बदरुद्दीन तैयब जी: Difference between revisions

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'''बदरुद्दीन तैयबजी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Badruddin Tyabji'', जन्म: [[8 अक्टूबर]], 1844; मृत्यु: [[19 अगस्त]], [[1909]]) अपने समय के प्रसिद्ध वकील, न्यायाधीश और [[कांग्रेस]] के नेता थे। वे धर्मनिरपेक्ष समाज की कल्पना करते थे। अपनी निष्पक्षता के लिए भी उनकी बड़ी ख्याति थी। बाद में जब उनकी नियुक्ति '[[मुंबई उच्च न्यायालय|मुंबई हाईकोर्ट]]' के न्यायाधीश के पद पर हुई, तो [[बाल गंगाधर तिलक]] पर सरकार द्वारा चलाये गये राजद्रोह के मुकदमे में तिलक को जमानत पर छोड़ने का साहसिक कार्य तैयब जी ने ही किया था।
'''बदरुद्दीन तैयब जी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Badruddin Tyab Ji'', जन्म: [[8 अक्टूबर]], 1844; मृत्यु: [[19 अगस्त]], [[1909]]) अपने समय के प्रसिद्ध वकील, न्यायाधीश और [[कांग्रेस]] के नेता थे। वे धर्मनिरपेक्ष समाज की कल्पना करते थे। अपनी निष्पक्षता के लिए भी उनकी बड़ी ख्याति थी। बाद में जब उनकी नियुक्ति '[[मुंबई उच्च न्यायालय|मुंबई हाईकोर्ट]]' के न्यायाधीश के पद पर हुई, तो [[बाल गंगाधर तिलक]] पर सरकार द्वारा चलाये गये राजद्रोह के मुकदमे में तिलक को जमानत पर छोड़ने का साहसिक कार्य तैयब जी ने ही किया था।
==शिक्षा==
==शिक्षा==
बदरुद्दीन तैयबजी का जन्म [[8 अक्टूबर]], 1844 ई. को [[मुम्बई]] के एक धनी [[मुस्लिम]] परिवार में हुआ था।<ref name="BCK"/> उनकी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद क़ानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए [[इंग्लैण्ड]] चले गए और वहां से बैरिस्टर बन कर लौटे। उन्होंने मुम्बई में जिस समय वकालत शुरू की तब वहां न तो कोई न्यायाधीश भारतीय था, न कोई वकील। प्रतिभा और योग्यता के बल पर शीघ्र ही बदरुद्दीन तैयब जी की गणना उच्च कोटि के भारतीय वकीलों में होने लगी। [[फ़िरोज शाह मेहता]], उमेशचंद्र बनर्जी, [[दादा भाई नैरोजी]] आदि के संपर्क में आने पर वे सार्वजनिक कार्यों में भी रुचि लेने लगे। उन्होंने ‘मुंबई प्रेसिडेंसी एसोसिएशन’ की स्थापना की और मुसलमानों में शिक्षा का प्रचार करने के लिए ‘अंजुमने इस्लाम’ नामक संस्था को जन्म दिया। वे महिलाओं की आज़ादी और शिक्षा के भी समर्थक थे। उन्होंने अपनी पुत्रियों को उच्च शिक्षा दिलाई और अपने परिवार की महिलाओं का पर्दा भी समाप्त कराया, जो उन दिनों बड़े साहस का काम था।<ref name="BCK">पुस्तक- भारतीय चरित कोश| लेखक-लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' | पृष्ठ संख्या- 509</ref>
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==निधन==
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Revision as of 05:45, 8 October 2022

बदरुद्दीन तैयब जी
पूरा नाम बदरुद्दीन तैयबजी
जन्म 8 अक्टूबर, 1844
जन्म भूमि मुम्बई
मृत्यु 19 अगस्त, 1909
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि वकील, न्यायाधीश और नेता
धर्म इस्लाम
शिक्षा वकालत
विशेष योगदान इन्होंने ‘मुंबई प्रेसिडेंसी एसोसिएशन’ की स्थापना की और मुसलमानों में शिक्षा का प्रचार करने के लिए ‘अंजुमने इस्लाम’ नामक संस्था को जन्म दिया।
अन्य जानकारी महिलाओं की आज़ादी और शिक्षा के समर्थक थे। अपनी पुत्रियों को उच्च शिक्षा दिलाई और अपने परिवार की महिलाओं का पर्दा भी समाप्त कराया, जो उन दिनों बड़े साहस का काम था।

बदरुद्दीन तैयब जी (अंग्रेज़ी: Badruddin Tyab Ji, जन्म: 8 अक्टूबर, 1844; मृत्यु: 19 अगस्त, 1909) अपने समय के प्रसिद्ध वकील, न्यायाधीश और कांग्रेस के नेता थे। वे धर्मनिरपेक्ष समाज की कल्पना करते थे। अपनी निष्पक्षता के लिए भी उनकी बड़ी ख्याति थी। बाद में जब उनकी नियुक्ति 'मुंबई हाईकोर्ट' के न्यायाधीश के पद पर हुई, तो बाल गंगाधर तिलक पर सरकार द्वारा चलाये गये राजद्रोह के मुकदमे में तिलक को जमानत पर छोड़ने का साहसिक कार्य तैयब जी ने ही किया था।

