वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(''''वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट''' वाइसराय [[लॉर्ड लिटन प्र...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 8: | Line 8: | ||
*वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को 'मुंह बन्द करने वाला अधिनियम' भी कहा गया है। | *वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को 'मुंह बन्द करने वाला अधिनियम' भी कहा गया है। | ||
*इस घृणित अधिनियम को [[लॉर्ड रिपन]] ने [[1882]] ई. में रद्द कर दिया। | *इस घृणित अधिनियम को [[लॉर्ड रिपन]] ने [[1882]] ई. में रद्द कर दिया। | ||
{{seealso|भारत में समाचार पत्रों का इतिहास}} | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
Revision as of 13:52, 4 September 2012
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट वाइसराय लिटन द्वारा 1878 ई. में पास हुआ था। इस एक्ट ने भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाले सभी समाचार पत्रों पर नियंत्रण लगा दिया। किंतु यह एक्ट अंग्रेज़ी में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों पर लागू नहीं किया गया। इसके फलस्वरूप भारतीयों ने इस एक्ट का बड़े ज़ोर से विरोध किया।
- 'वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट' तत्कालीन लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण राष्ट्रवादी समाचार पत्र 'सोम प्रकाश' को लक्ष्य बनाकर लाया गया था।
- दूसरे शब्दों में यह अधिनियम मात्र 'सोम प्रकाश' पर लागू हो सका।
- लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए 'अमृत बाजार पत्रिका' (समाचार पत्र), जो बंगला भाषा की थी, अंग्रेज़ी साप्ताहिक में परिवर्तित हो गयी।
- सोम प्रकाश, भारत मिहिर, ढाका प्रकाश और सहचर आदि समाचार पत्रों के ख़िलाफ़ भी मुकदमें चलाये गये।
- इस अधिनियम के तहत समाचार पत्रों को न्यायलय में अपील करने का कोई अधिकार नहीं था।
- वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को 'मुंह बन्द करने वाला अधिनियम' भी कहा गया है।
- इस घृणित अधिनियम को लॉर्ड रिपन ने 1882 ई. में रद्द कर दिया।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
|
|
|
|
|