वामनराव बलिराम लाखे: Difference between revisions

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==जन्म==
==जन्म==
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==सहकारिता आंदोलन==
==सहकारिता आंदोलन==
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===='रायसाहब' की उपाधि====
==पत्रिका 'छत्तीसगढ़ मित्र'==
[[छत्तीसगढ़]] में पत्रकारिता का [[इतिहास]] 120 साल पुराना है। उस युग में आज की तरह कम्प्यूटरों और अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित प्रिंटिंग प्रेस थे और न ही इंटरनेट और मोबाइल फोन जैसे तीव्र गति के संचार उपकरण।  सुविधाविहीन उस युग में छत्तीसगढ़ जैसे इलाके में और इस इलाके के पेंड्रा जैसे आदिवासी बहुल पिछड़े अंचल से [[हिन्दी]] मासिक पत्रिका 'छत्तीसगढ़ मित्र' का प्रकाशन एक बड़ी ऐतिहासिक घटना थी। [[जनवरी]] [[1900]] में प्रारंभ यह छत्तीसगढ़ की पहली मासिक पत्रिका थी, जिसके माध्यम से राज्य में पत्रकारिता की बुनियाद रखी गयी।
 
पंडित वामनराव बलीराम लाखे इस पत्रिका के प्रकाशक थे। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित माधवराव सप्रे और उनके सहयोगी रामराव चिंचोलकर 'छत्तीसगढ़ मित्र' के सम्पादक थे। यह मासिक पत्रिका रायपुर के एक प्रिंटिंग प्रेस में छपती थी। सम्पादन का मुख्य दायित्व सप्रे जी निभाते थे। स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर में छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में [[साहित्य]] और पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का विकास इस [[पत्रिका]] के प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य था। हालांकि आर्थिक समस्याओं के कारण इसका प्रकाशन सिर्फ तीन साल तक हो पाया, लेकिन उस जमाने में छत्तीसगढ़ में  पत्रकारिता के इतिहास का पहला अध्याय "छत्तीसगढ़ मित्र' के माध्यम से लिखा गया। इसमें प्रकाशक के रूप में वामन बलीराम लाखे की भी बड़ी भूमिका थी।
==कर्मठता और संगठन क्षमता==
पूरे देश में आज़ादी के आंदोलन की तरंगें उमड़ रही थीं। लाखेजी ने उन दिनों यहाँ के किसानों को संगठित कर सहकारिता आंदोलन का भी शंखनाद किया। राजधानी रायपुर का 107 साल पुराना जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक और बलौदा बाजार स्थित 75 वर्ष पुराना सहकारी किसान राइस मिल लाखेजी की यादगार कर्मठता और संगठन क्षमता की निशानियां हैं। उन्होंने वर्ष [[1913]] में रायपुर में  जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक और वर्ष [[1945]] में बलौदा बाजार में सहकारी किसान राइस मिल की स्थापना की। राजधानी रायपुर के एक शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का नामकरण उनके नाम पर किया गया है, जो विगत कई दशकों से सफलतापूर्वक संचालित हो रहा है। [[महात्मा गांधी]] के आह्वान पर लाखेजी [[1920]] में [[अंग्रेज़]] हुकूमत के खिलाफ [[असहयोग आंदोलन]] से जुड़ गए।
==स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका==
वर्ष [[1941]] में [[व्यक्तिगत सत्याग्रह]] के दौरान उन्हें सिमगा में गिरफ्तार किया गया और चार महीने की कैद की सजा हुई। तब वह 70 साल के थे। उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था। इसके पहले आरंग की एक आम सभा में लाखेजी ने अंग्रेजों की हुकूमत को 'गुण्डों का शासन' बताते हुए कहा कि अब इस विदेशी सरकार को ज़्यादा समय तक हम नहीं चलने देंगे। उन्होंने आम सभा में जनता से इसके लिए आज़ादी के आन्दोलन में अधिक से अधिक संख्या में  शामिल होने का आह्वान किया। इस पर [[25 जून]] [[1930]] को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। लाखेजी को एक साल की सजा सुनाई गयी और 300 रुपए का अर्थदण्ड भी लगाया गया। उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था।
 
