उत्तर प्रदेश किसान सभा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:24, 3 August 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''उत्तर प्रदेश किसान सभा''' का गठन वर्ष 1917 में [[मोतीला...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

उत्तर प्रदेश किसान सभा का गठन वर्ष 1917 में मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय और गौरीशंकर मिश्र ने किसानों के हक में किया था। इस किसान सभा में अवध की भागीदारी सबसे अधिक थी। आगे चलकर 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' में कई आंतरिक मतभेद उभर कर सामने आने लगे, जिसके फलस्वरूप अवध के किसान नेताओं ने अपना अलग संगठन 'अवध किसान सभा' के नाम से बना लिया।

किसानों का विद्रोह

4 अगस्त, 1856 में अवध पर ब्रिटिश हुकूमत स्थापित हो जाने के बाद किसानों के अत्यधिक शोषण की शुरुआत हुई। शोषण करने वाले थे- ताल्लुकेदार और जमींदार, जो अंग्रेज़ शासन की पैदाइस थे। विदेशी हुकूमत का हित जमींदारों और तल्लुकेदारों के माध्यम से किसानों से अधिक से अधिक कर वसूलने में था। ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ अवध के किसान 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ही कसमसाने लगे थे, लेकिन किसानों का जमींदारों और ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ संगठित प्रतिरोध 20वीं सदी के दूसरे दशक में अधिक प्रभावी दिखा। हालांकि ब्रिटिश हुकूमत ने ताकत के दम पर किसानों के इस संगठित प्रतिरोध को दबा दिया, किंतु इस प्रतिरोध ने जमींदारों और ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिलाकर रख दीं।

गठन

पंडित मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय और गौरीशंकर मिश्र ने किसानो के हक में 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' का गठन 1917 ई. में किया था। 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' में अवध की सर्वाधिक भागीदारी थी। यह किसान सभा किसानों के हक में ब्रिटिश हुकूमत के सामने अपनी माँगें रखती थी और दबाव डालकर वाजिब माँगें मंगवाती थी।

मतभेद

1921 में गांधीजी के नेतृत्व में शुरू किए गए 'खिलाफत आंदोलन' के सवाल पर 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' में तीखे मतभेद उभरने लगे और परिणाम स्वरूप अवध के किसान नेताओं, जिसमें खासतौर से गौरीशंकर मिश्र, माताबदल पांडेय, झिंगुरी सिंह आदि शामिल थे, ने 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' से नाता तोड़कर 'अवध किसान सभा' का गठन कर लिया। एक महीने के भीतर ही अवध की 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' की सभी इकाइयों का 'अवध किसान सभा' में विलय हो गया। इन नेताओं ने प्रतापगढ़ ज़िले की पट्टी तहसील के खरगाँव को नवगठित किसान सभा का मुख्यालय बनाया और यहीं पर एक किसान कांउसिल का भी गठन किया। 'अवध किसान सभा' के निशाने पर मूलतः जमींदार और ताल्लुकेदार थे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः