगीर]] के अलावा 5 पुत्र 7 बेटियाँ | |संतान=[[जहाँगीर]] के अलावा 5 पुत्र 7 बेटियाँ | ||
− | |उपाधि= | + | |उपाधि= |
− | |राज्य सीमा= | + | |राज्य सीमा= |
− | |शासन काल=27 जनवरी, 1556 - 27 अक्टूबर, 1605 | + | |शासन काल=[[27 जनवरी]], 1556 - [[27 अक्टूबर]], 1605 ई. |
− | |शासन अवधि= | + | |शासन अवधि= |
− | |धार्मिक मान्यता= | + | |धार्मिक मान्यता= |
− | |राज्याभिषेक=14 फ़रवरी 1556 कलानपुर के पास [[गुरदासपुर]] | + | |राज्याभिषेक=[[14 फ़रवरी]], 1556 कलानपुर के पास [[गुरदासपुर]] |
|युद्ध=[[पानीपत]], [[हल्दीघाटी]] | |युद्ध=[[पानीपत]], [[हल्दीघाटी]] | ||
|प्रसिद्धि= | |प्रसिद्धि= | ||
|निर्माण= | |निर्माण= | ||
− | |सुधार-परिवर्तन= | + | |सुधार-परिवर्तन= |
|राजधानी= [[फ़तेहपुर सीकरी]] [[आगरा]], [[दिल्ली]] | |राजधानी= [[फ़तेहपुर सीकरी]] [[आगरा]], [[दिल्ली]] | ||
|पूर्वाधिकारी=[[हुमायूँ]] | |पूर्वाधिकारी=[[हुमायूँ]] | ||
|उत्तराधिकारी=[[जहाँगीर]] | |उत्तराधिकारी=[[जहाँगीर]] | ||
|राजघराना=[[मुग़ल]] | |राजघराना=[[मुग़ल]] | ||
− | |वंश= | + | |वंश= |
− | |मृत्यु तिथि=27 अक्टूबर | + | |मृत्यु तिथि=[[27 अक्टूबर]], सन 1605 (उम्र 63 वर्ष) |
− | |मृत्यु स्थान=[[फ़तेहपुर सीकरी]], आगरा | + | |मृत्यु स्थान=[[फ़तेहपुर सीकरी]], [[आगरा]] |
|स्मारक= | |स्मारक= | ||
|मक़बरा=[[सिकंदरा आगरा|सिकन्दरा]], [[आगरा]] | |मक़बरा=[[सिकंदरा आगरा|सिकन्दरा]], [[आगरा]] | ||
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|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }} | ||
− | + | [[अकबर]] का दरबार वैभवशाली था। उसकी लंबी चौड़ी औपचारिकताएं दूसरे लोगों और अकबर के बीच के अंतर को उजागर करती थीं, हालांकि वह दरबारी घेरे के बाहर जनमत विकसित करने के प्रति सजग था। हर सुबह वह लोगों को दर्शन देने व सम्मान पाने के लिए एक खुले झरोखे में खड़ा होता था। अकबर का व्यक्तित्व कितना साहसी था, इस बात का अन्दाज़ा नीचे दिये कुछ प्रसंगों द्वारा आसानी से लगाया जा सकता है। | |
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==पहला प्रसंग== | ==पहला प्रसंग== | ||
− | [[मालवा]] का काम ठीक करके 38 दिनों के बाद अकबर (4 जून, 1561 ई.) को [[आगरा]] वापस लौट आया। गर्मियों का [[दिन]] था, लौटते वक़्त रास्ते में नरवर के पास के जंगलों में शिकार करने गया और पाँच बच्चों के साथ एक बाघिन को तलवार के एक वार से मार दिया। | + | [[मालवा]] का काम ठीक करके 38 दिनों के बाद अकबर (4 जून, 1561 ई.) को [[आगरा]] वापस लौट आया। गर्मियों का [[दिन]] था, लौटते वक़्त रास्ते में नरवर के पास के जंगलों में शिकार करने गया और पाँच बच्चों के साथ एक बाघिन को तलवार के एक वार से मार दिया। |
− | [[चित्र:Akbar-Supervises-Agra-Fort.jpg|thumb| | + | [[चित्र:Akbar-Supervises-Agra-Fort.jpg|thumb|200px|left|[[अकबरनामा]] के अनुसार [[लाल क़िला आगरा|आगरा क़िले]] का निर्माण होता देखते सम्राट अकबर]] |
==दूसरा प्रसंग== | ==दूसरा प्रसंग== | ||
इसी समय एक और भी ख़तरा उसने आगरा में मोल लिया। [[हेमू]] का हाथी 'हवाई' बहुत ही मस्त और ख़तरनाक था। एक दिन अकबर को उस पर सवारी करने की धुन सवार हुई। दो-तीन प्याले चढ़ाकर वह उसके ऊपर चढ़ गया। इतने से सन्तोष न होने पर उसने मुकाबले के दूसरे हाथी 'रनबाघा' से भिड़न्त करा दी। रनबाघा, हवाई के प्रहार को बर्दास्त न कर पाने के कारण जान बचाकर भागा। हवाई भी उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। अकबर हवाई के कंधे पर बैठा रहा। रनबाघा के पीछे-पीछे हवाई [[यमुना नदी]] के खड़े किनारे से नीचे की ओर दौड़ा। नावों