स्वर्गीय श्री हरि ठाकुर ने अपने ग्रन्थ 'छत्तीसगढ़ गौरव गाथा'  में लिखा है- 'सन [[1922]] में रायपुर में जिला राजनीतिक परिषद का आयोजन किया गया था। लाखेजी इस परिषद के प्रमुख आयोजकों में से थे। उसी वर्ष लाखेजी रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उन्होंने कांग्रेस संगठन को रायपुर जिले में सुदृढ करने के लिए कठोर परिश्रम किया। सन [[1924]] में लाखेजी ने कांग्रेस संगठन के भीतर [[छत्तीसगढ़]] को पृथक प्रदेश का दर्जा देने की मांग की, जो प्रांतीय कांग्रेस द्वारा अमान्य कर दी गयी। रायपुर जिले में कांग्रेस संगठन की नींव रखने वाले, राष्ट्रीय जागरण के पुरोधा के रूप में लाखेजी का स्थान सर्वोपरि है। वे इस जिले में '''सहकारिता आंदोलन के पितामह''' थे'। यह भी उल्लेखनीय है कि लाखे जी दो बार रायपुर नगर पालिका के निर्वाचित अध्यक्ष रह चुके थे।
=='रायसाहब' की उपाधि==
सन [[1915]] में रायपुर में '[[होमरूल लीग]]' की स्थापना की गई थी। लाखे जी उसके संस्थापक थे। [[छत्तीसगढ़]] में शुरू में जो राजनीतिक चेतना फैली थी, उसमें लाखे जी का बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने अपना सारा जीवन राष्ट्रीय आन्दोलन और सहकारी संगठन में बिताया। 1915 में बलौदा बाज़ार में 'किसान को-आपरेटिव राइस मिल' की स्थापना उन्होंने की थी। लाखे जी को [[अंग्रेज़]] हुकूमत ने किसानों की सेवाओं के लिए [[1916]] में 'रायसाहब' की उपाधि दी थी।
सन [[1915]] में रायपुर में '[[होमरूल लीग]]' की स्थापना की गई थी। लाखे जी उसके संस्थापक थे। [[छत्तीसगढ़]] में शुरू में जो राजनीतिक चेतना फैली थी, उसमें लाखे जी का बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने अपना सारा जीवन राष्ट्रीय आन्दोलन और सहकारी संगठन में बिताया। 1915 में बलौदा बाज़ार में 'किसान को-आपरेटिव राइस मिल' की स्थापना उन्होंने की थी। लाखे जी को [[अंग्रेज़]] हुकूमत ने किसानों की सेवाओं के लिए [[1916]] में 'रायसाहब' की उपाधि दी थी।
====असहयोग आन्दोलन में भागीदारी====
वामनराव बलिराम लाखे ने [[1920]] में 'रायसाहब' की पदवी त्याग करके [[असहयोग आन्दोलन]] की शुरुआत की। 1920 में [[नागपुर]] में [[महात्मा गाँधी]] ने असहयोग का प्रस्ताव रखा था। लाखे जी उस अधिवेशन से लौटने के बाद स्वदेशी प्रचार में सक्रिय हो गये और रायसाहब की पदवी लौटाकर असहयोग आन्दोलन में सक्रिय हो गये। लोगों ने उन्हें 'लोकप्रिय' की और एक उपाधि दी थी।
==खादी का प्रचार==
==खादी का प्रचार==
सन [[1921]] में [[माधवराव सप्रे]] ने [[रायपुर]] में 'राष्ट्रीय विद्यालय' की स्थापना की। उस विद्यालय के मंत्री लाखे जी बने। लाखे जी खादी का प्रचार करने लगे। 1921 में [[अक्टूबर]] के [[महीने]] में रायपुर में "खादी सप्ताह" मनाया गया था, जिसके प्रमुख संयोजकों में से एक थे लाखे जी। न जाने कितने लोग उस वक्त उत्साह के साथ खादी पहनने लगे थे। [[1922]] में वामनराव बलिराम लाखे 'रायपुर ज़िला कांग्रेस' के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और इसी समय में उन्होंने नियमित खादी वस्त्र पहनने का संकल्प लिया तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प लिया।
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Latest revision as of 10:47, 23 August 2020

वामनराव बलिराम लाखे
पूरा नाम वामनराव बलिराम लाखे
अन्य नाम रायपुर, छत्तीसगढ़
जन्म 17 सितम्बर, 1872
जन्म भूमि 21 अगस्त, 1948
अभिभावक पण्डित बलीराव गोविंदराव लाखे
पति/पत्नी जानकी बाई
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
धर्म हिन्दू
विशेष योगदान आपने रायपुर में 'ए.वी.एम. स्कूल' की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसे बाद में इनकी मृत्यु के पश्चात् नाम बदलकर 'श्री वामनराव लाखे उच्चतर माध्यमिक शाला' कर दिया गया।
अन्य जानकारी 1922 में वामनराव लाखे 'रायपुर ज़िला कांग्रेस' के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। इसी समय में उन्होंने नियमित खादी वस्त्र पहनने तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प लिया।

