रॉलेट एक्ट: Difference between revisions

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इस अधिनियम से सरकार वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार को स्थगित कर सकती थी। वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार ब्रिटेन में नागरिक अधिकारों का मूलभूत आधार था। रॉलेक्ट एक्ट एक झंझावत की तरह आया। युद्ध के दौरान भारतीय लोगों को जनतंत्र के विस्तार का सपना दिखाया गया था। उन्हें ब्रिटिश सरकार का यह क़दम एक क्रूर मज़ाक सा लगा।  
इस अधिनियम से सरकार वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार को स्थगित कर सकती थी। वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार ब्रिटेन में नागरिक अधिकारों का मूलभूत आधार था। रॉलेक्ट एक्ट एक झंझावत की तरह आया। युद्ध के दौरान भारतीय लोगों को जनतंत्र के विस्तार का सपना दिखाया गया था। उन्हें ब्रिटिश सरकार का यह क़दम एक क्रूर मज़ाक सा लगा।  


जनतांत्रिक अधिकारों का विकास करने के बजाय नागरिक अधिकारों पर और ज़्यादा अंकुश लगाने से देश में असंतोष की लहर सी उमड़ पड़ी। इसके परिणामस्वरूप इस अधिनियम के ख़िलाफ़ एक ज़बरदस्त आंदोलन उठ खड़ा हुआ। इस आंदोलन के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन की बाग़डोर एक नये नेता [[महात्मा गाँधी|मोहनदास करमचंद गाँधी]] ने सँभाली।
जनतांत्रिक अधिकारों का विकास करने के बजाय नागरिक अधिकारों पर और ज़्यादा अंकुश लगाने से देश में असंतोष की लहर सी उमड़ पड़ी। इसके परिणामस्वरूप इस अधिनियम के ख़िलाफ़ एक ज़बरदस्त आंदोलन उठ खड़ा हुआ। इस आंदोलन के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन की बाग़डोर एक नये नेता [[महात्मा गाँधी|मोहनदास करमचंद गाँधी]] ने सँभाली, जिन्होंने इस एक्ट के पास होने पर अंग्रेज़ी सरकार को शैतानों के नाम से पुकारा था।


==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==

Revision as of 08:11, 9 August 2011

रॉलेट एक्ट / Rowlatt Act
1919 ई. में ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट कमेटी की रिपोर्ट को क़ानून का रूप दे दिया। इस विधेयक में सरकार को राजनीतिक दृष्टि से संदेहास्पद व्यक्तियों को बिना वारंट के बन्दी बनाने, देश से निष्कासित करने, प्रेस पर नियन्त्रण रखने तथा राजनीतिक अपराधियों के विवादों की सुनवाई हेतु बिना जूरी के विशेष न्यायालयों को स्थापित करने का अधिकार प्रदान किया गया था।

केन्द्रीय विधान परिषद के सभी सदस्यों द्वारा विरोध करने के बावजूद अंग्रेज़ सरकार ने रॉलेक्ट एक्ट पारित कर दिया। इस अधिनियम से सरकार को यह अधिकार मिल गया कि वह किसी भी व्यक्ति को न्यायालय में मुक़दमा चलाये बिना अथवा दोषी सिद्ध किये बिना ही जेल में बंद कर सकती है।

इस अधिनियम से सरकार वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार को स्थगित कर सकती थी। वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार ब्रिटेन में नागरिक अधिकारों का मूलभूत आधार था। रॉलेक्ट एक्ट एक झंझावत की तरह आया। युद्ध के दौरान भारतीय लोगों को जनतंत्र के विस्तार का सपना दिखाया गया था। उन्हें ब्रिटिश सरकार का यह क़दम एक क्रूर मज़ाक सा लगा।

जनतांत्रिक अधिकारों का विकास करने के बजाय नागरिक अधिकारों पर और ज़्यादा अंकुश लगाने से देश में असंतोष की लहर सी उमड़ पड़ी। इसके परिणामस्वरूप इस अधिनियम के ख़िलाफ़ एक ज़बरदस्त आंदोलन उठ खड़ा हुआ। इस आंदोलन के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन की बाग़डोर एक नये नेता मोहनदास करमचंद गाँधी ने सँभाली, जिन्होंने इस एक्ट के पास होने पर अंग्रेज़ी सरकार को शैतानों के नाम से पुकारा था।

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