सरदार अजीत सिंह: Difference between revisions

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==परिचय==
==परिचय==
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Revision as of 12:26, 17 August 2021

सरदार अजीत सिंह
पूरा नाम सरदार अजीत सिंह
अन्य नाम अजीत सिंह
जन्म 1881
जन्म भूमि जालंधर ज़िला, पंजाब
मृत्यु 12 जनवरी, 1924
पति/पत्नी हरनाम कौर
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख सरदार भगत सिंह, लाला लाजपत राय
अन्य जानकारी सरदार अजीत सिंह ने कुछ पत्रिकाएं निकाली तथा भारतीय स्वाधीनता के अग्रिम कारणों पर अनेक पुस्तकें लिखी। इन दिनों में सरदार अजीत सिंह ने 40 भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर लिया था।
अद्यतन‎ 04:31, 10 मार्च-2017 (IST)

सरदार अजीत सिंह (अंग्रेज़ी: Sardar Ajit Singh, जन्म- 1881, जालंधर ज़िला, पंजाब; मृत्यु- 15 अगस्त, 1947) भारत के सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त एवं क्रांतिकारी थे। ये प्रख्यात शहीद सरदार भगत सिंह के चाचा थे।[1]

परिचय

सरदार अजीत सिंह का जन्म पंजाब के जालन्धर ज़िले के एक गांव में हुआ था। इनके जन्म दिन की तारीख ठीक-ठीक मालूम नहीं है। अजीत सिंह ने जालन्धर और लाहौर से शिक्षा ग्रहण की। सरदार अजीत सिंह की पत्नि 40 साल तक एकाकी और तपस्वी जीवन बिताने वाली श्रीमती हरनाम कौर भी वैसे ही जीवत व्यक्तित्व वाली महिला थीं।

जेल यात्रा एवं लेखन कार्य

सरदार अजीत सिंह को राजनीतिक 'विद्रोही' घोषित कर दिया गया था। उनका अधिकांश जीवन जेल में बीता। 1906 ई. में लाला लाजपत राय जी के साथ ही साथ उन्हें भी देश निकाले का दण्ड दिया गया था। सरदार अजीत सिंह ने 1907 के भू-संबंधी आन्दोलन में हिस्सा लिया तथा इन्हें गिरफ्तार कर बर्मा की माण्डले जेल में भेज दिया गया। इन्होंने कुछ पत्रिकाएं निकाली तथा भारतीय स्वाधीनता के अग्रिम कारणों पर अनेक पुस्तकें लिखी। सरदार अजीत सिंह को हिटलर और मुसोलिनी से मिलाया। मुसोलिनी तो उनके व्यक्तित्व के मुरीद थे। इन दिनों में सरदार अजीत सिंह ने 40 भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर लिया था।

क्रांतिकारी गतिविधियाँ

अजीत सिंह के बारे में कभी श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं। जब तिलक ने ये कहा था तब सरदार अजीत सिंह की उम्र केवल 25 वर्ष थी। 1909 में सरदार अपना घर बार छोड़ कर देश सेवा के लिए विदेश यात्रा पर निकल चुके थे, उस समय उनकी उम्र 27 वर्ष की थी। ईरान के रास्ते तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विट्जरलैंड, इटली, जापान आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया और आजाद हिन्द फौज की स्थापना की। अजीत सिंह ने भारत और विदेशों में होने वाली क्रांतिकारी गतिविधियों में पूर्ण रूप से सहयोग दिया। उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को चुनौती दी तथा भारत के औपनिवेशिक शासन की आलोचना की और खुलकर विरोध भी किया। रोम रेडियो को तो अजीत सिंह ने नया नाम दे दिया था, 'आजाद हिन्द रेडियो' तथा इसके मध्यम से क्रांति का प्रचार प्रसार किया। अजीत सिंह परसिया, रोम तथा दक्षिणी अफ्रीका में रहे तथा सन 1947 को भारत वापिस लौट आए। भारत लौटने पर पत्नी ने पहचान के लिए कई सवाल पूछे, जिनका सही जवाब मिलने के बाद भी उनकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ। अजीत सिंह इतनी भाषाओं के ज्ञानी हो चुके थे कि उन्हें पहचानना बहुत ही मुश्किल था।

मृत्यु

जिस दिन भारत आजाद हुआ उस दिन सरदार अजीत सिंह की आत्मा भी शरीर से मुक्त हो गई। भारत के विभाजन से वे इतने व्यथित थे कि 15 अगस्त, 1947 के सुबह 4 बजे उन्होंने अपने पूरे परिवार को जगाया, और जय हिन्द कह कर दुनिया से विदा ले ली।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सरदार अजीत सिंह (हिंदी) क्रांति 1857। अभिगमन तिथि: 16 मार्च, 2017।

संबंधित लेख

  1. REDIRECTसाँचा:स्वतन्त्रता सेनानी