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| ==भारत के संग्रहालय==
| | {{माह क्रम|पिछला=[[जनवरी 2026]]|अगला=[[मार्च 2026]]}} |
| {| class="wikitable" cellpadding="5" | | {{Calendar-Feb-Sun |
| |-
| | | राष्ट्रीय शाके =1947<br />राष्ट्रीय माघ 00 से राष्ट्रीय फाल्गुन 00 तक<br /> |
| !क्रम
| | | विक्रम संवत =2082<br />माघ सुदी 00 से फाल्गुन सुदी 00 तक<br /> |
| !नाम
| | | अंग्रेज़ी = फ़रवरी 2026 |
| !स्थान
| | | इस्लामी हिजरी =1447<br />[[शाबान]] 01 से [[रमजान]] 00 तक<br /> |
| !प्रदेश
| | | बंगला संवत = 1432<br />बंग माघ 00 से बंग फाल्गुन 00 तक<br /> |
| |- | | | रवि1 ={{DATE |
| |1 | | | दिनांक =[[1 फ़रवरी|01]] |
| |त्रिपुरा गवर्नमेंट संग्रहालय | | | दिनांक/माह/वर्ष=01022026 |
| |त्रिपुरा
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |त्रिपुरा | | | घटनाएँ =[[रविदास जयंती]], [[तटरक्षक दिवस]]<br /> |
| |- | | '''जन्म''' - [[अवतार किशन हंगल]], [[सतपाल सिंह]], [[शंभुनाथ डे]], [[ब्रह्मबांधव उपाध्याय]], [[अब्बास तैयबजी]]<br /> |
| |2 | | '''मृत्यु''' - [[मगन भाई देसाई]], [[कल्पना चावला]], [[नैन सिंह रावत]]}} |
| |स्टेट म्यूज़ियम | | | सोम1 = {{DATE |
| |कोहिमा | | |दिनांक =[[2 फ़रवरी|02]] |
| |नागालैंड | | |दिनांक/माह/वर्ष=02022026 |
| |- | | |तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |3
| | |घटनाएँ = |
| |राष्ट्रीय संग्रहालय
| | '''जन्म''' - [[राजकुमारी अमृत कौर]], [[मोटूरि सत्यनारायण]], [[खुशवंत सिंह]], [[श्रीधर वेंकटेश केलकर]], [[दसरथ देब]], [[जीत सिंह नेगी]]<br /> |
| |दिल्ली
| | '''मृत्यु''' - [[दमित्री मेंडलीव]], [[बलुसु संबमूर्ति]], [[चतुरसेन शास्त्री]], [[गोविंद शंकर कुरुप]], [[मोहन लाल सुखाड़िया]]}} |
| |दिल्ली
| | | मंगल1 = {{DATE |
| |-
| | | दिनांक =[[3 फ़रवरी|03]] |
| |4
| | | दिनांक/माह/वर्ष=03022025 |
| |चंडीगढ़ संग्रहालय
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |चंडीगढ़
| | | घटनाएँ = |
| |चंडीगढ़
| | '''जन्म''' - [[वहीदा रहमान]], [[रघुराम राजन]], [[राम सिंह]], [[सुहासिनी गांगुली]], [[रीमा लागू]], [[दीप्ति नवल]], [[दुती चन्द]], [[पृथ्वीराज सिंह ओबरॉय]]<br /> |
| |-
| | '''मृत्यु''' - [[अल्ला रक्खा ख़ाँ]], [[सी. एन. अन्नादुराई]], [[राधाकृष्ण]], [[बलराम जाखड़]], [[हुकुम सिंह]]}} |
| |5 | | | बुध1 ={{DATE |
| |राष्ट्रीय गैलरी
| | | दिनांक =[[4 फ़रवरी|04]] |
| |चंडीगढ़
| | | दिनांक/माह/वर्ष=04022026 |
| |चंडीगढ़
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |- | | | घटनाएँ =[[विश्व कैंसर दिवस]], [[चौरी चौरा|चौरी-चौरा दिवस]]<br /> |
| |6 | | '''जन्म''' - [[एम. ए. अय्यंगार]], [[भीमसेन जोशी]], [[मख़दूम मोहिउद्दीन]], [[बिरजू महाराज]], [[कनक साहा]], [[पद्मा सुब्रह्मण्यम]], [[कृष्ण पाल गुर्जर]]<br /> |
| |कला दीर्घा | | '''मृत्यु''' - [[सत्येंद्रनाथ बोस]], [[भगवान दादा]], [[वाणी जयराम]], [[द्विजेंद्र नारायण झा]], [[विकास शर्मा]], [[दौलत सिंह कोठारी]], [[हमीदुल्लाह ख़ान]]}} |
| |चंडीगढ़ | | | गुरु1 = {{DATE |
| |चंडीगढ़
| | | दिनांक =[[5 फ़रवरी|05]] |
| |- | | | दिनांक/माह/वर्ष=05022026 |
| |7
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |आदिवासी सांस्कृतिक संग्रहालय
| | | घटनाएँ = |
| |दादर और नगर हवेली
| | '''जन्म''' - [[जानकी वल्लभ शास्त्री]], [[प्रेम सिंह तमांग]], [[अभिषेक बच्चन]], [[शंख घोष]]<br /> |
| |दादर और नगर हवेली
| | '''मृत्यु''' - [[ह्वेन त्सांग]], [[जुथिका रॉय]], [[सुजीत कुमार]], [[महर्षि महेश योगी]]}} |
| |-
| | | शुक्र1 ={{DATE |
| |8
| | | दिनांक =[[6 फ़रवरी|06]] |
| |राज्य संग्रहालय
| | | दिनांक/माह/वर्ष=06022026 |
| |असम
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते <br /> |
| |असम
| | | घटनाएँ = |
| |- | | '''जन्म''' - [[कवि प्रदीप]], [[ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान]], [[भूपिंदर सिंह]], [[कृष्ण कान्त पॉल]]<br /> |
| |9 | | '''मृत्यु''' - [[गुरबख्श सिंह ढिल्लों]], [[मोतीलाल नेहरू]], [[ऋत्विक घटक]], [[लता मंगेशकर]], [[उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी]], [[यदुनाथ सिंह]], [[प्रताप सिंह कैरों]], [[आत्माराम]]}} |
| |गुरुकुल संग्रहालय | | | शनि1 ={{DATE |
| |झज्झर | | | दिनांक =[[7 फ़रवरी|07]] |
| |हरियाणा | | | दिनांक/माह/वर्ष=07022026 |
| |- | | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |10
| | | घटनाएँ = |
| |अस्थल बोहर संग्रहालय
| | '''जन्म''' - [[किदम्बी श्रीकान्त]], [[सुजीत कुमार]], [[मन्मथनाथ गुप्त]], [[रमाबाई आम्बेडकर]], [[कोंडा वेंकटप्पय्या]], [[अर्जुन लाल जाट]]<br /> |
| |रोहतक
| | '''मृत्यु''' - [[शचीन्द्रनाथ सान्याल]], [[ललई सिंह यादव]], [[वी. सी. पाण्डे]], [[प्रवीण कुमार सोबती]], [[सैयद मुज़फ़्फ़र हुसैन बर्नी]]}} |
| |हरियाणा
| | | रवि2 ={{DATE |
| |-
| | | दिनांक =[[8 फ़रवरी|08]] |
| |11
| | | दिनांक/माह/वर्ष=08022026 |
| |एशियाटिक सोसाइटी
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |कोलकाता
| | | घटनाएँ = |
| |कोलकाता
| | '''जन्म''' - [[ज़ाकिर हुसैन]], [[शोभा गुर्टू]], [[बाला देसाई]], [[जगजीत सिंह]], [[जेम्स माइकल लिंगदोह]], [[अशोक चक्रधर]], [[अज़हरुद्दीन मोहम्मद]], [[एकता बिष्ट]], [[वी.टी. कृष्णमाचारी]]<br /> |
| |-
