अकबर का विवाह: Difference between revisions
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'''जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर''' [[भारत]] का महानतम मुग़ल | '''जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर''' [[भारत]] का महानतम मुग़ल शहंंशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। [[अकबर]] को अकबर-ऐ-आज़म, शहंशाह अकबर तथा महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। | ||
[[दिल्ली]] से अकबर [[दिसम्बर]] 1556 में [[सरहिन्द]] लौट आया, क्योंकि अभी सिकन्दर सूर सर नहीं हुआ था। [[मई]], 1557 में सिकन्दर ने मानकोट (रामकोट, [[जम्मू]]) के पहाड़ी क़िले में कितनी ही देर तक घिरे रहने के बाद आत्म समर्पण किया। उसे ख़रीद और [[बिहार]] के ज़िले जागीर में मिले, जहाँ पर वह दो वर्ष के बाद मर गया। [[काबुल]] से शाही बेगमें भी मानकोट पहुँची। उनके स्वागत के लिए अकबर दो मंज़िल आगे आया। मानकोट से [[लाहौर]] होते [[जालंधर]] पहुँचने पर बैरम ख़ाँ ने हुमायूँ की भाँजी सलीमा बेगम से विवाह किया। लेकिन यह विवाह कुछ ही समय का रहा, क्योंकि 31 जनवरी, 1561 में बैरम ख़ाँ की हत्या के बाद फूफी की लड़की सलीमा से अकबर ने विवाह किया। सलीमा अकबर की बहुत प्रभावशालिनी बीबी बनी और 1621 ई. में मरी। अक्टूबर, 1558 में अकबर दिल्ली से दल-बल सहित [[यमुना नदी]] से नाव द्वारा आगरा पहुँचा। यद्यपि आगरा एक नगण्य नगर नहीं था। बाबर और सूरी ने भी उसकी क़दर की थी, तथापि उसका भाग्य अकबराबाद बनने के बाद ही जागा। | [[दिल्ली]] से अकबर [[दिसम्बर]] 1556 में [[सरहिन्द]] लौट आया, क्योंकि अभी सिकन्दर सूर सर नहीं हुआ था। [[मई]], 1557 में सिकन्दर ने मानकोट (रामकोट, [[जम्मू]]) के पहाड़ी क़िले में कितनी ही देर तक घिरे रहने के बाद आत्म समर्पण किया। उसे ख़रीद और [[बिहार]] के ज़िले जागीर में मिले, जहाँ पर वह दो वर्ष के बाद मर गया। [[काबुल]] से शाही बेगमें भी मानकोट पहुँची। उनके स्वागत के लिए अकबर दो मंज़िल आगे आया। मानकोट से [[लाहौर]] होते [[जालंधर]] पहुँचने पर बैरम ख़ाँ ने हुमायूँ की भाँजी सलीमा बेगम से विवाह किया। लेकिन यह विवाह कुछ ही समय का रहा, क्योंकि 31 जनवरी, 1561 में बैरम ख़ाँ की हत्या के बाद फूफी की लड़की सलीमा से अकबर ने विवाह किया। सलीमा अकबर की बहुत प्रभावशालिनी बीबी बनी और 1621 ई. में मरी। अक्टूबर, 1558 में अकबर दिल्ली से दल-बल सहित [[यमुना नदी]] से नाव द्वारा आगरा पहुँचा। यद्यपि आगरा एक नगण्य नगर नहीं था। बाबर और सूरी ने भी उसकी क़दर की थी, तथापि उसका भाग्य अकबराबाद बनने के बाद ही जागा। | ||
