Difference between revisions of "गंगा दशहरा"

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[[चित्र:Haridwar.jpg|[[गंगा नदी]], [[हरिद्वार]]<br /> Ganga River, Haridwar|thumb]]
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|चित्र=Haridwar.jpg
गंगा दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को दशहरा कहते हैं। इसमें स्नान, दान, रूपात्मक व्रत होता है। [[स्कन्द पुराण]] में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत्सरमुखी मानी गई है इसमें स्नान और दान तो विशेष करके करें। किसी भी नदी पर जाकर अर्ध्य (पू‍जादिक) एवम् तिलोदक (तीर्थ प्राप्ति निमित्तक तर्पण) अवश्य करें। ऐसा करने वाला महापातकों के बराबर के दस पापों से छूट जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष, दशमी को [[गंगावतरण]] का दिन मन्दिरों एवं सरोवरों में स्नान कर पवित्रता के साथ मनाया जाता है। इस दिन [[मथुरा]] में पतंगबाज़ी का विशेष आयोजन होता है।
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|चित्र का नाम= गंगा नदी, हरिद्वार
 
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|अन्य नाम =
सबसे पवित्र नदी गंगा के [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर आने का पर्व है- गंगा दशहरा। मनुष्यों को मुक्ति देने वाली गंगा नदी अतुलनीय हैं। संपूर्ण विश्व में इसे सबसे पवित्र नदी माना जाता है। राजा भगीरथ ने इसके लिए वर्षो तक तपस्या की थी। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा धरती पर आई। इससे न केवल सूखा और निर्जीव क्षेत्र उर्वर बन गया, बल्कि चारों ओर हरियाली भी छा गई थी। गंगा-दशहरा पर्व मनाने की परंपरा इसी समय से आरंभ हुई थी। राजा भगीरथ की गंगा को पृथ्वी पर लाने की कोशिशों के कारण इस नदी का एक नाम भागीरथी भी है।
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|अनुयायी =[[हिन्दू]], भारतीय, भारतीय प्रवासी
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|उद्देश्य =
'''<u>महिमा</u>'''
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|प्रारम्भ = पौराणिक काल
[[भविष्य पुराण]] में लिखा हुआ है कि जो मनुष्य गंगा दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार '''ओम नमो भगवती हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा।''' इस स्तोत्र को पढ़ता है, चाहे वो दरिद्र हो, असमर्थ हो वह भी गंगा की पूजा कर पूर्ण फल को पाता है।  
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|तिथि=[[ज्येष्ठ]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[दशमी]]
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|धार्मिक मान्यता =ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगाजी का आगमन हुआ था।
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|संबंधित लेख=[[गंगा]], [[भगीरथ]], [[शिव]], [[ब्रह्मा]], [[सगर]]
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|अन्य जानकारी=इस दिन गंगा स्नान करके [[दूध]], बताशा, [[जल]], रोली, [[नारियल]], धूप, दीप से पूजन करके दान देना चाहिए।
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'''गंगा दशहरा''' [[हिन्दु|हिन्दुओं]] का एक प्रमुख त्योहार है। [[ज्येष्ठ]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ला]] [[दशमी]] को दशहरा कहते हैं। इसमें स्नान, दान, रूपात्मक व्रत होता है। [[स्कन्द पुराण]] में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत्सरमुखी मानी गई है इसमें स्नान और दान तो विशेष रूप से करें। किसी भी नदी पर जाकर अर्ध्य (पू‍जादिक) एवम् तिलोदक (तीर्थ प्राप्ति निमित्तक तर्पण) अवश्य करें। ऐसा करने वाला महापातकों के बराबर के दस पापों से छूट जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष, दशमी को [[गंगावतरण]] का दिन मन्दिरों एवं सरोवरों में स्नान कर पवित्रता के साथ मनाया जाता है। इस दिन [[मथुरा]] में पतंगबाज़ी का विशेष आयोजन होता है।
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==गंगा का पृथ्वी पर आगमन==
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सबसे पवित्र नदी गंगा के [[पृथ्वी]] पर आने का पर्व है- गंगा दशहरा। मनुष्यों को मुक्ति देने वाली गंगा नदी अतुलनीय हैं। संपूर्ण विश्व में इसे सबसे पवित्र नदी माना जाता है। राजा [[भगीरथ]] ने इसके लिए वर्षो तक तपस्या की थी। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा धरती पर आई। इससे न केवल सूखा और निर्जीव क्षेत्र उर्वर बन गया, बल्कि चारों ओर हरियाली भी छा गई थी। गंगा-दशहरा पर्व मनाने की परंपरा इसी समय से आरंभ हुई थी। राजा भगीरथ की गंगा को पृथ्वी पर लाने की कोशिशों के कारण इस नदी का एक नाम भागीरथी भी है।
 
   
 
   
'''<u>अच्छे योग</u>'''  
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==गंगा स्नान की महत्त्वता==
 
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[[भविष्य पुराण]] में लिखा हुआ है कि जो मनुष्य गंगा दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार '''ओम नमो भगवती हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा।''' इस स्तोत्र को पढ़ता है, चाहे वो दरिद्र हो, असमर्थ हो वह भी गंगा की पूजा कर पूर्ण फल को पाता है। यदि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन [[मंगलवार]] हो तथा [[हस्त नक्षत्र]] तिथि हो तो यह सब पापों को हरने वाली होती है। [[वराह पुराण]] में लिखा है कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी बुधवारी में हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थी। वह दस पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं।  
यदि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन मंगलवार हो तथा हस्त नक्षत्र युता तिथि हो तो यह सब पापों को हरनेवाली होती है। [[वराह पुराण]] में लिखा है कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी बुधवारी में हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थी। वह दस पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं।  
 