| | '''मृत्यु''' - [[कल्पना दत्त]], [[कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी]], [[टीका राम पालीवाल]]}} |
| |12
| | | सोम2 ={{DATE |
| |विक्टोरिया संग्रहालय
| | | दिनांक =[[9 फ़रवरी|09]] |
| |कोलकाता
| | | दिनांक/माह/वर्ष=09022026 |
| |कोलकाता
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते <br /> |
| |-
| | | घटनाएँ =[[विश्व विवाह दिवस]]<br /> |
| |13
| | '''जन्म''' - [[परिमार्जन नेगी]], [[सी. पी. कृष्णन नायर]], [[राज कुमार जयचंद्र सिंह]], [[श्याम चरण गुप्ता]], [[एकनाथ शिंदे]], [[बाबूभाई पटेल]]<br /> |
| |आशुतोष संग्रहालय
| | '''मृत्यु''' - [[टी. बालासरस्वती]], [[बालकृष्ण चापेकर]], [[नादिरा]], [[बाबा आम्टे]], [[गिरिराज किशोर]], [[एम. सी. छागला]], [[राजीव कपूर]], [[पी. परमेश्वरन]], [[चंद्रशेखर रथ]], [[सर अब्दुल कादिर]]}} |
| |कोलकाता
| | | मंगल2 ={{DATE |
| |कोलकाता
| | | दिनांक =[[10 फ़रवरी|10]] |
| |-
| | | दिनांक/माह/वर्ष=10022026 |
| |14 | | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |शांति निकेतन | | | घटनाएँ = |
| |बोलपुर | | '''जन्म''' - [[दरबारा सिंह]], [[कुमार विश्वास]], [[कुरिआकोसी इलिआस चावारा]], [[सुरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव]], [[परमानन्द श्रीवास्तव]]<br /> |
| |कोलकाता | | '''मृत्यु''' - [[राजा बख्तावर सिंह]], [[सुदामा पांडेय 'धूमिल']], [[शानी]]}} |
| |- | | | बुध2 ={{DATE |
| |15 | | | दिनांक =[[11 फ़रवरी|11]] |
| |द कोलकाता आर्ट सोसाइटी
| | | दिनांक/माह/वर्ष=11022026 |
| |कोलकाता
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते <br /> |
| |कोलकाता
| | | घटनाएँ = [[सुरक्षित इंटरनेट दिवस]]<br /> |
| |- | | '''जन्म''' - [[तिलका माँझी]], [[दामोदर स्वरूप सेठ]], [[राव इन्द्रजीत सिंह]], [[आर. वी. एस. पेरी शास्त्री]], [[गोपी चंद नारंग]]<br /> |
| |16
| | '''मृत्यु''' - [[विष्णु विराट]], [[हरिकृष्ण 'जौहर']], [[दीनदयाल उपाध्याय]], [[जमनालाल बजाज]], [[कमाल अमरोही]], [[फ़ख़रुद्दीन अली अहमद]], [[घंटासला वेंकटेश्वर राव]], [[नरेंद्र शर्मा]], [[रवि टंडन]]}} |
| |इंडियन म्यूज़ियम हाउस
| | | गुरु2 ={{DATE |
| |कोलकाता
| | | दिनांक =[[12 फ़रवरी|12]] |
| |कोलकाता
| | | दिनांक/माह/वर्ष=12022026 |
| |-
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |17
| | | घटनाएँ =[[राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस]]<br /> |
| |पुरातात्विक संग्रहालय
| | '''जन्म''' - [[नाना फड़नवीस]], [[सी. एफ़. एंड्रयूज]], [[दयानंद सरस्वती]], [[प्राण]], [[जी. लक्ष्मणन]], [[धीरेन्द्र ब्रह्मचारी]], [[अजीत सिंह (राजनीतिज्ञ)|अजीत सिंह]]<br/> |
| |नालंदा
| | '''मृत्यु''' - [[सूफ़ी अम्बा प्रसाद]], [[नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर]], [[राहुल बजाज]], [[महादजी शिन्दे]], [[गोपी कुमार पोदिला]]}} |
| |बिहार
| | | शुक्र2 ={{DATE |
| |-
| | | दिनांक =[[13 फ़रवरी|13]] |
| |18
| | | दिनांक/माह/वर्ष=13022026 |
| |पुरातात्विक संग्रहालय
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |वैशाली
| | | घटनाएँ =[[विश्व रेडियो दिवस]]<br /> |
| |बिहार
| | '''जन्म''' - [[सरोजिनी नायडू]], [[गोपाल प्रसाद व्यास]], [[फ़ैज़ अहमद फ़ैज़]], [[जगजीत सिंह अरोड़ा]], [[रश्मि प्रभा]], [[कमलेश भट्ट कमल]], [[वरुण भाटी]], [[विनोद मेहरा]]<br /> |
| |-
| | '''मृत्यु''' - [[डॉ. तुलसीराम]], [[राजेन्द्र कुमार पचौरी]], [[राजेंद्र नाथ]], [[उस्ताद अमीर ख़ाँ]], [[ओ. एन. वी. कुरुप]], [[अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार']], [[बुधु भगत]], [[सर सुंदर लाल]], [[दत्ताजी राव गायकवाड़]], [[असित कुमार हाल्दार]]}} |
| |19 | | | शनि2 ={{DATE |
| |पुरातात्विक संग्रहालय
| | | दिनांक =[[14 फ़रवरी|14]] |
| |बोधगया
| | | दिनांक/माह/वर्ष=14022026 |
| |बिहार
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |-
| | | घटनाएँ =[[वेलेंटाइन दिवस]]<br /> |
| |20 | | '''जन्म''' - [[मोहन धारिया]], [[मधुबाला]], [[सुषमा स्वराज]], [[कमला प्रसाद]], [[दामोदरम संजीवय्या]], [[के. हनुमंथैय्या]], [[दिलीपभाई रमणभाई पारिख]]<br /> |
| |चंद्रधारी संग्रहालय | | '''मृत्यु''' - [[विद्यानिवास मिश्र]], [[ वी.टी. कृष्णमाचारी]]}} |
| |दरभंगा | | | रवि3 ={{DATE |
| |बिहार | | | दिनांक =[[15 फ़रवरी|15]] |
| |-
| | | दिनांक/माह/वर्ष=15022026 |
| |21
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |गया संग्रहालय
| | | घटनाएँ =[[तारापुर शहीद दिवस]], [[विश्व पैंगोलिन दिवस]]<br /> |
| |गया
| | '''जन्म''' - [[के.जी. सुब्रह्मण्यम]], [[राधावल्लभ त्रिपाठी]], [[नरेश मेहता]], [[हरीश भिमानी]], [[रणधीर कपूर]], [[हरदीप सिंह पुरी]], [[सी. राधाकृष्णन]], [[राधा कृष्ण चौधरी]]<br /> |
| |बिहार
| | '''मृत्यु''' - [[ग़ालिब]], [[सुभद्रा कुमारी चौहान]], [[उज्जवल सिंह]], [[मृणालिनी मुखर्जी]], [[संध्या मुखर्जी]], [[कविता चौधरी]], [[सीता देवी (महारानी)|सीता देवी]]}} |
| |-
| | | सोम3 ={{DATE |
| |22 | | | दिनांक =[[16 फ़रवरी|16]] |
| |नवादा संग्रहालय | | | दिनांक/माह/वर्ष=16022026 |
| |नवादा | | | तिथि सूचना =शाके 00 गते <br /> |
| |बिहार | | | घटनाएँ = |
| |- | | '''जन्म''' - [[राजेन्द्रलाल मित्रा]], [[गुलाम मोहम्मद शेख़]], [[वी. सी. पाण्डे]], [[विश्वनाथ त्रिपाठी]], [[एल. गणेशन]]<br /> |