का पुल पहाड़ों के नीचे कैसे टिक सकता था? पुल डूब गया। यमुना पार आगे-आगे रनबाघा भागा जा रहा था और उसके पीछे-पीछे हवाई। लोग साँस रोककर यह ख़ूनी तमाशा देख रहे थे। अकबर ने अपने ऊपर काबू रखते हुए हवाई को रोकने की कोशिश की और अन्त में वह सफल हुआ। | इसी समय एक और भी ख़तरा उसने आगरा में मोल लिया। [[हेमू]] का हाथी 'हवाई' बहुत ही मस्त और ख़तरनाक था। एक दिन अकबर को उस पर सवारी करने की धुन सवार हुई। दो-तीन प्याले चढ़ाकर वह उसके ऊपर चढ़ गया। इतने से सन्तोष न होने पर उसने मुकाबले के दूसरे हाथी 'रनबाघा' से भिड़न्त करा दी। रनबाघा, हवाई के प्रहार को बर्दास्त न कर पाने के कारण जान बचाकर भागा। हवाई भी उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। अकबर हवाई के कंधे पर बैठा रहा। रनबाघा के पीछे-पीछे हवाई [[यमुना नदी]] के खड़े किनारे से नीचे की ओर दौड़ा। नावों का पुल पहाड़ों के नीचे कैसे टिक सकता था? पुल डूब गया। यमुना पार आगे-आगे रनबाघा भागा जा रहा था और उसके पीछे-पीछे हवाई। लोग साँस रोककर यह ख़ूनी तमाशा देख रहे थे। अकबर ने अपने ऊपर काबू रखते हुए हवाई को रोकने की कोशिश की और अन्त में वह सफल हुआ। | ||
==तीसरा प्रसंग== | ==तीसरा प्रसंग== | ||
1562 ई. की भी अकबर के जीवन की एक घटना है। साकित परगना, ([[एटा ज़िला|ज़िला एटा]]) के आठ गाँवों के लोग बड़े ही सर्कस थे। अकबर ने स्वयं उन्हें दबाने का निश्चय किया। एक दिन शिकार करने के बहाने वह निकला। डेढ़-दो सौ सवारों और कितने ही हाथी उसके साथ थे। बागी चार हज़ार थे, लेकिन अकबर ने उनकी संख्या की परवाह नहीं की। उसने देखा, शाही सवार आगा-पीछा कर रहे हैं। फिर क्या था? अपने हाथी दलशंकर पर चढ़कर वह अकेले परोख गाँव के एक घर की ओर बढ़ा। ज़मीन के नीचे अनाज की [[बखार]] थी, जिस पर हाथी का पैर पड़ा और वह फँसकर लुढ़क गया। दुश्मन बाणों की वर्षा कर रहे थे। पाँच बाण ढाल में लगे। अकबर बेपरवाह होकर हाथी को निकालने में सफल हुआ और मकान की दीवार को तोड़ते हुए भीतर घुसा। घरों में आग लगा दी गई। एक हज़ार बागी उसी में जल मरे। | 1562 ई. की भी अकबर के जीवन की एक घटना है। साकित परगना, ([[एटा ज़िला|ज़िला एटा]]) के आठ गाँवों के लोग बड़े ही सर्कस थे। अकबर ने स्वयं उन्हें दबाने का निश्चय किया। एक दिन शिकार करने के बहाने वह निकला। डेढ़-दो सौ सवारों और कितने ही हाथी उसके साथ थे। बागी चार हज़ार थे, लेकिन अकबर ने उनकी संख्या की परवाह नहीं की। उसने देखा, शाही सवार आगा-पीछा कर रहे हैं। फिर क्या था? अपने हाथी दलशंकर पर चढ़कर वह अकेले परोख गाँव के एक घर की ओर बढ़ा। ज़मीन के नीचे अनाज की [[बखार]] थी, जिस पर हाथी का पैर पड़ा और वह फँसकर लुढ़क गया। दुश्मन बाणों की वर्षा कर रहे थे। पाँच बाण ढाल में लगे। अकबर बेपरवाह होकर हाथी को निकालने में सफल हुआ और मकान की दीवार को तोड़ते हुए भीतर घुसा। घरों में आग लगा दी गई। एक हज़ार बागी उसी में जल मरे। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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Latest revision as of 12:42, 15 September 2017
akabar ka sahasi vyaktittv
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poora nam | jalaluddin muhammad akabar |
janm | 15 aktoobar san 1542 (lagabhag) |
janm bhoomi | amarakot, sindh (pakistan) |
mrityu tithi | 27 aktoobar, san 1605 (umr 63 varsh) |
mrityu sthan | fatehapur sikari, agara |
pita/mata | humayooan, mariyam maqani |
pati/patni | mariyam-uzh-zamani (haraka baee) |
santan | jahaangir ke alava 5 putr 7 betiyaan |
shasan kal | 27 janavari, 1556 - 27 aktoobar, 1605 ee. |