  
==गंगाजी का जन्मदिन==
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==गंगा का जन्मदिन==
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगाजी का आगमन हुआ था। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की यह दशमी तो एक प्रकार से गंगाजी का जन्मदिन ही है। इस दशमी को गंगा दशहरा कहा जाता है। स्कन्दपुराण, [[वाल्मीकि रामायण]] आदि ग्रंथों में गंगा अवतरण की कथा वर्णित है। आज ही के दिन महाराज भागीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगाजी आई थीं। पापमोचनी, स्वर्ग की नसैनी गंगाजी का स्नान एवं पूजन तो जब मिल जाए तब ही पुण्यदायक है। प्रत्येक [[अमावस्या]] एवं अन्य पर्वों पर भक्तगण दूर-दूर से आकर गंगा जी में स्नान करते हैं।  
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगाजी का आगमन हुआ था। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की यह दशमी तो एक प्रकार से गंगाजी का जन्मदिन ही है। इस दशमी को गंगा दशहरा कहा जाता है। [[स्कन्दपुराण]], [[वाल्मीकि रामायण]] आदि ग्रंथों में गंगा अवतरण की कथा वर्णित है। आज ही के दिन महाराज भागीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगाजी आई थीं। पापमोचनी, स्वर्ग की नसैनी गंगाजी का स्नान एवं पूजन तो जब मिल जाए तब ही पुण्यदायक है। प्रत्येक [[अमावस्या]] एवं अन्य पर्वों पर भक्तगण दूर-दूर से आकर गंगा जी में स्नान करते हैं।  
 
==संवत्सर का मुख==
 
==संवत्सर का मुख==
यह दिन संवत्सर का मुख माना गया है। इसलिए गंगा स्नान करके दूध, बताशा, जल, रोली, नारियल, धूप, दीप से पूजन करके दान देना चाहिए। इस दिन गंगा, [[शिव]], [[ब्रह्मा]], [[सूर्य देवता]], [[भागीरथी]] तथा [[हिमालय]] की प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन गंगा आदि का स्नान, अन्न-वस्त्रादि का दान, जप-तप, उपासना और उपवास किया जाता है। इससे दस प्रकार के पापों से छुटकारा मिलता है। यदि इस दिन
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यह दिन संवत्सर का मुख माना गया है। इसलिए गंगा स्नान करके [[दूध]], बताशा, [[जल]], रोली, [[नारियल]], धूप, दीप से पूजन करके दान देना चाहिए। इस दिन गंगा, [[शिव]], [[ब्रह्मा]], [[सूर्य देवता]], [[भागीरथी]] तथा [[हिमालय]] की प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन गंगा आदि का स्नान, अन्न-वस्त्रादि का दान, जप-तप, उपासना और उपवास किया जाता है। इससे दस प्रकार के पापों से छुटकारा मिलता है। इस दिन नीचे दिये गये दस योग हो तो यह अपूर्व योग है और महाफलदायक होता है। यदि ज्येष्ठा अधिकमास हो तो स्नान, दान, तप, व्रतादि मलमास में करने से ही अधिक फल प्राप्त होता है। इन दस योगों में मनुष्य स्नान करके सब पापों से छूट जाता है।
'''<u>दस योग</u>'''
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;दस योग
*ज्येष्ठ मास
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*[[ज्येष्ठ मास]]
*शुक्ल पक्ष
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*[[शुक्ल पक्ष]]
*बुधवार
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*[[बुधवार]]
 
[[चित्र:Haridwar2.jpg|[[गंगा नदी]], [[हरिद्वार]]<br /> Ganga River, Haridwar|thumb]]
 
[[चित्र:Haridwar2.jpg|[[गंगा नदी]], [[हरिद्वार]]<br /> Ganga River, Haridwar|thumb]]
*हस्त नक्षत्र
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*[[हस्त नक्षत्र]]
 
*गर
 
*गर
 
*आनंद
 
*आनंद
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*वृषभ
 
*वृषभ
 
*सूर्य   
 
*सूर्य   
हो तो यह अपूर्व योग है और महाफलदायक होता है। यदि ज्येष्ठा अधिकमास हो तो स्नान, दान, तप, व्रतादि मलमास में करने से ही अधिक फल प्राप्त होता है। इन दस योगों में मनुष्य स्नान करके सब पापों से छूट जाता है।
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==धार्मिक मान्यताएँ==  
==मान्यता==  
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ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को [[सोमवार]] तथा हस्त नक्षत्र होने पर यह तिथि घोर पापों को नष्ट करने वाली मानी गई है। हस्त रक्षत्र में बुधवार के दिन गंगावतरण हुआ था, इसलिए यह तिथि अधिक महत्त्वूपर्ण है। गंगाजी की मान्यता हिन्दू ग्रंथों में बहुत है और यह भारतवर्ष की परम पवित्र लोकपावनी नदी मानी जाती है। इस दिन लाखों लोग दूर-दूर से आकर गंगा की पवित्र जलधारा में स्नान करते हैं बहुत से स्थानों में इस दिन शर्बत की प्याऊ लगाई जाती है, जहाँ हज़ारों नर-नारी शीतल शर्बत पीकर ग्रीष्म ऋतु में अपने [[हृदय]] को शीतल करते हैं।  
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को सोमवार तथा हस्त नक्षत्र होने पर यह तिथि घोर पापों को नष्ट करने वाली मानी गई है। हस्त रक्षत्र में बुधवार के दिन गंगावतरण हुआ था, इसलिए यह तिथि अधिक महत्त्वूपर्ण है। गंगाजी की मान्यता हिन्दू ग्रंथों में बहुत है और यह भारतवर्ष की परम पवित्र लोकपावनी नदी मानी जाती है। इस दिन लाखों लोग दूर-दूर से आकर गंगा की पवित्र जलधारा में स्नान करते हैं बहुत से स्थानों में इस दिन शर्बत की प्याऊ लगाई जाती है, जहाँ हज़ारों नर-नारी शीतल शर्बत पीकर ग्रीष्म ऋतु में अपने हृदय को शीतल करते हैं।  
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*आज के दिन गंगाजी के विभिन्न तटों और घाटों पर तो बड़े-बड़े मेले लगते ही हैं, अन्य पवित्र नदियों में भी लाखों व्यक्ति स्नान करते हैं। सम्पूर्ण [[भारत]] में पवित्र नदियों में स्नान के विशिष्ट पर्व के रूप में मनाया जाता है यह गंगा दशहरा।  
*आज के दिन गंगाजी के विभिन्न तटों और घाटों पर तो बड़े-बड़े मेले लगते ही हैं, अन्य पवित्र पदियों में भी लाखों व्यक्ति स्नान करते हैं। सम्पूर्ण भारत में पवित्र नदियों में स्नान के विशिष्ट पर्व के रूप में मनाया जाता है यह गंगा दशहरा।  
 
 
*आज के दिन दान देने का भी विशिष्ट महत्त्व है। यह मौसम भरपूर गर्मी का होता है, अत: छतरी, वस्त्र, जूते-चप्पल आदि दान में दिए जाते हैं।  
 
*आज के दिन दान देने का भी विशिष्ट महत्त्व है। यह मौसम भरपूर गर्मी का होता है, अत: छतरी, वस्त्र, जूते-चप्पल आदि दान में दिए जाते हैं।  
*आज के दिन यदि गंगाजी अथवा अन्य किसी पवित्र नदी पर सपरिवार स्नान हेतु जाया जा सके तब तो सर्वश्रेष्ठ है, यदि संभव न हो तब घर पर ही गंगाजली को सम्मुख रखकर गंगाजी की पूजा-आराधरा कर ली जाती है। *इस दिन जप-तप, दान, व्रत, उपवास और गंगाजी की पूजा करने पर सभी पाप जड़ से कट जाते हैं- ऐसी मान्यता है।  
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*आज के दिन यदि गंगाजी अथवा अन्य किसी पवित्र नदी पर सपरिवार स्नान हेतु जाया जा सके तब तो सर्वश्रेष्ठ है, यदि संभव न हो तब घर पर ही गंगाजली को सम्मुख रखकर गंगाजी की पूजा-आराधरा कर ली जाती है।  
*अनेक परिवारों में दरवाजे पर पाँच पत्थर रखकर पाँच पीर पूजे जाते हैं। इसी प्रकार परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से सवा सेर चूरमा बनाकर साधुओं, फ़कीरों और ब्राह्मणों में बांटने का भी रिवाज है। ब्राह्मणों को बड़ी मात्रा में अनाज को दान के रूप में आज के दिन दिया जाता है। आज ही के दिन आम खाने और आम दान करने को भी विशिष्ट महत्त्व दिया जाता है।
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*इस दिन जप-तप, दान, व्रत, उपवास और गंगाजी की पूजा करने पर सभी पाप जड़ से कट जाते हैं- ऐसी मान्यता है। अनेक परिवारों में दरवाजे पर पाँच पत्थर रखकर पाँच पीर पूजे जाते हैं। इसी प्रकार [[परिवार]] के प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से सवा सेर चूरमा बनाकर साधुओं, फ़कीरों और ब्राह्मणों में बांटने का भी रिवाज है। ब्राह्मणों को बड़ी मात्रा में अनाज को दान के रूप में आज के दिन दिया जाता है।  
*दशहरा के दिन दशाश्वमेध में दस बार स्नान करके शिवलिंग का दस संख्या के गंध, पुष्प, दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन करके रात्रि को जागरण करने से अनंत फल प्राप्त होता है। इसी दिन गंगा पूजन का भी विशिष्ट महत्त्व है। इस दिन विधि-विधान से गंगाजी का पूजन करके दस सेर तिल, दस सेर जौ और दस सेर गेंहू दस ब्राह्मणों को दान दें। परदारा और परद्रव्यादि से दूर रहें तथा ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ करके दशमी तक एकोत्तर-वृद्धि से दशहरा स्रोत का पाठ करें। इससे सब प्रकार के पापों का समूल नाश हो जाता है और दुर्लभ सम्पत्ति प्राप्त होती है।  
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*आज ही के दिन [[आम]] खाने और आम दान करने को भी विशिष्ट महत्त्व दिया जाता है।
==कथा==
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*दशहरा के दिन दशाश्वमेध में दस बार स्नान करके शिवलिंग का दस संख्या के गंध, पुष्प, दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन करके रात्रि को जागरण करने से अनंत फल प्राप्त होता है। इसी दिन गंगा पूजन का भी विशिष्ट महत्त्व है। इस दिन विधि-विधान से गंगाजी का पूजन करके दस सेर तिल, दस सेर जौ और दस सेर गेंहू दस ब्राह्मणों को दान दें। परदारा और परद्रव्यादि से दूर रहें तथा ज्येष्ठ शुक्ल [[प्रतिपदा]] से प्रारम्भ करके दशमी तक एकोत्तर-वृद्धि से दशहरा स्तोत्र का पाठ करें। इससे सब प्रकार के पापों का समूल नाश हो जाता है और दुर्लभ सम्पत्ति प्राप्त होती है।  
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==पौराणिक कथा==
 