| |23 | | '''मृत्यु''' - [[दादा साहब फाल्के]], [[मेघनाथ साहा]], [[बी. एस. केसवन]], [[बप्पी लाहिड़ी]]}} |
| |राज्य संग्रहालय
| | | मंगल3 ={{DATE |
| |लखनऊ
| | | दिनांक =[[17 फ़रवरी|17]] |
| |उत्तर प्रदेश
| | | दिनांक/माह/वर्ष=17022026 |
| |-
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |24
| | | घटनाएँ = |
| |राजकीय संग्रहालय
| | '''जन्म''' - [[के. चन्द्रशेखर राव]], [[जीवनानन्द दास]], [[बुधु भगत]], [[अध्यापक पूर्णसिंह]], [[रवि टंडन]]<br /> |
| |लखनऊ
| | '''मृत्यु''' - [[वासुदेव बलवन्त फड़के]], [[जे. कृष्णमूर्ति]], [[रानी गाइदिनल्यू]], [[कैलाश नाथ काटजू]], [[सीताराम चतुर्वेदी]], [[चिमनभाई पटेल]], [[वेद प्रकाश शर्मा]], [[पेरीन बेन]], [[कर्पूरी ठाकुर]], [[सतीश शर्मा]], [[संजय राजाराम]]}} |
| |उत्तर प्रदेश
| | | बुध3 ={{DATE |
| |-
| | | दिनांक =[[18 फ़रवरी|18]] |
| |25 | | | दिनांक/माह/वर्ष=18022026 |
| |राजकीय संग्रहालय
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते <br /> |
| |मथुरा
| | | घटनाएँ = |
| |उत्तर प्रदेश
| | '''जन्म''' - [[नलिनी जयवंत]], [[कृष्णा सोबती]], [[निम्मी]], [[मदन लाल ढींगरा]], [[जयनारायण व्यास]], [[रामकृष्ण परमहंस]], [[चैतन्य महाप्रभु]], [[रफ़ी अहमद क़िदवई]], [[ख़य्याम]], [[अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ]], [[गुरमीत बावा]], [[मनु भाकर]], [[दमयंती बेशरा]]<br /> |
| |-
| | '''मृत्यु'''- [[अब्दुल राशिद ख़ान]], [[अनिल कुमार दास]]}} |
| |26
| | | गुरु3 ={{DATE |
| |राजकीय संग्रहालय
| | | दिनांक =[[19 फ़रवरी|19]] |
| |झाँसी | | | दिनांक/माह/वर्ष=19022026 |
| |उत्तर प्रदेश | | | तिथि सूचना =शाके 00 गते <br /> |
| |- | | | घटनाएँ =[[फुलैरा दौज]], [[रोज़ा|पाक़ रोज़े प्रारम्भ]] [[शिवाजी|शिवाजी जयन्ती]]<br /> |
| |27 | | '''जन्म''' - [[शिवाजी]], [[बलवंतराय मेहता]], [[राम वी. सुतार]], [[गोकुलभाई भट्ट]], [[बेअंत सिंह]], [[इंदिरा राजे]], [[के. विश्वनाथ]], [[राजीव कुमार]]<br /> |
| |राजकीय अभिलेखागार | | '''मृत्यु''' - [[अल्तमस कबीर]], [[नारायण श्रीधर बेन्द्रे]], [[गोपाल कृष्ण गोखले]], [[नरेन्द्र देव]], [[ख़ुमार बाराबंकवी]], [[पंकज मलिक]], [[नामवर सिंह]]}} |
| |लखनऊ
| | | शुक्र3 ={{DATE |
| |उत्तर प्रदेश
| | | दिनांक =[[20 फ़रवरी|20]] |
| |-
| | | दिनांक/माह/वर्ष=20022026 |
| |28
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |राजकीय अभिलेखागार
| | | घटनाएँ =[[अरुणाचल प्रदेश स्थापना दिवस|अरुणाचल प्रदेश]] एवं [[मिज़ोरम|मिज़ोरम स्थापना दिवस]], [[विश्व सामाजिक न्याय दिवस]]<br /> |
| |इलाहाबाद
| | '''जन्म''' - [[जयन्त कुमार मलैया]], [[जरनैल सिंह]], [[के. वी. सुबन्ना]], [[राव वीरेन्द्र सिंह]], [[भबेन्द्र नाथ सैकिया]], [[रघुवेंद्र तंवर]], [[एन. जनार्दन रेड्डी]], [[पंकज बिष्ट]], [[अजय घोष]]<br /> |
| |उत्तर प्रदेश
| | '''मृत्यु''' - [[शिवनारायण श्रीवास्तव]], [[भवानी प्रसाद मिश्र]], [[शरत चन्द्र बोस]], [[अमीन सयानी]], [[स्वामी शिवानन्द]]}} |
| |-
| | | शनि3 ={{DATE |
| |29 | | | दिनांक =[[21 फ़रवरी|21]] |
| |क्षेत्रीय अभिलेखागार
| | | दिनांक/माह/वर्ष=21022026 |
| |वाराणसी
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |उत्तर प्रदेश
| | | घटनाएँ =[[अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस]]<br /> |
| |-
| | '''जन्म''' - [[शान्ति स्वरूप भटनागर]], [[अमीर मीनाई]], [[सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला']], [[विश्वनाथ नारायण लवांडे]], [[टी. आर. जेलियांग]]<br /> |
| |30 | | '''मृत्यु''' - [[नूतन]], [[ओम प्रकाश]], [[हरि विनायक पाटस्कर]], [[रानी चेन्नम्मा]], [[फली एस. नरीमन]], [[ज़ोहराबाई अम्बालेवाली]]}} |
| |महाराजा माधोसिंह संग्रहालय | | | रवि4 ={{DATE |
| |कोटा | | | दिनांक =[[22 फ़रवरी|22]] |
| |राजस्थान | | | दिनांक/माह/वर्ष=22022026 |
| |- | | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |31
| | | घटनाएँ = |
| |इंडियन स्कल्पचर्स
| | '''जन्म''' - [[एस. एच. रज़ा]], [[यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त]], [[स्वामी सहजानंद सरस्वती]], [[इंदुलाल याज्ञिक]], [[सोहन लाल द्विवेदी]], [[स्वामी श्रद्धानन्द]], [[कमल कपूर]], [[कमला चौधरी]], [[देवकान्त बरुआ]], [[मुकुन्द दास]], [[लालदुहोमा]]<br /> |
| |मुम्बई
| | '''मृत्यु''' - [[भगवत दयाल शर्मा]], [[कस्तूरबा गाँधी]], [[अबुलकलाम आज़ाद]], [[कनक रेले]], [[बिजन कुमार मुखरीजा]], [[जोश मलीहाबादी]], [[नरसिम्हा रेड्डी]]}} |
| |महाराष्ट्र
| | | सोम4 ={{DATE |
| |-
| | | दिनांक =[[23 फ़रवरी|23]] |
| |32
| | | दिनांक/माह/वर्ष=23022026 |
| |द आर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते <br /> |
| |मुम्बई
| | | घटनाएँ = |
| |महाराष्ट्र
| | '''जन्म''' - [[बाबा हरदेव सिंह]], [[सरदार अजीत सिंह]], [[प्रोतुल चन्द्र सरकार]]<br /> |
| |-
| | '''मृत्यु''' - [[वृंदावनलाल वर्मा]], [[महेन्द्रलाल सरकार]], [[मधुबाला]], [[अमृतलाल नागर]], [[मनोहर जोशी]], [[राजेंद्र नारायण सिंह देव]], [[महेन्द्रलाल सरकार]]}} |
| |33
| | | मंगल4 ={{DATE |
| |जहाँगीर आर्ट गैलरी
| | | दिनांक =[[24 फ़रवरी|24]] |
| |मुम्बई
| | | दिनांक/माह/वर्ष=24022026 |
| |महाराष्ट्र
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते <br /> |
| |-