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एक रात अकबर शिकार के लिए [[आगरा]] के पास के किसी गाँव से जा रहा था। वहाँ कुछ गवैयों को अजमेरी ख्वाजा का गुणगान गाते सुना। उसने मन में ख्वाजा की भक्ति जगी और 1562 की [[जनवरी]] के मध्य में थोड़े से लोगों को लेकर वह [[अजमेर]] की ओर चल पड़ा। आगरा और [[अजमेर]] के मध्य में देबसा में [[आमेर]] (पीछे [[जयपुर]]) के राजा बिहारीमल मिले और अपनी सबसे बड़ी लड़की के विवाह का प्रस्ताव रखा। अजमेर में थोड़ा ठहरकर लौटते वक़्त सांभर में राजकुमारी से अकबर ने विवाह किया। बिहारीमल के ज्येष्ठ पुत्र भगवानदास को कोई लड़का नहीं था, उन्होंने अपने भतीजे [[मानसिंह]] को गोद लिया था। राजा भगवानदास और कुँवर मानसिंह अब अकबर के सगे सम्बन्धी हो गए। इसी [[कछवाहा वंश|कछवाहा]] राजकुमारी का नाम पीछे ‘मरियम जमानी’ पड़ा, जिससे [[जहाँगीर]] पैदा हुआ। अकबर की अपनी माँ हमीदा बानू को ‘मरियम मकानी’ (सदन की मरियम) कहा जाता था। कछवाहा रानी की क़ब्र सिकन्दरा में अकबर की क़ब्र के पास एक रौजे में है, जिससे स्पष्ट है कि वह पीछे हिन्दू नहीं रही। अब तक सल्तनत के स्तम्भ तूरानी समझे जाते थे, अब [[राजपूत]] भी स्तम्भ बने और वह तूरानियों से अधिक दृढ़ साबित हुए। अकबरी दरबार के इतिहासकार '[[अबुल फ़ज़ल]]' कृत '[[आइना-ए-अकबरी]]' में और [[जहाँगीर]] के लिखे आत्मचरित 'तुजुक जहाँगीर' में उसे मरियम ज़मानी ही कहा गया है। यह उपाधि उसे सलीम के जन्म पर सन् 1569 में दी गई थी। कुछ लोगों ने उसका नाम जोधाबाई लिख दिया है, जो सही नहीं है। जोधाबाई [[जोधपुर]] के [[राणा उदयसिंह|राजा उदयसिंह]] की पुत्री थी, जिसका विवाह सलीम के साथ सन् 1585 में हुआ था। | एक रात अकबर शिकार के लिए [[आगरा]] के पास के किसी गाँव से जा रहा था। वहाँ कुछ गवैयों को अजमेरी ख्वाजा का गुणगान गाते सुना। उसने मन में ख्वाजा की भक्ति जगी और 1562 की [[जनवरी]] के मध्य में थोड़े से लोगों को लेकर वह [[अजमेर]] की ओर चल पड़ा। आगरा और [[अजमेर]] के मध्य में देबसा में [[आमेर]] (पीछे [[जयपुर]]) के राजा बिहारीमल मिले और अपनी सबसे बड़ी लड़की के विवाह का प्रस्ताव रखा। अजमेर में थोड़ा ठहरकर लौटते वक़्त सांभर में राजकुमारी से अकबर ने विवाह किया। बिहारीमल के ज्येष्ठ पुत्र भगवानदास को कोई लड़का नहीं था, उन्होंने अपने भतीजे [[मानसिंह]] को गोद लिया था। राजा भगवानदास और कुँवर मानसिंह अब अकबर के सगे सम्बन्धी हो गए। इसी [[कछवाहा वंश|कछवाहा]] राजकुमारी का नाम पीछे ‘मरियम जमानी’ पड़ा, जिससे [[जहाँगीर]] पैदा हुआ। अकबर की अपनी माँ हमीदा बानू को ‘मरियम मकानी’ (सदन की मरियम) कहा जाता था। कछवाहा रानी की क़ब्र सिकन्दरा में अकबर की क़ब्र के पास एक रौजे में है, जिससे स्पष्ट है कि वह पीछे हिन्दू नहीं रही। अब तक सल्तनत के स्तम्भ तूरानी समझे जाते थे, अब [[राजपूत]] भी स्तम्भ बने और वह तूरानियों से अधिक दृढ़ साबित हुए। अकबरी दरबार के इतिहासकार '[[अबुल फ़ज़ल]]' कृत '[[आइना-ए-अकबरी]]' में और [[जहाँगीर]] के लिखे आत्मचरित 'तुजुक जहाँगीर' में उसे मरियम ज़मानी ही कहा गया है। यह उपाधि उसे सलीम के जन्म पर सन् 1569 में दी गई थी। कुछ लोगों ने उसका नाम जोधाबाई लिख दिया है, जो सही नहीं है। जोधाबाई [[जोधपुर]] के [[राणा उदयसिंह|राजा उदयसिंह]] की पुत्री थी, जिसका विवाह सलीम के साथ सन् 1585 में हुआ था। | ||
