विलियम नॉट: Difference between revisions

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*[[ग़ज़नी]] होता हुआ विलियम नॉट [[17 सितम्बर]], 1842 ई. को [[क़ाबुल]] पहुँचा और ब्रिटिश सेनाओं की शक्ति जताता हुआ [[जलालाबाद]] होकर भारत लौटा।  
*इस प्रकार विलियम नॉट ने अफ़ग़ान युद्ध की पराजय को विजय का स्वरूप दे दिया।  
*इस प्रकार विलियम नॉट ने अफ़ग़ान युद्ध की पराजय को विजय का स्वरूप दे दिया।  
*इसके उपरान्त उसकी नियुक्ति क़ाबुल के रेजीडेण्ट के रूप में हुई और 1844 ई. में उसने भारतीय सेवा से अवकाश ग्रहण कर किया।<ref>पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-219</ref>
*इसके उपरान्त उसकी नियुक्ति क़ाबुल के रेजीडेण्ट के रूप में हुई और 1844 ई. में उसने भारतीय सेवा से अवकाश ग्रहण कर किया।


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==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 12:12, 19 April 2011

  • विलियम नॉट (1782 से 1845 ई. तक) ईस्ट इंडिया कम्पनी की बंगाल सेना में 1800 ई. में एक सैनिक पदाधिकारी होकर आया था।
  • विलियम नॉट की अतिशीघ्र पदोन्नति हुई और 1839 ई. में उसे कंदहार स्थित ब्रिटिश सेनाओं का नेतृत्व सौंपा गया।
  • आगे चलकर विलियम नॉट ने अफ़ग़ानों के आक्रमणों से कंदहार की रक्षा की।
  • मैकनाटन की हत्या के उपरान्त उसने बिना स्पष्ट आदेश के भारत लौटना अस्वीकार कर दिया, किन्तु जब 1842 ई. के जुलाई मास में लार्ड एलेनबरा ने उसे अपने मनचाहे मार्ग से लौटने की अनुमति दी, तब उसने लौटने के लिए जानबूझकर लम्बा मार्ग चुना।
  • ग़ज़नी होता हुआ विलियम नॉट 17 सितम्बर, 1842 ई. को क़ाबुल पहुँचा और ब्रिटिश सेनाओं की शक्ति जताता हुआ जलालाबाद होकर भारत लौटा।
  • इस प्रकार विलियम नॉट ने अफ़ग़ान युद्ध की पराजय को विजय का स्वरूप दे दिया।
  • इसके उपरान्त उसकी नियुक्ति क़ाबुल के रेजीडेण्ट के रूप में हुई और 1844 ई. में उसने भारतीय सेवा से अवकाश ग्रहण कर किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-219

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