| | | घटनाएँ =[[दादू दयाल|दादू दयाल जयंती]], [[केन्द्रीय उत्पाद शुल्क दिवस]]<br /> |
| |34
| | '''जन्म''' - [[तलत महमूद]], [[जॉय मुखर्जी]], [[जयललिता]], [[मौउमा दास]], [[शारदा मुखर्जी]]<br /> |
| |मार्डन आर्ट इंस्टीट्यूट दादर | | '''मृत्यु''' - [[ललिता पवार]], [[रुक्मिणी देवी अरुंडेल]], [[श्रीदेवी]], [[सरदूल सिकंदर]], [[अनंत पै]]}} |
| |मुम्बई | | | बुध4 ={{DATE |
| |महाराष्ट्र | | | दिनांक =[[25 फ़रवरी|25]] |
| |- | | | दिनांक/माह/वर्ष=25022026 |
| |35 | | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |कला निकेतन | | | घटनाएँ = |
| |कोल्हापुर
| | '''जन्म''' - [[राधाचरण गोस्वामी]], [[अमरनाथ झा]], [[शंखो चौधरी]], [[गुरनाम सिंह]], [[के. वी. राबिया]], [[विकास शर्मा]]<br /> |
| |महाराष्ट्र
| | '''मृत्यु''' - [[मन्नत्तु पद्मनाभन]], [[एस. एच. बिहारी]], [[बी. नागी रेड्डी]], [[विमल प्रसाद चालिहा]]}} |
| |-
| | | गुरु4 ={{DATE |
| |36
| | | दिनांक =[[26 फ़रवरी|26]] |
| |नागपुर संग्रहालय
| | | दिनांक/माह/वर्ष=26022026 |
| |नागपुर
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते <br /> |
| |महाराष्ट्र
| | | घटनाएँ = |
| |-
| | '''जन्म''' - [[गोपाल स्वरूप पाठक]], [[मृणाल पाण्डे]], [[कैलाश नाथ वांचू]], [[बेनेगल नरसिंह राव]], [[संजय धोत्रे]]<br /> |
| |37 | | '''मृत्यु''' - [[वीर सावरकर]], [[आनंदी गोपाल जोशी]], [[नर्मद]]}} |
| |प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूज़ियम
| | | शुक्र4 ={{DATE |
| |मुम्बई
| | | दिनांक =[[27 फ़रवरी|27]] |
| |महाराष्ट्र
| | | दिनांक/माह/वर्ष=27022026 |
| |-
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते <br /> |
| |38
| | | घटनाएँ = |
| |राज्य संग्रहालय
| | '''जन्म''' - [[विजय सिंह पथिक]], [[बी. एस. येदयुरप्पा]], [[प्रकाश झा]], [[मनोज दास]], [[श्यामा चरण शुक्ल]], [[कुसुमाग्रज]], [[सत्य देव सिंह]], [[वीरेन्द्र कुमार खटीक]]<br /> |
| |हैदराबाद
| | '''मृत्यु''' - [[चंद्रशेखर आज़ाद]], [[इन्दीवर]], [[नानाजी देशमुख]], [[के. सी. रेड्डी]], [[गणेश वासुदेव मावलंकर]]}} |
| |आन्ध्र प्रदेश
| | | शनि4 ={{DATE |
| |-
| | | दिनांक =[[28 फ़रवरी|28]] |
| |39
| | | दिनांक/माह/वर्ष=28022026 |
| |कला दीर्घा
| | | तिथि सूचना =शाके 00 गते<br /> |
| |हैदराबाद
| | | घटनाएँ =[[राष्ट्रीय विज्ञान दिवस]]<br /> |
| |आन्ध्र प्रदेश | | '''जन्म''' - [[कृष्णकान्त]], [[रवीन्द्र जैन]], [[नरेंद्र शर्मा]], [[विजय बहुगुणा]], [[दिग्विजय सिंह]]<br /> |
| |- | | '''मृत्यु''' - [[कमला नेहरू]], [[राजेन्द्र प्रसाद]], [[राणा उदयसिंह]], [[वीर सुरेंद्र साई]], [[जयेन्द्र सरस्वती]], [[बलबीर सिंह खुल्लर]], [[तिरुमलाई कृष्णामाचार्य]]}} |
| |40 | | | रवि5 =<span style="background:#F6FF00; padding:5px; border-radius:5px; border:1px solid #336633; ">[[मार्च 2025|1 मार्च 2025]]</span> |
| |सालारजंग संग्रहालय | | }} |
| |हैदराबाद | | {{Month-Festival |
| |आन्ध्र प्रदेश
| | | प्रमुख घटनाएँ = |
| |-
| | * 01 [[तटरक्षक दिवस]] |
| |41
| | * 04 [[विश्व कैंसर दिवस]] |
| |स्वास्थ्य संग्रहालय
| | * 10 [[विश्व विवाह दिवस]] |
| |हैदराबाद | | * 11 [[सुरक्षित इंटरनेट दिवस]] |
| |आन्ध्र प्रदेश | | * 13 [[विश्व रेडियो दिवस]] |
| |- | | * 14 [[वेलेंटाइन दिवस]] |
| |42 | | * 15 [[विश्व पैंगोलिन दिवस]],[[तारापुर शहीद दिवस]] |
| |ज़िला संग्रहालय | | * 20 [[अरुणाचल प्रदेश स्थापना दिवस|अरुणाचल प्रदेश]] एवं [[मिज़ोरम|मिज़ोरम स्थापना दिवस]], [[विश्व सामाजिक न्याय दिवस]] |
| |सलेम | | * 21 [[अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस]] |
| |तमिलनाडु
| | * 24 [[केन्द्रीय उत्पाद शुल्क दिवस]] |
| |-
| | * 28 [[राष्ट्रीय विज्ञान दिवस]] |
| |43
| | | व्रत-उत्सव = |
| |द फोर्ट म्यूज़ियम
| | *01 [[रविदास जयंती]] |
| |चेन्नई
| | *19 [[फुलैरा दौज]], [[रोज़ा|पाक़ रोज़े प्रारम्भ]] |
| |तमिलनाडु
| | *24 [[दादू दयाल|दादू दयाल जयंती]] |
| |-
| | | जन्म दिवस = |
| |44 | | * 01 [[सतपाल सिंह]] |
| |गवर्नमेंट म्यूज़ियम
| | * 02 [[मोटूरि सत्यनारायण]] |
| |चेन्नई
| | * 03 [[वहीदा रहमान]] |
| |तमिलनाडु
| | * 04 [[भीमसेन जोशी]], [[बिरजू महाराज]] |
| |-
| | * 06 [[कवि प्रदीप]], [[ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान]] |
| |45
| | * 08 [[ज़ाकिर हुसैन]], [[जगजीत सिंह]] |
| |आरंगर कोडायकोड्डम श्रीरंगम संग्रहालय
| | * 13 [[सरोजिनी नायडू]], [[जगजीत सिंह अरोड़ा]] |
| |श्रीरंगम
| | * 14 [[मधुबाला]], [[सुषमा स्वराज]] |
| |तमिलनाडु
| | * 18 [[रामकृष्ण परमहंस]], [[चैतन्य महाप्रभु]] |
| |-
| | * 19 [[ शिवाजी]], [[बलवंतराय मेहता]] |
| |46
| | * 21 [[सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला']] |
| |गाँधी संग्रहालय
| | * 24 [[तलत महमूद]], [[जयललिता]] |
| |मदुरई
| | * 27 [[विजय सिंह पथिक]] |
| |तमिलनाडु | | * 28 [[रवीन्द्र जैन]] |
| |- | | * 29 [[रुक्मिणी देवी अरुंडेल]], [[मोरारजी देसाई]] |
| |47 | | | मृत्यु दिवस = |
| |तमिलनाडु राज्य संग्रहालय | | * 01 [[कल्पना चावला]] |
| |मदुरई | | * 04 [[सत्येंद्रनाथ बोस]] |
| |तमिलनाडु
| | * 08 [[कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी]] |
| |-
| | * 11 [[दीनदयाल उपाध्याय]], [[फ़ख़रुद्दीन अली अहमद]] |
| |48
| | * 13 [[राजेन्द्र कुमार पचौरी]] |