वह सम्राट अकबर की महारानी और जहाँगीर की माता होने से [[मुग़ल]] [[अंत:पुर]] की सर्वाधिक प्रतिष्ठित नारी थी। वह मुस्लिम बादशाह से विवाह होने पर भी [[हिन्दू धर्म]] के प्रति निष्ठावान रही। सम्राट अकबर ने उसे पूरी धार्मिक स्वतंत्रता दी थी। वह हिन्दू धर्म के अनुसार धर्मोपासना, | वह सम्राट अकबर की महारानी और जहाँगीर की माता होने से [[मुग़ल]] [[अंत:पुर]] की सर्वाधिक प्रतिष्ठित नारी थी। वह मुस्लिम बादशाह से विवाह होने पर भी [[हिन्दू धर्म]] के प्रति निष्ठावान रही। सम्राट अकबर ने उसे पूरी धार्मिक स्वतंत्रता दी थी। वह हिन्दू धर्म के अनुसार धर्मोपासना, उत्सव−त्यौहार एवं रीति−रिवाजों को करती थी। उसकी मृत्यु सम्राट अकबर के देहावसान के 18 वर्ष पश्चात् सन् 1623 में [[आगरा]] में हुई थी। उसकी याद में एक भव्य स्मारक आगरा के निकटवर्ती [[सिकंदरा आगरा|सिकंदरा]] नामक स्थान पर सम्राट के मक़बरे के समीप बनाया गया, जो आज भी है। | ||
Revision as of 10:35, 30 August 2016
अकबर का विवाह
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पूरा नाम | जलालउद्दीन मुहम्मद अकबर |
जन्म | 15 अक्टूबर सन् 1542 (लगभग)[1] |
जन्म भूमि | अमरकोट, सिन्ध (पाकिस्तान) |
मृत्यु तिथि | 27 अक्टूबर सन् 1605 (उम्र 63 वर्ष) |
मृत्यु स्थान | फ़तेहपुर सीकरी, आगरा |
पिता/माता | हुमायूँ, मरियम मक़ानी |
पति/पत्नी | मरीयम-उज़्-ज़मानी (हरका बाई) |
संतान | जहाँगीर के अलावा 5 पुत्र 7 बेटियाँ |
उपाधि | जलाल-उद-दीन |
राज्य सीमा | उत्तर और मध्य भारत |
शासन काल | 27 जनवरी, 1556 - 27 अक्टूबर, 1605 |
शा. अवधि | 49 वर्ष |
राज्याभिषेक | 14 फ़रबरी 1556 कलानपुर के पास गुरदासपुर |
धार्मिक मान्यता | नया मज़हब बनाया दीन-ए-इलाही |
युद्ध | पानीपत, हल्दीघाटी |
सुधार-परिवर्तन | जज़िया हटाया, राजपूतों से विवाह संबंध |
राजधानी | फ़तेहपुर सीकरी आगरा, दिल्ली |
पूर्वाधिकारी | हुमायूँ |
उत्तराधिकारी | जहाँगीर |
राजघराना | मुग़ल |
वंश | तैमूर और चंगेज़ ख़ाँ का वंश |
मक़बरा | सिकन्दरा, आगरा |
संबंधित लेख | मुग़ल काल |
जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर भारत का महानतम मुग़ल शहंंशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म, शहंशाह अकबर तथा महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है।
दिल्ली से अकबर दिसम्बर 1556 में सरहिन्द लौट आया, क्योंकि अभी सिकन्दर सूर सर नहीं हुआ था। मई, 1557 में सिकन्दर ने मानकोट (रामकोट, जम्मू) के पहाड़ी क़िले में कितनी ही देर तक घिरे रहने के बाद आत्म समर्पण किया। उसे ख़रीद और बिहार के ज़िले जागीर में मिले, जहाँ पर वह दो वर्ष के बाद मर गया। काबुल से शाही बेगमें भी मानकोट पहुँची। उनके स्वागत के लिए अकबर दो मंज़िल आगे आया। मानकोट से लाहौर होते जालंधर पहुँचने पर बैरम ख़ाँ ने हुमायूँ की भाँजी सलीमा