सीता नवमी: Difference between revisions

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'''सीता नवमी''' वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन [[सीता]] का प्राकट्य हुआ था। इस पर्व को "जानकी नवमी" भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन [[पुष्य नक्षत्र]] में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से [[यज्ञ]] की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय [[पृथ्वी]] से एक बालिका का प्राकट्य हुआ। जोती हुई भूमि को तथा हल को नोक को भी 'सीता' कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम 'सीता' रखा गया था। इस दिन [[वैष्णव संप्रदाय]] के [[भक्त]] माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं। मान्यता है कि जो भी इस दिन व्रत रखता व [[श्रीराम]] सहित सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल तथा सभी तीर्थों के दर्शन का फल अपने आप मिल जाता है। अत: इस दिन व्रत करने का विधान है।
'''सीता नवमी''' वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन [[सीता]] का प्राकट्य हुआ था। इस पर्व को "जानकी नवमी" भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन [[पुष्य नक्षत्र]] में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से [[यज्ञ]] की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय [[पृथ्वी]] से एक बालिका का प्राकट्य हुआ। जोती हुई भूमि को तथा हल को नोक को भी 'सीता' कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम 'सीता' रखा गया था। इस दिन [[वैष्णव संप्रदाय]] के [[भक्त]] माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं। मान्यता है कि जो भी इस दिन व्रत रखता व [[श्रीराम]] सहित सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल तथा सभी तीर्थों के दर्शन का फल अपने आप मिल जाता है। अत: इस दिन व्रत करने का विधान है।
==सीता जन्म कथा==
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====अद्भुत रामायण का उल्लेख====
इस घटना से ज्ञात होता है कि सीता राजा जनक की अपनी पुत्री नहीं थीं। धरती के अंदर छुपे कलश से प्राप्त होने के कारण सीता खुद को [[पृथ्वी]] की पुत्री मानती थीं। लेकिन वास्तव में सीता के [[पिता]] कौन थे और कलश में सीता कैसे आयीं, इसका उल्लेख अलग-अलग भाषाओं में लिखे गये [[रामायण]] और कथाओं से प्राप्त होता है। 'अद्भुत रामायण' में उल्लेख है कि [[रावण]] कहता है कि- "जब मैं भूलवश अपनी पुत्री से प्रणय की इच्छा करूँ, तब वही मेरी मृत्यु का कारण बने।" रावण के इस कथन से ज्ञात होता है कि सीता रावण की पुत्री थीं। 'अद्भुत रामायण' में उल्लेख है कि गृत्स्मद नामक [[ब्राह्मण]] [[लक्ष्मी]] को पुत्री रूप मे पाने की कामना से प्रतिदिन एक कलश मे कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ [[दूध]] की बूंदें डालता था। एक दिन जब ब्राह्मण कहीं बाहर गया था, तब रावण इनकी कुटिया में आया और यहाँ मौजूद ऋषियों को मारकर उनका [[रक्त]] कलश में भर लिया। यह कलश लाकर रावण ने मंदोदरी को सौंप दिया। रावण ने कहा कि यह तेज विष है। इसे छुपाकर रख दो। मंदोदरी रावण की उपेक्षा से दुःखी थी। एक दिन जब रावण बाहर गया था, तब मौका देखकर मंदोदरी ने कलश में रखा रक्त पी लिया। इसके पीने से मंदोदरी गर्भवती हो गयी।<ref name="ab"/>


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Revision as of 08:40, 29 May 2013

सीता नवमी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन सीता का प्राकट्य हुआ था। इस पर्व को "जानकी नवमी" भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुष्य नक्षत्र में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ। जोती हुई भूमि को तथा हल को नोक को भी 'सीता' कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम 'सीता' रखा गया था। इस दिन वैष्णव संप्रदाय के भक्त माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं। मान्यता है कि जो भी इस दिन व्रत रखता व श्रीराम सहित सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल तथा सभी तीर्थों के दर्शन का फल अपने आप मिल जाता है। अत: इस दिन व्रत करने का विधान है।

सीता जन्म कथा

सीता के विषय में रामायण और अन्य ग्रंथों में जो उल्लेख मिलता है, उसके अनुसार मिथिला के राजा जनक के राज में कई वर्षों से वर्षा नहीं हो रही थी। इससे चिंतित होकर जनक ने जब ऋषियों से विचार किया, तब ऋषियों ने सलाह दी कि महाराज स्वयं खेत में हल चलाएँ तो इन्द्र की कृपा हो सकती है। मान्यता है कि बिहार स्थित सीममढ़ी का पुनौरा नामक गाँव ही वह स्थान है, जहाँ राजा जनक ने हल चलाया था। हल चलाते समय हल एक धातु से टकराकर अटक गया। जनक ने उस स्थान की खुदाई करने का आदेश दिया। इस स्थान से एक कलश निकला, जिसमें एक सुंदर कन्या थी। राजा जनक निःसंतान थे। इन्होंने कन्या को ईश्वर की कृपा मानकर पुत्री बना लिया। हल का फल जिसे 'सीत' कहते हैं, उससे टकराने के कारण कालश से कन्या बाहर आयी थी, इसलिए कन्या का नाम 'सीता' रखा गया था।[1]

अद्भुत रामायण का उल्लेख

इस घटना से ज्ञात होता है कि सीता राजा जनक की अपनी पुत्री नहीं थीं। धरती के अंदर छुपे कलश से प्राप्त होने के कारण सीता खुद को पृथ्वी की पुत्री मानती थीं। लेकिन वास्तव में सीता के पिता कौन थे और कलश में सीता कैसे आयीं, इसका उल्लेख अलग-अलग भाषाओं में लिखे गये रामायण और कथाओं से प्राप्त होता है। 'अद्भुत रामायण' में उल्लेख है कि रावण कहता है कि- "जब मैं भूलवश अपनी पुत्री से प्रणय की इच्छा करूँ, तब वही मेरी मृत्यु का कारण बने।" रावण के इस कथन से ज्ञात होता है कि सीता रावण की पुत्री थीं। 'अद्भुत रामायण' में उल्लेख है कि गृत्स्मद नामक ब्राह्मण लक्ष्मी को पुत्री रूप मे पाने की कामना से प्रतिदिन एक कलश मे कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूंदें डालता था। एक दिन जब ब्राह्मण कहीं बाहर गया था, तब रावण इनकी कुटिया में आया और यहाँ मौजूद ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर लिया। यह कलश लाकर रावण ने मंदोदरी को सौंप दिया। रावण ने कहा कि यह तेज विष है। इसे छुपाकर रख दो। मंदोदरी रावण की उपेक्षा से दुःखी थी। एक दिन जब रावण बाहर गया था, तब मौका देखकर मंदोदरी ने कलश में रखा रक्त पी लिया। इसके पीने से मंदोदरी गर्भवती हो गयी।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 सीता किसकी बेटी थीं (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 29 मई, 2013।

संबंधित लेख

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