बुद्ध पूर्णिमा: Difference between revisions
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'''बुद्ध पूर्णिमा''' को 'वैशाख पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के [[दिन]] दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा स्नान लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व है। इस दिन मिष्ठान, सत्तू, जलपात्र, [[वस्त्र]] दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है। | |चित्र=Buddha1.jpg | ||
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यह 'सत्य विनायक पूर्णिमा' भी मानी जाती है। [[श्रीकृष्ण]] के बचपन के श्रीकृष्ण दरिद्र [[ब्राह्मण]] [[सुदामा]] जब [[द्वारिका]] उनके पास मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उनको सत्यविनायक व्रत का विधान बताया। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता जाती रही तथा वह सर्वसुख सम्पन्न और ऐश्वर्यशाली हो गया। | |अन्य नाम = वैशाख पूर्णिमा, सत्य विनायक पूर्णिमा | ||
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'''बुद्ध पूर्णिमा''' को 'वैशाख पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के [[दिन]] दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा स्नान लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व है। इस दिन मिष्ठान, [[सत्तू]], जलपात्र, [[वस्त्र]] दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है। | |||
==सत्य विनायक पूर्णिमा== | |||
यह 'सत्य विनायक पूर्णिमा' भी मानी जाती है। [[श्रीकृष्ण]] के बचपन के श्रीकृष्ण दरिद्र [[ब्राह्मण]] [[सुदामा]] जब [[द्वारिका]] उनके पास मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उनको सत्यविनायक व्रत का विधान बताया। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता जाती रही तथा वह सर्वसुख सम्पन्न और ऐश्वर्यशाली हो गया। इस दिन [[धर्मराज]] की पूजा करने का विधान है। इस व्रत से धर्मराज की प्रसन्नता प्राप्त होती है और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। [[वैशाख]] की [[पूर्णिमा]] को ही [[विष्णु|भगवान विष्णु]] के नौवें अवतार [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] के रूप में हुआ था। इसी दिन भगवान बुद्ध का निर्वाण हुआ था। उनके अनुयायी इस दिवस को बहुत धूमधाम से मनाते हैं। | |||
==उत्सव और अनुष्ठान== | |||
इस दिन अलग-अलग पुण्य कर्म करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। धर्मरात के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गोदान के समान फल प्राप्त होता है। पांच या सात ब्राह्मणों को मीठे [[तिल]] दान देने से सब पापों का क्षय हो जाता है। यदि तिलों के [[जल]] से स्नान करके [[घी]], चीनी और तिलों से भरा पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से [[अग्नि]] में आहुति दें अथवा तिल और [[शहद]] का दान करें, तिल के तेल के [[दीपक]] जलाएं, जल और तिलों का तर्पण करें अथवा [[गंगा]] आदि में स्नान करें तो व्यक्ति सब पापों से निवृत्त हो जाता है। इस दिन शुद्ध भूमि पर तिल फैलाकर काले मृग का चर्म बिछाएं तथा उसे सभी प्रकार के वस्त्रों सहित दान करें तो अनंत फल प्राप्त होता है। यदि इस दिन एक समय भोजन करके [[पूर्णिमा]], [[चंद्रमा]] अथवा [[सत्यनारायण व्रत|सत्यनारायण का व्रत]] करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है। | |||
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Revision as of 11:39, 23 May 2013
बुद्ध पूर्णिमा
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अन्य नाम | वैशाख पूर्णिमा, सत्य विनायक पूर्णिमा |
अनुयायी | बौद्ध, हिंदू |
उद्देश्य | बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं। |
तिथि | वैशाख की पूर्णिमा |
धार्मिक मान्यता | बुद्ध पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु के नौवें अवतार के रूप में भगवान बुद्ध अवतरित हुए थे और इसी दिन भगवान बुद्ध का निर्वाण हुआ था। |
अन्य जानकारी | यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है। |
बुद्ध पूर्णिमा को 'वैशाख पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा स्नान लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व है। इस दिन मिष्ठान, सत्तू, जलपात्र, वस्त्र दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है।
सत्य विनायक पूर्णिमा
यह 'सत्य विनायक पूर्णिमा' भी मानी जाती है। श्रीकृष्ण के बचपन के श्रीकृष्ण दरिद्र ब्राह्मण सुदामा जब द्वारिका उनके पास मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उनको सत्यविनायक व्रत का विधान बताया। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता जाती रही तथा वह सर्वसुख सम्पन्न और ऐश्वर्यशाली हो गया। इस दिन धर्मराज की पूजा करने का विधान है। इस व्रत से धर्मराज की प्रसन्नता प्राप्त होती है और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। वैशाख की पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु के नौवें अवतार भगवान बुद्ध के रूप में हुआ था। इसी दिन भगवान बुद्ध का निर्वाण हुआ था। उनके अनुयायी इस दिवस को बहुत धूमधाम से मनाते हैं।
उत्सव और अनुष्ठान
इस दिन अलग-अलग पुण्य कर्म करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। धर्मरात के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गोदान के समान फल प्राप्त होता है। पांच या सात ब्राह्मणों को मीठे तिल दान देने से सब पापों का क्षय हो जाता है। यदि तिलों के जल से स्नान करके घी, चीनी और तिलों से भरा पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से अग्नि में आहुति दें अथवा तिल और शहद का दान करें, तिल के तेल के दीपक जलाएं, जल और तिलों का तर्पण करें अथवा गंगा आदि में स्नान करें तो व्यक्ति सब पापों से निवृत्त हो जाता है। इस दिन शुद्ध भूमि पर तिल फैलाकर काले मृग का चर्म बिछाएं तथा उसे सभी प्रकार के वस्त्रों सहित दान करें तो अनंत फल प्राप्त होता है। यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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