rajyabhishek | 14 faravari, 1556 kalanapur ke pas guradasapur |
yuddh | panipat, haldighati |
rajadhani | fatehapur sikari agara, dilli |
poorvadhikari | humayooan |
uttaradhikari | jahaangir |
rajagharana | mugal |
maqabara | sikandara, agara |
sanbandhit lekh | mugal kal |
akabar ka darabar vaibhavashali tha. usaki lanbi chau di aupacharikataean doosare logoan aur akabar ke bich ke aantar ko ujagar karati thian, halaanki vah darabari ghere ke bahar janamat vikasit karane ke prati sajag tha. har subah vah logoan ko darshan dene v samman pane ke lie ek khule jharokhe mean kh da hota tha. akabar ka vyaktitv kitana sahasi tha, is bat ka andaza niche diye kuchh prasangoan dvara asani se lagaya ja sakata hai.
pahala prasang
malava ka kam thik karake 38 dinoan ke bad akabar (4 joon, 1561 ee.) ko agara vapas laut aya. garmiyoan ka din tha, lautate vaqt raste mean naravar ke pas ke jangaloan mean shikar karane gaya aur paanch bachchoan ke sath ek baghin ko talavar ke ek var se mar diya. [[chitr:Akbar-Supervises-Agra-Fort.jpg|thumb|200px|left|akabaranama ke anusar agara qile ka nirman hota dekhate samrat akabar]]
doosara prasang
isi samay ek aur bhi khatara usane agara mean mol liya. hemoo ka hathi 'havaee' bahut hi mast aur khataranak tha. ek din akabar ko us par savari karane ki dhun savar huee. do-tin pyale chadhakar vah usake oopar chadh gaya. itane se santosh n hone par usane mukabale ke doosare hathi 'ranabagha' se bhi dant kara di. ranabagha, havaee ke prahar ko bardast n kar pane ke karan jan bachakar bhaga. havaee bhi use chho dane ke lie taiyar nahian tha. akabar havaee ke kandhe par baitha raha. ranabagha ke pichhe-pichhe havaee yamuna nadi ke kh de kinare se niche ki or dau da. navoan ka pul paha doan ke niche kaise tik sakata tha? pul doob gaya. yamuna par age-age ranabagha bhaga ja raha tha aur usake pichhe-pichhe havaee. log saans rokakar yah khooni tamasha dekh rahe the. akabar ne apane oopar kaboo rakhate hue havaee ko rokane ki koshish ki aur ant mean vah saphal hua.
tisara prasang
1562 ee. ki bhi akabar ke jivan ki ek ghatana hai. sakit paragana, (zila eta) ke ath gaanvoan ke log b de hi sarkas the. akabar ne svayan unhean dabane ka nishchay kiya. ek din shikar karane ke bahane vah nikala. dedh-do sau savaroan aur kitane hi hathi usake sath the. bagi char hazar the, lekin akabar ne unaki sankhya ki paravah nahian ki. usane dekha, shahi savar aga-pichha kar rahe haian. phir kya tha? apane hathi dalashankar par chadhakar vah akele parokh gaanv ke ek ghar ki or badha. zamin ke niche anaj ki bakhar thi, jis par hathi ka pair p da aur vah phansakar ludhak gaya. dushman banoan ki varsha kar rahe the. paanch ban dhal mean lage. akabar beparavah hokar hathi ko nikalane mean saphal hua aur makan ki divar ko to date hue bhitar ghusa. gharoan mean ag laga di gee. ek hazar bagi usi mean jal mare.
left|30px|link=adaham khaan ki hatya|pichhe jaean | akabar ka sahasi vyaktittv | right|30px|link=akabar ke prarambhik sudhar|age jaean |
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tika tippani aur sandarbh
sanbandhit lekh