[[चित्र:Haridwar1.jpg|[[गंगा नदी]], [[हरिद्वार]]<br /> Ganga River, Haridwar|thumb]]
 
[[चित्र:Haridwar1.jpg|[[गंगा नदी]], [[हरिद्वार]]<br /> Ganga River, Haridwar|thumb]]
प्राचीन काल में अयोध्या में [[सगर]] नाम के महाप्रतापी राजा राज्य करते थे। उन्होंने सातों समुद्रों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया। उनके केशिनी तथा सुमति नामक दो रानियाँ थीं। पहली रानी के एक पुत्र असमंजस का उल्लेख मिलता है, परंतु दूसरी रानी सुमति के साठ हज़ार पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया और यज्ञ पूर्ति के लिए एक घोड़ा छोड़ा। [[इंद्र]] ने उस यज्ञ को भंग करने के लिए यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध आए। राजा ने उसे खोजने के लिए अपने साठ हज़ार पुत्रों को भेजा। सारा भूमण्डल छान मारा फिर भी अश्व नहीं मिला। फिर अश्व को खोजते-खोजते जब [[कपिल मुनि]] के आश्रम में पहुँचे तो वहाँ उन्होंने देखा कि साक्षात भगवान 'महर्षि कपिल' के रूप में तपस्या कर रहे हैं और उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। सगर के पुत्र उन्हें देखकर 'चोर-चोर' शब्द करने लगे। इससे महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्योंही महर्षि ने अपने नेत्र खोले त्योंही सब जलकर भस्म हो गए।  
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प्राचीन काल में अयोध्या में [[सगर]] नाम के महाप्रतापी राजा राज्य करते थे। उन्होंने सातों समुद्रों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया। उनके केशिनी तथा सुमति नामक दो रानियाँ थीं। पहली रानी के एक पुत्र [[असमंजस]] का उल्लेख मिलता है, परंतु दूसरी रानी सुमति के साठ हज़ार पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने [[अश्वमेध यज्ञ]] किया और यज्ञ पूर्ति के लिए एक घोड़ा छोड़ा। [[इंद्र]] ने उस यज्ञ को भंग करने के लिए यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया और उसे [[कपिल मुनि]] के आश्रम में बांध आए। राजा ने उसे खोजने के लिए अपने साठ हज़ार पुत्रों को भेजा। सारा भूमण्डल छान मारा फिर भी अश्व नहीं मिला। फिर अश्व को खोजते-खोजते जब कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचे तो वहाँ उन्होंने देखा कि साक्षात भगवान 'महर्षि कपिल' के रूप में तपस्या कर रहे हैं और उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। सगर के पुत्र उन्हें देखकर 'चोर-चोर' शब्द करने लगे। इससे महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने नेत्र खोले त्यों ही सब जलकर भस्म हो गए। अपने पितृव्य चरणों को खोजता हुआ राजा सगर का पौत्र अंशुमान जब मुनि के आश्रम में पहुँचा तो महात्मा गरुड़ ने भस्म होने का सारा वृतांत सुनाया। गरुड़ जी ने यह भी बताया- 'यदि इन सबकी मुक्ति चाहते हो तो गंगाजी को स्वर्ग से धरती पर लाना पड़ेगा। इस समय अश्व को ले जाकर अपने पितामह के यज्ञ को पूर्ण कराओ, उसके बाद यह कार्य करना।'
 
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;भागीरथ की तपस्या
अपने पितृव्य चरणों को खोजता हुआ राजा सगर का पौत्र अंशुमान जब मुनि के आश्रम में पहुँचा तो महात्मा गरूड़ ने भस्म होने का सारा वृतांत सुनाया। गरूड़ जी ने यह भी बताया- 'यदि इन सबकी मुक्ति चाहते हो तो गंगाजी को स्वर्ग से धरती पर लाना पड़ेगा। इस समय अश्व को ले जाकर अपने पितामह के यज्ञ को पूर्ण कराओ, उसके बाद यह कार्य करना।'
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[[अंशुमान]] ने घोड़े सहित यज्ञमण्डप पर पहुँचकर सगर से सब वृतांत कह सुनाया। महाराज सगर की मृत्यु के उपरान्त [[अंशुमान]] और उनके पुत्र [[दिलीप]] जीवन पर्यन्त तपस्या करके भी गंगाजी को मृत्युलोक में ला न सके। सगर के वंश में अनेक राजा हुए सभी ने साठ हज़ार पूर्वजों की भस्मी के पहाड़ को गंगा के प्रवाह के द्वारा पवित्र करने का प्रयत्न किया किंतु वे सफल न हुए। अंत में महाराज दिलीप के पुत्र [[भागीरथ]] ने गंगाजी को इस लोक में लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या की। इस प्रकार तपस्या करते-करते कई वर्ष बीत गए। उनके तप से प्रसन्न होकर [[ब्रह्माजी]] ने वर मांगने को कहा तो भागीरथ ने 'गंगा' की मांग की।  
 