| |तमिलनाडु राज्य संग्रहालय
| | * 15 [[ग़ालिब]], [[सुभद्रा कुमारी चौहान]] |
| |पुडुकोटाय
| | * 16 [[दादा साहब फाल्के]] |
| |तमिलनाडु
| | * 19 [[गोपाल कृष्ण गोखले]] |
| |}
| | * 22 [[अबुलकलाम आज़ाद]] |
| ---------
| | * 23 [[अमृतलाल नागर]] |
| न्याय दर्शन—
| | * 24 [[श्रीदेवी]] |
| आस्तिक दर्शनों में न्याय दर्शन का प्रमुख स्थान है। [[वैदिक धर्म]] के स्वरूप के अनुसन्धान के लिए न्याय की परम उपादेयता है। इसीलिए [[मनुस्मृति]] में श्रुत्यनुगामी तर्क की सहायता से ही धर्म के रहस्य को जानने की बात कही गई है। [[वात्स्यायन]] ने न्याय को समस्त विद्याओं का 'प्रदीप' कहा है। 'न्याय' का व्यापक अर्थ है- विभिन्न प्रमाणों की सहायता से वस्तुतत्त्व की परीक्षा<ref>प्रमाणैरर्थपरीक्षणं न्याय:। (वा.न्या.भा. 1/1/1)।</ref> प्रमाणों के स्वरूप वर्णन तथा परीक्षण प्रणाली के व्यावहारिक रूप के प्रकटन के कारण यह न्याय दर्शन के नाम से अभिहित है। न्याय का दूसरा नाम है आन्वीक्षिकी अर्थात अन्वीक्षा के द्वारा प्रवर्तित होने वाली विद्या। अन्वीक्षा का अर्थ है- प्रत्यक्ष या आगम पर आश्रित अनुमान अथवा प्रत्यक्ष तथा शब्द प्रमाण की सहायता से अवगत विषय का अनु-पश्चात ईक्षणपर्यालोचन - ज्ञान अर्थात अनुमति। अन्वीक्षा के द्वारा प्रवृत्त होने से न्याय विद्या आन्वीक्षिकी है।
| | * 27 [[चंद्रशेखर आज़ाद]], [[नानाजी देशमुख]] |
| ==न्याय दर्शन का स्थान==
| | * 28 [[राजेन्द्र प्रसाद]] |
| भारतीय [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] के इतिहास में ग्रन्थ सम्पत्ति की दृष्टि से [[वेदान्त दर्शन]] को छोड़कर न्याय दर्शन का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। विक्रम पूर्व ''पञ्चमशतक'' से लेकर आज तक न्याय दर्शन की विमल धारा अबाध गति से प्रवाहित है। न्याय दर्शन के विकास की दो धारायें दृष्टिगोचर होती हैं।
| | * 29 [[कुशवाहा कान्त]] |
| *प्रथम धारा [[सूत्रकार गौतम]] से आरम्भ होती है, जिसे षोडश पदार्थों के यथार्थ निरूपक होने से 'पदार्थमीमांसात्मक' प्रणाली कहते हैं। इस प्रथम धारा को 'प्राचीन न्याय' कहा जाता है। प्राचीन न्याय में मुख्य विषय 'पदार्थमीमांसा' है।
| | }} |
| *दूसरी प्रणाली को 'प्रमाणमीमांसात्मक' कहते हैं, जिसे [[गंगेशोपाध्याय]] ने 'तत्त्वचिन्तामणि' में प्रवर्तित किया। इस द्वितीय धारा को 'नव्यन्याय' कहते हैं और इस 'नव्यन्याय' में 'प्रमाणमीमांसा' वर्णित है।
| | {{माह क्रम|पिछला=[[जनवरी 2026]]|अगला=[[मार्च 2026]]}} |
| ==न्यायसूत्र के रचयिता==
| | [[Category:फ़रवरी]][[Category:भारतकोश कॅलण्डर]][[Category:कैलंडर]][[Category:2026]] |
| न्यायसूत्र के रचयिता का गोत्र नाम 'गौतम' और व्यक्तिगत नाम 'अक्षपाद' है। न्यायसूत्र पाँच अध्यायों में विभक्त है जिनमें प्रमाणादि षोडश पदार्थों के उद्देश्य, लक्षण तथा परीक्षण किये गये हैं। वात्स्यायन ने न्यायसूत्रों पर विस्तृत भाष्य लिखा लिखा है। इस भाष्य का रचनाकाल विक्रम पूर्व प्रथम शतक माना जाता है। न्याय दर्शन से सम्बद्ध 'उद्योतकर' का 'न्यायवार्तिक', 'वाचस्पति मिश्र' की 'तात्पर्यटीका', 'जयन्तभट्ट' की 'न्यायमञ्जरी', 'उदयनाचार्य' की 'न्याय-कुसुमाज्जलि', 'गंगेश उपाध्याय' की 'तत्त्वचिन्तामणि' आदि ग्रन्थ अत्यन्त प्रशस्त एवं लोकप्रिय हैं। न्याय दर्शन षोडश पदार्थो के निरूपण के साथ ही 'ईश्वर' का भी विवेचन करता है। न्यायमत में ईश्वर के अनुग्रह के बिना जीव न तो प्रमेय का यथार्थ ज्ञान पा सकता है और न इस जगत के दु:खों से ही छुटकारा पाकर मोक्ष पा सकता है। ईश्वर इस जगत की सृष्टि, पालन तथा संहार करने वाला है। ईश्वर असत पदार्थों से जगत की रचना नहीं करता, प्रत्युत परमाणुओं से करता है जो सूक्ष्मतम रूप में सर्वदा विद्यमान रहते हैं। न्यायमत में ईश्वर जगत का निमित्त कारण है, उपादान कारण नहीं। ईश्वर जीव मात्र का नियन्ता है, कर्मफल का दाता है तथा सुख-दु:खों का व्यवस्थापक है। उसके नियन्त्रण में रहकर ही जीव अपना कर्म सम्पादन कर जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य प्राप्त करता है।
| | __INDEX__ |
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| न्यायसूत्र के अनुसार दु:ख से अत्यन्त विमोक्ष को ‘अपवर्ग’ कहा गया है <ref>‘तदत्यन्तविमोक्षोऽपवर्ग: (न्यायसूत्र 1/1/22)।</ref> मुक्तावस्था में आत्मा अपने विशुद्ध रूप में प्रतिष्ठित और अखिल गुणों से रहित होता है। मुक्तात्मा में सुख का भी अभाव रहता है अत: उस अवस्था में 'आनन्द' की भी प्राप्ति नहीं होती। उद्योतकर के मत में नि:श्रेयस के दो भेद हैं- अपर नि:श्रेयस तथा परनि:श्रेयस। तत्त्वज्ञान ही इन दोनों का कारण है। जीवन मुक्ति को अपरनि:श्रेयस और विदेहमुक्ति को परनि:श्रेयस कहते हैं।
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| भारतीय दर्शन-साहित्य को न्यायदर्शन की सबसे अमूल्य देन शास्त्रीय विवेचनात्मक पद्धति है। प्रमाण की विस्तृत व्याख्या तथा विवेचना कर न्याय ने जिन तत्त्वों को खोज निकाला है, उनका उपयोग अन्य दर्शन ने भी कुछ परिवर्तनों के साथ किया है। हेत्वाभासों का सूक्ष्म विवरण देकर न्याय दर्शन ने अनुमान को दोषमुक्त करने का मार्ग प्रशस्त किया है। न्यायदर्शन की तर्कपद्धति श्लाघनीय है।
| |
| ==न्याय शास्त्र का इतिहास==
| |
| ====<u>उपक्रम</u>====
| |
| <poem>कोऽयं ललाटतटनेत्रपुटस्य गर्वात्
| |
| खर्वी करोति जगदित्यभिधाय शम्भो।
| |
| य: साभ्यसूयमकरोच्चरणेऽक्षिलक्ष्मीं
| |
| जीयात् स गौतममुनिर्मुनिवृन्दवन्द्य:॥<ref>यह पद्य भुवनेश्वर के अनन्तवासुदेव के मन्दिर में उत्कीर्ण है। </ref></poem>
