अकबर द्वारा विद्रोह दमन: Difference between revisions

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[[अकबर]] के [[कश्मीर]] अभियान के समय 1585 ई. में पश्चिमोत्तर सीमा पर यूसुफ़जइयों की आक्रामक गतिविधयों के कारण स्थिति अत्यन्त गंभीर हो गयी थी। अकबर ने जैलख़ान कोकलताश के नेतृत्व में इनसे निपटने हेतु सेना भेजी। [[बीरबल]] और हाकिम अब्दुल फ़तह भी बाद में उसकी सहायता के लिए नियुक्त किये गये, किन्तु अभियान के दौरान मतभेद होने के कारण वापस लौटते हुये यूसुफ़जइयों ने पीछे से हमला किया। इसी हमले में [[बीरबल]] की मृत्यु हो गयी। उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त की समस्याओं ने अकबर को अन्त तक प्रभावित किया।
[[अकबर]] के [[कश्मीर]] अभियान के समय 1585 ई. में पश्चिमोत्तर सीमा पर यूसुफ़जइयों की आक्रामक गतिविधयों के कारण स्थिति अत्यन्त गंभीर हो गयी थी। अकबर ने जैलख़ान कोकलताश के नेतृत्व में इनसे निपटने हेतु सेना भेजी। [[बीरबल]] और हाकिम अब्दुल फ़तह भी बाद में उसकी सहायता के लिए नियुक्त किये गये, किन्तु अभियान के दौरान मतभेद होने के कारण वापस लौटते हुये यूसुफ़जइयों ने पीछे से हमला किया। इसी हमले में [[बीरबल]] की मृत्यु हो गयी। उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त की समस्याओं ने अकबर को अन्त तक प्रभावित किया।
;शाहज़ादा सलीम का विद्रोह
;शाहज़ादा सलीम का विद्रोह
अकबर के लाड़-प्यार में पला सलीम ([[जहाँगीर]]) काफ़ी बिगड़ चुका था। वह बादशाह बनने के लिए उत्सुक था। 1599 ई. में सलीम अकबर की आज्ञा के बिना [[अजमेर]] से [[इलाहाबाद]] चला गया। यहाँ पर उसने स्वतन्त्र शासक की तरह व्यवहार करना शुरू किया। 1602 ई. में अकबर ने सलीम को समझाने का प्रयत्न किया। उसने सलीम को समझाने के लिए दक्षिण से [[अबुल फज़ल]] को बुलवाया। रास्ते में [[जहाँगीर]] के निर्देश पर [[ओरछा]] के [[बुन्देला]] सरदार [[वीरसिंहदेव बुंदेला|वीरसिंहदेव]] ने अबुल फ़ज़ल की हत्या कर दी। निःसंदेह जहाँगीर का यह कार्य अकबर के लिए असहनीय था, फिर भी अकबर ने सलीम के [[आगरा]] वापस लौटकर (1603 ई.) में माफ़ी मांग लेने पर माफ़ कर दिया। अकबर ने उसे [[मेवाड़]] जीतने के लिए भेजा, पर वह मेवाड़ न जाकर पुनः इलाहाबाद पहुँच गया। कुछ दिन तक सुरा और सुन्दरी में डूबे रहने के बाद अपनी दादी की मुत्यु पर सलीम 1604 ई. में वापस आगरा गया। जहाँ अकबर ने उसे एक बार फिर माफ़ कर दिया। इसके बाद सलीम ने विद्रोहात्मक रूख नहीं अपनाया।
अकबर के लाड़-प्यार में पला सलीम ([[जहाँगीर]]) काफ़ी बिगड़ चुका था। वह बादशाह बनने के लिए उत्सुक था। 1599 ई. में सलीम अकबर की आज्ञा के बिना [[अजमेर]] से [[इलाहाबाद]] चला गया। यहाँ पर उसने स्वतन्त्र शासक की तरह व्यवहार करना शुरू किया। 1602 ई. में अकबर ने सलीम को समझाने का प्रयत्न किया। उसने सलीम को समझाने के लिए दक्षिण से [[अबुल फज़ल]] को बुलवाया। रास्ते में [[जहाँगीर]] के निर्देश पर [[ओरछा]] के [[बुन्देला]] सरदार [[वीरसिंहदेव बुंदेला|वीरसिंहदेव]] ने अबुल फ़ज़ल की हत्या कर दी। निःसंदेह जहाँगीर का यह कार्य अकबर के लिए असहनीय था, फिर भी अकबर ने सलीम के [[आगरा]] वापस लौटकर (1603 ई.) में माफ़ी मांग लेने पर माफ़ कर दिया। अकबर ने उसे [[मेवाड़]] जीतने के लिए भेजा, पर वह मेवाड़ न जाकर पुनः इलाहाबाद पहुँच गया। कुछ दिन तक सुरा और सुन्दरी में डूबे रहने के बाद अपनी दादी की मुत्यु पर सलीम 1604 ई. में वापस आगरा गया। जहाँ अकबर ने उसे एक बार फिर माफ़ कर दिया। इसके बाद सलीम ने विद्रोहात्मक रुख़नहीं अपनाया।
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अकबर विषय सूची
अकबर द्वारा विद्रोह दमन
पूरा नाम जलालउद्दीन मुहम्मद अकबर
जन्म 15 अक्टूबर सन 1542 (लगभग)
जन्म भूमि अमरकोट, सिन्ध (पाकिस्तान)
मृत्यु तिथि 27 अक्टूबर, सन 1605 (उम्र 63 वर्ष)
मृत्यु स्थान फ़तेहपुर सीकरी, आगरा
पिता/माता हुमायूँ, मरियम मक़ानी
पति/पत्नी मरीयम-उज़्-ज़मानी (हरका बाई)
संतान जहाँगीर के अलावा 5 पुत्र 7 बेटियाँ
शासन काल 27 जनवरी, 1556 - 27 अक्टूबर, 1605 ई.
राज्याभिषेक 14 फ़रवरी, 1556 कलानपुर के पास गुरदासपुर
युद्ध पानीपत, हल्दीघाटी
राजधानी फ़तेहपुर सीकरी आगरा, दिल्ली
पूर्वाधिकारी हुमायूँ
उत्तराधिकारी जहाँगीर
राजघराना मुग़ल
मक़बरा सिकन्दरा, आगरा
संबंधित लेख मुग़ल काल

जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर भारत का महानतम मुग़ल शंहशाह था, जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अकबर को 'अकबर-ऐ-आज़म', 'शहंशाह अकबर' तथा 'महाबली शहंशाह' के नाम से भी जाना जाता है। अकबर के समय में हुए महत्त्वपूर्ण विद्रोह निम्नलिखित हैं-

उजबेगों का विद्रोह

उजबेग वर्ग पुराने अमीर थे। इस वर्ग के प्रमुख विद्रोही नेता थे- जौनपुर के सरदार ख़ान जमान, उसका भाई बहादुर ख़ाँ एवं चाचा इब्राहीम ख़ाँ, मालवा का सूबेदार अब्दुल्ला ख़ाँ, अवध का सूबेदार ख़ाने आलम आदि। ये सभी विद्रोही सरदार अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। 1564 ई. में मालवा के अब्दुल्ला ख़ाँ ने विद्रोह किया। यह विद्रोह अकबर के समय का पहला विद्रोह था। इन विद्रोहों को अकबर ने बड़ी सरलता से दबा लिया।

मिर्ज़ाओं का विद्रोह

मिर्ज़ा वर्ग के लोग अकबर के रिश्तेदार थे। इस वर्ग के प्रमुख विद्रोही नेता थे- इब्राहिम मिर्ज़ा, मुहम्मद हुसैन मिर्ज़ा, मसूद हुसैन, सिकन्दर मिर्ज़ा एवं महमूद मिर्ज़ा आदि। चूंकि इस वर्ग का अकबर से ख़ून का रिश्ता था, इसलिए ये अधिकार की अपेक्षा करते थे। इसी से उपजे असन्तोष के कारण इस वर्ग ने विद्रोह किया। अकबर ने 1573 ई. तक मिर्ज़ाओं के विद्रोह को पूर्ण रूप से कुचल दिया।

बंगाल एवं बिहार का विद्रोह

[[चित्र:Akbar-Receives-An-Embassy.jpg|thumb|200px|अकबर को महारानी एलिज़ाबेथ द्वारा भेजा गया दूत, फ़तेहपुर सीकरी -1586|left]] 1580 ई. में बंगाल में बाबा ख़ाँ काकशल एवं बिहार में मुहम्मद मासूम काबुली एवं अरब बहादुर ने विद्रोह किया। राजा टोडरमल के नेतृत्व में अकबर की सेना ने 1581 ई. में विद्रोह को कुचला।

यूसुफ़जइयों का विद्रोह

अकबर के कश्मीर अभियान के समय 1585 ई. में पश्चिमोत्तर सीमा पर यूसुफ़जइयों की आक्रामक गतिविधयों के कारण स्थिति अत्यन्त गंभीर हो गयी थी। अकबर ने जैलख़ान कोकलताश के नेतृत्व में इनसे निपटने हेतु सेना भेजी। बीरबल और हाकिम अब्दुल फ़तह भी बाद में उसकी सहायता के लिए नियुक्त किये गये, किन्तु अभियान के दौरान मतभेद होने के कारण वापस लौटते हुये यूसुफ़जइयों ने पीछे से हमला किया। इसी हमले में बीरबल की मृत्यु हो गयी। उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त की समस्याओं ने अकबर को अन्त तक प्रभावित किया।

शाहज़ादा सलीम का विद्रोह

अकबर के लाड़-प्यार में पला सलीम (जहाँगीर) काफ़ी बिगड़ चुका था। वह बादशाह बनने के लिए उत्सुक था। 1599 ई. में सलीम अकबर की आज्ञा के बिना अजमेर से इलाहाबाद चला गया। यहाँ पर उसने स्वतन्त्र शासक की तरह व्यवहार करना शुरू किया। 1602 ई. में अकबर ने सलीम को समझाने का प्रयत्न किया। उसने सलीम को समझाने के लिए दक्षिण से अबुल फज़ल को बुलवाया। रास्ते में जहाँगीर के निर्देश पर ओरछा के बुन्देला सरदार वीरसिंहदेव ने अबुल फ़ज़ल की हत्या कर दी। निःसंदेह जहाँगीर का यह कार्य अकबर के लिए असहनीय था, फिर भी अकबर ने सलीम के आगरा वापस लौटकर (1603 ई.) में माफ़ी मांग लेने पर माफ़ कर दिया। अकबर ने उसे मेवाड़ जीतने के लिए भेजा, पर वह मेवाड़ न जाकर पुनः इलाहाबाद पहुँच गया। कुछ दिन तक सुरा और सुन्दरी में डूबे रहने के बाद अपनी दादी की मुत्यु पर सलीम 1604 ई. में वापस आगरा गया। जहाँ अकबर ने उसे एक बार फिर माफ़ कर दिया। इसके बाद सलीम ने विद्रोहात्मक रुख़नहीं अपनाया।


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