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;गंगा का अहंकार
[[अंशुमान]] ने घोड़े सहित यज्ञमण्डप पर पहुँचकर सगर से सब वृतांत कह सुनाया। महाराज सगर की मृत्यु के उपरान्त अंशुमान और उनके पुत्र दिलीप जीवन पर्यन्त तपस्या करके भी गंगाजी को मृत्युलोक में ला न सके। सगर के वंश में अनेक राजा हुए सभी ने साठ हज़ार पूर्वजों की भस्मी के पहाड़ को गंगा के प्रवाह के द्वारा पवित्र करने का प्रयत्न किया किंतु वे सफल न हुए।  
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भागीरथ के गंगा मांगने पर ब्रह्माजी ने कहा- 'राजन! तुम गंगा को [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर तो ले जाना चाहते हो? परंतु गंगाजी के वेग को सम्भालेगा कौन? क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी?' ब्रह्माजी ने आगे कहा-' भूलोक में गंगा का भार एवं वेग संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।' महाराज भागीरथ ने वैसा ही किया। एक अंगूठे के बल खड़ा होकर भगवान शंकर की आराधना की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमण्डल से छोड़ा और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट कर जटाएँ बांध लीं। गंगाजी देवलोक से छोड़ी गईं और शंकर जी की जटा में गिरते ही विलीन हो गईं। गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका।  
अंत में महाराज दिलीप के पुत्र भागीरथ ने गंगाजी को इस लोक में लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या की। इस प्रकार तपस्या करते-करते कई वर्ष बीत गए। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा तो भागीरथ ने 'गंगा' की मांग की।  
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गंगा को ऐसा अहंकार था कि मैं शंकर की जटाओं को भेदकर रसातल में चली जाऊंगी। [[पुराण|पुराणों]] में ऐसा उल्लेख मिलता है कि गंगा शंकर जी की जटाओं में कई वर्षों तक भ्रमण करती रहीं लेकिन निकलने का कहीं मार्ग ही न मिला।  
 
 
इस पर ब्रह्माजी ने कहा- 'राजन! तुम गंगा को [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर तो ले जाना चाहते हो? परंतु गंगाजी के वेग को सम्भालेगा कौन? क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी?' ब्रह्माजी ने आगे कहा-' भूलोक में गंगा का भार एवं वेग संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।'
 
महाराज भागीरथ ने वैसा ही किया। एक अंगूठे के बल खड़ा होकर भगवान शंकर की आराधना की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमण्डल से छोड़ा और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट कर जटाएँ बांध लीं। गंगाजी देवलोक से छोड़ी गईं और शंकर जी की जटा में गिरते ही विलीन हो गईं। गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका।  
 
गंगा को ऐसा अहंकार था कि मैं शंकर की जटाओं को भेदकर रसातल में चली जाऊंगी। पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि गंगा शंकर जी की जटाओं में कई वर्षों तक भ्रमण करती रहीं लेकिन निकलने का कहीं मार्ग ही न मिला।  
 
 
 
अब महाराज भागीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की प्रसन्नतार्थ घोर तप शुरू किया। अनुनय-विनय करने पर शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूटकर गंगाजी हिमालय में ब्रह्माजी के द्वारा निर्मित बिन्दुसार सर में गिरी, उसी समय इनकी सात धाराएँ हो गईं। आगे-आगे भागीरथ दिव्य रथ पर चल रहे थे, पीछे-पीछे सातवीं धारा गंगा की चल रही थी।
 
  
पृथ्वी पर गंगाजी के आते ही हाहाकार मच गया। जिस रास्ते से गंगाजी जा रही थीं, उसी मार्ग में ऋषिराज जहु का आश्रम तथा तपस्या स्थल पड़ता था। तपस्या में विघ्न समझकर वे गंगाजी को पी गए। फिर देवताओं के प्रार्थना करने पर उन्हें पुन: जांघ से निकाल दिया। तभी से ये जाह्नवी कहलाईं।  
+
अब महाराज भागीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की प्रसन्नतार्थ घोर तप शुरू किया। अनुनय-विनय करने पर शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूटकर गंगाजी [[हिमालय]] में ब्रह्माजी के द्वारा निर्मित बिन्दुसार सर में गिरी, उसी समय इनकी सात धाराएँ हो गईं। आगे-आगे भागीरथ दिव्य रथ पर चल रहे थे, पीछे-पीछे सातवीं धारा गंगा की चल रही थी।
 +
;पृथ्वी पर गंगाजी
 +
पृथ्वी पर गंगाजी के आते ही हाहाकार मच गया। जिस रास्ते से गंगाजी जा रही थीं, उसी मार्ग में ऋषिराज जहु का आश्रम तथा तपस्या स्थल पड़ता था। तपस्या में विघ्न समझकर वे गंगाजी को पी गए। फिर [[देवता|देवताओं]] के प्रार्थना करने पर उन्हें पुन: जांघ से निकाल दिया। तभी से ये जाह्नवी कहलाईं।  
  