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| [[वेद]] में सांसारिक बन्धनों से मुक्ति के लिए आत्मदर्शन या तत्त्वसाक्षात्कार आवश्यक तत्व के रूप में निर्दिष्ट है। [[बृहदारण्यकोपनिषद|बृहदारण्यक उपनिषद]] का कहना है कि पहले आत्मा आदि पदार्थों का शास्त्र द्वारा श्रवण उपासना, पुन: हेतु द्वारा मनन अर्थात विवेचन रूप उपासना और पश्चात निदिध्यासन - एक चित्त होकर ध्यान रूप उपासना करनी चाहिए।<ref>आत्मा वा अरे द्रष्टव्य: श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो <poem>मैत्रेय्यात्मना वा अरे दर्शनेन श्रवणेन मत्या वा विज्ञानेनेदं सर्व विज्ञातम्। (बृह. उप. 4.2.51)
| |
| श्रोतव्य: पूर्वमाचार्यत आगमतश्च। पश्चान्मन्तव्यस्तर्कत इति (शाङ्करभाष्यम्।)
| |
| श्रोतव्य: श्रुतिवाक्येभ्यो मन्तव्यश्चोपपत्तिभि:।
| |
| मत्वा च सततं ध्येय एते दर्शनहेतव:॥
| |
| -प्रो. तङ्गास्वामी ने अपनी दर्शनमञ्जरी में मानव उपपुराण अध्याय 6 का पद्य कहा है।
| |
| तत्त्वचिन्तामणि में, न्यायतत्त्वालोक पृ0 2 में तथा विवरणप्रमेयसंग्रह पृ0 2 में यह पद्य उल्लिखित है।</poem></ref>
| |
| आत्मदर्शन के साधन - मनन रूप उपासना - सम्पादनार्थ मुख्यत: न्याय शास्त्र का आविर्भाव हुआ। चूँकि श्रवण के पश्चात मनन का विधान है, अत: इस शास्त्र की प्रक्रिया को शास्त्रों में '''अन्वीक्षा''' कहा गया है। अनु अर्थात श्रवणमनु, ईक्षा दर्शनं मननम् इति अन्वीक्षा- यही उक्त पद की व्युत्पत्ति है। श्रवण के बाद युक्ति द्वारा आत्मा आदि पदार्थों की ईक्षा-दर्शन-मनन अर्थात शास्त्रानुमत रीति से अनुमान करना ही अन्वीक्षा है।
| |
| ====<u>अभिधान</u>====
| |
| इसी अन्वीक्षा के निर्वाहार्थ प्रकाशित विद्या '''आन्वीक्षिकी''' नाम से प्रसिद्ध हुई। प्रत्यक्ष और आगम के अविरोधी अनुमान अन्वीक्षा है।<ref>प्रत्यक्षागमाभ्यामीक्षितस्यान्वीक्षणमन्वीक्षा तया प्रवर्तत इत्यान्वीक्षिकी न्यायविद्या न्यायशास्त्रम् (न्यायभाष्य 1.1.1)</ref> न्यायविद्या या न्याय शास्त्र इसका नामान्तर है। इसे समझने के लिए इसके प्रतिपाद्य सभी पदार्थों का परिज्ञान आवश्यक है, जिन्हें यह विद्या प्रकाशित करती है।
| |
| हेतुविद्या, हेतुशास्त्र, युक्तिविद्या, युक्तिशास्त्र, तर्कविद्या तथा तर्कशास्त्र आदि इस आन्वीक्षिकी विद्या के नामान्तर हैं। चूँकि यहाँ अनुमान की प्रधानता है और अनुमान का मुख्य अवयव है हेतु, अत: हेतुविद्या आदि इसके अन्वर्थक नाम हैं। इसी तरह युक्त एवं तर्क का साङ्गोपाङ्ग विवेचन यहाँ प्रमुख रूप से होता है, अत: तर्कशास्त्र या युक्तिशास्त्र आदि नाम भी इसका संगत है। परीक्षित प्रमाणों के आधार पर ही प्रमेय का यहाँ प्रतिपादन किया जाता है, अत: इसे 'प्रमाणशास्त्र' भी कहते हैं। 'प्राधान्येय व्यपदेशा: भवन्ति' इस सूक्ति के आधार पर इसकी प्रमाणशास्त्रता सिद्ध है। यहाँ प्रमाण का विवेचन प्रमुख रूप से किया गया है।
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| इस आन्वीक्षिकी का अपना एक अलग वैशिष्ट्य है कि यह अध्यात्म विद्या होकर भी शास्त्रान्तर के परिज्ञानार्थ प्रक्रिया का निर्देश कर प्रदीप की तरह उपकारिका होती है। अत: इसे 'प्रक्रियाशास्त्र' भी कहते हैं। [[आचार्य उदयन]] ने कहा है- ‘यावदुक्तोपपन्न इति नैयायिका:’ <ref>न्यायकुसुमाञ्जलि आरम्भिक उपक्रम अंश।</ref>- जितना कहने से विषय स्पष्टत: समझ में आ जाए, नैययायिक उतना अवश्य कहता है, अर्थात विषय (प्रतिपाद्य) का परिशुद्ध रूप में परिज्ञान इस शास्त्र का लक्ष्य रहा है। ठीक यही बात 'न्यायभाष्य' में कही गयी है। जितने शब्द समूह के कथन से साधनीय अर्थ की सिद्धि होती है उस शब्द समूह के प्रतिज्ञा आदि पाँच अवयव कहे गये हैं, जिसे परमन्याय कहते हैं।<ref><poem>साधनीयार्थस्य यावति शब्दसमूहे सिद्धि: परिसमाप्यते
| |
| तस्य पञ्चावयवा: प्रतिज्ञादय’ समूहमपेक्ष्यावयवा उच्यन्ते।
| |
| तस्य पञ्चावयवा: प्रतिज्ञादय: सोऽयं परमो न्याय इति।(न्यायभाष्य 1.1.1)</poem></ref>
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| यद्यपि [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]] में प्रसिद्ध न्यायशास्त्र से भिन्न केवल अध्यात्मविद्या-विशेष रूप अर्थ में इस 'आन्वीक्षिकी' विद्या का उल्लेख मिलता है। कहा गया है कि भगवान के षष्ठ अवतार [[दत्तात्रेय]] ने अलर्क और [[प्रह्लाद]] आदि को 'आन्वीक्षिकी' रूपा अध्यात्मविद्या का उपदेश दिया था-
| |
| <poem>षष्ठमत्रेरपत्यत्वं वृत: प्राप्तोऽनसूयया।
| |
| आन्वीक्षिकीमलर्काय प्रह्लादादिभ्य ऊचिवान्॥<ref>भागवत 1.2.11</ref></poem>
| |
| यहाँ 'आन्वीक्षिकी' की व्याख्या 'श्रीधरस्वामी' की है। तथापि 'न्यायभाष्य' में वात्स्यायन ने स्पष्ट कहा है कि आन्वीक्षिकी का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ यही न्यायशास्त्र है।
| |
| ====<u>परिचय</u>====
| |
