सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि: Difference between revisions

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'''सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि''', 1803 ई. में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] और [[दौलतराव शिन्दे]] के बीच हुई थी, जिसके फलस्वरूप दोनों के बीच चलने वाला युद्ध समाप्त हो गया। सन्धि के अनुसार शिन्दे ने अपने दरबार में ब्रिटिश रेजीडेन्ट रखना स्वीकार कर लिया, [[बसई की सन्धि]] को स्वीकार किया, निज़ाम के ऊपर अपने सारे दावे त्याग दिए और अंग्रेज़ों की सहमति के बिना अपनी नौकरी में किसी भी विदेशी को न रखने का वचन दिया। इसके अलावा उसने [[गंगा नदी|गंगा]] और [[यमुना नदी|यमुना]] के बीच का सारा दोआब, जिसमें [[दिल्ली]] और [[आगरा]] भी सम्मिलित था, अंग्रेज़ों को सौंप दिया। इस प्रकार उत्तरी [[भारत]], दक्षिण तथा [[गुजरात]] में दौलतराव शिन्दे के समस्त राज्य पर अंग्रेज़ों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। शिन्दे ने [[राजपूताना]] के अधिकांश राज्यों की राजनीति में भी कोई हस्तक्षेप न करने का वचन दिया। इस प्रकार अर्जुन गाँव की सन्धि के द्वारा शिन्दे की स्वतंत्रता समाप्त हो गई तथा उत्तरी भारत के अधिकांश भाग में [[ब्रिटिश साम्राज्य]] की स्थापना साकार हुई।  
*'''सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि''', 1803 ई. में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] और [[दौलतराव शिन्दे]] के बीच हुई थी।
*इस सन्धि के फलस्वरूप दोनों के बीच चलने वाला युद्ध समाप्त हो गया।
*सन्धि के अनुसार शिन्दे ने अपने दरबार में ब्रिटिश रेजीडेन्ट रखना स्वीकार कर लिया और [[बसई की सन्धि]] को स्वीकार किया।
*शिन्दे ने निज़ाम के ऊपर अपने सारे दावे त्याग दिए और अंग्रेज़ों की सहमति के बिना अपनी नौकरी में किसी भी विदेशी को न रखने का वचन दिया।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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*(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-481
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Latest revision as of 11:44, 23 April 2012

  • सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि, 1803 ई. में अंग्रेज़ों और दौलतराव शिन्दे के बीच हुई थी।
  • इस सन्धि के फलस्वरूप दोनों के बीच चलने वाला युद्ध समाप्त हो गया।
  • सन्धि के अनुसार शिन्दे ने अपने दरबार में ब्रिटिश रेजीडेन्ट रखना स्वीकार कर लिया और बसई की सन्धि को स्वीकार किया।
  • शिन्दे ने निज़ाम के ऊपर अपने सारे दावे त्याग दिए और अंग्रेज़ों की सहमति के बिना अपनी नौकरी में किसी भी विदेशी को न रखने का वचन दिया।
  • इसके अलावा उसने गंगा और यमुना के बीच का सारा दोआब, जिसमें दिल्ली और आगरा भी सम्मिलित था, अंग्रेज़ों को सौंप दिए।
  • इस प्रकार उत्तरी भारत, दक्षिण तथा गुजरात में दौलतराव शिन्दे के समस्त राज्य पर अंग्रेज़ों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
  • शिन्दे ने राजपूताना के अधिकांश राज्यों की राजनीति में भी कोई हस्तक्षेप न करने का वचन दिया।
  • अर्जुनगाँव की सन्धि के द्वारा शिन्दे की स्वतंत्रता समाप्त हो गई तथा उत्तरी भारत के अधिकांश भाग में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना साकार हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 481।

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