डेविड आक्टरलोनी: Difference between revisions
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*उसने 1804 ई. में होल्कर के आक्रमण के समय [[दिल्ली]] की अत्यन्त कुशलता के साथ रक्षा की थी। इसके उपरान्त 1814-15 ई. [[गोरखा युद्ध]] में, वह उन तीन आंग्ल भारतीय सेनाओं में से एक का कमांडर था, जिसने [[नेपाल]] पर आक्रमण किया था। अन्य दो सेनाओं के कमांडर तो भाग आये, किन्तु आक्टरलोनी पश्चिम की ओर से नेपाल पर आक्रमण करके मोर्चे पर डटा रहा। | *उसने 1804 ई. में होल्कर के आक्रमण के समय [[दिल्ली]] की अत्यन्त कुशलता के साथ रक्षा की थी। इसके उपरान्त 1814-15 ई. [[गोरखा युद्ध]] में, वह उन तीन आंग्ल भारतीय सेनाओं में से एक का कमांडर था, जिसने [[नेपाल]] पर आक्रमण किया था। अन्य दो सेनाओं के कमांडर तो भाग आये, किन्तु आक्टरलोनी पश्चिम की ओर से नेपाल पर आक्रमण करके मोर्चे पर डटा रहा। | ||
*इस सफलता के पुरस्कार स्वरूप उसकी पदोन्नति कर दी गई और उसे उन समस्त अंग्रेज़ और [[भारतीय सेना|भारतीय सेनाओं]] का सर्वोच्च कमांडर नियुक्त कर दिया गया, जिन्होंने नेपाल पर आक्रमण किया था। | *इस सफलता के पुरस्कार स्वरूप उसकी पदोन्नति कर दी गई और उसे उन समस्त अंग्रेज़ और [[भारतीय सेना|भारतीय सेनाओं]] का सर्वोच्च कमांडर नियुक्त कर दिया गया, जिन्होंने नेपाल पर आक्रमण किया था। | ||
*उसने अपनी पदोन्नति को सार्थक सिद्ध कर दिया तथा कठिन युद्ध के उपरान्त नेपाल में दूर तक घुसता चला गया, यहाँ तक की उसकी राजधानी काठमांडू केवल 50 मील दूर रह गई। परिणामस्वरूप 1816 ई. में नेपाल को | *उसने अपनी पदोन्नति को सार्थक सिद्ध कर दिया तथा कठिन युद्ध के उपरान्त नेपाल में दूर तक घुसता चला गया, यहाँ तक की उसकी राजधानी काठमांडू केवल 50 मील दूर रह गई। परिणामस्वरूप 1816 ई. में नेपाल को [[सुगौली सन्धि]] करनी पड़ी। | ||
*1817-18 ई. के पेंढारी युद्ध (1817-18 ई.) में वह राजपूताने की पलटन का कमांडर था और उसने अमीर ख़ाँ को पेंढारियों से फोड़कर अंग्रेज़ों को शीघ्र विजय दिलाने में मदद की। | *1817-18 ई. के पेंढारी युद्ध (1817-18 ई.) में वह राजपूताने की पलटन का कमांडर था और उसने अमीर ख़ाँ को पेंढारियों से फोड़कर अंग्रेज़ों को शीघ्र विजय दिलाने में मदद की। | ||
*1824-26 ई. में [[बर्मी युद्ध|प्रथम बर्मा युद्ध]] छिड़ने पर उसने [[भरतपुर]] पर चढ़ाई की, जहाँ दुर्जन साल ने अल्पवयस्क राजा बलवन्तसिंह के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। किन्तु गवर्नर-जनरल ने उसे तत्क्षण वापस बुला लिया। | *1824-26 ई. में [[बर्मी युद्ध|प्रथम बर्मा युद्ध]] छिड़ने पर उसने [[भरतपुर]] पर चढ़ाई की, जहाँ दुर्जन साल ने अल्पवयस्क राजा बलवन्तसिंह के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। किन्तु गवर्नर-जनरल ने उसे तत्क्षण वापस बुला लिया। |
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- सर डेविड आक्टरलोनी (जन्म- 1758; मृत्यु- 1825 ई.) ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेवा में एक सुविख्यात सेनानायक था।
- उसने 1804 ई. में होल्कर के आक्रमण के समय दिल्ली की अत्यन्त कुशलता के साथ रक्षा की थी। इसके उपरान्त 1814-15 ई. गोरखा युद्ध में, वह उन तीन आंग्ल भारतीय सेनाओं में से एक का कमांडर था, जिसने नेपाल पर आक्रमण किया था। अन्य दो सेनाओं के कमांडर तो भाग आये, किन्तु आक्टरलोनी पश्चिम की ओर से नेपाल पर आक्रमण करके मोर्चे पर डटा रहा।
- इस सफलता के पुरस्कार स्वरूप उसकी पदोन्नति कर दी गई और उसे उन समस्त अंग्रेज़ और भारतीय सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर नियुक्त कर दिया गया, जिन्होंने नेपाल पर आक्रमण किया था।
- उसने अपनी पदोन्नति को सार्थक सिद्ध कर दिया तथा कठिन युद्ध के उपरान्त नेपाल में दूर तक घुसता चला गया, यहाँ तक की उसकी राजधानी काठमांडू केवल 50 मील दूर रह गई। परिणामस्वरूप 1816 ई. में नेपाल को सुगौली सन्धि करनी पड़ी।
- 1817-18 ई. के पेंढारी युद्ध (1817-18 ई.) में वह राजपूताने की पलटन का कमांडर था और उसने अमीर ख़ाँ को पेंढारियों से फोड़कर अंग्रेज़ों को शीघ्र विजय दिलाने में मदद की।
- 1824-26 ई. में प्रथम बर्मा युद्ध छिड़ने पर उसने भरतपुर पर चढ़ाई की, जहाँ दुर्जन साल ने अल्पवयस्क राजा बलवन्तसिंह के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। किन्तु गवर्नर-जनरल ने उसे तत्क्षण वापस बुला लिया।
- इसके थोड़े ही समय के बाद उसकी मृत्यु हो गई।
- चौरंगी के समीप कलकत्ता के मैदान में आक्टरलोनी का एक स्मारक आज भी वर्तमान में है और उसे साधारणत: मनियारमठ कहा जाता है।
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