| न्यायभाष्यकर ने स्पष्ट कहा है कि [[उपनिषद]] आदि अध्यात्मविद्या से इसमें पार्थक्य दिखाने के लिए उन संशय आदि चौदह पदार्थों का प्रतिपादन भी यहाँ आवश्यक है।<ref>इमास्तु चतस्रो विद्या: पृथक् प्रस्थाना: प्राणभृतामनुग्रहायोपदिश्यन्ते। यासां चतुर्थीयमान्वीक्षिकी न्यायविद्या। तस्या: पृथक् प्रस्थाना: संशयादय: पदार्था:। येषां पृथग्वचनमन्तरेणाध्यात्मविद्यामात्रमियं स्यात् यथोपनिषद:। 1.1.1. न्या0 भा0 </ref> चूँकि वेद, वार्ता तथा दण्डनीति से भिन्न चतुर्थी विद्या के रूप में इसकी प्रतिष्ठा है, अत: इसके असाधारण प्रतिपाद्य उक्त संशय आदि चौदह पदार्थ विद्या के अपने असाधारण प्रतिपाद्य होते हैं। चूँकि संशय आदि चौदह पदार्थों का विवेचन न्याय शास्त्र में किया गया है, अत: शास्त्रान्तर से इसका पार्थक्य अवश्य सिद्ध होता है। न्यायवार्त्तिक में आचार्य उद्योतकर ने भी इसकी पुष्टि में कहा है कि न्याय दर्शन में यदि संशय आदि चौदह पदार्थों का विवेचन नहीं होता तो यह चतुर्थी विद्या नहीं कहलाती, बल्कि त्रयी के अन्तर्गत अध्यात्मविद्या के रूप में प्रतिष्ठित होती।<ref>तस्या: संशयादि प्रस्थानमन्तरेणाध्यात्मविद्यामात्रमियं स्यात्। तस्मात् पृथगुच्यन्ते 1.1.1</ref> निष्कर्ष यह हुआ कि संशय आदि पदार्थों के विवेचन के कारण शास्त्रों में चतुर्थी विद्या के रूप में निर्दिष्ट यह आन्वीक्षिकी 'गौतमीय न्यायदर्शन' ही है कोई अन्य विद्या नहीं।
| |
| ====<u>प्राचीनता</u>=====
| |
| इस न्यायशास्त्र की उत्पत्ति कब हुई- यह कहना तो कठिन है, किन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वह भूमि [[भारत|भारतवर्ष]] ही है, जहाँ इसका उद्भव हुआ। [[कश्मीर]] के राजा शाङ्करवर्मा के धर्म सचिव नैय्यायिक 'जयन्तभट्ट' ने 'न्यायमञ्जरी' में कहा है कि सृष्टि के आदि से ही वेद की तरह न्याय दर्शन आदि की प्रवृत्ति देखी जाती है। किसी ने इसे संक्षिप्त करके कहा तो किसी ने उसी को विस्तारपूर्वक समझाया। अतएव उन लोगों को इस शास्त्र का कर्ता मान लिया गया<ref>आदिसर्गात् प्रभृतिवेदवदिमा विद्या: प्रवृत्ता:। संक्षेपविस्तरविवक्षया तु तांस्तान् कर्तृना चक्षते इति (न्यायमञ्जरी पृ0 5)</ref> वस्तु:स्थिति के विचार करने पर यह बात संगत प्रतीत होती है। [[ऋग्वेद]] के सूक्तों में युक्तिवाद का आभास मिलता है।<ref>ऋग्वेद 1.164</ref> ब्राह्मण ग्रन्थों में इसका प्रयोग देखा जाता है।<ref>अस्यवामस्य पलितस्य होतु:।</ref> [[उपनिषद|उपनिषदों]] में तत्त्वज्ञान के विचार के समय इस युक्तिवाद का विस्तार से व्यवहार किया गया है।<ref>[[छान्दोग्य उपनिषद]] के नारद-सनत्कुमार-संवाद में विद्याओं का विवरण देते समय ‘वाकोवाक्य’ पद का व्यवहार हुआ है, जिसकी व्याख्या शंकर भगवत्पाद ने तर्कशास्त्र की है एवं सुबालोपनिषद के द्वितीय खण्ड में वेद के साथ न्याय शास्त्र का भी उल्लेख हुआ है 'तस्यैतस्य महतो भूतस्य नि:श्वसितमिवैतद् ऋग्वेदो यजुर्वेद:............ न्यायो मीमांसा धर्मशास्त्रीणीति'</ref> [[रामायण]], [[महाभारत]], [[भागवत]] तथा [[मनुस्मृति]] आदि धर्म-ग्रन्थों में इसका शास्त्र के रूप में उपयोग हुआ है।
| |
| *रामायण के [[उत्तर काण्ड वा. रा.|उत्तरकाण्ड]] में [[राम|श्रीराम]] की यज्ञ सभा में हेतुवाद में कुशल हेतुक अर्थात नैयायिक विद्वान को ससम्मान निमन्त्रित करने की बात कही गयी है।<ref>"हेतूपचारकुशलान् हेतुकांश्च बहुश्रुतान् 8"। बा. रा. उ. का. 7/94/8/
| |
| वाग्मिन: परस्परजिगीषया हेतुवादान् /1/14/19/ नावादकुशलो द्विज: /1/14/21/</ref>
| |
| *[[महाभारत]] में निर्दिष्ट है कि नीति, धर्म और सदाचार की प्रतिष्ठा के लिए देवगण की प्रार्थना पर विधाता ने शतसहस्र अध्यायों को प्रकाशित किया। जहाँ धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष आदि अनेक विषय तथा त्रयी, आन्वीक्षिकी, वार्ता और दण्डनीति आदि विविध विद्याएँ प्रकाशित हुईं।<ref><poem>ततोऽध्यायसहस्राणां शतं चक्रे स्वबुद्धिजम्।
| |
| यत्र धर्मस्तथैवार्थ: कामश्चैवापि वर्णित:॥
| |
| त्रयी चान्वीक्षिकी चैव वार्ता च भरतर्षभ।
| |
| दण्डनीतिश्च विपुला विद्यास्तत्र निदर्शिता: ([[शान्ति पर्व महाभारत|शांति पर्व]] 59.29, 33)</poem></ref>
| |
| *[[भागवत]] में प्रतिपादित है कि विश्वस्सृष्टा के हृदयाकाश से व्याहृति और प्रणव के साथ आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता और दण्डनीति रूप चार विद्याएँ, उत्पन्न हुईं।<ref>आन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता दण्डनीतिस्तथैव च।
| |
| एवं व्याहृतयश्चासन् प्रणवो ह्यस्य दहृत:॥ तृ. स्क. 12.44)</ref> यहीं यह भी कहा गया है कि [[बलराम]] और [[श्रीकृष्ण]] धनुर्वेद तथा राजनीति के साथ आन्वीक्षिकी विद्या का भी अध्ययन करते थे।<ref>सरहस्यं धनुर्वेदं धर्मान् न्यायपथांस्तथा।
| |
| तथा चान्वीक्षिकीं विद्यां राजनीतिञ्च षड्विधाम्॥ दशम स्कन्ध 85.38,
| |
| यहाँ न्यायपथ से मीमांसा और आन्वीक्षिकी से यह न्यायविद्या तर्कशास्त्र अभिप्रेत है।</ref>
| |
| *भगवान [[मनु]] ने राज्य संचालन के लिए शास्त्रान्तरों के साथ इस विद्या के अध्ययन पर भी बल दिया है।<ref>त्रैविद्येभ्यस्त्रयीं विद्याद् दण्डनीतिञ्च शाश्वतीम्।
| |
| आन्वीक्षिकीञ्चात्मविद्यां वार्तारम्भांश्च लोकत:॥ [[मनुस्मति]] 7.43</ref>
| |
| *[[याज्ञवल्क्य]] ने कहा है कि राजा को अपनी सभी प्रकार की दुर्बलताओं से बचने के लिए आन्वीक्षिकी, दण्डनीति, वार्ता और त्रयी की शिक्षा लेनी चाहिए।<ref>स्वरन्ध्रगोप्तान्वीक्षिक्यां दण्डनीत्यां तथैव च।</ref>
| |
| *इसी तरह की बात गौतम के धर्मसूत्र में भी कही गयी है।<ref>राजा सर्वस्येष्टे ब्राह्मणवर्जं साधुकारी स्यात्।
| |
| साधुवादी त्रय्यामान्वीक्षिक्यां चाभिविनीत:॥ (गौतमधर्मसूत्र, अध्याय 11)</ref>
| |
| *[[विष्णु पुराण]] में तथा याज्ञवल्क्य स्मृति में विद्याओं की गिनती के समय न्यायविस्तर तथा न्यायशब्द से इस आन्वीक्षिकी का उल्लेख हुआ है।<ref><poem>अङ्गानि वेदाश्चत्वारो मीमांसा न्यायविस्तर:।
| |
| पुराणं धर्मशास्त्रञ्च विद्या ह्येताश्चतुर्दश।
| |
| आयुर्वेदो धनुर्वेदो गान्धर्वश्चेति ते त्रय:।
| |
| अर्थशास्त्रं चतुर्थ तु विद्या ह्यष्टादशैव तु॥ (विष्णुधमोत्तरपुराण......)