बेगम से विवाह किया। लेकिन यह विवाह कुछ ही समय का रहा, क्योंकि 31 जनवरी, 1561 में बैरम ख़ाँ की हत्या के बाद फूफी की लड़की सलीमा से अकबर ने विवाह किया। सलीमा अकबर की बहुत प्रभावशालिनी बीबी बनी और 1621 ई. में मरी। अक्टूबर, 1558 में अकबर दिल्ली से दल-बल सहित यमुना नदी से नाव द्वारा आगरा पहुँचा। यद्यपि आगरा एक नगण्य नगर नहीं था। बाबर और सूरी ने भी उसकी क़दर की थी, तथापि उसका भाग्य अकबराबाद बनने के बाद ही जागा।
हिन्दू राजकुमारी से विवाह
एक रात अकबर शिकार के लिए आगरा के पास के किसी गाँव से जा रहा था। वहाँ कुछ गवैयों को अजमेरी ख्वाजा का गुणगान गाते सुना। उसने मन में ख्वाजा की भक्ति जगी और 1562 की जनवरी के मध्य में थोड़े से लोगों को लेकर वह अजमेर की ओर चल पड़ा। आगरा और अजमेर के मध्य में देबसा में आमेर (पीछे जयपुर) के राजा बिहारीमल मिले और अपनी सबसे बड़ी लड़की के विवाह का प्रस्ताव रखा। अजमेर में थोड़ा ठहरकर लौटते वक़्त सांभर में राजकुमारी से अकबर ने विवाह किया। बिहारीमल के ज्येष्ठ पुत्र भगवानदास को कोई लड़का नहीं था, उन्होंने अपने भतीजे मानसिंह को गोद लिया था। राजा भगवानदास और कुँवर मानसिंह अब अकबर के सगे सम्बन्धी हो गए। इसी कछवाहा राजकुमारी का नाम पीछे ‘मरियम जमानी’ पड़ा, जिससे जहाँगीर पैदा हुआ। अकबर की अपनी माँ हमीदा बानू को ‘मरियम मकानी’ (सदन की मरियम) कहा जाता था। कछवाहा रानी की क़ब्र सिकन्दरा में अकबर की क़ब्र के पास एक रौजे में है, जिससे स्पष्ट है कि वह पीछे हिन्दू नहीं रही। अब तक सल्तनत के स्तम्भ तूरानी समझे जाते थे, अब राजपूत भी स्तम्भ बने और वह तूरानियों से अधिक दृढ़ साबित हुए। अकबरी दरबार के इतिहासकार 'अबुल फ़ज़ल' कृत 'आइना-ए-अकबरी' में और जहाँगीर के लिखे आत्मचरित 'तुजुक जहाँगीर' में उसे मरियम ज़मानी ही कहा गया है। यह उपाधि उसे सलीम के जन्म पर सन् 1569 में दी गई थी। कुछ लोगों ने उसका नाम जोधाबाई लिख दिया है, जो सही नहीं है। जोधाबाई जोधपुर के राजा उदयसिंह की पुत्री थी, जिसका विवाह सलीम के साथ सन् 1585 में हुआ था।
वह सम्राट अकबर की महारानी और जहाँगीर की माता होने से मुग़ल अंत:पुर की सर्वाधिक प्रतिष्ठित नारी थी। वह मुस्लिम बादशाह से विवाह होने पर भी हिन्दू धर्म के प्रति निष्ठावान रही। सम्राट अकबर ने उसे पूरी धार्मिक स्वतंत्रता दी थी। वह हिन्दू धर्म के अनुसार धर्मोपासना, उत्सव−त्यौहार एवं रीति−रिवाजों को करती थी। उसकी मृत्यु सम्राट अकबर के देहावसान के 18 वर्ष पश्चात् सन् 1623 में आगरा में हुई थी। उसकी याद में एक भव्य स्मारक आगरा के निकटवर्ती सिकंदरा नामक स्थान पर सम्राट के मक़बरे के समीप बनाया गया, जो आज भी है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अकबरनामा |लेखक: शेख अबुल फजल |अनुवादक: डॉ. मथुरालाल शर्मा |प्रकाशक: राधा पब्लिकेशन, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 1 |
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