हेनरी लुई विवियन देरोजियो: Difference between revisions
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*1826 ई. में वह [[कलकत्ता]] (वर्तमान कोलकाता) के हिन्दू कालेज में अध्यापक नियुक्त हुआ, किन्तु अप्रैल 1831 ई. में उसे इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया गया। | |||
*अपने पाँच वर्षों के अध्यापन काल में हिन्दू कालेज के छात्रों पर उसका असाधारण प्रभाव जम गया। | |||
*छात्रों के माध्यम से [[बंगाल]] के नौ-जवानों को भी उसने प्रभावित किया, जिनमें अधिकांश स्वतंत्र चिंतक बन गए और 'युवा बंगाल' के नाम से पुकारे जाने लगे। | |||
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*इससे सारे देश में हलचल मच गई और कट्टर हिन्दुओं ने इन युवकों का तीव्र विरोध किया। | |||
*नतीजा यह हुआ कि देरोजियों को हिन्दू कालेज से त्यागपत्र देने के लिए बाध्य कर दिया गया। | |||
*इसके बाद देरोजियों बहुत कम दिनों तक यहाँ रहा, लेकिन आधुनिक बंगाल के इतिहास पर उसने अपनी अमिट छाप छोड़ी। | |||
*उसकी शिक्षाओं ने आधुनिक विचारों के ऐसे युवकों का समूह खड़ा कर दिया, जो विचारों में प्रगतिशील थे और जिन्होंने न केवल धार्मिक कट्टरता का विरोध किया, वरन् बाद में प्रशासन के विरुद्ध भी आवाज़ उठायी। | |||
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हेनरी लुई विवियन देरोजियो का जन्म एक पुर्तग़ाली भारतीय परिवार में सन् 1809 ई. में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुआ था। उसने अपने पिता के कार्यालय में क्लर्क की हैसियत से कार्य करना आरम्भ किया था। बाद में वह अध्यापक और पत्रकार बन गया।
- 1826 ई. में वह कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के हिन्दू कालेज में अध्यापक नियुक्त हुआ, किन्तु अप्रैल 1831 ई. में उसे इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया गया।
- अपने पाँच वर्षों के अध्यापन काल में हिन्दू कालेज के छात्रों पर उसका असाधारण प्रभाव जम गया।
- छात्रों के माध्यम से बंगाल के नौ-जवानों को भी उसने प्रभावित किया, जिनमें अधिकांश स्वतंत्र चिंतक बन गए और 'युवा बंगाल' के नाम से पुकारे जाने लगे।
- ये लोग अपने विचारों में बहुत उग्र थे और हिन्दू समाज और धर्म की उन सभी बातों की आलोचना करते थे, जो उन्हें असंगत जान पड़ती थी।
- इससे सारे देश में हलचल मच गई और कट्टर हिन्दुओं ने इन युवकों का तीव्र विरोध किया।
- नतीजा यह हुआ कि देरोजियों को हिन्दू कालेज से त्यागपत्र देने के लिए बाध्य कर दिया गया।
- इसके बाद देरोजियों बहुत कम दिनों तक यहाँ रहा, लेकिन आधुनिक बंगाल के इतिहास पर उसने अपनी अमिट छाप छोड़ी।
- उसकी शिक्षाओं ने आधुनिक विचारों के ऐसे युवकों का समूह खड़ा कर दिया, जो विचारों में प्रगतिशील थे और जिन्होंने न केवल धार्मिक कट्टरता का विरोध किया, वरन् बाद में प्रशासन के विरुद्ध भी आवाज़ उठायी।
- भारतीय इतिहासशायद ही कभी किसी अध्यापक ने इतने कम समय में अपने छात्रों पर ऐसा व्यापक प्रभाव प्रदर्शित किया हो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 209 |
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