 
इस प्रकार अनेक स्थलों का तरन-तारन करती हुई जाह्नवी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचकर सगर के साठ हज़ार पुत्रों के भस्मावशेष को तारकर उन्हें मुक्त किया। उसी समय ब्रह्माजी ने प्रकट होकर भागीरथ के कठिन तप तथा सगर के साठ हज़ार पुत्रों के अमर होने का वर दिया। साथ ही यह भी कहा- 'तुम्हारे ही नाम पर गंगाजी का नाम भागीरथी होगा। अब तुम [[अयोध्या]] में जाकर राज-काज संभालों।' ऐसा कहकर ब्रह्माजी अंतर्धान हो गए।  
 
इस प्रकार अनेक स्थलों का तरन-तारन करती हुई जाह्नवी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचकर सगर के साठ हज़ार पुत्रों के भस्मावशेष को तारकर उन्हें मुक्त किया। उसी समय ब्रह्माजी ने प्रकट होकर भागीरथ के कठिन तप तथा सगर के साठ हज़ार पुत्रों के अमर होने का वर दिया। साथ ही यह भी कहा- 'तुम्हारे ही नाम पर गंगाजी का नाम भागीरथी होगा। अब तुम [[अयोध्या]] में जाकर राज-काज संभालों।' ऐसा कहकर ब्रह्माजी अंतर्धान हो गए।  
 
इस प्रकार भागीरथ पृथ्वी पर गंगावतरण करके बड़े भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। भागीरथ पुत्र लाभ प्राप्त कर तथा सुखपूर्वक राज्य भोगकर परलोक गमन कर गए। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भागीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, वरन मुक्ति भी देती है।
 
इस प्रकार भागीरथ पृथ्वी पर गंगावतरण करके बड़े भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। भागीरथ पुत्र लाभ प्राप्त कर तथा सुखपूर्वक राज्य भोगकर परलोक गमन कर गए। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भागीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, वरन मुक्ति भी देती है।
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{पर्व और त्योहार}}
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{{पर्व और त्योहार}}{{व्रत और उत्सव}}
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[[Category:संस्कृति कोश]]
 
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[[Category:पर्व और त्योहार]]
 
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Revision as of 09:31, 31 May 2012

ganga dashahara
anuyayi hindoo, bharatiy, bharatiy pravasi
prarambh pauranik kal
tithi jyeshth shukl dashami
dharmik manyata jyeshth shukl dashami ko hast nakshatr mean svarg se gangaji ka agaman hua tha.
sanbandhit lekh ganga, bhagirath, shiv, brahma, sagar
any janakari is din ganga snan karake doodh, batasha, jal, roli, nariyal, dhoop, dip se poojan karake dan dena chahie.

ganga dashahara hinduoan ka ek pramukh tyohar hai. jyeshth shukla dashami ko dashahara kahate haian. isamean snan, dan, roopatmak vrat hota hai. skand puran mean likha hua hai ki, jyeshth shukla dashami sanvatsaramukhi mani gee hai isamean snan aur dan to vishesh roop se karean. kisi bhi nadi par jakar ardhy (poo‍jadik) evamh tilodak (tirth prapti nimittak tarpan) avashy karean. aisa karane vala mahapatakoan ke barabar ke das papoan se chhoot jata hai. jyeshth shukl paksh, dashami ko gangavataran ka din mandiroan evan sarovaroan mean snan kar pavitrata ke sath manaya jata hai. is din mathura mean patangabazi ka vishesh ayojan hota hai.

ganga ka prithvi par agaman

sabase pavitr nadi ganga ke prithvi par ane ka parv hai- ganga dashahara. manushyoan ko mukti dene vali ganga nadi atulaniy haian. sanpoorn vishv mean ise sabase pavitr nadi mana jata hai. raja bhagirath ne isake lie varsho tak tapasya ki thi. jyeshth shukl dashami ke din ganga dharati par aee. isase n keval sookha aur nirjiv kshetr urvar ban gaya, balki charoan or hariyali bhi chha gee thi. ganga-dashahara parv manane ki paranpara isi samay se aranbh huee thi. raja bhagirath ki ganga ko prithvi par lane ki koshishoan ke karan is nadi ka ek nam bhagirathi bhi hai.

ganga snan ki mahattvata

bhavishy puran mean likha hua hai ki jo manushy ganga dashahara ke din ganga ke pani mean kh da hokar das bar om namo bhagavati hili hili mili mili gange maan pavay pavay svaha. is stotr ko padhata hai, chahe vo daridr ho, asamarth ho vah bhi ganga ki pooja kar poorn phal ko pata hai. yadi jyeshth shukl dashami ke din mangalavar ho tatha hast nakshatr tithi ho to yah sab papoan ko harane vali hoti hai. varah puran mean likha hai ki jyeshth shukl dashami budhavari mean hast nakshatr mean shreshth nadi svarg se avatirn huee thi. vah das papoan ko nasht karati hai. is karan us tithi ko dashahara kahate haian.