वामनराव बलिराम लाखे (अंग्रेज़ी: Wamanrao Baliram Lakhe, जन्म- 17 सितम्बर, 1872, रायपुर, छत्तीसगढ़; मृत्यु- 21 अगस्त, 1948) भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले छत्तीसगढ़ राज्य के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। 1913 में लाखे जी ने अपना कार्य क्षेत्र सहकारी आंदोलन को बनाया था, जिससे वे जीवन पर्यन्त जुड़े रहे। सहकारिता आंदोलन के द्वारा दु:खी और शोषित किसानों की सेवा तथा सहयोग करना उनका प्रमुख उद्देश्य था। सन 1915 में रायपुर में 'होमरूल लीग' की स्थापना की गई थी। वामनराव बलिराम लाखे जी उसके संस्थापक थे। छत्तीसगढ़ में शुरू में जो राजनीतिक चेतना फैली, उसमें लाखे जी का बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने अपना सारा जीवन राष्ट्रीय आन्दोलन और सहकारी संगठन में बिताया।

जन्म

वामनराव बलिराम लाखे का जन्म 17 सितम्बर, 1872 को रायपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ था। उनके पिता पण्डित बलीराव गोविंदराव लाखे ग़रीब व्यक्ति थे, किन्तु कठोर परिश्रम से उन्होंने कई ग्राम ख़रीद लिये थे। जब वामनराव बलिराम लाखे का जन्म हुआ, उस समय तक उनके परिवार की गणना समृद्ध घरानों में होने लगी थी।[1]

शिक्षा

वामनराव बलिराम लाखे ने रायपुर से मैट्रिक उत्तीर्ण किया। माधवराव सप्रे भी उस समय उसी स्कूल में पढ़ते थे। दोनों में दोस्ती हो गई। सन 1900 में जब माधवराव सप्रे ने 'छत्तीसगढ़ मित्र' नाम से मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया तो लाखे जी उस पत्रिका के प्रकाशक थे। छत्तीसगढ़ की यह पहली पत्रिका थी। सिर्फ तीन साल तक यह पत्रिका चली, पर उन तीन सालों के भीतर ही उस पत्रिका के माध्यम से राष्ट्रीय जागरण का युग आरम्भ हो गया था।

विवाह तथा वकालत

मैट्रिक पास होते ही वामनराव बलिराम लाखे का विवाह जानकी बाई के साथ करा दिया गया था। विवाहोपरांत वे उच्च शिक्षा हेतु नागपुर गये। सन 1904 में क़ानून की परीक्षा पास करके रायपुर में वकालत करने लगे। वकालत के साथ ही साथ उन्होंने सार्वजनिक, सामाजिक व राजनीतिक कार्यों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया था। लाखे जी ने जब रायपुर में वकालत शुरु की तो उनका उद्देश्य था लोगों के लिए कुछ महत्वपूर्ण काम करना, ताकि उनकी दशा में सुधार हो। उनका उद्देश्य पैसे अर्जन करना नहीं था। उनकी पत्नी ने भी हमेशा उनका साथ दिया।

सहकारिता आंदोलन

वर्ष 1913 में वामनराव बलिराम लाखे ने अपना कार्यक्षेत्र सहकारी आंदोलन को बनाया, जिससे वे जीवन पर्यन्त जुड़े रहे। सहकारिता आंदोलन के द्वारा इस अंचल के दु:खी और शोषित किसानों की सेवा तथा सहयोग करना उनका प्रमुख उद्देश्य था। 1913 में ही उन्होंने रायपुर में 'को-आपरेटिव सेन्ट्रल बैंक' की स्थापना की थी, जिसके वे 1936 तक अवैतनिक सचिव के पद पर रहकर कठोर परिश्रम तथा निष्ठा के साथ कार्य करते रहे और संस्था को उन्नति के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचा दिया। 1937 से 1940 तक वे इस संस्था के अध्यक्ष पद पर रहे। उनके प्रयास से ही 1930 में बैंक का अपना स्वयं का भवन बनाया गया था।[1]

पत्रिका 'छत्तीसगढ़ मित्र'