शिक्षा

बदरुद्दीन तैयबजी का जन्म 8 अक्टूबर, 1844 ई. को मुम्बई के एक धनी मुस्लिम परिवार में हुआ था।[1] उनकी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद क़ानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड चले गए और वहां से बैरिस्टर बन कर लौटे। उन्होंने मुम्बई में जिस समय वकालत शुरू की तब वहां न तो कोई न्यायाधीश भारतीय था, न कोई वकील। प्रतिभा और योग्यता के बल पर शीघ्र ही बदरुद्दीन तैयब जी की गणना उच्च कोटि के भारतीय वकीलों में होने लगी। फ़िरोज शाह मेहता, उमेशचंद्र बनर्जी, दादा भाई नैरोजी आदि के संपर्क में आने पर वे सार्वजनिक कार्यों में भी रुचि लेने लगे। उन्होंने ‘मुंबई प्रेसिडेंसी एसोसिएशन’ की स्थापना की और मुसलमानों में शिक्षा का प्रचार करने के लिए ‘अंजुमने इस्लाम’ नामक संस्था को जन्म दिया। वे महिलाओं की आज़ादी और शिक्षा के भी समर्थक थे। उन्होंने अपनी पुत्रियों को उच्च शिक्षा दिलाई और अपने परिवार की महिलाओं का पर्दा भी समाप्त कराया, जो उन दिनों बड़े साहस का काम था।[1]

चित्र:Blockquote-open.gif उस दिन इंडिया गेट में आयोजित समारोह में इतनी भीड़ थी कि माउंटबैटन और उनकी पत्नी को सभास्थल तक ले जाने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी थी, जहां से जवाहर लाल नेहरू भाषण दे रहे थे, वहां तक पहुंचने में काफ़ी परिश्रम करना पड़ा था। पहली बार जब लोगों ने 'तिरंगा झंडा' फहराते हुए देखा तो उनके चेहरे पर अजीब सी चमक थी। चित्र:Blockquote-close.gif

- बदरुद्दीन तैयब जी

मुंबई हाईकोर्ट के न्यायाधीश

वे धर्मनिरपेक्ष समाज की कल्पना करते थे। अपनी निष्पक्षता के लिए भी उनकी बड़ी ख्याति थी। बाद में जब उनकी नियुक्ति 'मुंबई हाईकोर्ट' के न्यायाधीश के पद पर हुई, तो बाल गंगाधर तिलक पर सरकार द्वारा चलाये गये राजद्रोह के मुकदमे में तिलक को जमानत पर छोड़ने का साहसिक कार्य तैयब जी ने ही किया था।[1]

प्रमुख नेता

उनकी गणना भारत के प्रमुख नेताओं में होती थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1887 ई. में मद्रास में आयोजित 'तीसरे वार्षिक अधिवेशन' के अध्यक्ष वे सर्वसम्मति से चुने गए थे। अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा था-

‘‘समझ में नहीं आता कि सभी के हित में देशवासियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मुसलमान आगे क्यों नहीं बढ़ सकते। उन्हें कोई हिचक नहीं होनी चाहिए।[1]’’

19वी शताब्‍दी के अंत में भारत के एक प्रमुख नेता थे जब देश आज़ादी की शुरुआती जंग के चरण में था। तैयबजी अनेक प्रतिभाओं के व्‍यक्ति थे। वे एक बड़े नेता, समाज सुधारक, शिक्षाविद और क़ानून के ज्ञाता थे। उन्‍हें 'बॉम्‍बे उच्‍च न्‍यायालय का प्रथम भारतीय अधिवक्‍ता' होने का गौरव प्राप्‍त है। वे हिन्‍दू- मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। तैयबजी का विश्‍वास था कि सांस्‍कृतिक और धार्मिक विविधताएं देश के हितों को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया में आड़े नहीं आनी चाहिए। उन्‍होंने धर्मनिरपेक्षता की संकल्‍पना ऐसे समय पर प्रसारित की जब देश के राजनीतिक मामलों में इसका बहुत कम महत्‍व था।[2]

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर

1932 बैच के आईसीएस अधिकारी बदरुद्दीन तैयब जी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि - उस दिन इंडिया गेट में आयोजित समारोह में इतनी भीड़ थी कि माउंटबैटन और उनकी पत्नी को सभा स्थल तक ले जाने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। जहां से जवाहरलाल नेहरू भाषण दे रहे थे , वहां तक पहुंचने में काफ़ी परिश्रम करना पड़ा था। पहली बार जब लोगों ने तिरंगा झंडा फहराते हुए देखा तो उनके चेहरे पर अजीब सी चमक थी।[3]'

निधन

19 अगस्त, 1909 ई. में तैयब जी का देहांत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 पुस्तक- भारतीय चरित कोश| लेखक-लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' | पृष्ठ संख्या- 509
  2. बदरुद्दीन तैयबजी (हिंदी) प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार। अभिगमन तिथि: 26 अगस्त, 2011।
  3. झंडा फहरा कर ही अन्न ग्रहण करते थे लोग (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 26 अगस्त, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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