काकोरी काण्ड: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==") |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
*[[उत्तर प्रदेश]] में [[लखनऊ]] के पास स्थित यह स्थान आधुनिक [[भारत]] में चर्चा का विषय बना। | *[[उत्तर प्रदेश]] में [[लखनऊ]] के पास स्थित यह स्थान आधुनिक [[भारत]] में चर्चा का विषय बना। [[9 अगस्त]], [[1925]] को इस स्थान पर देशभक्तों ने रेल विभाग की ले जाई जा रही संगृहीत धनराशि को लूटा। | ||
*यह घटना इतिहास में काकोरी षड्यंत्र के नाम से जानी जाती है। क्रांतिकारी [[राम प्रसाद बिस्मिल]] के नेतृत्व में 10 लोगों ने सुनियोजित कार्रवाई के तहत यह कार्य करने की योजना बनाई। उन्होंने ट्रेन के गार्ड को बंदूक की नोक पर काबू कर लिया। गार्ड के डिब्बे में लोहे की तिजोरी को तोड़कर आक्रमणकारी दल चार हजार रुपये लेकर फरार हो गए। | |||
*यह घटना इतिहास में काकोरी षड्यंत्र के नाम से जानी जाती है। | *इस डकैती में अशफाकउल्ला, [[चन्द्रशेखर आज़ाद]], राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल, मन्मथनाथ गुप्त, रामप्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे। काकोरी षड्यंत्र मुकदमें ने काफ़ी लोगों का ध्यान खींचा। इसके कारण देश का राजनीतिक वातावरण आवेशित हो गया। | ||
*इस घटना से जुड़े 43 अभियुक्तों पर मुक़दमा चलाया गया। निर्णय [[6 अप्रैल]], [[1927]] को सुनाया गया। रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशनसिंह को मृत्युदण्ड की सज़ा सुनाई गई। सचीन्द्र सान्याल को आजीवन कारावास हुआ और मन्मथनाथ गुप्त को 14 वर्षों का सश्रम कारावास दिया गया। कुछ समय बाद अशफाकउल्ला को मृत्युदण्ड दिया गया। 14 अन्य लोगों को लम्बी सज़ा सुनाई गई। दो व्यक्ति अभियोजन पक्ष के मुखबिर बन गए। चन्द्रशेखर आज़ाद को पुलिस खोजती रही। | |||
*इस डकैती में अशफाकउल्ला, [[चन्द्रशेखर आज़ाद]], राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल, मन्मथनाथ गुप्त, रामप्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे। | |||
*इस घटना से जुड़े 43 अभियुक्तों पर मुक़दमा चलाया गया। | |||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
Line 29: | Line 15: | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
[[Category: | ==संबंधित लेख== | ||
{{औपनिवेशिक काल}} | |||
[[Category:औपनिवेशिक काल]][[Category:अंग्रेज़ी शासन]][[Category:इतिहास कोश काल]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 13:46, 5 June 2011
- उत्तर प्रदेश में लखनऊ के पास स्थित यह स्थान आधुनिक भारत में चर्चा का विषय बना। 9 अगस्त, 1925 को इस स्थान पर देशभक्तों ने रेल विभाग की ले जाई जा रही संगृहीत धनराशि को लूटा।
- यह घटना इतिहास में काकोरी षड्यंत्र के नाम से जानी जाती है। क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 लोगों ने सुनियोजित कार्रवाई के तहत यह कार्य करने की योजना बनाई। उन्होंने ट्रेन के गार्ड को बंदूक की नोक पर काबू कर लिया। गार्ड के डिब्बे में लोहे की तिजोरी को तोड़कर आक्रमणकारी दल चार हजार रुपये लेकर फरार हो गए।
- इस डकैती में अशफाकउल्ला, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल, मन्मथनाथ गुप्त, रामप्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे। काकोरी षड्यंत्र मुकदमें ने काफ़ी लोगों का ध्यान खींचा। इसके कारण देश का राजनीतिक वातावरण आवेशित हो गया।
- इस घटना से जुड़े 43 अभियुक्तों पर मुक़दमा चलाया गया। निर्णय 6 अप्रैल, 1927 को सुनाया गया। रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशनसिंह को मृत्युदण्ड की सज़ा सुनाई गई। सचीन्द्र सान्याल को आजीवन कारावास हुआ और मन्मथनाथ गुप्त को 14 वर्षों का सश्रम कारावास दिया गया। कुछ समय बाद अशफाकउल्ला को मृत्युदण्ड दिया गया। 14 अन्य लोगों को लम्बी सज़ा सुनाई गई। दो व्यक्ति अभियोजन पक्ष के मुखबिर बन गए। चन्द्रशेखर आज़ाद को पुलिस खोजती रही।
|
|
|
|
|