उत्तर पश्चिमी सीमा प्रदेश

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उत्तर पश्चिमी सीमा प्रदेश का निर्माण 1901 ई. में हुआ था, जब लॉर्ड कर्ज़न भारत का वायसराय था। सर्वप्रथम लॉर्ड लिटन (1876 से 1880 ई.) ने सीमांत प्रांत की रचना का सुझाव दिया था और इस प्रांत में सिन्ध तथा पंजाब के कुछ भागों को भी सम्मिलित करने का प्रस्ताव रखा था, किंतु उस समय उसका सुझाव नहीं माना गया था।

  • लॉर्ड कर्ज़न ने सिन्ध और पंजाब के प्रांतों को नवनिर्मित सीमांत प्रदेश से अलग रखा और 'डूरण्ड रेखा' के पूर्व के समस्त पख्तून भू-भागों तथा हजारा, पेशावर, कोहाट, बन्नू और डेरास्माइल ख़ाँ के व्यवस्थित ज़िलों को मिलाकर इस प्रांत को एक अलग राजनीतिक इकाई का रूप दिया।
  • इस प्रदेश का शासन चीफ़ कमिश्नर के हाथों में सौंपा गया, जो सीधे वायसराय के नियंत्रण में कार्य करता था। वायसराय की सहायता राजनीतिक विभाग के सदस्य अपने परामर्शों से करते थे।[1]
  • उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत की रचना के फलस्वरूप तत्कालीन पश्चिमोत्तर प्रांत का नाम बदलकर आगरा और अवध का संयुक्त प्रांत रख दिया गया, जिसे साधारणत: यू.पी. (वर्तमान उत्तर प्रदेश) कहा जाने लगा।
  • वर्ष 1932 ई. में उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेश गवर्नर द्वारा शासित होने लगा और वहाँ विधान सभा भी बन गयी।
  • स्वतंत्रता के उपरांत भारत के विभाजन के फलस्वरूप यह पाकिस्तान का एक भाग बन गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 61 |

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