ganga ka janmadin

pauranik manyataoan ke anusar jyeshth shukl dashami ko hast nakshatr mean svarg se gangaji ka agaman hua tha. jyeshth mas ke shukl paksh ki yah dashami to ek prakar se gangaji ka janmadin hi hai. is dashami ko ganga dashahara kaha jata hai. skandapuran, valmiki ramayan adi granthoan mean ganga avataran ki katha varnit hai. aj hi ke din maharaj bhagirath ke kathor tap se prasann hokar svarg se prithvi par gangaji aee thian. papamochani, svarg ki nasaini gangaji ka snan evan poojan to jab mil jae tab hi punyadayak hai. pratyek amavasya evan any parvoan par bhaktagan door-door se akar ganga ji mean snan karate haian.

sanvatsar ka mukh

yah din sanvatsar ka mukh mana gaya hai. isalie ganga snan karake doodh, batasha, jal, roli, nariyal, dhoop, dip se poojan karake dan dena chahie. is din ganga, shiv, brahma, soory devata, bhagirathi tatha himalay ki pratima banakar poojan karane se vishesh phal prapt hota hai. is din ganga adi ka snan, ann-vastradi ka dan, jap-tap, upasana aur upavas kiya jata hai. isase das prakar ke papoan se chhutakara milata hai. is din niche diye gaye das yog ho to yah apoorv yog hai aur mahaphaladayak hota hai. yadi jyeshtha adhikamas ho to snan, dan, tap, vratadi malamas mean karane se hi adhik phal prapt hota hai. in das yogoan mean manushy snan karake sab papoan se chhoot jata hai.

das yog

[[chitr:Haridwar2.jpg|ganga nadi, haridvar
Ganga River, Haridwar|thumb]]

dharmik manyataean

jyeshth shukl dashami ko somavar tatha hast nakshatr hone par yah tithi ghor papoan ko nasht karane vali mani gee hai. hast rakshatr mean budhavar ke din gangavataran hua tha, isalie yah tithi adhik mahattvooparn hai. gangaji ki manyata hindoo granthoan mean bahut hai aur yah bharatavarsh ki param pavitr lokapavani nadi mani jati hai. is din lakhoan log door-door se akar ganga ki pavitr jaladhara mean snan karate haian bahut se sthanoan mean is din sharbat ki pyaoo lagaee jati hai, jahaan hazaroan nar-nari shital sharbat pikar grishm rritu mean apane hriday ko shital karate haian.

  • aj ke din gangaji ke vibhinn tatoan aur ghatoan par to b de-b de mele lagate hi haian, any pavitr nadiyoan mean bhi lakhoan vyakti snan karate haian. sampoorn bharat mean pavitr nadiyoan mean snan ke vishisht parv ke roop mean manaya jata hai yah ganga dashahara.
  • aj ke din dan dene ka bhi vishisht mahattv hai. yah mausam bharapoor garmi ka hota hai, at: chhatari, vastr, joote-chappal adi dan mean die jate haian.
  • aj ke din yadi gangaji athava any kisi pavitr nadi par saparivar snan hetu jaya ja sake tab to sarvashreshth hai, yadi sanbhav n ho tab ghar par hi gangajali ko sammukh rakhakar gangaji ki pooja-aradhara kar li jati hai.
  • is din jap-tap, dan, vrat, upavas aur gangaji ki pooja karane par sabhi pap j d se kat jate haian- aisi manyata hai. anek parivaroan mean daravaje par paanch patthar rakhakar paanch pir pooje jate haian. isi prakar parivar ke pratyek vyakti ke hisab se sava ser choorama banakar sadhuoan, fakiroan aur brahmanoan mean baantane ka bhi rivaj hai. brahmanoan ko b di matra mean anaj ko dan ke roop mean aj ke din diya jata hai.
  • aj hi ke din am khane aur am dan karane ko bhi vishisht mahattv diya jata hai.
  • dashahara ke din dashashvamedh mean das bar snan karake shivaliang ka das sankhya ke gandh, pushp, dip, naivedy aur phal adi se poojan karake ratri ko jagaran karane se anant phal prapt hota hai. isi din ganga poojan ka bhi vishisht mahattv hai. is din vidhi-vidhan se gangaji ka poojan karake das ser til, das ser jau aur das ser geanhoo das brahmanoan ko dan dean. paradara aur paradravyadi se door rahean tatha jyeshth shukl pratipada se prarambh karake dashami tak ekottar-vriddhi se dashahara stotr ka path karean. isase sab prakar ke papoan ka samool nash ho jata hai aur durlabh sampatti prapt hoti hai.