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता का इतिहास 120 साल पुराना है। उस युग में आज की तरह कम्प्यूटरों और अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित प्रिंटिंग प्रेस थे और न ही इंटरनेट और मोबाइल फोन जैसे तीव्र गति के संचार उपकरण। सुविधाविहीन उस युग में छत्तीसगढ़ जैसे इलाके में और इस इलाके के पेंड्रा जैसे आदिवासी बहुल पिछड़े अंचल से हिन्दी मासिक पत्रिका 'छत्तीसगढ़ मित्र' का प्रकाशन एक बड़ी ऐतिहासिक घटना थी। जनवरी 1900 में प्रारंभ यह छत्तीसगढ़ की पहली मासिक पत्रिका थी, जिसके माध्यम से राज्य में पत्रकारिता की बुनियाद रखी गयी।

पंडित वामनराव बलीराम लाखे इस पत्रिका के प्रकाशक थे। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित माधवराव सप्रे और उनके सहयोगी रामराव चिंचोलकर 'छत्तीसगढ़ मित्र' के सम्पादक थे। यह मासिक पत्रिका रायपुर के एक प्रिंटिंग प्रेस में छपती थी। सम्पादन का मुख्य दायित्व सप्रे जी निभाते थे। स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर में छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में साहित्य और पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का विकास इस पत्रिका के प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य था। हालांकि आर्थिक समस्याओं के कारण इसका प्रकाशन सिर्फ तीन साल तक हो पाया, लेकिन उस जमाने में छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के इतिहास का पहला अध्याय "छत्तीसगढ़ मित्र' के माध्यम से लिखा गया। इसमें प्रकाशक के रूप में वामन बलीराम लाखे की भी बड़ी भूमिका थी।

कर्मठता और संगठन क्षमता

पूरे देश में आज़ादी के आंदोलन की तरंगें उमड़ रही थीं। लाखेजी ने उन दिनों यहाँ के किसानों को संगठित कर सहकारिता आंदोलन का भी शंखनाद किया। राजधानी रायपुर का 107 साल पुराना जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक और बलौदा बाजार स्थित 75 वर्ष पुराना सहकारी किसान राइस मिल लाखेजी की यादगार कर्मठता और संगठन क्षमता की निशानियां हैं। उन्होंने वर्ष 1913 में रायपुर में जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक और वर्ष 1945 में बलौदा बाजार में सहकारी किसान राइस मिल की स्थापना की। राजधानी रायपुर के एक शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का नामकरण उनके नाम पर किया गया है, जो विगत कई दशकों से सफलतापूर्वक संचालित हो रहा है। महात्मा गांधी के आह्वान पर लाखेजी 1920 में अंग्रेज़ हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन से जुड़ गए।

स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका

वर्ष 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्हें सिमगा में गिरफ्तार किया गया और चार महीने की कैद की सजा हुई। तब वह 70 साल के थे। उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था। इसके पहले आरंग की एक आम सभा में लाखेजी ने अंग्रेजों की हुकूमत को 'गुण्डों का शासन' बताते हुए कहा कि अब इस विदेशी सरकार को ज़्यादा समय तक हम नहीं चलने देंगे। उन्होंने आम सभा में जनता से इसके लिए आज़ादी के आन्दोलन में अधिक से अधिक संख्या में शामिल होने का आह्वान किया। इस पर 25 जून 1930 को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। लाखेजी को एक साल की सजा सुनाई गयी और 300 रुपए का अर्थदण्ड भी लगाया गया। उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था।

स्वर्गीय श्री हरि ठाकुर ने अपने ग्रन्थ 'छत्तीसगढ़ गौरव गाथा' में लिखा है- 'सन 1922 में रायपुर में जिला राजनीतिक परिषद का आयोजन किया गया था। लाखेजी इस परिषद के प्रमुख आयोजकों में से थे। उसी वर्ष लाखेजी रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उन्होंने कांग्रेस संगठन को रायपुर जिले में सुदृढ करने के लिए कठोर परिश्रम किया। सन 1924 में लाखेजी ने कांग्रेस संगठन के भीतर छत्तीसगढ़ को पृथक प्रदेश का दर्जा देने की मांग की, जो प्रांतीय कांग्रेस द्वारा अमान्य कर दी गयी। रायपुर जिले में कांग्रेस संगठन की नींव रखने वाले, राष्ट्रीय जागरण के पुरोधा के रूप में लाखेजी का स्थान सर्वोपरि है। वे इस जिले में सहकारिता आंदोलन के पितामह थे'। यह भी उल्लेखनीय है कि लाखे जी दो बार रायपुर नगर पालिका के निर्वाचित अध्यक्ष रह चुके थे।

