मनीभाई देसाई: Difference between revisions
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*[http://www.rmaf.org.ph/Awardees/Biography/BiographyDesaiMan.htm BIOGRAPHY of Manibhai Bhimbhai Desai] | *[http://www.rmaf.org.ph/Awardees/Biography/BiographyDesaiMan.htm BIOGRAPHY of Manibhai Bhimbhai Desai] | ||
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Revision as of 06:30, 23 August 2016
मनीभाई देसाई
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पूरा नाम | मनीभाई भीमभाई देसाई |
अन्य नाम | मनीभाई |
जन्म | 27 अप्रैल, 1920 |
जन्म भूमि | सूरत, गुजरात |
मृत्यु | 1993 |
अभिभावक | भीमभाई फ़कीर भाई देसाई |
कर्म-क्षेत्र | स्वतंत्रता सेनानी, जनसेवा |
पुरस्कार-उपाधि | रेमन मैग्सेसे पुरस्कार |
विशेष योगदान | भारतीय एग्रो इन्डस्ड्रीज फाउन्डेशन की स्थापना |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान सन 1943 में मनीभाई गाँधी जी के साथ जेल भी गये थे। |
मनीभाई देसाई (अंग्रेज़ी: Manibhai Desai, जन्म: 27 अप्रैल 1920 - मृत्यु: 1993) उस पीढी के व्यक्ति थे जिन्होंने संग्राम के दौरान महात्मा गाँधी के साथ भी सक्रिय होकर काम किया और उसके बाद आजाद भारत में भी उन्हें प्रतिबद्धतापूर्वक काम करने का लम्बा अवसर मिला। देश के स्वतन्त्र होने के समय वह एक नौजवान व्यक्ति थे और स्वतन्त्र रूप से अपनी जीवन धारा चुन सकते थे लेकिन बहुत पहले मनीभाई देसाई ने महात्मा गाँधी के सामने यह संकल्प लिया था कि वह आजीवन निर्धन गाँव वालों के आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए काम करते रहेंगें। यह संकल्प उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ निभाया और उनके कार्यक्षेत्र में उनकी कर्मठता का प्रमाण स्पष्ट देखा गया। मनीभाई देसाई की इसी प्रतिबद्ध सेवा के लिए उन्हें 1982 का मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया।
जीवन परिचय
मनीभाई देसाई का जन्म 27 अप्रैल 1920 को सूरत, गुजरात में उनके गाँव कोस्मादा में हुआ था। उनके पिता भीमभाई फ़कीर भाई देसाई आसपास के 10-15 गाँवों के प्रतिष्ठित किसान थे। मनीभाई के चार भाई और एक बहन थी और हर सन्तान को उनकी माँ रानी बहन देसाई ने चतुर सयाना बनाया था।
शिक्षा
मनीभाई की स्कूली शिक्षा 1927 में उन्हीं के गाँव के स्कूल में शुरू हुई। उसी वर्ष उनके पिता का देहान्त हुआ था और उनकी माँ ने बच्चों की पूरी जिम्मेदारी संभाली थी। मनीभाई हमेशा कक्षा में प्रथम रहने वाले छात्र थे तथा उनका योगदान खेलकूद तथा स्काउट के रूप में भी खूब रहता था। उन्हीं दिनों मनीभाई महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आए। उन्होंने गाँधी जी के नमक आन्दोलन में हिस्सा लिया और सक्रियता से गैर क़ानूनी नमक को गाँव में जाकर बाँटा। सादगी का भाव मनीभाई के भीतर बचपन से ही था। उनकी माँ इस बात के लिए बहुत चिन्तित रहती थीं कहीं उनका बेटा बिगड़ न जाए। इसके लिए उन्होंने मनीभाई को अपनी एक चचेरी बहन के पास पढने के लिए सूरत भेज दिया। उनकी बहन के अपने पाँच-छह बच्चे थे तथा वह परिवार बहुत सम्पन्न भी नहीं था। ऐसे में वहाँ मनीभाई को बहुत घरेलू काम करना पड़ता था। उनकी माँ ने उन्हें एक गाय दी थी, ताकि उन्हें दूध की कमी न रहे। उस घर में गाय की सेवा आदि भी मनीभाई को करनी पड़ती थी। मनीभाई ने इस सब काम को बहुत मगोयोग से किया और कभी उनके मन में इसके प्रति विरोध नहीं उपजा लेकिन उनकी माँ को यह ठीक नहीं लगा। एक दिन जब वह अचानक बेटे के पास पहुँची, उन्होंने देखा कि मनीभाई मिट्ठी के तेल वाली लालटेन का शीशा साफ़ कर रहे थे। बस उनकी माँ ने उन्हें वहाँ से उठाकर एक हाँस्टल में डाल दिया।