pauranik katha

[[chitr:Haridwar1.jpg|ganga nadi, haridvar
Ganga River, Haridwar|thumb]] prachin kal mean ayodhya mean sagar nam ke mahapratapi raja rajy karate the. unhoanne satoan samudroan ko jitakar apane rajy ka vistar kiya. unake keshini tatha sumati namak do raniyaan thian. pahali rani ke ek putr asamanjas ka ullekh milata hai, parantu doosari rani sumati ke sath hazar putr the. ek bar raja sagar ne ashvamedh yajn kiya aur yajn poorti ke lie ek gho da chho da. iandr ne us yajn ko bhang karane ke lie yajniy ashv ka apaharan kar liya aur use kapil muni ke ashram mean baandh ae. raja ne use khojane ke lie apane sath hazar putroan ko bheja. sara bhoomandal chhan mara phir bhi ashv nahian mila. phir ashv ko khojate-khojate jab kapil muni ke ashram mean pahuanche to vahaan unhoanne dekha ki sakshat bhagavan 'maharshi kapil' ke roop mean tapasya kar rahe haian aur unhian ke pas maharaj sagar ka ashv ghas char raha hai. sagar ke putr unhean dekhakar 'chor-chor' shabd karane lage. isase maharshi kapil ki samadhi toot gee. jyoan hi maharshi ne apane netr khole tyoan hi sab jalakar bhasm ho ge. apane pitrivy charanoan ko khojata hua raja sagar ka pautr aanshuman jab muni ke ashram mean pahuancha to mahatma garu d ne bhasm hone ka sara vritaant sunaya. garu d ji ne yah bhi bataya- 'yadi in sabaki mukti chahate ho to gangaji ko svarg se dharati par lana p dega. is samay ashv ko le jakar apane pitamah ke yajn ko poorn karao, usake bad yah kary karana.'

bhagirath ki tapasya

aanshuman ne gho de sahit yajnamandap par pahuanchakar sagar se sab vritaant kah sunaya. maharaj sagar ki mrityu ke uparant aanshuman aur unake putr dilip jivan paryant tapasya karake bhi gangaji ko mrityulok mean la n sake. sagar ke vansh mean anek raja hue sabhi ne sath hazar poorvajoan ki bhasmi ke paha d ko ganga ke pravah ke dvara pavitr karane ka prayatn kiya kiantu ve saphal n hue. aant mean maharaj dilip ke putr bhagirath ne gangaji ko is lok mean lane ke lie gokarn tirth mean jakar kathor tapasya ki. is prakar tapasya karate-karate kee varsh bit ge. unake tap se prasann hokar brahmaji ne var maangane ko kaha to bhagirath ne 'ganga' ki maang ki.

ganga ka ahankar

bhagirath ke ganga maangane par brahmaji ne kaha- 'rajan! tum ganga ko prithvi par to le jana chahate ho? parantu gangaji ke veg ko sambhalega kaun? kya tumane prithvi se poochha hai ki vah ganga ke bhar tatha veg ko sanbhal paegi?' brahmaji ne age kaha-' bhoolok mean ganga ka bhar evan veg sanbhalane ki shakti keval bhagavan shankar mean hai. isalie uchit yah hoga ki ganga ka bhar evan veg sanbhalane ke lie bhagavan shiv ka anugrah prapt kar liya jae.' maharaj bhagirath ne vaisa hi kiya. ek aangoothe ke bal kh da hokar bhagavan shankar ki aradhana ki. unaki kathor tapasya se prasann hokar brahmaji ne ganga ki dhara ko apane kamandal se chho da aur bhagavan shiv ne prasann hokar ganga ki dhara ko apani jataoan mean samet kar jataean baandh lian. gangaji devalok se chho di geean aur shankar ji ki jata mean girate hi vilin ho geean. ganga ko jataoan se bahar nikalane ka path nahian mil saka. ganga ko aisa ahankar tha ki maian shankar ki jataoan ko bhedakar rasatal mean chali jaooangi. puranoan mean aisa ullekh milata hai ki ganga shankar ji ki jataoan mean kee varshoan tak bhraman karati rahian lekin nikalane ka kahian marg hi n mila.

ab maharaj bhagirath ko aur bhi adhik chianta huee. unhoanne ek bar phir bhagavan shiv ki prasannatarth ghor tap shuroo kiya. anunay-vinay karane par shiv ne prasann hokar ganga ki dhara ko mukt karane ka varadan diya. is prakar shivaji ki jataoan se chhootakar gangaji himalay mean brahmaji ke dvara nirmit bindusar sar mean giri, usi samay inaki sat dharaean ho geean. age-age bhagirath divy rath par chal rahe the, pichhe-pichhe satavian dhara ganga ki chal rahi thi.

prithvi par gangaji

prithvi par gangaji ke ate hi hahakar mach gaya. jis raste se gangaji ja rahi thian, usi marg mean rrishiraj jahu ka ashram tatha tapasya sthal p data tha. tapasya mean vighn samajhakar ve gangaji ko pi ge. phir devataoan ke prarthana karane par unhean pun: jaangh se nikal diya. tabhi se ye jahnavi kahalaeean.

is prakar anek sthaloan ka taran-taran karati huee jahnavi ne kapil muni ke ashram mean pahuanchakar sagar ke sath hazar putroan ke bhasmavashesh ko tarakar unhean mukt kiya. usi samay brahmaji ne prakat hokar bhagirath ke kathin tap tatha sagar ke sath hazar putroan ke amar hone ka var diya. sath hi yah bhi kaha- 'tumhare hi nam par gangaji ka nam bhagirathi hoga. ab tum ayodhya mean jakar raj-kaj sanbhaloan.' aisa kahakar brahmaji aantardhan ho ge. is prakar bhagirath prithvi par gangavataran karake b de bhagyashali hue. unhoanne janamanas ko apane puny se upakrit kar diya. bhagirath putr labh prapt kar tatha sukhapoorvak rajy bhogakar paralok gaman kar ge. yugoan-yugoan tak bahane vali ganga ki dhara maharaj bhagirath ki kashtamayi sadhana ki gatha kahati hai. ganga pranimatr ko jivanadan hi nahian deti, varan mukti bhi deti hai.

tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh

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