'रायसाहब' की उपाधि

सन 1915 में रायपुर में 'होमरूल लीग' की स्थापना की गई थी। लाखे जी उसके संस्थापक थे। छत्तीसगढ़ में शुरू में जो राजनीतिक चेतना फैली थी, उसमें लाखे जी का बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने अपना सारा जीवन राष्ट्रीय आन्दोलन और सहकारी संगठन में बिताया। 1915 में बलौदा बाज़ार में 'किसान को-आपरेटिव राइस मिल' की स्थापना उन्होंने की थी। लाखे जी को अंग्रेज़ हुकूमत ने किसानों की सेवाओं के लिए 1916 में 'रायसाहब' की उपाधि दी थी।

खादी का प्रचार

सन 1921 में माधवराव सप्रे ने रायपुर में 'राष्ट्रीय विद्यालय' की स्थापना की। उस विद्यालय के मंत्री लाखे जी बने। लाखे जी खादी का प्रचार करने लगे। 1921 में अक्टूबर के महीने में रायपुर में "खादी सप्ताह" मनाया गया था, जिसके प्रमुख संयोजकों में से एक थे लाखे जी। न जाने कितने लोग उस वक्त उत्साह के साथ खादी पहनने लगे थे। 1922 में वामनराव बलिराम लाखे 'रायपुर ज़िला कांग्रेस' के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और इसी समय में उन्होंने नियमित खादी वस्त्र पहनने का संकल्प लिया तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प लिया।

पांच पाण्डव

1930 में जब महात्मा गाँधी ने आन्दोलन शुरू किया तो रायपुर में इस आन्दोलन का नेतृत्व वामनराव बलिराम लाखे, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, मौलाना रउफ़, महंत लक्ष्मीनारायण दास और शिवदास डागा कर रहे थे। ये पांचों रायपुर में स्वाधीनता के आन्दोलन में 'पांच पाण्डव' के नाम से विख्यात हो गये थे[1]-

भैया पांचों पांडव कहिए जिनको नाम सुनाऊं
लाखे वामनराव हमारे धर्मराज को है अवतार
भीमसेन अवतारी जानो, लक्ष्मीनारायण जिनको नाम
डागा सहदेव नाम से जाहिर रउफ नकुल को है अवतार
ठाकुर अर्जुन के अवतारी योद्धा प्यारेलाल साकार

गिरफ़्तारी

वामनराव बलिराम लाखे ने जब एक सभा में 'अंग्रेज़ी शासन को गुण्डों का राज्य' कहा तो उन्हें गिरफ़्तारकर लिया गया और उन्हें एक साल की सज़ा तथा 3000 रुपये जुर्माना हुआ। 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में लाखे जी को सिमगा में सत्याग्रह करते हुए गिरफ़्तार किया गया और चार महीनों की सजा दी गई। उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था। उस वक्त लाखे जी 70 वर्ष के थे। छ: साल बाद जब आज़ादी मिली तो 15 अगस्त को रायपुर के गाँधी चौक में वामनराव बलिराम लाखे ने तिरंगा झंडा फरहाया।

स्कूल की स्थापना

रायपुर में शिक्षा के विकास में वामनराव बलिराम लाखे ने अपना सक्रिय सहयोग प्रदान किया। उन्होंने रायपुर में 'ए.वी.एम. स्कूल' की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसे बाद में उनकी मृत्यु के पश्चात् नाम बदलकर 'श्री वामनराव लाखे उच्चतर माध्यमिक शाला', रायपुर कर दिया गया। उन्होंने नगर की अन्य शिक्षण संस्थाओं से अपना सक्रिय संबंध बनाकर रखा एवं उन्हें हर प्रकार से सहयोग करते रहे।

नगरपालिका अध्यक्ष

लाखे जी बुढ़ापारा वार्ड से कई बार रायपुर नगरपालिका के सदस्य तथा दो बार रायपुर नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गये थे। अपने अध्यक्ष काल में वे नगर पालिका के कार्यालय तक पैदल ही घर से आना-जाना करते थे। रास्ते में तमाम लोग उनसे अपनी समस्याओं को लेकर मिलते और लाखे जी बड़े गौर से उनकी बातें सुनते और समस्याओं के निराकरण हेतु पहल करते। उनका जीवन नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में एकदम पारदर्शी था।[1]

निधन

वामनराव बलिराम लाखे जी का निधन 21 अगस्त, 1948 को हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 पं. वामनराव बलिराम लाखे (हिन्दी) रायपुर सिटी। अभिगमन तिथि: 18 फरवरी, 2015।

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