आंग्ल-बर्मा युद्ध प्रथम: Difference between revisions

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'''प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध''' दो वर्ष (1824 से 1826 ई.) तक चला था। युद्ध का मुख्य कारण [[बर्मा]] राज्य की सीमाओं का ब्रिटिश साम्राज्य के आस-पास तक फैल जाना था, जिस कारण से [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के समक्ष एक संकट खड़ा होने का ख़तरा बड़ गया था। इस युद्ध के प्रारम्भ में अंग्रेज़ [[गवर्नर-जनरल]] [[लॉर्ड एमहर्स्ट]] ने पूर्ण अयोग्यता का प्रदर्शन किया। फिर भी अंग्रेज़ सैनिकों ने डटकर मुकाबला किया और रंगून (अब [[यांगून]]) पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया।


*बर्मा के सीमा विस्तार के फलस्वरूप दक्षिण [[बंगाल]] के चटगाँव क्षेत्र पर भी बर्मी अधिकार का ख़तरा उत्पन्न हो गया था।
*बर्मा के सीमा विस्तार के फलस्वरूप दक्षिण [[बंगाल]] के चटगाँव क्षेत्र पर भी बर्मी अधिकार का ख़तरा उत्पन्न हो गया था।
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*ब्रिटिश भारतीय सेना ने बर्मा सेना को [[आसाम]] से मारकर भगाया तथा रंगून पर चढ़ाई करके उस पर क़ब्ज़ा कर लिया।
*ब्रिटिश भारतीय सेना ने बर्मा सेना को [[आसाम]] से मारकर भगाया तथा रंगून पर चढ़ाई करके उस पर क़ब्ज़ा कर लिया।
*दोनाबू की लड़ाई में बंधुल परास्त हुआ और युद्धभूमि में अचानक रॉकेट आ लगने से वह मारा गया।
*दोनाबू की लड़ाई में बंधुल परास्त हुआ और युद्धभूमि में अचानक रॉकेट आ लगने से वह मारा गया।
*तब अंग्रेज़ों ने दक्षिणी बर्मा की राजधानी 'प्रोम' पर क़ब्ज़ा कर बर्मा सरकार को युद्ध की संधि (1826 ई.) के लिए मज़बूर कर दिया।
*तब अंग्रेज़ों ने दक्षिणी बर्मा की राजधानी 'प्रोम' पर क़ब्ज़ा कर बर्मा सरकार को 'यन्दबू की सन्धि' (1826 ई.) के लिए मजबूर कर दिया।
*संधि के अंतर्गत बर्मा ने अंग्रेज़ों को एक करोड़ रुपया हर्जाने के रूप में देना स्वीकार किया।
*संधि के अंतर्गत बर्मा ने अंग्रेज़ों को एक करोड़ रुपया हर्जाने के रूप में देना स्वीकार किया।
*[[अराकान]] और तेनासरीम के सूबे [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को सौंप दिये गये और [[मणिपुर]] को स्वाधीन राज्य के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई।
*[[अराकान]] और तेनासरीम के सूबे [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को सौंप दिये गये और [[मणिपुर]] को स्वाधीन राज्य के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई।

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प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध दो वर्ष (1824 से 1826 ई.) तक चला था। युद्ध का मुख्य कारण बर्मा राज्य की सीमाओं का ब्रिटिश साम्राज्य के आस-पास तक फैल जाना था, जिस कारण से अंग्रेज़ों के समक्ष एक संकट खड़ा होने का ख़तरा बड़ गया था। इस युद्ध के प्रारम्भ में अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल लॉर्ड एमहर्स्ट ने पूर्ण अयोग्यता का प्रदर्शन किया। फिर भी अंग्रेज़ सैनिकों ने डटकर मुकाबला किया और रंगून (अब यांगून) पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया।

  • बर्मा के सीमा विस्तार के फलस्वरूप दक्षिण बंगाल के चटगाँव क्षेत्र पर भी बर्मी अधिकार का ख़तरा उत्पन्न हो गया था।
  • इस ख़तरे से छुटकारा पाने के लिए लॉर्ड एम्सहर्स्ट की सरकार ने बर्मा के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया।
  • लॉर्ड एम्सहर्स्ट की सरकार ने, जिसने युद्ध घोषित किया था, आरम्भ में युद्ध के संचालन में पूर्ण अयोग्यता का प्रदर्शन किया।
  • उधर बर्मी सेनापति बंधुल ने युद्ध के संचालन में बड़ी योग्यता तथा रणकौशल का परिचय दिया।
  • ब्रिटिश भारतीय सेना ने बर्मा सेना को आसाम से मारकर भगाया तथा रंगून पर चढ़ाई करके उस पर क़ब्ज़ा कर लिया।
  • दोनाबू की लड़ाई में बंधुल परास्त हुआ और युद्धभूमि में अचानक रॉकेट आ लगने से वह मारा गया।
  • तब अंग्रेज़ों ने दक्षिणी बर्मा की राजधानी 'प्रोम' पर क़ब्ज़ा कर बर्मा सरकार को 'यन्दबू की सन्धि' (1826 ई.) के लिए मजबूर कर दिया।
  • संधि के अंतर्गत बर्मा ने अंग्रेज़ों को एक करोड़ रुपया हर्जाने के रूप में देना स्वीकार किया।
  • अराकान और तेनासरीम के सूबे अंग्रेज़ों को सौंप दिये गये और मणिपुर को स्वाधीन राज्य के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई।
  • आसाम, कचार और जयन्तिया में हस्तक्षेप न करने का वायदा बर्मा ने किया तथा आवा में ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखना स्वीकार कर लिया।
  • इसके अलावा बर्मा को एक व्यावसायिक संधि भी करनी पड़ी, जिसके अंतर्गत अंग्रेज़ों को बर्मा में वाणिज्य और व्यावसाय के अनिर्दिष्ट अधिकार प्राप्त हो गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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