| |
| पुराणन्यायमीमांसाधर्मशास्त्रङ्गमिश्रिता:।
| |
| वेदा: स्थानानि विद्यानां धर्मस्य च चर्तुदश॥ (याज्ञ. स्मृ. 1.3)</ref></poem>
| |
| ====<u>व्यापकता</u>====
| |
| फलत: इस विद्या की व्यापकता और महत्ता प्राचीन काल से ही निर्विवाद रूप से सिद्ध है। एक समय में यह शास्त्र अपने उत्कर्ष से [[अफ़ग़ानिस्तान]] तक पहुँच गया और वहाँ अपना प्रचार-प्रसार कर समृद्ध हुआ। '''खुर्दा अवेस्ता''' में युक्तिवादी गौतम का उल्लेख ही इसमें प्रमाण है।<ref>[[सर्वपल्ली राधाकृष्णन|डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] द्वारा सम्पादित तथा विद्या भूषण का 'हिस्ट्री आफ इण्डियन लॉजिक' पृ0 20-291</ref> पूरब दिशा की ओर भी इसने [[बर्मा]] तक अपना स्थान बना लिया था। बर्मी लिपि में आज भी 'नव्यन्याय' के ग्रन्थ उपलब्ध हैं।<ref>शिक्षामन्त्रालय भारत सरकार द्वारा प्रकाशित पूर्व एवं पश्चिम दर्शन का इतिहास- (History of philosophy Eastern and Western) डा. विभूतिभूषण भट्टाचार्य का लेख)। (प्रथम भाग) </ref> उत्तर में जहाँ तक [[बौद्ध दर्शन]] का प्रचार-प्रसार हुआ वहाँ न्याय दर्शन के प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव को मानना ही होगा। बौद्ध दर्शन का प्रबल प्रतिपक्षी नैय्यायिक ही रहा है। अत: [[चीन]] देश [[तिब्बत]] आदि में इसका कभी अवश्य प्रचार रहा होगा। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने निरन्तर इसकी प्रशंसा की तथा इसकी शिक्षा पर अधिक बल दिया। [[महाभारत]] स्पष्टत: कहता है कि न्याय शास्त्र को छोड़कर केवल [[वेद]] का अवलम्बन करके कोई मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता है। अर्थात न्याय शास्त्र सम्मत मनन सर्वथा आवश्यक है।
| |
| वेदवादं व्यपाश्रित्य मोक्षोऽस्तीति प्रभाषितुम्।
| |
| अपेतन्यायशास्त्रेण सर्वलोकविगर्हणा॥<ref>शान्तिपर्व 268.64</ref>
| |
| ==न्याय दर्शन पर आक्षेप==
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| यद्यपि प्राचीन काल से ही तर्कविद्या या हेतुशास्त्र की निन्दा भी शास्त्रों में देखी जाती है। अतएव इसकी उपादेयता में सन्देह होना या इस शास्त्र के प्रति अनादर भाव का होना स्वाभाविक है।
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| *[[रामायण]] में कहा गया है कि क्या आप लोकायतिकों की सेवा करते हैं? ये तो अनर्थ करने में ही कुशल हैं। पाण्डित्य का दम्भ ही इनमें रहता है। धर्मशास्त्र के रहते हुए ये तर्क करके उन धर्मशास्त्रीय विषयों की उपेक्षा करते हैं और अभिमान में चूर रहते हैं।<ref>काञ्चित् लोकायतिकान् ब्राह्मणांस्तात सेवसे।
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| अनर्थकुशला ह्येते बाला: पण्डितमानिन:॥
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| धर्मशास्त्रेषु मुख्येषु विद्यमानेषु दुर्बुधा:।
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| बुद्धिमान्वीक्षिकीं प्राप्य निरर्थ प्रवदन्ति ते। ([[अयोध्या काण्ड वा. रा.|वाल्मीकि रामायण. अयोध्या काण्ड]] 100.38-39)</ref>
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| *[[महाभारत]] कहता है कि वेद निन्दक ब्राह्मण निरर्थक तर्कविद्या में अनुरक्त है।<ref>भवेत् पण्डितमानी च ब्राह्मणो वेदनिन्दक:।
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| आन्वीक्षिकीं तर्कविद्यामनुरक्तो निरर्थिकाम्॥ ([[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]] 37.12)</ref>
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| *[[मनुस्मृति]] में कहा गया है कि हेतुशास्त्र का अवलम्बन कर जो [[ब्राह्मण]] [[वेद]] और [[मनुस्मृति|स्मृति]] की अवहेलना करे उसका परित्याग करना चाहिए।<ref>योऽवमन्येत ते मूले हेतुशास्त्राश्रयाद् द्विज:
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| स साधुर्भिर्बहिष्कार्यो नास्तिको वेदनिन्दक:॥ (मनु. 2.11)
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| हेतुकान् वकवृत्तींश्च वाङ्मात्रेणापि नार्चयेत्। (मनु. 2.11)</ref> तथापि यह मानना होगा कि नास्तिक न्यायविद्या के प्रसंग में ये सारी बातें कही गयी हैं। गौतमीय न्यायशास्त्र इस निन्दा का लक्ष्य नहीं है।
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| प्राचीन काल में आन्वीक्षिकी विद्या की दो परम्परायें रही होंगी। एक वेदानुगामिनी, जो परलोक और ईश्वर में विश्वास रखती रही और दूसरी केवल तर्क करने वाली परम्परा रही होगी। दूसरी परम्परा ने इसकी प्रक्रिया तो अपनायी किन्तु वह इसके हार्दिक अभिप्राय को नहीं पकड़ पायी या उसे छोड़ दिया। अत: युक्तिविद्या की इस दूसरी परम्परा की निन्दा और इसकी पहली परम्परा की अर्थात गौमतीय न्यायविद्या की प्रशंसा सर्वत्र शास्त्रों में की गयी है। ‘तर्काप्रतिष्ठानात्’ (2/1/11/) इस वेदान्तसूत्र का संकेत भी इसी ओर है। गौतमीयन्यायविद्या भगवान व्यास के लिए निन्द्य नहीं है। अतएव शंकर भगवत्पाद ने वेदान्तसूत्र के भाष्य में प्रमाण के रूप में न्याय दर्शन के द्वितीय सूत्र का उपयोग किया है।<ref>द्र. शाङ्करभाष्य 1/1/4/</ref> यह संभव भी नहीं है कि एक ही ग्रन्थ में एक ही लेखक एक ही शास्त्र की प्रशंसा और निन्दा एक साथ करे।
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| ==आदि प्रवर्तक अक्षपाद गौतम==
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| उपलब्ध न्याय दर्शन के आदि प्रवर्तक महर्षि गोतम या गौतम हैं। यही अक्षपाद नाम से भी प्रसिद्ध हैं। उन्होंने उपलब्ध न्यायसूत्रों का प्रणयन किया तथा इस आन्वीक्षिकी को क्रमबद्ध कर शास्त्र के रूप में प्रतिष्ठापित किया। न्यायवार्त्तिककार उद्योतकराचार्य ने इनको इस शास्त्र का कर्ता नहीं वक्ता कहा है।
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| यदक्षपाद: प्रवरो मुनीनां शमाय शास्त्रं जगतो जगाद।<ref>न्यायवार्त्तिक का मङ्गलाचरण।</ref>
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| अत: वेदविद्या की तरह इस आन्वीक्षिकी को भी विश्वसृष्टा का ही अनुग्रहदान मानना चाहिए। महर्षि अक्षपाद से पहले भी यह विद्या अवश्य रही होगी। इन्होंने तो सूत्रों में बाँधकर इसे सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध एवं पूर्णांग करने का सफल प्रयास किया है। इससे शास्त्र का एक परिनिष्ठित स्वरूप प्रकाश में आया और चिन्तन की धारा अपनी गति एवं पद्धति से आगे की ओर उन्मुख होकर बढ़ने लगी। [[वात्स्यायन]] ने भी न्यायभाष्य के उपसंहार में कहा है कि ऋषि अक्षपाद को यह विद्या प्रतिभात हुई थी-
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| '''योऽक्षपादमृर्षि न्याय: प्रत्यभाद् वदतां वरम्।'''
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| न्याय-सूत्रों के परिसीलन से भी ज्ञात होता है कि इस शास्त्र की पृष्ठभूमि में अवश्य ही चिरकाल की गवेषणा तथा अनेक विशिष्ट नैयायिकों का योगदान रहा होगा। अन्यथा न्यायसूत्र इतने परिष्कृत एवं परिपूर्ण नहीं रहते। चतुर्थ अध्याय में सूत्रकार ने प्रावादुकों के मतों का उठा कर संयुक्तिक खण्डन किया है तथा अपने सिद्धान्तों की प्रतिष्ठा की है। इससे प्रतीत होता है कि उनके समक्ष अनेक दार्शनिकों के विचार अवश्य उपलब्ध थे। [[महाभारत]] में भी इसकी पुष्टि देखी जाती है। वहाँ कहा गया है कि न्याय दर्शन अनेक हैं उनमें से हेतु, आगम और सदाचार के अनुकूल न्यायशास्त्र पारिग्राह्य है-
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| <poem>न्यायतन्त्राण्यनेकानि तैस्तैरुक्तानि वादिभि:।
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| हेत्वागमसदाचरैर्यद् युक्तं तत्प्रगृह्यताम्॥</poem><ref>[[महाभारत शान्तिपर्व|शान्ति पर्व महाभारत]] 210.22</ref>
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| ==टीका टिप्पिणी== | | |
| <references/> | | |
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