गाँधी जी का आन्दोलन
मनीभाई के बड़े भाई चाहते थे कि वह इन्जीनियर बनें इसलिए उन्होंने भौतिकशास्त्र तथा गणित विषयों से पढाई शुरू की। 1942 में उन्होंने जूनियर बैचलर आँफ साइंस की डिग्री प्राप्त की तथा कालेज के फाइनल में प्रवेश लिया। उस समय गाँधी जी का आन्दोलन अपने चरम पर था। 9 अगस्त 1942 को ब्रिटिश सरकार ने सारे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इसी दिन मनीभाई ने बिना परिवार से कोई इज्जात लिए कालेज छोड़ दिया और गाँधी जी के साथ आन्दोलन में कूद पड़े।
गाँधी जी और मनीभाई
1943 में मनीभाई गाँधी जी के साथ जेल में थे जहाँ उन्होंने गाँधी के साथ ग्राम विकास की आवश्यकता पर बातचीत भी की। 1944 में जब वह जेल से छूटे, तो उन्होंने तय किया कि वह इन्जीनियर बनने का इरादा बिल्कुल भूलकर गाँवों के विकास के लिए काम करेंगे। अप्रैल 1943 में मनीभाई ने अपने कालेज की परीक्षा का आखिरी पर्चा दिया और उसी शाम, गाड़ी पकड़कर गाँधी जी के पास उनके आश्रम में आ गए। आश्रम मे गाँधी जी से उनकी भेंट बहुत महत्तवपूर्ण रही तथा उसका प्रसंग रोचक भी है। गाँधी जी ने मनीभाई से कहा कि पहले गाँवों में जाओ और जो कुछ तुमने पढ़ा है, उसे भुला दो। इस पर वे प्रथम श्रेणी के भौतिक शास्त्र तथा गणित पढ़े मनीभाई हैरत में आ गए। उन्होंने पूछा, बापू...क्या आप शिक्षा के विरुद्ध है... बापू ने उत्तर दिया, मैंने तुम्हारी शिक्षा को ध्यान में रखकर यह बात नहीं कही लेकिन वह साहबी रंगढंग जो काँलेज तथा समाज व्यक्ति को देता है, उससे पीछा छुडाना होगा...
भारतीय एग्रो इन्डस्ड्रीज फाउन्डेशन
भारतीय एग्रो इन्डस्ड्रीज फाउन्डेशन मनीभाई देसाई ने 1967 में शुरू किया जिसमें गोरक्षण के बापू के सिद्धान्त को कार्यरूप दिया गया। मनीभाई देसाई ने स्वंय 1950 में मरी हुई गायों की शल्य परीक्षा करके खुद बर्बर पशु चिकित्सिक प्रशिक्षित किया था। यहाँ मनीभाई देसाई ने कृत्रिम गर्भधान से डेनमार्क और ब्रिटेन की नस्ल की गाय जैसे पशुओं की नई नस्ल तैयार की जो ज्यादा दूध दे सकने में समर्थ थीं। इसी तरह पशुओं को खुर तथा मुँह की बीमारियों से बचाने के लिए वैक्सीन बनाया गया। जिससे साल में सैकड़ों जानवरों को मरने से बचाया जाने लगा। भारतीय एग्रो इन्डस्ट्रीज फाउन्डेशन (BAIF) के जरिए इस तरह गाँवों में व्यवस्था तथा आधुनिकता के जरिए आर्थिक विकास होने लगा, जिसका विस्तार फिर पूरे देश में पहुँचा। मनीभाई देसाई ने (BAIF) की पत्रिका में 1982 में लिखा कि BAIF में हमने कभी गाँव के लोगों को दयनीय या शोचनीय प्राणी नहीं माना। भारत के गाँवों के लोग मनुष्यों के बीच सबसे मजबूत और सुन्दर उदाहरण है।
निधन
73 वर्ष का कर्मठ जीवन बिताने के बाद 1993 में मनीभाई भीमभाई देसाई ने इस धरती पर अन्तिम सांस ली।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- Magsaysay Puraskar Vijeta Bhartiya (गूगल बुक्स)
- डॉ. मनीभाई देसाई (1920-1993)
- BIOGRAPHY of Manibhai Bhimbhai Desai
- Desai, Manibhai Bhimbhai
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